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प्रारंभिक परीक्षा रणनीति

प्रारंभिक परीक्षा

परीक्षा भवन में किन बातों का रखें ध्यान?

  • 21 Aug 2018
  • 44 min read

सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में सफल होने के लिये सिर्फ गंभीर एवं विस्तृत अध्ययन ही आवश्यक नहीं है, अपितु यह समझना भी महत्त्वपूर्ण है कि परीक्षा के दौरान उन दो घंटों में आप क्या करते हैं, और कैसे करते हैं? अतः उन 2 घंटों में सर्वश्रेष्ठ समय-प्रबंधन, विशिष्ट मानसिक एकाग्रता तथा उच्च दिमागी सक्रियता कैसे संभव हो- यह जानना अति आवश्यक है। साथ ही, प्रश्नों की प्रकृति को समझते हुए उन्हें समयानुसार ज़ल्दी हल करने की युक्ति अपनाना भी महत्त्वपूर्ण है। कई दफा ऐसा देखने को मिलता है कि वर्षों-महीनों की जीतोड़ मेहनत और अध्ययन के बावजूद अनेक छात्र परीक्षा भवन में अपेक्षित आत्मविश्वास से नहीं जा पाते हैं। बेहतर समय-प्रबंधन के अभाव में आख़िरकार उनकी सारी मेहनत धराशायी हो जाती है और वे परीक्षा में अपना सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करने से चूक जाते हैं। आप चाहे कितनी भी अच्छी तैयारी क्यों न कर लें, आप जीतेंगे तभी जब अंतिम 2 घंटों में आप औरों से बेहतर व विशिष्ट प्रदर्शन करेंगे। अतः इस मुद्दे पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

परीक्षा भवन में अपनाई जाने वाली रणनीति

  • निस्संदेह परीक्षा भवन में दो घंटों के लिये हर परीक्षार्थी की अपनी रणनीति होती है लेकिन अनुभव की कमी (नए परीक्षार्थी) एवं बार-बार गलती दोहराने की प्रवृत्ति (पुराने परीक्षार्थी) के चलते अधिकांश परीक्षार्थी अच्छी तैयारी के बावजूद परीक्षा में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। 

  • यद्यपि इस संदर्भ में कुछ सर्वमान्य बातें हैं जिनको अमल में लाने पर आपके रणकौशल में इज़ाफा होने की पूरी संभावना है। जैसा कि आपको पता है कि प्रारंभिक परीक्षा में दो प्रश्नपत्र होते हैं; प्रश्नपत्र-1 यानी सामान्य अध्ययन और प्रश्नपत्र-2 यानी सीसैट। लेकिन प्रारंभिक परीक्षा में किये गए परिवर्तन के बाद अब सारा दारोमदार पेपर-1 यानी सामान्य अध्ययन पर है। पेपर-2 यानी सीसैट अब क्वालीफाइंग कर दिया गया है। इसलिये परीक्षार्थियों की रणनीति में प्राथमिकता के तौर पर पेपर-1 यानी सामान्य अध्ययन ही शामिल होना चाहिये। 

  • हालाँकि यह बात सत्य है कि सीसैट वाले पेपर को भी हल्के में नहीं लिया जाना चाहिये। किंतु, मेरिट लिस्ट सामान्य अध्ययन वाले प्रश्नपत्र के आधार पर ही बननी है और इसके लिये कट-ऑफ का निर्धारण भी पेपर-1 यानी सामान्य अध्ययन के आधार पर ही होना है। इसलिये, परीक्षार्थियों को पेपर-1 के 2 घंटे में क्या और कैसे करना है, इस पर ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। 

समय-प्रबंधन

  • पहली और सबसे ज़रूरी बात है पेपर-1 यानी सामान्य अध्ययन की परीक्षा अवधि में समय-प्रबंधन की। वैसे तो समय-प्रबंधन जीवन के हर क्षेत्र में इंसान की बेहतरी के लिये आवश्यक है। चूँकि ‘परीक्षा’ निश्चित समय-सीमा में अपने ज्ञान-कौशल के प्रदर्शन का ही दूसरा नाम है, इसलिये समय-प्रबंधन परीक्षा का अनिवार्य पहलू है।

  • प्रारंभिक परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र में प्रश्नों की कुल संख्या 100 होती है जिन्हें महज 2 घंटे या 120 मिनट में हल करना होता है। इस लिहाज से देखा जाए तो परीक्षार्थियों को हरेक प्रश्न के लिये महज 72 सेकेण्ड का समय मिलता है, जबकि प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्नों की जटिलता और गहराई सर्वविदित है। 

  • अधिकांश प्रश्नों में आरंभ में 2-3 कथन या तथ्य दिये जाते हैं जिनमें से कुछ सही, और कुछ गलत होते हैं। इसके बाद इन कथनों/तथ्यों के संयोजन से जटिल प्रकृति के चार विकल्प दिये जाते हैं, जैसे- कथन 1 और 3 सही हैं और कथन 2 गलत आदि।

  • परीक्षार्थी को 72 सेकेंड के अंदर ही इन विकल्पों में से सही उत्तर को चुनकर, उसके लिये उत्तर-पत्रक में सही गोले को काला करना होता है। ऐसे में प्रश्न के गलत होने का खतरा तो होता ही है, साथ ही कठिन विकल्पों के कारण प्रश्नों को हल करने में ज़्यादा समय भी लगता है। इस कारण कई दफा छात्र पूरा पेपर तक नहीं पढ़ पाते हैं। कहने का तात्पर्य है कि यू.पी.एस.सी. के प्रश्नों की प्रकृति इतनी गहरी और विकल्प इतने जटिल होते हैं कि अंत में समय-प्रबंधन खुद एक चुनौती बन जाता है।

  • इस चुनौती से निपटने का एक तरीका यह है कि सर्वप्रथम वही प्रश्न हल किये जाएँ जो परीक्षार्थी की ज्ञान की सीमा के दायरे में हों। जिन प्रश्नों के उत्तर पता न हों या जिन पर उधेड़बुन हो, उन्हें निशान लगाकर छोड़ देना चाहिये और अगर अंत में समय बचे तो उनका उत्तर देने की कोशिश करनी चाहिये, वरना उन्हें छोड़ देने में ही भलाई है।

  • दूसरा तरीका यह है कि उम्मीदवार सभी प्रश्नों को हल करने का लालच छोड़कर अपने अधिकार क्षेत्र वाले प्रश्न यानी जिन खंडों पर मज़बूत पकड़ हो, उनसे संबंधित प्रश्नों पर ही फोकस करें। हाँ, समय बचने पर अन्य खंडों के प्रश्नों पर ध्यान दिया जा सकता है। 

  • इस मामले में छात्रों को यह सावधानी ज़रूर बरतनी चाहिये कि वे कम-से-कम इतने खंडों का चुनाव अवश्य कर लें जिनसे सम्मिलित रूप से 75-80 प्रश्न उनके दायरे में आ जाएँ। शेष एकाध खंड छूट भी जाए तो बहुत परेशानी वाली बात नहीं है। 

इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि परीक्षार्थियों को प्रति प्रश्न मिलने वाले औसत समय (72 सेकेण्ड) में वृद्धि होगी जिससे वे अपने चुने हुए प्रश्नों पर अधिक ध्यान और समय दे पाएंगे। इस बात को आगे दी गई तालिका के माध्यम से समझाया गया है। 

 आपके द्वारा किये जाने वाले प्रश्नों की संख्या

 कुल समय

 प्रति प्रश्न औसत समय

 100

 2 घंटे/120 मिनट/ 7200 सेकेण्ड

 72 सेकेण्ड/1.2 मिनट

 90

 2 घंटे/120 मिनट/7200 सेकेण्ड

 80 सेकेण्ड/ 1.33 मिनट

 80

 2 घंटे/120 मिनट/ 7200 सेकेण्ड

 90 सेकेण्ड/ 1.5 मिनट

 75

 2 घंटे/120 मिनट/ 7200 सेकेण्ड

 96 सेकेण्ड 1.6 मिनट

 70

 2 घंटे/120 मिनट/ 7200 सेकेण्ड

 103 सेकेण्ड 1.7 मिनट

निगेटिव मार्किंग तथा प्रश्नों को हल करने की टैक्टिक

  • जैसा कि आप लोगों को पता है, प्रारंभिक परीक्षा में किसी भी प्रश्न का गलत उत्तर देने पर, उस प्रश्न के लिये निर्धारित अंकों में से 33% अंक काट दिये जाते हैं। अगर सरल शब्दों में कहें तो एक सही उत्तर पर जितने अंक मिलते हैं, उतने ही अंक तीन गलत उत्तर देने पर काट दिये जाते हैं। इसे ही ‘निगेटिव मार्किंग’ कहते हैं। इस नियम के अनुसार, सामान्य अध्ययन पेपर में प्रत्येक गलत उत्तर के लिये एक-तिहाई यानी 0.66 अंक (प्रश्न के लिये निर्धारित दो अंकों में से) कट जाते हैं। 

  • अगर परीक्षार्थी कोई प्रश्न बिना उत्तर दिये छोड़ देता है तो उस पर न तो अंक मिलते हैं, और न ही काटे जाते हैं। इस स्थिति में परीक्षार्थियों की कोशिश यह होनी चाहिये कि न तो अंधाधुंध खतरे उठाएँ और न ही तुक्के पर तुक्के लगाते जाएँ, और न ही अनुमान करने से इतना घबराएँ कि बहुत कम प्रश्नों को ही हल कर पाएँ।

  • यह परीक्षा परीक्षार्थी से ‘कैल्कुलेटिव रिस्क’ उठाते हुए प्रश्नों को हल करने की सही टैक्टिक की अपेक्षा करती है। प्रश्नपत्र को हल करने के लिये ‘कैल्कुलेटिव रिस्क’ पद्धति को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं-
    1. जहाँ उत्तर का बिल्कुल भी अनुमान न हो अर्थात् प्रश्न का कोई सिर-पैर न सूझ रहा हो तो वहाँ हवाई तुक्का लगाने से बचें, बल्कि समय बचाने के लिये ऐसे प्रश्नों को छोड़ देना ही बेहतर है।
    2. जब उम्मीदवार किसी प्रश्न के चारों विकल्पों में से किसी एक के बारे में जानता हो लेकिन शेष तीन विकल्पों के बारे में उसे कोई जानकारी न हो तो कैल्कुलेटिव रिस्क के आधार पर उसे ऐसे प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश करनी चाहिये। इससे परीक्षार्थियों को अंकों के मामले में अंततः फायदा ही होगा। किंतु इस प्रकार के प्रश्नों को बाकी प्रश्न करने के बाद बचे हुए समय में हल करना श्रेयस्कर होगा।
    3. यदि उम्मीदवार किसी प्रश्न के चारों विकल्पों में से दो के बारे में जानता हो और दो के बारे में नहीं, तो उसे अनुमान के आधार पर उत्तर ज़रूर देना चाहिये । अगर आप 6 प्रश्नों में ऐसा करते हैं और मान लिया जाए कि 50% संभाव्यता के अनुसार आपके 3 प्रश्न सही होते हैं और 3 गलत; तो आपको शुद्ध रूप से 4 अंकों का लाभ मिलेगा जो सफलता की दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है।
    4. प्रश्नों को हल करने की टैक्टिक में छात्रों को हमेशा प्रश्नों की प्रकृति समझते हुए ‘आसान-प्रश्न’ से ‘जटिल-प्रश्न’ की ओर क्रमिक रूप से बढ़ना चाहिये। साथ ही, उन्हें जिन प्रश्नों के उत्तर सीधे तौर पर नहीं आते हों उनमें ‘निष्कासन विधि’ यानी ‘इलेमनेटिंग पद्धति’ का इस्तेमाल करना चाहिये। निष्कासन विधि के तहत चारों विकल्पों में से जिसके गलत होने की संभावना सर्वाधिक हो उसे छाँटते हुए धीरे-धीरे सही उत्तर तक पहुँचना होता है। यह विधि बहुत कारगर है इसलिये परीक्षा देते समय इसका इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिये।

सामान्य अध्ययन या पेपर-1 की रणनीति 

  • आमतौर पर परीक्षा भवन में प्रवेश करने से पहले परीक्षार्थी यह निश्चय ज़रूर कर लेता है कि उसे न्यूनतम या अधिकतम कितने प्रश्न हल करने हैं। इस सोच के पीछे प्रारंभिक परीक्षा के विगत वर्षों के कट-ऑफ आँकड़े तथा आगामी परीक्षा के संभावित कट-ऑफ का अनुमान शामिल होता है।

  •  विगत 5 वर्षों में प्रारंभिक परीक्षा की कट-ऑफ में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है, जिसे  इस सारणी के द्वारा समझा जा सकता है-

 वर्ग

 2011

 2012

 2013

 2014

 2015

 सामान्य वर्ग

 198

 209

 241

 205

 107.34 

 अन्य पिछड़े वर्ग

 175

 190

 222

 204

 106.00

 अनुसूचित जाति

 164

 185

 207

 182

 94.00

 अनुसूचित जनजाति

 161

 181

 201

 174

 91.34

 विकलांग वर्ग-1

 135

 160

199 

 167

 90.66

 विकलांग वर्ग-2

 124

 164

 184

 113

 76.66

 विकलांग वर्ग-3

 096

 111

 163

 115

 40.00

  • अब चूँकि सीसैट को क्वालीफाइंग कर दिया गया है इसलिये कट-ऑफ की दृष्टि से यह अप्रासंगिक हो गया है और सारा दारोमदार पेपर-1यानी सामान्य अध्ययन पर आ गया है। इसलिये, विशेषकर हिन्दी माध्यम के अभ्यर्थियों के लिये सामान्य अध्ययन पेपर की कट-ऑफ विगत पाँच वर्षों की तुलना में अधिक रहने और प्रतिस्पर्धा का स्तर विगत दो-तीन वर्षों की तुलना में बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। 

  • विगत वर्षों के परिणाम के आधार पर वर्ष (2016) सामान्य श्रेणी की संभावित कट-ऑफ 112 से 116 अंकों के बीच रह सकती है (आधिकारिक आँकड़ा अंतिम परिणाम के बाद पता चलेगा), हालाँकि उम्मीदवारों को तैयारी कुछ अधिक अंकों के लिए करनी चाहिये  क्योंकि अगर पेपर आसान आया तो कट ऑफ बढ़ भी सकती है। अन्य श्रेणियों (ओबीसी, एससी, एसटी तथा अन्य) की कट-ऑफ इस बार भी सामान्य वर्ग के सापेक्ष उसी अनुपात में रहनी चाहिये । 

  • इसका सीधा सा अर्थ है कि सामान्य अध्ययन में 55 से 60 प्रश्नों को हर हाल में सही करना होगा। चाहे विज्ञान पृष्ठभूमि के छात्र हों अथवा कॉमर्स, या फिर मानविकी पृष्ठभूमि के, उन्हें अपनी जानकारी और रुचि के मुताबिक कम से कम इतने खंडों को तो अच्छी तरह से तैयार करके परीक्षा भवन में जाना चाहिये जिससे कि वे लगभग 70-75 प्रश्नों को अच्छे से हल कर सकें।

  • सामान्य अध्ययन में अपने लक्ष्य के अनुरूप अंक प्राप्त करने हेतु उम्मीदवार के पास कितने प्रश्न करने और कितने छोड़ने की सुविधा है, इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है।

  • 120 अंकों को आदर्श मानकर परीक्षार्थियों की सहूलियत के लिये ‘सामान्य अध्ययन कैल्कुलेटर’ के नाम से  एक तालिका दी जा रही है ताकि वे इस बात का निर्धारण कर सकें कि उन्हें कितने प्रश्न हल करने हैं, कितने गलत करने या छोड़ने की सुविधा उनके पास है?

 आपका लक्ष्य, जितने अंक आप हासिल करना चाहते हैं

 आपके द्वारा किये गए प्रश्नों की संख्या (कुल 100 में से)

 छोड़े गए प्रश्नों की संख्या

 सही प्रश्नों की संख्या और मिलने वाले अंक

 गलत प्रश्नों की संख्या व कटने वाले अंक

 आपका अंतिम स्कोर

 120

 65

 35

 62 (124)

 3 (2.00)

 122

 120

 70

 30

 63(126)

 7 (4.67)

 121.33

 120

 75

 25

 64 (128)

 11 (7.33)

 120.67

 120

 80

 20 

 65 (130)

 15 (10)

 120

 120

 85

 15

 67 (134)

 18 (12)

 122 

 120

 90

 10

 68 (136)

 22 (14.67)

 121.33

 120

 95

 05

 69 (138)

 26 (17.33)

 120.67

 120

 100

 00

 70 (140)

 30 (20)

 120

सीसैट या पेपर-2 की रणनीति 

  • सीसैट प्रश्नपत्र को क्वालीफाइंग बना दिये जाने के बावजूद भी इसे नज़रअंदाज करना परीक्षार्थियों के हित में कतई नहीं हो सकता। ध्यातव्य है कि यू.पी.एस.सी. की मुख्य परीक्षा में भी अंग्रेज़ी (अनिवार्य पेपर) क्वालीफाइंग होने के बावजूद हर वर्ष हज़ारों की संख्या में छात्र डिस्क्वालीफाई हो जाते हैं। इसलिये छात्रों को प्रारंभिक या मुख्य, किसी भी परीक्षा में क्वालीफाइंग पेपर को हल्के में नहीं लेना चाहिये। अतः परीक्षार्थियों को यह सलाह दी जाती है कि परीक्षा भवन में प्रवेश करने से पहले सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा के द्वितीय प्रश्नपत्र (सीसैट) के लिये भी एक मुकम्मल रणनीति बनाकर ही जाएँ। 

  • बेशक सीसैट वाले पेपर में परीक्षार्थी को 33% या 66 अंक लाने हैं जिसके लिये लगभग 27 प्रश्न ही सही करने हैं किंतु इसके लिये भी परीक्षा के उन दो घंटों में छात्रों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है ताकि प्रारंभिक परीक्षा में आपकी सफलता सुनिश्चित हो सके।

  • इस संदर्भ में ‘सीसैट कैल्कुलेटर’ नाम से एक तालिका दी जा रही है जो छात्रों को परीक्षा में न्यूनतम अर्हक अंक (66 अंक) प्राप्त करने हेतु, कितने प्रश्न करें या कितने छोड़ें, इसकी रणनीति बनाने में मददगार होगी।

 आपके द्वारा किये गए प्रश्नों की संख्या

 आपको कितने प्रश्न ठीक करने ही होंगे?

 आपके प्राप्तांक

 आप अधिकतम कितने प्रश्न गलत कर सकते हैं?

 गलत प्रश्नों पर होने वाला नुकसान

 आपके शुद्ध अंक (जो 66 से अधिक होने चाहिये)

 80

 40

 100

 40

 33.33

 66.67

 75

 39

 97.5

 36

 30

 67.5

 70

 38

 95

 32

 26.67

 68.33

 65

 37

 92.5

 28

 23.33

 69.17

 60

 35

 87.5

 25

 20.83

 66.67

 55

 34

 85

 21

 17.5

 67.5

 50

 33

 82.5

 17

 14.17

 68.33

 45

 32

 80

 13

 10.8

 69.17

 40

 30

 75

 10

 8.33

 66.67

 35

 29

 72.5

 06

 5

 67.5

 30

 28

 70

 02

 1.67

 68.33

 27

 27

 67.5

 00

 00

 67.5

परीक्षा के दौरान किन बातों का ध्यान रखें?

  • उत्तर-पत्रक (Answer-sheet ) मिलने के पश्चात् उसमें दिये गए निर्देशों को ध्यान से पढ़ें। नियत स्थान पर अपना अनुक्रमांक, हस्ताक्षर तथा अन्य सूचनाएँ अंकित करें।

  • प्रश्नपत्र मिलते ही प्रश्नों को हल करना शुरू न करें बल्कि उसके महत्त्वपूर्ण निर्देशों को पढ़ें। संभव है कि उन निर्देशों में कोई महत्त्वपूर्ण और नई सूचना मिले।

  • संपूर्ण प्रश्नपत्र को एक बार सरसरी निगाह से देखने के पश्चात् पुनः समय व्यवस्थित करें जिससे प्रश्नपत्र पूरा करने में समय कम न पड़े। 

  • पहले आसान प्रश्नों या अपने पसंदीदा खंड से संबंधित प्रश्नों को हल करें, इससे आत्मविश्वास बढ़ता है।

  • जल्दी में प्रश्नों को न पढ़ें बल्कि शांति और धैर्य के साथ प्रश्न को दो-तीन बार पढ़ें और सुनिश्चित करें कि वास्तव में क्या पूछा जा रहा है।

  • जिन प्रश्नों को आप पहली बार में हल नहीं कर पाते हैं उन्हें टिक-मार्क करके छोड़ दें। फिर बचे हुए समय में उन्हें हल करने का प्रयास करें। 

  • अपने उत्तर की समीक्षा करने और त्रुटियों को ठीक करने के लिये बाद में कुछ समय बचाकर रखें। 

  • दिमाग में जो जवाब पहले आता है उसे तब तक न बदलें जब तक कि आप को यकीन न हो जाए कि वह गलत है। माना जाता है कि पहले उत्तर में हमारे अवचेतन मन की प्रबल भूमिका होती है। अवचेतन मन में कई ऐसी जानकारियाँ होती हैं जिनके बारे में हमें पता नहीं होता। अवचेतन मन पर आधारित उत्तर आमतौर पर ठीक होते हैं, बेशक प्रचलन की भाषा में उन्हें तुक्का कहा जाए।

  • कई छात्रों की आदत होती है कि वे पहले सारे प्रश्नों को हल कर लेते हैं उसके बाद एक ही बार में उत्तर-पत्रक (Answer-sheet ) भरते हैं। ऐसे छात्रों को सलाह दी जाती है कि वे हर 5-10 प्रश्नों के बाद उत्तर-पत्रक (Answer-sheet ) भरते चलें वरना आपका क्रम गलत हो जाने की या यह प्रक्रिया छूट जाने की संभावना हो सकती है।

  • ओ.एम.आर. शीट पर गलत गोला भर जाने पर उत्तर को मिटाने हेतु रबर, ब्लेड या फ्लूड का इस्तेमाल न करें क्योंकि यह सर्वथा वर्जित है।

  • निरीक्षक द्वारा दी जाने वाली अटेंडेंस शीट पर अपने हस्ताक्षर करें तथा अपने उत्तर-पत्रक पर निरीक्षक के हस्ताक्षर भी अवश्य करवाएँ।

  • प्रथम प्रश्नपत्र की समाप्ति के पश्चात् मिले अंतराल में पेपर-1 के सही-गलत प्रश्नों को लेकर ज़्यादा माथापच्ची न करें। बेहतर होगा कि कुछ तरल पदार्थ ग्रहण कर अगले पेपर की तैयारी में जुट जाएँ या फिर आराम करें।

  • पहले और दूसरे पेपर के बीच के समय में ‘गैप इनर्शिया’ या फिर से ‘एग्ज़ाम फोबिया’ का शिकार न हों बल्कि अपने आत्मविश्वास को उस दौरान भी बनाए रखें। 

  • इस प्रकार, एक सुनियोजित रणनीति के ज़रिये परीक्षार्थी परीक्षा भवन में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर अपनी सफलता सुनिश्चित कर सकते हैं, बशर्ते वे अपने मस्तिष्क में अनावश्यक भ्रम, चिंता या तनाव को स्थान न दें।

कुछ अन्य सुझाव

परीक्षार्थियों को यह समझना ज़रूरी है कि यू.पी.एस.सी. की यह परीक्षा सभी के लिये समान रूप से कठिन है। इसलिये किसी छात्र विशेष को इस मामले में अतिरिक्त तनाव लेने की बजाय परीक्षा भवन की अपनी रणनीति पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिये।  कोई भी परीक्षा सरल या कठिन आपकी तैयारी, रणनीति व मनो...
  • परीक्षार्थियों को यह समझना ज़रूरी है कि यू.पी.एस.सी. की यह परीक्षा सभी के लिये समान रूप से कठिन है। इसलिये किसी छात्र विशेष को इस मामले में अतिरिक्त तनाव लेने की बजाय परीक्षा भवन की अपनी रणनीति पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिये। 

  • कोई भी परीक्षा सरल या कठिन आपकी तैयारी, रणनीति व मनोदशा के अनुरूप ही होती है। यदि आपकी तैयारी बेहतर और परीक्षा भवन की रणनीति सशक्त है तो तय मानिये कि आपकी मनोदशा कभी भी परीक्षा को लेकर तनावग्रस्त नहीं होगी। अतः डरना छोड़कर लड़ने को तैयार रहें। 

  • संभव है कि परीक्षा से एक दिन पहले छात्र तनाव महसूस करें। चूँकि यह सबके साथ होता है, अतः इसे लेकर बहुत ज़्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। ध्यान रखें कि हल्का-फुल्का तनाव सकारात्मक योगदान भी देता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार एक निश्चित स्तर का तनाव हमारे निष्पादन/प्रदर्शन को बढ़ाता है किंतु उससे ज़्यादा तनाव प्रदर्शन को कम भी कर देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि थोड़ा तनाव या डर आपको सतर्क बनाए रखता है तथा लक्ष्य को भूलने नहीं देता है। ‘परीक्षा’ इसी का नाम है। इसलिये इस संदर्भ में फिक्र करने की बजाय इसे सकारात्मक दिशा प्रदान कर जीत सुनिश्चित करनी चाहिये। याद रखें डर के आगे ही जीत है।

  • यू.पी.एस.सी. की परीक्षा बहुत बड़ा मंच है। इसके लिये उम्मीदवार वर्षों अध्ययनरत रहते हैं। किंतु कई दफा बेहतर तैयारी के बावजूद परीक्षा भवन में जाने से पूर्व उन्हें लगता है कि जैसे वे सब कुछ भूल गए हों, उन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा हो तथा दिमाग सुन्न-सा हो रहा हो। ऐसी स्थिति में यदि आपका मित्र कोई प्रश्न पूछ लेता है और आप उसका सही जवाब नहीं दे पाते हैं तो आपका आत्मविश्वास न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाता है। इस प्रकार की परिस्थिति छात्रों के लिये पीड़ादायक होती है। किंतु यहाँ सबसे मजेदार बात यह है कि इस अवधि में भूलना या याद न आना महज एक तात्कालिक स्थिति होती है।

  • तात्कालिक रूप से परीक्षार्थियों को भले यह लगे कि वे सब कुछ भूल गए हैं, किंतु वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं होता। परीक्षार्थियों द्वारा पढ़ी गई समस्त चीज़ें उनके अवचेतन मन में जमा रहती हैं। अत्यधिक तनाव की वजह से भले वह ‘एक्टिव मोड’ में न रहे लेकिन परीक्षा भवन में प्रश्न देखते ही आप पाएंगे कि वह जानकारी प्रश्नों से कनेक्ट होते ही कैसे सक्रिय हो जाती है। फिर उन्हें सब कुछ स्वतः याद आने लगता है। इसलिये, परीक्षार्थियों को दिमाग से यह भ्रम निकाल देना चाहिये कि वे सब कुछ भूल गए हैं। याद रखें, ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता, न ही उसका लोप होता है। बस सही रणनीति के ज़रिये उसे सक्रिय रखना होता है।

  • संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा सिर्फ छात्रों के ज्ञान और व्यक्तित्व का ही नहीं बल्कि उनके धैर्य, साहस और जुझारूपन का भी परीक्षण करती है। 

  • यह महज एक परीक्षा नहीं बल्कि छात्रत्व को गौरवान्वित करने तथा उनकी योग्यता-क्षमता-प्रतिभा को सम्मानित करने का एक मंच भी है। जिस प्रकार आग में तपे-गले बिना सोने में निखार या चमक नहीं आती, वैसे ही परीक्षा की कसौटी पर खरे उतरे बिना छात्र जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं हो सकती। परीक्षा तो परीक्षार्थियों का पुरुषार्थ होता है और ‘सफलता’ उसका आभूषण। लेकिन मेहनत की भट्टी में बिना जले, तनाव के दरिया से बिना गुज़रे इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। यही इसका सौंदर्य है, यही इसका वैशिष्ट्य है। अतः इससे क्या घबराना। 

  • यदि आप इस्पाती ढाँचे (सरकारी मशीनरी) का अहम हिस्सा बनना चाहते हैं तो आपके हौंसले भी चट्टानी होने चाहियें। इसलिये, इस परीक्षा के प्रथम पड़ाव यानी प्रारंभिक परीक्षा में लेशमात्र कोताही या किंचित मात्र कमज़ोरी भी आपके सपने को चकनाचूर कर सकती है। 

  • इस परीक्षा में जीतने की शर्त सिर्फ पढ़ाकू होना नहीं बल्कि जुझारू होना भी है। याद रखिये रणभेरी बजने पर सच्चा सैनिक कभी पीठ नहीं दिखाता बल्कि अपनी संपूर्ण शक्ति समेटकर मैदान में डटकर खड़ा हो जाता है। और आपकी तो तैयारी मुकम्मल है, रणनीति वैज्ञानिक व व्यावहारिक है, फिर डर किस बात का? अतः अंतिम समय में छात्रोचित गुण का परिचय दीजिये और सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा का किला फतह कीजिये। ध्यान रहे, जीतता वही है जो अपनी संपूर्ण शक्ति और सही रणनीति के साथ लड़ता है, वरना आधे-अधूरे मन से कभी भी पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। 

परीक्षा से एक दिन पहले क्या करें, क्या नहीं?

  • गौरतलब है कि प्रारंभिक परीक्षा में दोनों प्रश्नपत्रों के लिये दो-दो घंटे की समयावधियों में अपनाई गई रणनीति की सफलता अन्य बातों के साथ-साथ परीक्षा से एक दिन पहले किये जाने वाले दैनंदिन क्रियाकलापों पर भी निर्भर करती है। 

  • अक्सर ऐसा देखा गया है कि अधिकांश छात्रों के लिये परीक्षा से पिछली रात बड़ी कष्टकारी एवं बेचैन मनोदशा से भरी होती है। नतीजतन, परीक्षार्थी उस रात में ठीक तरह से नींद भी नहीं ले पाते हैं। इसका दुष्प्रभाव उनकी ‘एग्ज़ाम परफॉर्मेंस’ पर पड़ता है। परीक्षा भवन की रणनीति हम चाहे कितनी भी बना लें किंतु उससे एक दिन पहले हमारे समस्त क्रियाकलापों पर हमारा नियंत्रण आवश्यक है। 

  • परीक्षा से एक दिन पूर्व अधिकांश छात्रों की मनोदशा तनावपूर्ण रहती है। कई बार अनावश्यक सोच-विचार के कारण वे इतना तनाव ले लेते हैं कि उन्हें कई तरह की जटिल शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे- ध्यान केंद्रित न कर पाना, स्मृति ह्रास, गलत निर्णयन, आत्यंतिक भावदशा परिवर्तन, व्याकुलता, अत्यधिक चिंतित होना, भय, अवसाद, अनिद्रा, भूख न लगना, सर-दर्द या पेट खराब होना आदि। 

  • दबाव के ये लक्षण शारीरिक, संवेगात्मक तथा व्यवहारात्मक होते हैं। यदि इनका निराकरण न किया जाए तो गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।

  • परीक्षा को लेकर अत्यधिक चिंतित होना तो लगभग हरेक परीक्षार्थी में देखा जाता है लेकिन उस चिंता के वशीभूत होकर अपने परीक्षा प्रदर्शन को कम या खराब कर लेना सफल छात्रों का लक्षण कदापि नहीं हो सकता। 

  • समस्या है तो उसका समाधान भी है। दबाव से निपटने तथा परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिये आशावादी चिंतन, सकारात्मक अभिवृत्ति, संतुलित आहार, व्यायाम, योग तथा पूरी नींद लेना आदि ज़रूरी हैं। 

  • इसलिये छात्रों को विशेष सलाह दी जाती है कि परीक्षा से एक दिन पहले उन्हें अनावश्यक तनाव के बजाय सकारात्मक सोच तथा आशावादी चिंतन पर ही फोकस करना चाहिये। 

  • व्यर्थ की बातों के बारे में सोचकर परेशान होने के बजाय परीक्षार्थियों को यह सोचना चाहिये कि जिस परीक्षा की तैयारी उन्होंने इतनी शिद्दत से की है, उसे एक दिन के नकारात्मक रवैये के कारण गँवाया न जाए। इसलिये, इस एक दिन के लिये छात्रों को अपनी संपूर्ण ऊर्जा स्वयं को पॉज़िटिव बनाए रखने के लिये लगानी चाहिये। 

  • सभी छात्रों के लिये सकारात्मकता का कारक भले ही भिन्न हो किंतु उनका लक्ष्य एक समान है। अतः अनावश्यक बोझ, तनाव या चिंता से अभ्यर्थियों को सर्वथा बचना चाहिये।

  • परीक्षा से एक दिन पहले छात्रों को बहुत ज़्यादा पढ़ाई भी नहीं करनी चाहिये। सिविल सेवा परीक्षा के लिये पढ़ाई की कोई सीमा नहीं है। अतः कोई भी पढ़ाई इस लिहाज से अंतिम या परिपूर्ण नहीं हो सकती। इसलिये छात्रों को समझना चाहिये कि परीक्षा से एक दिन पहले अत्यधिक पढ़ाई करने की बजाय अगले दिन होने वाली परीक्षा के 2 घंटे में क्या रणनीति हो, उस पर गंभीरता से विचार करें तथा परीक्षोपयोगी आवश्यकता की हर वस्तु को व्यवस्थित करें। अतः छात्रों को सलाह दी जाती है कि परीक्षा के एक दिन पहले 5 से 6 बजे तक पढ़ाई बंद कर दें।

  • दिन की शेष अवधि में परीक्षार्थियों को पूर्णतः ‘रिलैक्स्ड मूड’ में रहते हुए परीक्षा भवन की रणनीति बनानी चाहिये। इस दौरान छात्रों द्वारा अपने पसंदीदा संगीत, फिल्म, खेल या अन्य अभिरुचियों में समय व्यतीत करना श्रेयस्कर माना जा सकता है। 

  • ये सारी गतिविधियाँ छात्रों के तनाव को कम करने में कारगर साबित हो सकती हैं। साथ ही, छात्रों को खाने-पीने में वैसी चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिये जिनसे उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाए। इसके अलावा, ऐसे ईर्ष्यालु मित्रों से बात भी नहीं करनी चाहिये जो ऊल-जुलूल प्रश्न पूछकर आपके आत्मविश्वास को डिगा दें। इन बातों से बचते हुए छात्रों को आंतरिक मनन के ज़रिये सकारात्मक रहना ज़रूरी है।

  • अधिकांश छात्रों के लिये परीक्षा-तिथि की पूर्व-रात्रि अत्यंत सोच-विचार और अनिद्रा भरी होती है। तनाव का ज़ोर इतना गहरा होता है कि छात्र किंचित अर्द्धनिद्रा जैसी स्थिति में पूरी रात काट देते हैं और फिर सुबह वे अपने को तरोताजा महसूस नहीं करते हैं। 

  • दरअसल, 6-8 घंटे की स्वस्थ नींद के लिये हमारे मस्तिष्क में पर्याप्त मात्रा में ‘मेलाटोनिन’ नामक रसायन का होना आवश्यक है। परंतु परीक्षा-पूर्व की रात्रि में तनाव बढ़ाने वाले मनोरसायन ‘कार्टिसॉल’ की मात्रा काफी बढ़ जाने से ‘मेलाटोनिन’ की कमी तथा उत्साह व आत्मविश्वास पैदा करने वाले मनोरसायन ‘सेराटोनिन’ का भी स्तर काफी कम हो जाता है। इसे ‘पेपर-पैरासोमनिया’ कहा जाता है।

  • ‘पेपर-पैरासोमनिया’ से ग्रसित छात्र अगले दिन के पेपर के लिये न तो तरोताज़ा महसूस करते हैं, न ही वे आत्मविश्वास से भरे होते हैं। बल्कि पूरी रात की क्षीण हुई मानसिक ऊर्जा की वजह से उन्हें पढ़ी हुई चीज़ें भी परीक्षा भवन में भूलती हुई प्रतीत होती हैं। 

  • अतः ज़रूरत इस बात की है कि परीक्षा-तिथि से पूर्व की रात्रि में परीक्षार्थी शांत व संतुष्टि के मनोभाव से 6 से 8 घंटे की गहरी नींद अवश्य लें। सोने से पहले अपने मन को अगले दिन की परीक्षा की विषय-वस्तु व अन्य सोच विचार में आसक्त न होने दें, बल्कि आत्मसंतुष्टि व आत्मविश्वास भरे मनोभाव से कुछ मनोरंजक गतिविधियों के माध्यम से धीरे-धीरे नींद को अपने ऊपर हावी होने दें। इस प्रकार, परीक्षार्थी को स्वस्थ्य नींद की प्राप्ति होगी और फिर अगले दिन के परीक्षा प्रदर्शन के भी अच्छा रहने की प्रबल संभावना होगी।

परीक्षा के दिन क्या करें?

  • कम से कम 5 से 7 घंटे की अच्छी नींद लेने के बाद परीक्षा वाले दिन प्रातः 5-6 बजे तक हर हाल में उठ जाना चाहिये। 

  • स्नान आदि के बाद अच्छा और सुपाच्य नाश्ता करें। इसके बाद परीक्षोपयोगी समस्त सामग्रियों, जैसे- ब्लैक-बॉल पेन, प्रवेश-पत्र, कार्ड बोर्ड, पानी की बोतल तथा अंतिम समय में दुहराने के लिये कुछ संक्षिप्त नोट्स को व्यवस्थित कर लें। 

  • इसके उपरांत परीक्षार्थी परीक्षा केंद्र पर हर हाल में नियत समय से आधा घंटा पहले पहुँचना सुनिश्चित करें। यदि परीक्षा केंद्र पर पहुँचने के बाद पर्याप्त समय (सामान्यतः आधे घंटे से अधिक) हो तो अपने साथ लाए संक्षिप्त नोट्स को एक सरसरी नज़र से देख लें। 

  • परीक्षा भवन में 15 मिनट पहले प्रवेश करें और अपना अनुक्रमांक देखकर सुनिश्चित स्थान ग्रहण करें। 

  • यदि जरा भी तनाव महसूस हो तो पानी पिएँ, गहरी साँस लें और सकारात्मक विचारों द्वारा अपने मन को उत्साह व आत्मविश्वास प्रदान करें। 

  • उस समय नकारात्मक विचारों को लेशमात्र भी मन पर हावी न होने दें, और पूर्णतः आशावादी रहते हुए ‘जॉली मूड’ के साथ प्रश्नपत्र की प्रतीक्षा करें। खुद पर भरोसा रखें क्योंकि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।

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