लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



प्रिलिम्स फैक्ट्स

प्रारंभिक परीक्षा

रेड सैंडर्स

  • 11 Jan 2022
  • 3 min read

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने रेड सैंडर्स (या रेड सैंडलवुड) को एक बार फिर से अपनी रेड लिस्ट में 'लुप्तप्राय' की श्रेणी में वर्गीकृत किया है।

  • वर्ष 2018 में इसे 'संकट निकट' (Near Threatened) के रूप में वर्गीकृत किया गया था।

Red-Sanders

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • यह प्रजाति ‘पटरोकार्पस सैंटलिनस’ (Pterocarpus santalinus) परिवार की एक भारतीय स्थानिक वृक्ष प्रजाति है, जिसकी पूर्वी घाट में एक सीमित भौगोलिक सीमा है।
    • यह प्रजाति आंध्र प्रदेश के विशिष्ट वन क्षेत्रों के लिये स्थानिक है।
    • रेड सैंडर्स आमतौर पर लाल मिट्टी और गर्म एवं शुष्क जलवायु के साथ चट्टानी तथा परती भूमि में उगते हैं।
  • खतरे:
    • तस्करी, वनाग्नि, मवेशी चराने और अन्य मानवजनित खतरों के साथ-साथ अवैध कटाई।
    • रेड सैंडर्स, जो अपने समृद्ध रंग और चिकित्सीय गुणों के लिये जाने जाते हैं, पूरे एशिया में, विशेष रूप से चीन और जापान में, सौंदर्य प्रसाधन एवं औषधीय उत्पादों के साथ-साथ फर्नीचर, लकड़ी के शिल्प तथा संगीत वाद्ययंत्र बनाने के लिये प्रयोग किये जाते हैं।
  • संरक्षण स्थिति

सैंडलवुड स्पाइक रोग

  • यह एक संक्रामक रोग है जो फाइटोप्लाज़्मा के कारण होता है।
    • फाइटोप्लाज़्मा पौधों के ऊतकों के जीवाणु परजीवी हैं- जो कीट वैक्टर द्वारा संचरित होते हैं और एक पौधे से दूसरे पौधे तक संचरण में शामिल होते हैं।
  • अभी तक इसके संक्रमण का कोई इलाज नहीं है।
    • वर्तमान में इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिये संक्रमित पेड़ को काटने और हटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
  • यह रोग पहली बार वर्ष 1899 में कर्नाटक के कोडागु में देखा गया था।
    • वर्ष 1903 और वर्ष 1916 के बीच कोडागु तथा मैसूर क्षेत्र में दस लाख से अधिक चंदन के पेड़ हटा दिये गए थे।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2