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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 03 दिसंबर, 2021

  • 03 Dec 2021
  • 7 min read

विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस

प्रतिवर्ष 02 दिसंबर को विश्व भर में राष्ट्रीय समुदायों के बीच कंप्यूटर साक्षरता को लेकर जागरूकता पैदा करने और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने हेतु ‘विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस तकनीकी कौशल को बढ़ावा देने पर ज़ोर देता है। इस दिवस का लक्ष्य बच्चों और महिलाओं को और अधिक सीखने तथा कंप्यूटर का अधिक-से-अधिक उपयोग करने में सक्षम बनाना है। ज्ञात हो कि मौजूदा आधुनिक युग में तेज़ी से बढ़ती तकनीक और डिजिटल क्रांति के कारण कंप्यूटर मानव जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है। कंप्यूटर का ज्ञान वर्तमान समय में काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह बहुत सटीक, तीव्र है और कई कार्यों को एक साथ आसानी से पूरा करने में सक्षम है। इसके अलावा यह स्वयं में बड़ी मात्रा में डेटा संग्रहीत कर सकता है और इंटरनेट का उपयोग करके विभिन्न पहलुओं पर जानकारी प्राप्त करने में भी सहायता करता है। इस वर्ष ‘विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस’ का विषय ‘मानव-केंद्रित रिकवरी के लिये साक्षरता: डिजिटल विभाजन को कम करना’ है।

अंतर्राष्‍ट्रीय दिव्‍यांगजन दिवस

समाज के सभी क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष ‘अंतर्राष्‍ट्रीय दिव्‍यांगजन दिवस’ का आयोजन किया जाता है। सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1981 को ‘विकलांगजनों के लिये अंतर्राष्ट्रीय वर्ष’ घोषित किया था। इसके पश्चात् 1983-92 के दशक को ‘विकलांगजनों के लिये अंतर्राष्ट्रीय दशक’ घोषित किया गया। वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 3 दिसंबर को ‘विश्व विकलांगता दिवस’ के रूप में मनाने की शुरुआत की गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, विश्व की 15.3% आबादी किसी-न-किसी प्रकार की अशक्तता से पीड़ित है। इस प्रकार यह विश्व का सबसे बड़ा ‘अदृश्य अल्पसंख्यक समूह’ है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या का मात्र 2.21% ही विकलांगता से पीड़ित है। इस दिवस को मनाने का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य अशक्त-जनों की अक्षमता के मुद्दों पर समाज में लोगों की जागरूकता, समझ और संवेदनशीलता को बढ़ावा देना है। इसके अतिरिक्त यह विकलांगजनों के आत्म-सम्मान, कल्याण और आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करने में उनकी सहायता पर भी ज़ोर देता है।   

डॉ. राजेंद्र प्रसाद 

3 दिसंबर, 2021 को उपराष्‍ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भारत के पहले राष्‍ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी है। 3 दिसंबर, 1884 को जन्मे डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक स्वतंत्रता कार्यकर्त्ता, वकील, विद्वान और भारत के पहले राष्ट्रपति थे। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस का हिस्सा और बिहार तथा महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध नेता थे। जब भारत एक गणतंत्र बना, तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद वर्ष 1950 से वर्ष 1962 तक देश के राष्ट्रपति रहे। वह देश के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले राष्ट्रपति हैं। इसके अलावा वे राष्ट्रपति के तौर पर दो पूर्ण कार्यकालों तक सेवा देने वाले एकमात्र राष्ट्रपति भी हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के एक कार्यकर्त्ता होने के नाते राजेंद्र प्रसाद को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल भेज दिया गया। राजेंद्र प्रसाद को वर्ष 1962 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया था। राजेंद्र प्रसाद का 78 वर्ष की आयु में 28 फरवरी, 1983 को निधन हो गया। पटना में राजेंद्र स्मृति संग्रहालय उन्हें समर्पित है।

नमदा शिल्प

सरकार ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर में पारंपरिक 'नमदा शिल्प’ को पुनर्जीवित करने और बढ़ावा देने के लिये एक पायलट परियोजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य राज्य के ‘कालीन’ निर्यात को 600 करोड़ रुपए से 6,000 करोड़ रुपए तक बढ़ाने का प्रयास करना है। ‘नमदा परियोजना’ से श्रीनगर, बारामूला, गांदरबल, बांदीपोरा, बडगाम और अनंतनाग सहित कश्मीर के छह ज़िलों के 30 नमदा समूहों के 2,250 लोगों को लाभ मिलेगा। ‘नमदा’ सामान्य बुनाई प्रक्रिया के बजाय फेल्टिंग तकनीक के माध्यम से भेड़ के ऊन से बना एक ‘गलीचा’ है। कच्चे माल की अनुपलब्धता, कुशल जनशक्ति और विपणन तकनीकों की कमी के कारण वर्ष 1998 से वर्ष 2008 के बीच इस शिल्प के निर्यात में लगभग 100 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।

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