लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



प्रिलिम्स फैक्ट्स

प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स: 01 अगस्त, 2020

  • 01 Aug 2020
  • 13 min read

मुस्लिम महिला अधिकार दिवस

Muslim Women Rights Day

केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री (Union Minister for Minority Affairs) ने कहा कि 1 अगस्त, 2019 को मुस्लिम महिलाओं को ‘तीन तलाक’ नामक सामाजिक बुराई से मुक्ति मिली थी इसलिये 1 अगस्त को भारत के इतिहास में ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ (Muslim Women Rights Day) ​​के रूप में दर्ज किया गया है।

प्रमुख बिंदु:  

केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने कहा कि भारत सरकार ने तीन तलाक नामक सामाजिक बुराई के खिलाफ कानून लाकर ‘लैंगिक समानता’ सुनिश्चित की है और मुस्लिम महिलाओं के संवैधानिक, मौलिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों को मज़बूत किया है।

भारतीय संविधान में समानता के अधिकार को अनुच्छेद 14 से 18 में निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया गया है-

  • अनुच्छेद-14: विधि के समक्ष समता
  • अनुच्छेद-15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
  • अनुच्छेद-16: लोक नियोजन के विषयों में अवसर की समता
  • अनुच्छेद-17: अस्पृश्यता (छुआछूत) का अंत
  • अनुच्छेद-18: उपाधियों का अंत   
  • मिस्र’ पहला मुस्लिम राष्ट्र था जिसने वर्ष 1929 में तीन तलाक नामक सामाजिक बुराई को समाप्त किया था। जबकि पाकिस्तान ने वर्ष 1956 और बांग्लादेश ने वर्ष 1972 में इस सामाजिक बुराई को समाप्त कर दिया था। 

भारत, नेपाल और यूनाइटेड किंगडम के बीच वर्ष 1947 का समझौता

The 1947 agreement among India, Nepal and United Kingdom

हाल ही में नेपाली विदेश मंत्री ने कहा है कि भारत, नेपाल और यूनाइटेड किंगडम के बीच वर्ष 1947 का समझौता जो गोरखा सैनिकों की सैन्य सेवा से संबंधित है, ‘निरर्थक’ हो गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • नेपाली विदेश मंत्री ने कहा है कि गोरखा सैनिकों की भर्ती अब अतीत की विरासत हो चुकी है यह एक ऐसा एकल द्वार था जिसे नेपाली युवाओं को विदेश जाने के लिये खोला गया था। बदले हुए परिदृश्य में इस समझौते के कुछ प्रावधान संदिग्ध हो गए हैं। अतः वर्ष 1947 का त्रिपक्षीय समझौता निरर्थक हो गया है।    

वर्ष 1947 का त्रिपक्षीय समझौता:

भारत, नेपाल और यूनाइटेड किंगडम के बीच हुए वर्ष 1947 के समझौते के अनुसार, भारत और ब्रिटेन अपने देश की सेना में गोरखाओं लोगों की भर्ती कर सकते हैं।

ब्रिटिश सेना में पहली बार गोरखाओं की भर्ती:

  • ‘आंग्ल-नेपाल युद्ध’ (वर्ष 1814-16) जिसे ‘गोरखा युद्ध’ भी कहा जाता है, के दौरान जब अंग्रेज सेना को अधिक क्षति हुई थी तब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया ने पहली बार अपनी सेना में गोरखाओं को भर्ती किया था। यह युद्ध वर्ष 1816 की सुगौली की संधि पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुआ था।    
  • ‘आंग्ल-नेपाल युद्ध’ के समय ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लाॅर्ड हेस्टिंग्स थे। 

भारतीय सेना में कार्यरत गोरखा सैनिक:

  • उल्लेखनीय है कि नेपाल के गोरखा सैनिक छह दशकों से भारतीय सेना का अभिन्न अंग रहे हैं और वर्तमान में 7 गोरखा रेजिमेंट में कुल 39 बटालियन कार्यरत हैं। 

ग्रामोदय विकास योजना के तहत एक पायलट परियोजना 

A Pilot Project Under Gramodyog Vikas Yojana

30 जुलाई, 2020 को भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) ने ‘ग्रामोदय विकास योजना’ (Gramodyog Vikas Yojana) के तहत अगरबत्ती निर्माण में शामिल कारीगरों को लाभ पहुँचाने एवं ग्रामीण उद्योगों के विकास के लिये एक कार्यक्रम को मंज़ूरी दी।

Gramodyog Vikas Yojana

प्रमुख बिंदु:

  • इस कार्यक्रम के अनुसार, वर्तमान में देश में कुल चार पायलट परियोजना शुरू की जाएंगी। जिनमें से एक पायलट परियोजना पूर्वोत्तर भारत में शुरू की जाएगी।
  • इसके तहत प्रत्येक पायलट परियोजना में कारीगरों के प्रत्येक लक्षित समूह को लगभग 50 स्वचालित अगरबत्ती बनाने की मशीन और 10 मिक्सिंग मशीनें प्रदान की जाएंगी।
    • इस तरह चारों पायलट परियोजनाओं में कारीगरों को कुल 200 स्वचालित अगरबत्ती बनाने की मशीन और 40 मिक्सिंग मशीनें प्रदान की जाएंगी।  
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश में अगरबत्ती के उत्पादन को बढ़ाना और पारंपरिक कारीगरों के लिये स्थायी रोज़गार पैदा करना और उनकी आय में वृद्धि करना है।
  • अगरबत्ती निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिये हाल ही में भारत सरकार द्वारा दो अहम निर्णय लिये गए हैं।
    • आयात नीति में अगरबत्ती को ‘मुक्त व्यापार’ श्रेणी से हटाकर ‘प्रतिबंधित व्यापार’ की श्रेणी में सूचीबद्ध करना।
    • अगरबत्ती निर्माण के लिये उपयोग किये जाने वाले ‘चक्राकार बाँस की छड़ी’ (Round Bamboo Sticks) पर आयात शुल्क 10% से बढ़ाकर 25% करना।   
  • भारत सरकार के इन निर्णयों से अगरबत्ती के स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी और ग्रामीण रोज़गार पैदा करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
  • यह स्वदेशी उत्पादन एवं मांग के बीच के अंतर को कम करने की प्रक्रिया भी शुरू करेगा और देश में अगरबत्ती के आयात को कम करेगा।

खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) की भूमिका:

  • इस कार्यक्रम के तहत खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (Khadi and Village Industries Commission- KVIC) अगरबत्ती बनाने वाली मशीनों के साथ इस क्षेत्र में काम करने वाले कारीगरों को प्रशिक्षण एवं सहायता प्रदान करेगा।
  • KVIC देश में अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले खादी संस्थानों/अगरबत्ती निर्माताओं के साथ गठजोड़ करेगा जो अगरबत्ती बनाने वाले कारीगरों को कार्य एवं कच्चा माल प्रदान करेंगे।
  • यह कार्यक्रम गाँवों एवं छोटे शहरों में अगरबत्ती निर्माण को पुनर्जीवित करने में एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा और लगभग 500 अतिरिक्त नौकरियों का सृजन करेगा।

डिडायमोकॉर्पस/स्टोनफ्लावर

Didymocarpus/Stoneflower

हाल ही में भारतीय एवं चीनी वैज्ञानिकों की एक टीम ने पूर्वोत्तर भारत व चीन के युन्नान (Yunnan) प्रांत में डिडायमोकॉर्पस (Didymocarpus) या स्टोनफ्लावर (Stoneflower) की एक नई प्रजाति ‘डिडायमोकॉर्पस सिनोइंडिकस’ (Didymocarpus Sinoindicus) की खोज की है। 

Didymocarpus

प्रमुख बिंदु: 

  • यह प्रजाति अक्सर नम चट्टानों एवं पत्थरों पर उगती है। और दक्षिण एशिया के वर्षा वनों में पाई जाती है। 
  • स्टोनफ्लावर की चीन में 34 प्रजातियाँ और भारत लगभग 25 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें से अधिकांश पूर्वोत्तर भारत में पाई जाती हैं।        
    • गौरतलब है कि भारतीय एवं चीनी वैज्ञानिकों की टीम द्वारा खोजी गई ‘डिडायमोकॉर्पस सिनोइंडिकस’ को भारत में डिडायमोकॉर्पस जीनस की एक नई प्रजाति के रूप में दर्ज किया गया है।

हाल के वर्षों में खोजी गई ‘डिडायमोकॉर्पस’ जीनस की अन्य प्रमुख प्रजातियाँ:

  • डिडायमोकॉर्पस मोइल्लेरी (Didymocarpus Moelleri):
    • वर्ष 2016 में केरल के वैज्ञानिकों ने अरुणाचल प्रदेश में खोजी गई ‘डिडायमोकॉर्पस मोइल्लेरी’ (Didymocarpus Moelleri) का उल्लेख किया था जिसमें नारंगी रंग का फूल खिलता है और यह अरुणाचल प्रदेश में केवल एक ही स्थान पर पाई जाती है।
  • डिडायमोकॉर्पस भूटानिकस (Didymocarpus Bhutanicus):
    • फरवरी, 2020 में सिक्किम में पहली बार ‘भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (Botanical Survey of India)’ की एक टीम ने डिडायमोकॉर्पस भूटानिकस (Didymocarpus Bhutanicus) की खोज की थी जो पहले केवल भूटान में ही पाई जाती थी।
  • वर्ष 2019 में वैज्ञानिकों ने पहली बार लाओस में डिडायमोकॉर्पस जीनस की एक नई प्रजाति ‘डिडायमोकॉर्पस मिडिलटोनी’ (Didymocarpus Middletonii) को खोजा था इसके बाद वर्ष 2020 की शुरुआत में लाओस में ही ‘डिडायमोकॉर्पस अल्बिफ्लोरस’ (Didymocarpus Albiflorus) को भी खोजा गया जिसमें बर्फ जैसे सफेद फूल खिलते हैं। 

‘डिडायमोकॉर्पस’ जीनस की चार प्रजातियों की पुनः खोज:

Didymocarpuses

1. डिडायमोकॉर्पस एडेनोकॉर्पस (Didymocarpus Adenocarpus):

  • इस प्रजाति को 87 वर्षों बाद उत्तरी मिज़ोरम से पुनः खोजा गया है। 
  • यह उत्तरी मिज़ोरम में उष्णकटिबंधीय नम सदाबहार वनों में आंशिक रूप से छायांकित क्षेत्रों में उगती है।

2. डिडायमोकॉर्पस पैरियोरम (Didymocarpus Parryorum):

  • इस प्रजाति को दक्षिण मिज़ोरम से पुनः खोजा गया है जिसमें छोटे, नारंगी फूल खिलते हैं। 
  • इसे 90 वर्ष बाद पुनः खोजा गया है। 

3. डिडायमोकॉर्पस लाइनिकैप्सा (Didymocarpus Lineicapsa):

  • इस प्रजाति को मिज़ोरम के मामित ज़िले से पुनः खोजा गया है। 

4. डिडायमोकॉर्पस वेंगेरी (Didymocarpus Wengeri):

  • यह प्रजाति दक्षिण मिज़ोरम में सिर्फ दो स्थानों पर खड़ी ढाल के किनारों पर उगती है और IUCN दिशा-निर्देशों के आधार पर वैज्ञानिकों की टीम द्वारा इसे ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2