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Mains Marathon

  • 28 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    दिवस-37. निर्णय लेने की प्रक्रिया में भीड़ के प्रभाव तथा व्यक्तिगत स्वायत्तता के नैतिक सिद्धांत के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित किया जा सकता है? चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भीड़ मानसिकता के बारे में बताइये।
    • निर्णय लेने की प्रक्रिया में भीड़ की मानसिकता के प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि समूह व्यवहार या भीड़ की मानसिकता से प्रभावित होने पर कोई व्यक्ति नैतिक सिद्धांतों को कैसे बनाए रख सकता है।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    भीड़ मानसिकता का आशय व्यक्तियों के एक बड़े समूह द्वारा विचारों, भावनाओं और व्यवहारों को अपनाने की प्रवृत्ति से है। ऐसी स्थितियों में लोग अक्सर अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं या आलोचनात्मक सोच पर सामाजिक प्रभाव को प्राथमिकता देते हैं।

    • इससे ऐसी सामूहिक प्रवृत्ति पैदा हो सकती है जो व्यक्तिगत तर्कसंगतता या नैतिक विचारों को प्रतिबिंबित नहीं कर सकती है जैसे:
      • स्टेडियम या शॉपिंग मॉल जैसे भीड़-भाड़ वाले सार्वजनिक स्थानों पर एक छोटा सा ट्रिगर, जैसे तेज़ शोर या अफवाह, घबराहट और भगदड़ का कारण बन सकता है क्योंकि ऐसे स्थानों पर लोग दूसरों की प्रतिक्रियाओं से प्रेरित होकर बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया करते हैं।

    निर्णय लेने में भीड़ की मानसिकता का प्रभाव:

    • सोशल मीडिया रुझान: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ता अंतर्निहित मुद्दों को पूरी तरह से समझे बिना भी, ऑनलाइन समुदाय की सामूहिक भावना से प्रभावित होकर लोकप्रिय राय या हैशटैग को अपनाते हैं।
    • फैशन और उपभोक्ता विकल्प: लोग अक्सर व्यक्तिगत पसंद या उपयोगिता के बजाय साथियों और समाज के प्रभाव के आधार पर फैशन के रुझान, प्राथमिकताएँ या उत्पाद विकल्प अपनाते हैं।
    • सामाजिक मानदंडों के अनुरूप: लोग अलग दिखने या आलोचना का सामना करने से बचने के लिए समूह व्यवहार के अनुरूप हो सकते हैं, भले ही वह व्यवहार उनके व्यक्तिगत मूल्यों के विपरीत हो।
    • साथियों का दबाव और जोखिम भरा व्यवहार: साथियों का दबाव व्यक्तियों को मादक द्रव्यों के सेवन या खतरनाक एवं जोखिम भरी क्रियाओं में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकता है।

    निर्णय लेने में भीड़ की मानसिकता के साथ व्यक्तिगत स्वायत्तता को संतुलित करना:

    • जागरूकता और चिंतन: समूह के आधार पर निर्णय लेने से पहले व्यक्तियों को अपने स्वयं के मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति सचेत रहने के लिए प्रोत्साहित करना।
      • उदाहरण: किसी विरोध प्रदर्शन में शामिल होने से पहले, कोई व्यक्ति भीड़ की भावनाओं में बह जाने के बजाय इस बात पर विचार कर सकता है कि क्या इसका कारण उनकी व्यक्तिगत मान्यताओं के अनुरूप है।
    • आलोचनात्मक सोच: किसी समूह से घिरे होने पर भी, आलोचनात्मक सोच और सूचना के स्वतंत्र विश्लेषण पर बल देना।
      • उदाहरण: शेयर बाज़ार के रुझानों का आँख मूँदकर अनुसरण करने के बजाय, एक निवेशक को बुनियादी सिद्धांतों के आधार पर निवेश विकल्पों पर शोध और मूल्यांकन करना चाहिये।
    • सीमाएँ निर्धारित करना: व्यक्तिगत सिद्धांतों के विरुद्ध कार्यों में शामिल होने से बचने के लिए व्यक्तिगत और नैतिक सीमाएँ परिभाषित करना।
      • उदाहरण: सोशल मीडिया बहस में एक व्यक्ति को पता होना चाहिये कि आक्रामक समूह व्यवहार के आगे झुकने के बजाय चर्चा से कब अलग होना है।
    • विविध परिप्रेक्ष्य की तलाश: अपनी समझ को व्यापक बनाने के लिए विभिन्न दृष्टिकोण पर विचार करना।
      • उदाहरण: किसी छात्र को किसी विवादास्पद विषय पर अपना रुख बनाने से पहले केवल साथियों की राय पर निर्भर रहने के बजाय विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करना चाहिये।
    • नेतृत्व और रोल मॉडल: नैतिक क्षेत्र के रोल मॉडल का अनुसरण करना जिससे तर्कसंगत निर्णय को बढ़ावा मिलने के साथ नैतिक मूल्यों को बनाए रखा जा सकता है।
      • उदाहरण: एक ऐसे नेता का अनुसरण करना जो विरोध परिदृश्य में शांतिपूर्ण प्रदर्शन और दूसरों के अधिकारों के सम्मान पर ज़ोर देता है।
    • निर्णय लेने के लिए समय निकालना: व्यक्तियों को भीड़ के कार्यों के साथ जुड़ने से पहले व्यक्तिगत चिंतन के लिए समय देना।
      • उदाहरण: सार्वजनिक बहस में भीड़ की भावनाओं को अपनाने से पहले अपनी प्रतिक्रियाओं पर विचार करने के लिए थोड़ा समय दे सकते हैं।
    • मीडिया साक्षरता: सूचना का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने के लिए मीडिया साक्षरता कौशल को बढ़ावा देना।
      • उदाहरण: किसी संकट के दौरान असत्यापित समाचार साझा करने में सतर्क रहना, जिससे गलत सूचना के प्रसार को रोका जा सके।

    भीड़ की मानसिकता के प्रभाव से लिए जाने वाले निर्णय, तर्कसंगत न होने के साथ नैतिक विचारों के विरुद्ध हो सकते हैं। इन प्रभावों के बारे में जागरूकता, व्यक्तियों को सुविज्ञ और सैद्धांतिक विकल्प चुनने के लिए सशक्त बना सकती है। प्रसिद्ध भारतीय आध्यात्मिक नेता, स्वामी विवेकानन्द ने तर्कसंगत विचार एवं आलोचनात्मक मूल्यांकन के महत्त्व पर जोर दिया और कहा कि अंधविश्वास बौद्धिक विकास में बाधा डाल सकता है।

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