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  • 26 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस-36. भारत के विभिन्न शहरी स्थानीय निकायों में प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन तथा स्वच्छता प्रणालियों की कमी हेतु उत्तरदायी प्रमुख कारण कौन-से हैं? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • शहरी स्थानीय निकायों के बारे में बताते हुए अपशिष्ट प्रबंधन से निपटने में उनकी अक्षमता का परिचय दीजिये।
    • प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन के अभाव के कारणों पर प्रकाश डालिये।
    • इसका कोई प्रभावी एवं व्यावहारिक समाधान बताइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    भारत में शहरी स्थानीय निकाय (ULBs), स्थानीय सरकारी निकाय हैं जो शहरों और कस्बों का प्रबंधन करते हैं। 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 का उद्देश्य इन स्थानीय निकायों को अधिक प्रभावी बनाना, स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देना और यह सुनिश्चित करना है कि शहर सतत् विकसित हो सकें।

    आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के 2022 के सर्वेक्षण के अनुसार 55% ULBs के पास पर्याप्त कचरा संग्रहण सुविधाएँ नहीं थीं।

    प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन एवं स्वच्छता प्रणालियों के अभाव हेतु उत्तरदायी कारण:

    • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और संसाधन: CPCB की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय शहरों में उत्पन्न कुल कचरे का केवल 59% ही एकत्र किया जाता है और इस एकत्रित कचरे के बड़े हिस्से का अनुचित तरीके से निपटान किया जाता है।
    • जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण: तीव्र शहरीकरण के कारण अपशिष्ट उत्पादन में वृद्धि हुई है, जिससे मौजूदा अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियाँ प्रभावित हुई हैं।
      • मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढाँचे पर दबाव पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप अपर्याप्त अपशिष्ट निपटान के साथ प्रदूषण बढ़ रहा है।
    • विनियमों का अनुचित प्रवर्तन: खुले डंपिंग के खिलाफ नियमों के बावजूद, इनके प्रवर्तन के अभाव के कारण कई शहरों में अनधिकृत डंपसाइट्स मौजूद हैं।
      • वर्ष 2020 के सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि लगभग 13.8% शहरी परिवारों ने अनियमित कचरा संग्रहण को अपनाया।
    • अपशिष्ट पृथक्करण की कमी: विश्व बैंक रिपोर्ट (2018) का अनुमान है कि भारत में प्रतिदिन लगभग 1,50000 टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसका एक बड़ा भाग अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और संसाधनों के कारण एकत्रित नहीं हो पाता है।
    • बजट आवंटन: आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, नगरपालिका बजट में अपशिष्ट प्रबंधन के लिये आवंटन अक्सर वास्तविक आवश्यकताओं से कम होता है।
      • उदाहरण - भारत के सबसे बड़े शहरों में से एक बेंगलुरु को लगातार अपशिष्ट प्रबंधन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
    • डंपिंग ग्राउंड और लैंडफिल की कमी: दिल्ली में गाज़ीपुर लैंडफिल देश के सबसे बड़े डंपिंग स्थलों में से एक है।
      • इसकी ऊँचाई ताजमहल से भी अधिक है तथा इसकी अस्थिरता और भूस्खलन की संभावना के कारण इसे "टाइम बम" कहा जाता है।

    इससे निपटने के उपाय:

    • सामुदायिक सहभागिता: स्वामित्व की भावना को बढ़ावा देने के लिये अपशिष्ट प्रबंधन योजना, निर्णय लेने और निगरानी में स्थानीय समुदायों को शामिल करना।
      • उदाहरण: चेन्नई में "नम्मा ऊरु नम्मा गेथु" अभियान ने नागरिकों को अपशिष्ट प्रबंधन प्रयासों में शामिल किया, जिसके परिणामस्वरूप अपशिष्ट पृथक्करण में सुधार हुआ तथा कूड़ा-कचरा कम हुआ।
    • स्रोत पर पृथक्करण: घरों और व्यवसायों के स्तर पर कचरे को जैविक, पुनर्चक्रण योग्य और गैर-पुनर्चक्रण योग्य जैसी श्रेणियों में अलग करने के लिये प्रोत्साहित करना।
      • उदाहरण: सूरत नगर निगम द्वारा स्रोत पर पृथक्करण को सफलतापूर्वक लागू किया गया है, जिससे रीसाइक्लिंग दरों में वृद्धि हुई तथा लैंडफिलिंग में कमी आई है।
    • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण: स्थानीय स्तर पर खाद बनाने और पुनर्चक्रण के लिये छोटे पैमाने पर विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित करना।
      • उदाहरण: केरल में अलाप्पुझा नगर पालिका द्वारा विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल लागू किया गया है, जिससे कुछ क्षेत्रों में शून्य-अपशिष्ट की स्थिति को प्राप्त किया जा सके।
    • प्रौद्योगिकी को अपनाना: आधुनिक अपशिष्ट प्रबंधन तकनीकों जैसे अपशिष्ट-से-ऊर्जा, जैव मिथेनेशन और कुशल संग्रह प्रणालियों में निवेश करना।
      • उदाहरण: दिल्ली में "वेस्ट टू वंडर" पहल के तहत कचरे को ऊर्जा एवं निर्माण सामग्री सहित उपयोगी उत्पादों में रूपांतरित किया गया।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs): कुशल अपशिष्ट संग्रहण, प्रसंस्करण और प्रबंधन के लिये निजी संस्थाओं के साथ सहयोग करना।
      • उदाहरण: इंदौर नगर निगम के PPP मॉडल से कचरा संग्रहण एवं परिवहन सेवाओं में सुधार हुआ है।
    • नियमित निगरानी और डेटा संग्रह: अपशिष्ट उत्पादन, संग्रह दर और प्रसंस्करण दक्षता को ट्रैक करने के लिये मज़बूत निगरानी प्रणाली लागू करना।
      • उदाहरण: आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा "स्वच्छ सर्वेक्षण" रैंकिंग द्वार ULBs के स्वच्छता प्रदर्शन का आकलन किया जाता है।

    भारत के 15वें वित्त आयोग ने अपनी सिफारिशों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, जल आपूर्ति और स्वच्छता जैसे कुछ संकेतकों के आधार पर ULBs को प्रदर्शन-आधारित अनुदान के आवंटन का प्रस्ताव दिया है तथा सतत विकास को बढ़ावा देने एवं शहरी क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार हेतु शहरी शासन की भूमिका को मान्यता दी है।

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