इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Mains Marathon

  • 17 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    दिवस 38: "कोविड -19 संकट ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (यूएचसी) के रूप में एक ऐसे मुद्दे को पुनर्जीवित किया है जो भारतीय जीवन शैली का हिस्सा बहुत धीमी गति से बन रहा था "। इस संदर्भ में, भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (यूएचसी) प्राप्त करने की चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल का संक्षिप्त परिचय देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने के मार्गों पर चर्चा कीजिये।
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।

    सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (UHC) में निहित मूल विचार यह है कि भुगतान कर सकने की क्षमता की कमी के कारण किसी को भी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल से वंचित नहीं किया जाना चाहिये। हाल के समय में UHC मानव न्यायसंगतता, सुरक्षा और गरिमा के लिये एक महत्त्वपूर्ण संकेतक बन गया है।

    UHC दुनिया भर में सार्वजनिक नीति का एक स्वीकृत उद्देश्य बन गया है। कई देशों में इस दृष्टिकोण को साकार किया गया है, जिनमें केवल अमीर देश (अमेरिका को छोड़कर) ही नहीं बल्कि ब्राजील, चीन, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे अन्य देश भी शामिल हैं। भारत (या कम से कम कुछ भारतीय राज्यों) के लिये भी इस दिशा में कदम बढ़ाने का यह उपयुक्त समय होगा।

    UHC को साकार करने की राह

    • UHC आम तौर पर दो बुनियादी दृष्टिकोणों—सार्वजनिक सेवा और सामाजिक बीमा में से एक पर या दोनों पर निर्भर होता है।
      • पहले दृष्टिकोण के तहत स्वास्थ्य देखभाल निःशुल्क सार्वजनिक सेवा के रूप में (जिस प्रकार अग्निशमन या सार्वजनिक पुस्तकालय सेवा उपलब्ध होती है) प्रदान किया जाता है।
    • दूसरा दृष्टिकोण अर्थात् सामाजिक बीमा प्रदान करने का दृष्टिकोण स्वास्थ्य देखभाल के निजी और सार्वजनिक प्रावधान दोनों की अनुमति देता है, लेकिन लागत अधिकांशतः मरीज के बजाय सामाजिक बीमा कोष द्वारा वहन की जाती है। यह निजी बीमा बाज़ार से बेहद अलग स्थिति है जहाँ बीमा अनिवार्य और सार्वभौमिक है, जो मुख्य रूप से सामान्य कराधान से वित्तपोषित है तथा सार्वजनिक हित में एकल गैर-लाभकारी एजेंसी द्वारा परिचालित है।
    • मूल सिद्धांत यह है कि सभी को इसके दायरे में लिया जाना चाहिये और बीमा निजी लाभ के बजाय सार्वजनिक हित की ओर उन्मुख हो।

    UHC के मार्ग की चुनौतियाँ

    • जन स्वास्थ्य केंद्रों की अनुपलब्धता:
      • सामाजिक बीमा पर आधारित व्यवस्था में भी लोक सेवा एक आवश्यक भूमिका निभाती है। प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और निवारक कार्यों के लिये समर्पित सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों की अनुपलब्धता रोगियों के लिये हर दूसरे दिन महँगे अस्पतालों में जाने का जोखिम पैदा करती है। इससे पूरी प्रणाली ही बेकार और महँगी हो जाती है।
    • UHC के तहत सेवाओं की पहचान करना:
      • एक और बड़ी चुनौती यह पहचान करने की है कि आरंभ में कौन सी सेवाएँ सार्वभौमिक रूप से प्रदान की जानी हैं और किस स्तर की वित्तीय सुरक्षा स्वीकार्य मानी जाएगी।
      • समग्र आबादी को एक ही तरह की सेवाएँ प्रदान करना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है और इसके लिये भारी संसाधन जुटाने की आवश्यकता होगी।
    • निजी क्षेत्र का विनियमन:
      • सामाजिक बीमा से संबद्ध एक और चुनौती निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को विनियमित करने की होगी। लाभकारी और गैर-लाभकारी प्रदाताओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर करने की आवश्यकता है।
      • गैर-लाभकारी स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं ने दुनिया भर में बहुत अच्छा कार्य किया है।
      • लेकिन लाभकारी स्वास्थ्य देखभाल गहन रूप से समस्याग्रस्त है, क्योंकि वहाँ लाभ कमाने के उद्देश्य और रोगी की भलाई के बीच एक व्यापक संघर्ष की स्थिति पाई जाती है।

    आगे की राह

    • UHC के लिये मानक: HOPS ढाँचे के साथ मुख्य कठिनाई गुणवत्ता मानकों सहित प्रस्तावित स्वास्थ्य देखभाल गारंटी के दायरे को निर्दिष्ट करना है। UHC का अर्थ असीमित स्वास्थ्य देखभाल नहीं है। सार्वभौमिक गारंटी की भी अपनी सीमाएँ होती हैं। HOPS समय के साथ इन मानकों को संशोधित करने के लिये एक विश्वसनीय पद्धति के साथ कुछ स्वास्थ्य देखभाल मानकों को निर्धारित कर सकेगा। भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक जैसे कुछ उपयोगी तत्व पहले से ही उपलब्ध हैं।
    • स्वास्थ्य वित्त पोषण: UHC की प्राप्ति के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि सरकारें अपने देश की स्वास्थ्य वित्तपोषण प्रणाली में हस्तक्षेप करें ताकि गरीबों और कमज़ोर लोगों का समर्थन किया जा सके।
    • इसके लिये अनिवार्य सार्वजनिक शासित स्वास्थ्य वित्तपोषण प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है, जिसमें जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उपयुक्त रूप से धन जुटाने, संसाधनों का निवेश करने और सेवाओं को खरीद में राज्य की मज़बूत भूमिका हो।
    • स्वास्थ्य पर राज्य विशिष्ट कानून: तमिलनाडु अपने प्रस्तावित ‘स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक’ के तहत HOPS को साकार करने के लिये तैयार है। राज्य पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में अधिकांश स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर प्रभावशीलता से उपलब्ध कराने में सफल रहा है।
      • स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल हेतु राज्य की प्रतिबद्धता की एक अमूल्य पुष्टि होगी; यह रोगियों और उनके परिवारों को गुणवत्तापूर्ण सेवाओं की मांग करने के लिये सशक्त करेगा, जिससे प्रणाली को और बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
      • तमिलनाडु की पहल अन्य राज्यों के लिये अनुकरणीय हो सकती है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2