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भारतीय समाज

शहरी बाढ़

  • 01 Jan 2022
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चेन्नई और उसके उपनगरीय इलाकों के कई हिस्सों में भारी बारिश के बाद शहर में जलभराव हो गया था। इस बारिश को वर्ष 2015 के बाद से सबसे भारी बारिश के रूप में चिह्नित किया गया है। वस्तुतः पिछले कई वर्षों में भारत में शहरी बाढ़ आपदाओं की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिससे भारत के बड़े शहर गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। उनमें से कुछ सबसे उल्लेखनीय बाढ की घटनाओं में वर्ष 2020 में हैदराबाद, वर्ष 2001 और 2020 में अहमदाबाद, वर्ष 2002, 2003, 2009 और 2010 में दिल्ली, वर्ष 2004 और 2015 में चेन्नई, वर्ष 2005 में मुंबई, वर्ष 2006 में सूरत, वर्ष 2007 में कोलकाता और वर्ष 2014 में श्रीनगर में आई बाढ़ है। 

  • शहरी बाढ़ की बढ़ती प्रवृत्ति एक सार्वभौमिक घटना है और दुनिया भर में शहरी योजनाकारों के लिये एक बड़ी चुनौती है। नीति आयोग द्वारा भारत में शहरी नियोजन क्षमता पर एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, शहरी नियोजन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है और 7933 शहरी बस्तियों में से 65% के पास कोई मास्टर प्लान नहीं है।
  • शहरी बाढ़ से भूमि या संपत्ति की अत्यधिक हानि होती है क्योंकि अधिक घनी आबादी वाले क्षेत्रों में जल निकासी प्रणालियों की क्षमता सीमित होती है जो भरी बारिश का सामना करने में सक्षम नहीं होती। दुनिया भर में तेज़ी से अवैज्ञानिक, अनियोजित शहरीकरण के कारण शहरी क्षेत्रों की वहन क्षमता अक्सर कम हो जाती है जिससे ऐसी आपदाएँ आती हैं। बाढ़ और जल-जमाव से पता चलता है कि शहरी योजनाकारों ने शहर नियोजन में जल निकासी प्रणाली को बहुत कम महत्त्व दिया है।

शहरी बाढ़ में वृद्धि के कारण

  • अपर्याप्त जल निकासी प्रणाली: हैदराबाद, मुंबई जैसे शहर एक सदी पुरानी जल निकासी प्रणाली पर निर्भर हैं, जो मुख्य शहर के केवल एक छोटे से हिस्से के लिये पर्याप्त है न की पूरे शहर के लिये।
    • पिछले 20 वर्षों में भारतीय शहरों ने अपने मूल निर्मित क्षेत्र से कई गुना वृद्धि की है।
    • जैसे-जैसे शहर अपनी मूल सीमाओं से आगे बढ़ता गया, पर्याप्त जल निकासी व्यवस्था के अभाव को दूर करने के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठाया गया।
  • भू-भाग में परिवर्तन: बड़े-बड़े संपत्ति निर्माताओं ने भू-भाग की संरचना को बदलकर और प्राकृतिक जल निकासी मार्गों में अवरोध डालकर शहर को स्थायी अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचाई है।
  • जल जमाव : भारतीय शहर पानी के लिये अभेद्य होते जा रहे हैं, न केवल बढ़ते हुए निर्माण के कारण बल्कि उपयोग की जाने वाली सामग्रियों की प्रकृति (कठोर, गैर-छिद्रपूर्ण निर्माण सामग्री जो मिट्टी को अभेद्य बनाती है) के कारण भी जल की पैसेज क्षमता कम होती जा रही है जिस कारण जल जमाव की समस्या बढ़ रही है।
  • कार्यान्वयन में कमी: पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA) जैसे नियामक तंत्रों में वर्षा जल संचयन, टिकाऊ शहरी जल निकासी प्रणाली आदि के प्रावधानों के बावजूद उपयोगकर्त्ताओं के साथ-साथ प्रवर्तन एजेंसियाँ भी परियोजनाओं का उपयुक्त कार्यान्वयन नहीं कर पा रही हैं।
  • प्राकृतिक स्थानों का अतिक्रमण: आर्द्रभूमि की संख्या वर्ष 1956 के 644 से घटकर वर्ष 2018 में 123 हो गई है।
    • हरित आवरण केवल 9 प्रतिशत है, जो आदर्श रूप से कम से कम 33 प्रतिशत होना चाहिये था।

आगे की राह

  • समग्र रूप से कोशिश की आवश्यकता: शहरी बाढ़ को अकेले नगरपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। संसाधनों के ठोस और केंद्रित निवेश के बिना बाढ़ का प्रबंधन नहीं किया जा सकता है। 
    • महानगर विकास प्राधिकरण, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राज्य के राजस्व और सिंचाई विभागों के साथ-साथ नगर निगमों को भी इस तरह के काम में शामिल किया जाना चाहिये।
    • इस तरह के निवेश केवल एक मिशन मोड संगठन में किये जा सकते हैं जिसमें महानगरीय स्तर पर नागरिक समाज संगठनों की सक्रिय भागीदारी हो।
  • स्पंज सिटी का विकास: स्पंज सिटी का विचार शहरों को अधिक पारगम्य बनाना है ताकि शहर भारी बारिश के जल को धारण कर उसका उपयोग कर सकें।
    • स्पंज शहर बारिश के जल को अवशोषित करते हैं, जिसे बाद में मिट्टी द्वारा प्राकृतिक रूप से फ़िल्टर किया जाता है और शहरी जलभृतों तक पहुँचने दिया जाता है।
    • इस जल को आसानी से फिल्टर कर शहर में जलापूर्ति के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • आर्द्रभूमि का संरक्षण: स्थानीय समुदायों को शामिल करके आर्द्रभूमि के प्रबंधन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • निस्संदेह, भू-भाग परिवर्तन को कड़ाई से विनियमित करने की आवश्यकता है और ऐसे परिवर्तन, जिससे भू-भाग पर किसी प्रकार का दुष्प्रभाव हो, प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है।
    • जल को अवशोषित करने या जल जमाव में कमी लाने के लिये शहर की क्षमता में सुधार करने हेतु छिद्रयुक्त निर्माण सामग्री और प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • इन तकनीकों के उदाहरण हैं बायोस्वाल्स (Bioswales) और रिटेंशन सिस्टम, सड़कों तथा फुटपाथ के लिये पारगम्य सामग्री, जल निकासी प्रणाली जो भारी बारिश के जल को ज़मीन तक पैसेज (Passage) प्रदान करे
  • ड्रेनेज प्लानिंग: वाटरशेड मैनेजमेंट और इमरजेंसी ड्रेनेज प्लान को नीतियों और कानूनों में स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिये।
    • शहरी वाटरशेड सूक्ष्म पारिस्थितिक जल निकासी प्रणाली हैं, जिसे क्षेत्रों के आधार पर डिज़ाइन किया जाता है।
  • जल के प्रति संवेदनशील शहरी नियोजन: शहरों का नियोजन स्थलाकृति, सतहों के प्रकार (पारगम्य या अभेद्य), प्राकृतिक जल निकासी को ध्यान में रख कर किया जाना चाहिये जिससे पर्यावरण पर बहुत कम दुष्प्रभाव पड़े।
    • सुभेद्यता विश्लेषण और जोखिम मूल्यांकन (Vulnerability Analyses and Risk Assessments) को शहरी नियोजन का अभिन्न अंग होना चाहिये।
    • बदलते परिवेश को ध्यान में रखते हुए जल निकासी के बुनियादी ढाँचे (विशेषकर भारी जल निकासी) का निर्माण करना होगा।

निष्कर्ष:

इन सभी को अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत), नेशनल हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड ऑग्मेंटेशन योजना (हृदय) और स्मार्ट सिटीज़ मिशन की तर्ज पर एक शहरी मिशन के माध्यम से प्रभावी ढंग से सुनियोजित किया जा सकता है।

शहरी बाढ़ प्रबंधन न केवल बार-बार आने वाली बाढ़ को नियंत्रित करने में मदद करेगा, बल्कि अधिक हरित स्थान प्रदान करेगा और शहर को अन्य प्राकृतिक आपदाओं के प्रति लचीला और टिकाऊ बनाएगा।

पर्याप्त किफायती आवास उपलब्ध कराकर संवेदनशील क्षेत्रों में अवैध बस्तियों को बंद करने से बदलती जलवायु के कारण प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की संख्या में कमी लाई जा सकती है।

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