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द बिग पिक्चर: सोशल मीडिया- नए नियम और निहितार्थ

  • 07 Jun 2021
  • 12 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत सरकार ने 'महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़’ (Significant Social Media Intermediaries- SSMIs) श्रेणी में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हेतु नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों (New IT Rules) की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु: 

  •  नए सूचना प्रौद्योगिकी, 2021:
    • फरवरी 2021 में केंद्र सरकार ने 'सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) 2021' (The Information Technology (Guidelines for Intermediaries and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021) को अधिसूचित किया और इसका अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु तीन माह का समय दिया गया था।
      • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से होने वाले उत्पीड़न/परेशानी और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों के संबंध में लोगों द्वारा भारी मांँग के बाद इन नियमों को अधिनियमित किया गया।
    • उद्देश्य: नियमों का उद्देश्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के सामान्य उपयोगकर्त्ताओं को उनकी शिकायतों के निवारण हेतु और उनके अधिकारों के उल्लंघन के मामले में जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
      •  सोशल मीडिया द्वारा सही एवं उचित जानकारी का स्रोत बना रहे, इस बात को सुनिश्चित करने हेतु दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।
    • कवरेज/क्षेत्राधिकार: नए आईटी नियम ओटीटी प्लेटफॉर्म (OTT Platforms), सोशल मीडिया (Social Media) के साथ-साथ डिज़िटल समाचार मीडिया संगठनों से संबंधित हैं।
      • हालाँकि डिजिटल समाचार मीडिया संगठन पहले से ही भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India’s) की आचार संहिता से जुड़े हुए हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय से जुड़े मामलें:
    • इन नियमों का आधार या उत्पत्ति  प्रज्वला बनाम भारत संघ (Prajwala case v/s Union of India) मामले में निहित है। सर्वोच्च न्यायालय  ने सरकार को आवश्यक दिशा-निर्देश/मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure- SOP) तैयार करने तथा होस्टिंग प्लेटफॉर्मों से "बाल अश्लीलता, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की इमेजरी वीडियो और सामग्री तथा इस प्रकार की सामग्रियों के अन्य अनुप्रयोगों को साइटों से हटाने  हेतु आदेश दिया।
    • वर्ष 2018 मामले में तहसीन एस. पूनावाला (Tehseen S. Poonawalla), मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को "विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर गैर-ज़िम्मेदार और ऐसे हिंसक संदेशों के प्रसार को रोकने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की, जिसमें भीड़ में हिंसा को भड़काने और किसी भी तरह की लिंचिंग को उकसाने की प्रवृत्ति हो।

दिशा-निर्देशों का अवलोकन:

  • सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़ का वर्गीकरण: नए दिशा-निर्देश में सोशल मीडिया इंटरमीडियरी को निम्नलिखित श्रेणियों वर्गीकृत किया गया है:
    • रेगुलर सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़(Regular Social Media Intermediaries- RSMIs)
    • इंपोर्टेंट  सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़  (Significant Social Media Intermediaries- SSMIs)
      • SSMI में वे इंटरमीडियरीज़ शामिल हैं जिनके पास 5 मिलियन से अधिक या 50 लाख उपयोगकर्त्ता हैं।
  • अधिकारियों की नियुक्ति: SSMI को निम्नलिखित अधिकारियों की नियुक्ति करने की आवश्यकता होती है, जो सभी भारत के निवासी होने चाहिये:
    • एक मुख्य अनुपालन अधिकारी।
    • एक नोडल संपर्क अधिकारी जो 24 घंटे और 7 दिन उपलब्ध होगा।
    • एक निवासी शिकायत अधिकारी।
  • शिकायत निवारण तंत्र: नए दिशा-निर्देशों के तहत, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों हेतु शिकायत निवारण तंत्र का प्रावधान है यदि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर साझा की गई कोई भी सामग्री सार्वजनिक आदेश का उल्लंघन करती है या नियामक नहीं है, तो उसके बारे में शिकायत निवारण अधिकारी को शिकायत दर्ज की जा सकती है।
    • अधिकारी को 24 घंटे के भीतर शिकायत पर संज्ञान लेना होगा तथा 15 दिनों के भीतर इसका समाधान करना होगा।
    • विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामलों में 24 घंटे के भीतर शिकायत का समाधान करने का दायित्व होता है।
  • मासिक रिपोर्ट: SSMIs को प्राप्त शिकायतों की संख्या और प्रतिक्रिया में की गई कार्रवाई का उल्लेख करते हुए एक मासिक रिपोर्ट प्रकाशित करने की भी आवश्यकता होती है।
  • सत्यापन: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हेतु एक स्वैच्छिक सत्यापन तंत्र की भी आवश्यकता होती है जैसे- ट्विटर सत्यापित उपयोगकर्ताओं हेतु एक ब्लू-टिक तंत्र (Blue-Tick Mechanism) प्रदान करता है।
  • संदेशों के प्रवर्तकों की पहचान करना: नए नियम व्हाट्सएप, सिग्नल और टेलीग्राम जैसे प्लेटफॉर्म से  "गैरकानूनी" संदेशों को भेजने वालों की पहचान करने हेतु अनिवार्य हैं जबकि, सोशल मीडिया नेटवर्क को एक विशिष्ट समय सीमा के भीतर ऐसे संदेशों को हटाने की आवश्यकता होती है।
  • SSMIs द्वारा इन कानूनों का अनुपालन न करने के परिणामस्वरूप उन्हें  IT अधिनियम की धारा 79 के तहत प्रदान की जाने वाली 'सेफ हार्बर’ (Safe Harbour) सुरक्षा समाप्त की जा सकती है।
    • यह तीसरे पक्ष के उपयोगकर्त्ताओं द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट की गई सामग्री के  दायित्व (सिविल के साथ-साथ आपराधिक) के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।

संबंधित मुद्दे:

  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: सामग्री का पता लगाना एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन (End-to-End Encryption) के बिल्कुल विपरीत है।
    • सामग्री के प्रवर्तक (Content Originator) और सामग्री का पता लगाना उपयोगकर्ताओं के गोपनीयता के मौलिक अधिकार (Right To Privacy) का उल्लंघन है।
    • दिशा-निर्देश खुले और सुलभ इंटरनेट (Open and Accessible Internet) तक पहुँच के नियमों को भी कमज़ोर करते हैं।
  • उचित विधान के बिना पेश किये गए नियम: कई नए नियमों को लाने के बारे में आलोचना की गई है जिन्हें केवल सामान्य रूप से  विधायी कार्रवाई के माध्यम से शुरू किया जा सकता था।
    • ये नए नियम किसी संसदीय अनुमोदन पर आधारित नहीं हैं तथा इन्हें आईटी अधिनियम की धारा 79 का उपयोग करके मनमाने ढंग से बनाया गया है।
    • इसके अलावा इनसे संबंधित सार्वजनिक परामर्श भी नहीं किया गया था।
  •  इंटरमीडियरी की चिंताएँ: इन नियमों से आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत इंटरमीडियरी को दी गई 'सेफ हार्बर' सुरक्षा का क्षरण होता है।
    • इसके अलावा सभी स्तरों पर नियमों को प्लेटफॉर्म प्रदान करने हेतु अधिक खर्च और श्रम की आवश्यकता होती है।
  • निष्पक्ष सामग्री से वंचित:  इंटरमीडियरीज़ को अब सरकार से आदेश मिलने पर 36 घंटों के भीतर सामग्री को हटाना होगा।
    • यह एक सख्त समय-सीमा के कारण तथा सरकार के आदेश से असहमत होने की स्थिति में मध्यस्थ को उचित साधनों से वंचित होना पड़ सकता  है।
  • डेटा संरक्षण कानून का अभाव: ऐसे देश में जहाँ नागरिकों के पास अभी भी किसी भी पार्टी द्वारा दी गई गलत जानकारियों से खुद को बचाने हेतु डेटा संरक्षण कानून (Data Protection Law) नहीं है, ऐसे नियम ज़्यादा नुकसानदायक साबित हो सकते हैं।

आगे की राह: 

  • जवाबदेही तय करना: अगर कोई आपत्तिजनक सामग्री साझा की जाती है तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म खुद को ज़िम्मेदारी नहीं मानते हैं। हालाँकि वे अक्सर अपने प्लेटफॉर्म पर सामग्री को संपादित, प्रचारित और ब्लॉक करते हैं।
    • इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिये कि कुछ प्लेटफॉर्मों में लगभग 50 करोड़ भारतीय उपयोगकर्त्ता शामिल हैं और यहाँ तक कि दूरदराज़ के इलाकों में भी उनकी पहुंँच है।
    • एक सकारात्मक पहलू से देखने पर ये दिशा-निर्देश किसी भी अपराध की रोकथाम सुनिश्चित करने हेतु इन प्लेटफॉर्मों को जवाबदेह बनाने में मददगार साबित होंगे।
  • डेटा संरक्षण कानून: नागरिकों की निजता के अधिकार को सुरक्षित करने और आईटी नियमों को उनके अंतिम उद्देश्य की पूर्ति करने हेतु व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 (Personal Data Protection Bill, 2019) को पारित करने में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
  • हितधारकों के साथ विचार-विमर्श: नए नियमों के साथ वास्तव में कई समस्याएं हैं, लेकिन प्रमुख मुद्दा यह था कि इन्हें बिना किसी सार्वजनिक परामर्श के पेश किया गया था।
    • इन नियमों के बारे में चल रही आलोचना का समाधान इन्हें फिर से नए सिरे से प्रकाशित करना है।

निष्कर्ष: 

  • दिशा-निर्देश, अंततः सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के अंतिम उपयोगकर्ताओं के बारे में हैं, बाद में इन नियमों की वृद्धि पूर्व में किये गए इनके क्रियान्वयन पर निर्भर करती है।
  • अंतिम उपयोगकर्त्ताओं के हितों को सुनिश्चित करना प्राथमिकता होनी चाहिये तथा ऐसे किसी भी तरह के नियम और विनियम नहीं बनने चाहिये जो उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन करते हों।
  • इसके अलावा गलत और झूठी सूचनाओं पर अंकुश लगाने हेतु  कानून और व्यवस्था का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है, लेकिन इस बात को भी सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि नागरिकों की गोपनीयता से किसी भी प्रकार का कोई समझौता न हो।
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