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भारतीय अर्थव्यवस्था

द बिग पिक्चर : पूर्वव्यापी करों का समापन

  • 27 Aug 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने लोकसभा में कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया है।

प्रमुख बिंदु

  • विधेयक का उद्देश्य कंपनियों के खिलाफ मई 2012 से पहले के ऐसे कर दावों को समाप्त करना है, जिसमें भारतीय संपत्ति का अप्रत्यक्ष हस्तांतरण शामिल है।
    • यह विधेयक काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पूर्वव्यापी कराधान के मुद्दे से संबंधित है।
  • पूर्वव्यापी लेवी (Retrospective Levy) को समाप्त करने से कराधान कानूनों में अस्पष्टता के लिये ज़िम्मेदार एक प्रमुख कारण का समाधान हो गया है एवं निवेशकों के लिये इस संबंध में स्पष्टता सुनिश्चित हुई है।

पृष्ठभूमि: 

  • यूएस-आधारित वोडाफोन के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद वर्ष 2012 में पूर्वव्यापी कर कानून पारित किया गया था।
    • वोडाफोन समूह की डच शाखा ने वर्ष 2007 में केमैन (Cayman) आइलैंड्स-आधारित एक कंपनी खरीदी, जिसने अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय फर्म हचिसन एस्सार लिमिटेड (Hutchison Essar Ltd) में बहुमत में हिस्सेदारी रखी, बाद में इसका नाम बदलकर वोडाफोन इंडिया (11 बिलियन डॉलर की) कर दिया गया। 
  • इसे वित्त अधिनियम में संशोधन के बाद पेश किया गया था, जिसने कर विभाग को सौदों के लिये पूर्वव्यापी पूंजीगत लाभ कर लगाने में सक्षम बनाया, वर्ष 1962 के पश्चात् से इसमें भारत में स्थित विदेशी संस्थाओं में शेयरों का हस्तांतरण भी शामिल है।
  • जबकि संशोधन का उद्देश्य वोडाफोन को दंडित करना था, कई अन्य कंपनियाँ एक-दूसरे के अंतर्विरोध (Crossfire) में फँस गईं और वर्षों से भारत के लिये समस्याएँ उत्पन्न कर रही हैं।
    • यह आयकर कानून में सर्वाधिक विवादास्पद संशोधनों में से एक है।
  • पिछले वर्ष भारत ने हेग में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण में केयर्न एनर्जी पीएलसी और केयर्न यूके होल्डिंग्स लिमिटेड (Cairn Energy Plc and Cairn UK holdings Ltd) कंपनी पर उनके द्वारा प्राप्त किये गए कथित पूंजीगत लाभ पर कर लगाने के खिलाफ एक मामले को तब खारिज कर दिया था, जब वर्ष 2006 में उसने स्थानीय इकाई को सूचीबद्ध करने से पहले देश में अपने व्यवसाय को पुनर्गठित किया था।

पूर्वव्यापी कराधान:

  • यह एक देश को कुछ उत्पादों, वस्तुओं या सेवाओं और सौदों पर कानून पारित होने की तारीख के पूर्व अवधि से कर लगाने का नियम पारित करने की अनुमति देता है।
  • पूर्वव्यापी कराधान से उन कंपनियों को हानि होती है, जिन्होंने जान-बूझकर या अनजाने में कर नियमों की अपने फायदे के हिसाब से अलग-अलग व्याख्या की थी।
  • भारत के अलावा यूएसए, यूके, नीदरलैंड, कनाडा, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया और इटली सहित कई देशों ने पूर्वव्यापी रूप से कंपनियों पर कर लगाया है।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ

  • पूर्वव्यापी कराधान को समाप्त करना: विधेयक में आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन प्रस्तावित है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यदि लेन-देन 28 मई, 2012 से पहले किया गया था तो पूर्वव्यापी संशोधन के आधार पर कोई नई कर की मांग नहीं की जा सकती है।
  • कर के निरस्तीकरण की शर्तें: मई 2012 से पहले भारतीय संपत्ति के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण के लिये लगाया गया कर "निर्दिष्ट शर्तों को पूरा करने पर शून्य" हो जाएगा, जैसे कि लंबित मुकदमे की वापसी और ऐसी वचनबद्धता कि नुकसान का कोई दावा दायर नहीं किया जाएगा।
  • पूर्वव्यापी कर राशि की वापसी: बिल में इन मामलों में मुकदमे का सामना करने वाली कंपनियों द्वारा भुगतान की गई राशि को बिना ब्याज के वापस करने का भी प्रस्ताव है।

पूंजी लाभ:

  • यह वृद्धि या लाभ 'आय' की श्रेणी में आता है।
  • इसलिये उस वर्ष में इस राशि के लिये पूंजीगत लाभ कर का भुगतान करना आवश्यक होगा जिसमें पूंजीगत संपत्ति का हस्तांतरण होता है। इसे पूंजीगत लाभ कर कहा जाता है, जो अल्पकालिक या दीर्घकालिक हो सकता है।
  • दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर: यह एक वर्ष से अधिक समय तक रखी गई संपत्ति की बिक्री से होने वाले मुनाफे पर लगाया जाता है। कर देने वाले वर्गों (Tax Bracket) के आधार पर ये दरें 0%, 15% या 20% हैं।
  • लघु अवधि का पूंजीगत लाभ कर: यह एक वर्ष या उससे कम समय के लिये रखी गई संपत्ति पर लागू होता है और सामान्य आय के रूप में कर लगाया जाता है।

 वैश्विक निवेशकों पर प्रभाव

  • निवेशकों के लिये स्पष्टता: संशोधन अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों को सभी संभावित या पहले से मौजूद निवेशों के बारे में अधिक स्पष्टता प्रदान कर सकता है।
  • विश्वसनीयता स्थापित करना: मंज़ूरी मिलने पर यह विधेयक किसी मुद्दे को हल करने में भारत सरकार के साथ उद्योग जगत की साझेदारी को बढ़ावा देगा एवं उनमें विश्वसनीयता की भावना पैदा करेगा।
    • मौजूदा मामलों को उनके तार्किक निष्कर्ष तक पहुँचने दिया जाएगा।
  • निवेश के प्रति अधिक प्रतिबद्धता: निवेशकों में कर-आतंकवाद (Tax Terrorism and Tax Uncertainty) और कर-अनिश्चितता का डर होता है। यदि कानून पारित हो जाता है तो निश्चितता सुनिश्चित होगी तथा वैश्विक उद्योग भारत में निवेश करने के लिये और अधिक उत्सुक एवं प्रतिबद्ध होंगे।
  • तनावग्रस्त क्षेत्रों को संबोधित करना: विधेयक से दूरसंचार और तेल अन्वेषण जैसे कुछ तनावग्रस्त क्षेत्रों को संबोधित करने का भी अवसर मिलेगा।

संबंधित मुद्दे:

  • विधेयक पहले से चले आ रहे मामलों में केवल मूलधन की वापसी की अनुमति देता है, ब्याज की नहीं।
  • हालाँकि इनमें से कुछ मामलों में ब्याज काफी अधिक होता है, जिसे ये कंपनियाँ छोड़ नहीं सकती हैं।

आगे की राह

  • निवेशकों के लिये निरंतरता सुनिश्चित करना: चाहे व्यापार शुल्क में उतार-चढ़ाव हो या जीएसटी की दरों एवं नियमों में बदलाव, भारत को अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये नीतियों में अधिक स्पष्टता और निरंतरता प्रदर्शित करने की आवश्यकता है।
  • व्यापार अनुकूल माहौल उपलब्ध करना: अप्रत्यक्ष हस्तांतरण पर पूर्वव्यापी कर लेवी को हटाने के लिये विदेशी निवेशकों की दीर्घ अवधि से लंबित मांगों का समाधान कर भारत को एक अधिक आकर्षक निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित करेगा और निवशकों को इस संबंध में निश्चितता प्रदान करेगा कि अब ऐसा कोई कर पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होगा।
  • विवाद समाधान तंत्र: विवादों को अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में जाने से रोकने, लागत और समय बचाने के लिये भारत को सीमा पार लेन-देन हेतु सार्थक और स्पष्ट विवाद समाधान तंत्र तैयार करने की आवश्यकता है।
  • मध्यस्थता तंत्र में बदलाव लाना: भारत को एक बेहतर मध्यस्थता तंत्र की ज़रूरत है, खासकर जब वह वर्तमान में त्वरित आर्थिक सुधार और COVID-19 महामारी के मोड़ पर खड़ा है।
    • मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार से व्यापार में सुगमता पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

निष्कर्ष

  • पूर्वव्यापी कराधान को हटाना स्पष्ट रूप से सही कार्य है क्योंकि पूर्वव्यापी रूप से लागू होने वाले कराधान नियम देश को एक आकर्षक और बेहतर निवेश माहौल उपलब्ध कराने में बाधक हैं।
  • इस तरह के पूर्वव्यापी संशोधन कर निश्चितता के सिद्धांत के विरुद्ध हैं।
  • साथ ही भारत में कराधान कानून कैसे कार्य करते हैं, यह स्पष्ट होना उद्योगों, व्यापारिक समुदाय और निवेशकों के लिये वास्तव में महत्त्वपूर्ण है।
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