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राज्यसभा

विशेष/इन-डेप्थ: 'निफा' वायरस (NiV)

  • 23 May 2018
  • 19 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

हाल ही में देश के दक्षिणी राज्य केरल के कोझिकोड शहर में 'निफा' (NiV) वायरस की चपेट में आने से एक ही परिवार के तीन सदस्यों की अचानक मृत्यु होने की खबर जब सामने आई तो लोगों के मन-मस्तिष्क में कुछ वर्ष पूर्व हुई 'इबोला' तथा 'ज़ीका' व 'स्वाइन फ्लू' वायरस की भयावहता कौंध गई।

पहले 'निफा' वायरस की प्रकृति का पूरी तरह से पता नहीं चल पाया था, लेकिन मृतकों की बीमारी के पीछे कौन-सा वायरस है, यह पता लगाने के लिये मृतकों के रक्त तथा अन्य सैंपल पुणे में नेशनल वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट को भेजे गए, जहाँ निफा वायरस होने की पुष्टि हुई।

  •  विशेषज्ञ इसे ज़ूनोटिक (जीव-जंतुओं से मनुष्यों में फैलने वाला) संक्रमण का नाम देते हैं, जो जानवरों से मनुष्यों में फैलता है। पशुओं से मनुष्य में फैलने वाली बीमारियों को ज़ूनोटिक रोग कहा जाता है। 
  • विश्वभर में इस प्रकार की लगभग 150 बीमारियां हैं। इनमें रेबीज़, ब्रूसेलोसिस, क्यूटेनियस लिसमैनियसिस, प्लेग, टी.बी., टिक पैरालाइसिस, गोल कृमि, साल्मोनिलोसिस जैसी बीमारियां शामिल हैं। 
  • उल्लेखनीय है कि प्रति वर्ष 6 जुलाई को इन रोगों के प्रति जारूकता उत्पन्न करने के लिये विश्व ज़ूनोटिक दिवस मनाया जाता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

प्रभावित क्षेत्रों में बरती जाने वाली सावधानियाँ 

  • उपरोक्त तीनों की मृत्यु के 12 घंटे के भीतर कोझिकोड और मलप्पुरम में इन्हीं लक्षणों के साथ आठ और लोगों की मृत्यु होने की सूचना मिली। 
  • निफा से पीड़ित उपरोक्त परिवार की तीमारदारी के क्रम में एक नर्स भी इसकी चपेट में आ गई और उसकी भी मौत हो गई। 
  • नर्स की माँ, उसके पति तथा अन्य परिजनों को भी शव के पास जाने नहीं दिया गया और उसका अंतिम संस्कार स्वास्थ्यकर्मियों ने अस्पताल के भीतर विद्युत शवदाह गृह में किया। 
  • प्रभावित इलाकों में लोगों से अपील की गई है कि वे कम-से-कम दो सप्ताह तक उन इलाकों में अपने रिश्तेदारों के पास न जाएँ, जहाँ संक्रमण फैला है। 
  • लोगों से यह भी सुनिश्चित करने को कहा गया है कि जो खाना खाएँ वह किसी चमगादड़ या उसके मल से दूषित नहीं हुआ हो। 
  • चमगादड़ के कुतरे हुए फल न खाएँ। खजूर के पेड़ के पास खुले बरतन में बनी कच्ची शराब (Toddy) न पीएँ। 
  • संक्रमण से पीड़ित किसी भी व्यक्ति से संपर्क न करें, यदि मिलना ही पड़े तो बाद में साबुन से अपने हाथों को अच्छी तरह से धो लें।
  • आमतौर पर शौचालय में इस्तेमाल होने वाली चीजें, जैसे-बाल्टी और मग को विशेष रूप से साफ रखें। 

क्या होता है वायरस?

  • वायरस (Virus) को हिंदी में विषाणु कहते हैं। 
  • वायरस अकोशिकीय सूक्ष्म जीव होता है, ठीक किसी पौधे के बीज की तरह। 
  • यदि किसी बीज को बरसों-बरस पानी, हवा और मिट्टी न मिले तो भी वह सुरक्षित पड़ा रह सकता है। इसी प्रकार यदि एक वायरस को अगर कोई जीवित कोशिका न मिले तो वह भी बरसों-बरस सुषुप्तावस्था में पड़ा रह सकता है। 
  • जैसे ही वायरस का संपर्क किसी  जीवित कोशिका से होता है वह जीवंत हो उठता है और अपनी वंशवृद्धि करने लगता है।
  • वायरस जीवित कोशिका में प्रवेश करने के उपरांत, मूल कोशिका के आरएनए एवं डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक संरचना से बदल देता है। तब संक्रमित कोशिका अपने जैसी  संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन करने लग जाती है।
  • चूँकि कोई भी वायरस स्वयं प्रजनन करने में सक्षम नहीं होता, इसलिये उसे 'जीवित' श्रेणी नहीं रखा जाता। 
  • वैसे इनके बारे में कहा जाता है कि वायरस को समाप्त नहीं किया जा सकता, इन्हें केवल निष्क्रिय किया जा सकता है।
  • वायरस कोशिकीय जीव नहीं होते, बल्कि कोशिका से भी छोटे होते हैं।  वैज्ञानिक शब्दावली में कहें तो  न्यूक्लिक एसिड और प्रोटीन का एक छोटा-सा  पैकेट होते हैं वायरस।
  • वायरस और कोशिका में कुछ हद तक समानता भी है, जैसे-उनमें न्यूक्लिक एसिड का जीनोम होता है, जो एक सामान्य कोशिका में भी पाया जाता है। 

(टीम दृष्टि इनपुट)

कैसे फैलता है निफा वायरस?

निफा वायरस कोई नया नहीं है और न ही इससे होने वाला संक्रमण कोई पहली बार सामने आया है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर निफा वायरस है क्या और कैसे फैलता है? कैसे यह इतना खतरनाक और प्राणघातक हो जाता है? 

  • 'निफा' वायरस का संबंध हेंड्रा वायरस से है, जो  घोड़ों और मनुष्यों के वायरल संक्रमण से होता है।  
  • 'निफा' वायरस का संवाहक चमगादड़ों को माना जाता है। यह वायरस फ्रूट बैट्स के माध्यम से मनुष्यों और जानवरों पर आक्रमण करता है। 
  • इस वायरस का सर्वाधिक संक्रमण मई और दिसंबर के महीनों में देखने को मिलता है 
  • मलेशिया में शोध कर रहे डॉ. बिंग चुआ ने पहली बार 1998 में इस बीमारी का पता लगाया था, जब वहाँ के कांपुंग सुंगई निफा में इस वायरस के मामले सामने आए थे। वहीं से इस वायरस को यह नाम मिला। 
  • उस समय इस बीमारी के संवाहक सूअर बनते थे, लेकिन इसके बाद जहां-जहां 'निफा' के बारे में पता चला, वहाँ इस वायरस को लाने-ले जाने वाला कोई माध्यम नहीं था।

फ्रूट बैट है 'निफा' का संवाहक 

बांग्लादेश में इस वायरस का संक्रमण हर साल होता है। माना जाता है कि इस संक्रमण की चपेट में आने वाले लोगों ने खजूर के पेड़ से निकलने वाले तरल पदार्थ को चखा था और इस तरल पदार्थ तक वायरस को ले जाने का काम फ्रूट बैट (एक प्रकार का चमगादड़) करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, खजूर की खेती करने वाले लोग इन फ्रूट बैट्स की चपेट में आसानी से आ जाते हैं।

फूट बैट एकमात्र ऐसा स्तनधारी है जो उड़ सकता है। यह खजूर के पेड़ों पर लगे फलों को खाकर संक्रमित कर देता है। जब ऐसे पेड़ से गिरे या तोड़े गए फलों को कोई मनुष्य खा लेता है तो वह निफा संक्रमण की चपेट में आ जाता है। 

मनुष्यों में 'निफा' का प्रसार 

  • एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में इस वायरस का प्रसार तेज़ी से होता है, जैसा कि केरल के अस्पतालों में देखने को मिल रहा है।  
  • मनुष्यों में इस वायरस के संक्रमण की वज़ह से साँस लेने से जुड़ी गंभीर बीमारी हो सकती है या फिर जानलेवा इंसेफ़्लाइटिस भी अपनी चपेट में ले सकता है।
  • अमेरिका स्थित सेंटर फॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC)  के अनुसार, 'निफा' वायरस का संक्रमण इंसेफ़्लाइटिस से जुड़ा है, जिसमें मस्तिष्क प्रभावित होता है।
  • मलेशिया और सिंगापुर में सूअरों के ज़रिये इसके फैलने की जानकारी मिली थी, जबकि भारत और बांग्लादेश में मनुष्यों का आपसी संपर्क होने पर इसकी चपेट में आने का  खतरा ज़्यादा रहता है।
  • मनुष्यों या जानवरों में इस बीमारी की रोकथाम के लिये अभी तक कोई दवा या वैक्सीन नहीं बनी है।  
  • निफा वायरस की चपेट में आने के 4 से 18 दिन के बीच इसके लक्षण सामने आने लग जाते हैं।
  • ये लक्षण 24-48 घंटों में रोगी को कोमा में भी पहुँचा सकते हैं। संक्रमण के शुरुआती दौर में साँस लेने में समस्या होती है,  जबकि अधिकांश रोगियों में न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें सामने आती हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के 1998 से 2012 तक के आँकड़ों से पता चलता है कि दुनियाभर में केवल मलेशिया, बांग्लादेश, भारत और सिंगापुर में निफा वायरस संक्रमण के मामले सामने आए थे।
  • इनमें से मलेशिया में 265 मामलों में से 105, बांग्लादेश में 209 में से 161, भारत में 71 में से 50 और सिंगापुर में 11 में से 1 व्यक्ति की मृत्यु इस वायरस की वज़ह से हुई थी।
  • मलेशिया में ज्ञात कुल 265 में से 90% ऐसे किसान थे, जो लगातार सूअरों के संपर्क में रहते थे।
  • मलेशिया में अब तक कुल 556 लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से 317 लोगों की मृत्यु हो गई।

भारत में 'निफा' का तीसरा हमला 

भारत में निफा वायरस का यह तीसरा हमला है। 2001 में पहली बार पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी ज़िले में और 2007 में पश्चिम बंगाल के ही नदिया ज़िले में इसके संक्रमण के मामले सामने आए थे। राज्य के ये दोनों ही ज़िले बांग्लादेश से सटे हैं, जहाँ इस वायरस का संक्रमण लगभग हर साल देखने को मिलता है।

अब केरल में जो मामले सामने आ रहे हैं उनके बारे में माना जाता है कि चमगादड़ों ने किसी फल को खाया और बाद में उसी फल को पीड़ित परिवार के किसी सदस्य ने खाया तथा वायरस का संक्रमण हो गया। इन मृतकों के घर में चमगादड़ के पाए जाने की भी पुष्टि हुई है।

क्या कहना है WHO का?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि निफा वायरस तेज़ी से उभरता वायरस है  और उसने विश्व की 10 सर्वाधिक घातक बीमारियों में इसे शामिल किया है। यह टेरोपस जीनस नामक एक विशेष प्रकार के चमगादड़ की प्रजाति से फैलता है। यह वायरस चमगादड़ों के मूत्र के अलावा उसकी लार और शरीर से निकलने वाले द्रव में पाया जाता है। पहले यह माना जाता था कि इसके संवाहक सूअर हैं, लेकिन बाद में पता चला कि ये ऐसे सूअर थे, जो चमगादड़ों के संपर्क में आए थे; और ये ऐसे चमगादड़ थे जो वनों के कटने और अन्य वजहों से अपने रहने की जगह से उजड़ गए थे। भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में यह संक्रमण चमगादड़ों के ज़रिये सीधे मनुष्य से मनुष्य में फैलती है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

संक्रमण के लक्षण एवं बचाव 

  • लक्षण: धुँधला दिखना, चक्कर आना, सिर में लगातार दर्द रहना, साँस लेने में कठिनाई, तेज़ बुखार
  • बचाव: पेड़ से गिरे हुए फल न खाएँ, जानवरों के खाए जाने के निशान हों तो ऐसी सब्जियाँ न खरीदें, जहाँ चमगादड़ अधिक रहते हों वहाँ खजूर खाने से परहेज करें, संक्रमित रोगी, जानवरों के पास न जाएँ

क्या किया जाना चाहिये?

फिलहाल 'निफा' वायरस से होने वाले संक्रमण का कोई इलाज नहीं है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा इस मामले में अधिक सटीक एवं प्रभावी जाँच-पड़ताल के लिये एक समिति का गठन किया गया है। राज्य व केंद्र सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं तथा स्थिति को नियंत्रित करने के हरसंभव उपाय किये जा रहे हैं। दूसरी ओर, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 'निफा' को तेज़ी से उभरता हुआ वायरस बताते हुए कहा कि यह जानवरों और मनुष्यों में गंभीर बीमारी को जन्म देता है और इसके संक्रमण की गति भी काफी तेज़ होती है। लगभग दो दशक पहले चिह्नित हो चुके इस वायरस और उससे उत्पन्न होने वाली  बीमारी को रोकने के लिये अब तक कोई कारगर उपचार या वैक्सीन नहीं तैयार किया जा सका है। इसलिये फिलहाल ज़रूरत इस बात की है कि इससे बचाव के उपायों को लेकर व्यापक रूप से जन-जागरूकता अभियान चलाया जाए।

विश्व के सर्वधिक खतरनाक 10 वायरस

1. मारबुर्ग वायरस को विश्व का सबसे खतरनाक वायरस माना जाता है। यह रक्तस्रावी बुखार का वायरस है। इस वायरस से 90% मामलों में पीड़ितों की मौत हो जाती है।

2. दूसरा सबसे खतरनाक वायरस इबोला है, जिसकी 5 नस्लों का नाम अफ़्रीकी देशों के नाम पर जायरे, सूडान, ताई जंगल, बुंदीबुग्यो और रेस्तोन रखा गया है। जायरे इबोला वायरस सर्वाधिक जानलेवा है, इसके शिकार 90% पीड़ितों की मौत हो जाती है।

3. तीसरे नंबर पर हंटा वायरस है, 1950 के कोरियाई युद्ध के दौरान इस कोरियाई नदी के तट रहने वाले अमेरिकी सैनिक इसकी चपेट में आए थे।

4. चौथे स्थान पर है बर्ड फ्लू वायरस की विभिन्न नस्लें, जिनकी चपेट में आने पर मृत्यु दर का आँकड़ा 70% है।

5. इस सूची में पाँचवां सबसे खतरनाक वायरस लस्सा है। चूहों और गिलहरियों से फैलने वाला यह वायरस किसी विशिष्ट क्षेत्र तक सीमित रहता है, जैसे पश्चिमी अफ्रीका।

6. अर्जेंटाइन रक्तस्रावी बुखार से जुड़ा जुनिन वायरस छठा सबसे खतरनाक वायरस है। इसके लक्षण बेहद सामान्य हैं, इसीलिये इसके बारे में जल्द पता नहीं लग पाता।

7. सातवें नंबर का वायरस है क्रीमियन कांगो बुखार वायरस खटमल जैसे जीवों से फैलता है, जो इबोला और मारबुर्ग वायरस की ही तरह विकास करता है।

8. आठवें स्थान आने वाला मचुपो वायरस बोलिवियन हीमोरेजिक फीवर से संबंधित है, जिसे ब्लैक टाइफस के नाम से भी जाना जाता है।

9. इस सूची में नौवाँ स्थान मिला है 1955 में भारत के पश्चिमी तट पर पाए गए स्यास्नूर फॉरेस्ट वायरस को, जिसके बारे में यह निर्धारित कर पाना मुश्किल है कि यह किस विशेष  जीव से फैलता है।

10. सूची में अंतिम स्थान पर है हमारा जाना-पहचाना डेंगू वायरस, जिसका खतरा लगातार बना रहता है। विश्वभर में इस वायरल बुखार से हर साल 5 करोड़ से 10 करोड़ लोग पीड़ित होते हैं, विशेषकर दक्षिण एशियाई देशों में इनकी संख्या अधिक होती  है।

निष्कर्ष: इस वायरस से प्रभावित व्यक्ति के बहुत तेज़ी से संक्रमित होने और फिलहाल इसका कोई कारगर इलाज पता न होने के कारण मरीज़ की मौत लगभग तय मानी जा रही है। इसलिये तमाम सुरक्षा उपायों के बावजूद इस वायरस से संक्रमित रोगियों का इलाज जोखिम भरा और मुश्किल साबित हो रहा है। हालत यह है कि बचाव के पुख्ता इंतज़ामों के साथ निफा-पीड़ित रोगियों की देखरेख करने वाले भी अब इसकी चपेट में आ रहे हैं। इसे स्पष्ट है कि इससे संक्रमित व्यक्ति को अगर पूरी तरह सुरक्षित दायरे में नहीं रखा जाएगा तो अन्य निकटवर्ती लोग भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। वैसे भी पिछले दो-तीन दशकों के दौरान यह देखने को मिला है कि कई खतरनाक संक्रमणशील वायरसों के ज़रिये होने वाली बीमारियाँ अचानक फैल जाती हैं और जब इससे लोगों की मौत होने लगती है, तब इससे बचाव के उपाय खोजना शुरू किया जाता है। इससे यह भी पता चलता है कि चिकित्सा के क्षेत्र में तमाम वैश्विक उपलब्धियों के बावजूद 'निफा' जैसी चुनौतियों से निपटने के लिये अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।

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