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भारत-विश्व

द बिग पिक्चर: भारत की अफ्रीका पहुँच

  • 01 Aug 2018
  • 10 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 जुलाई, 2018 को अफ्रीका के तीन देशों की पाँच दिवसीय दौरे की शुरुआत की। अफ्रीका की यह यात्रा जोहांसबर्ग में 10वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पूर्व की गई। प्रधानमंत्री अपनी यात्रा के क्रम में सबसे पहले रवांडा गए,  जिसे "अफ्रीका के प्रवेश द्वार" के रूप में जाना जाता है। 23-24 जुलाई से प्रारंभ प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा की जाने वाली पहली यात्रा थी। रवांडा के साथ रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिये एक उच्च स्तरीय व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भी यात्रा के दौरान प्राधानमंत्री के साथ था।

प्रधानमंत्री यात्रा के दुसरे चरण में युगांडा गए, वहाँ उन्होंने युगांडा की संसद को संबोधित किया। यात्रा के दौरान $ 164 मिलियन के क्रेडिट की दो लाइनों को बढ़ाने पर बात की गई। प्रधानमंत्री मोदी की युगांडा की यह यात्रा 20 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा की गई पहली यात्रा है। अपनी यात्रा के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री मोदी 25 जुलाई को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये दक्षिण अफ्रीका गए।

भारत के लिये रवांडा और युगांडा क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?

  1. विदेश मंत्रालय के अनुसार, उपर्युक्त दोनों देश बड़े गुटों के लिये प्रवेशद्वार के रूप में हैं।
  2. रवांडा इस वर्ष अफ्रीकी संघ का अध्यक्ष होगा, परिणामस्वरुप यह रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा, यह पूर्वी अफ्रीकी समुदाय के अग्रभाग में भी है। पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा है कि भारत ने इस महाद्वीप के साथ एक केंद्रित संबंध विकसित किया है इस तरह इन देशों के यात्रा संबंधों को और मज़बूती मिलेगी विशेष रूप से आर्थिक मोर्चे पर।
  3.  रवांडा के संदर्भ में बात की जाए तो यह एक छोटा सा देश है जो इस क्षेत्र में असमान प्रभाव डालता है। उल्लेखनीय है कि पॉल कागामे के शासन ने यहाँ एक समेकित शक्ति, संपन्न अर्थव्यवस्था और एक मज़बूत सेना स्थापित की है जो कि एक महान सफलता की कहानी को प्रदर्शित करता है।
  4. रक्षा सहयोग के अलावा, कागामे भारतीय निवेशकों को भी आकर्षित करना चाहते हैं।
  5. ये दोनों देश दक्षिण-दक्षिण सहयोग में एक प्रमुख भूमिका निभाएंगे। $ 164 मिलियन की क्रेडिट लाइन को विस्तारित किये जाने से प्राप्त आर्थिक सहायता निश्चित रूप से भारत के सॉफ्ट पवार को बढ़ाएगी।

भारत और अफ्रीका संबंध

  1. भारत का अफ्रीकी क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना नया नहीं है। पिछले 3 - 4 दशकों से भारत ने इस महाद्वीप के साथ सक्रिय रूप से कार्य किया है। हालाँकि, पिछले दशक से इसमें और तेज़ी आई है और साथ ही कुछ वर्षों में इस  संबंध में कई गुना वृद्धि देखी गई है।
  2. दिल्ली में तीसरे भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन की ताजपोशी के दौरान भारत ने पहली बार अफ्रीका को एक गुट के रूप में नहीं देखा था बल्कि अफ्रीकी गुट वाले व्यक्तिगत देशों के रूप में देखा था।
  3. रणनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से अफ्रीका हमारे लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसलिये, भारतीय प्रधानमंत्री के साथ एक व्यापार प्रतिनिधिमंडल भी वहाँ गया।
  4. भारत जापान के साथ एशिया-अफ्रीका गलियारे जैसे त्रिपक्षीय साझेदारी पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और मुखर होकर बॉटम-अप साझेदारी दृष्टिकोण को अपना रहा है। इससे अफ्रीकी लोगों के मन में एक महत्त्वाकांक्षा देखी जा रही है, न कि इस दृष्टिकोण को उनके ऊपर थोपने का कार्य किया जा रहा है।
  5. पिछले दशकों में भारत द्वारा अफ्रीका के साथ संवाद कायम किया गया है न कि एकतरफा एकालाप। इस प्रकार भारत ने अफ्रीकी लोगों में आत्मविश्वास उत्पन्न किया है।
  6. अफ्रीकी देशों के साथ भारत की भागीदारी हमेशा द्विपक्षीय रही है। उदाहरण के तौर पर भारत-दक्षिण अफ्रीका द्विपक्षीय संबंध को देखा जा सकता है। जिन विभिन्न व्यापारिक गुटों के साथ साझेदारी के लिये प्रयास किया जाना चाहिये उनमें से COMESA, ECOWAS, ECCAS, अफ्रीका के मुक्त व्यापार क्षेत्र प्रमुख हैं।

क्या अफ्रीका भारत और चीन दोनों को समायोजित करने के लिये पर्याप्त है?

  1. वर्तमान में वैश्वीकरण विरोधी अवधारणा देखी जा रही है जिससे मौजूदा विश्व-व्यवस्था से पश्चिमी देश पीछे हट रहे हैं। अमेरिका और यूरोपीय देश महाद्वीप से अपनी प्रभाविता समाप्त कर रहे हैं, इसलिये एशियाई देशों के लिये यह वक्त उनका स्थानापन्न बनने की है।
  2. हमें इन दोनों देशों के लिये अफ्रीका को प्रतियोगिता के मैदान के रूप में नहीं देखना चाहिये। चीन के विपरीत भारत में संसाधनों की कमी है। परिणामस्वरूप भारत को अपनी मज़बूती के लिये इन पक्षों जैसे- महाद्वीप के सौरकरण, मानव संसाधन विकास, उद्यमिता विकास आदि पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  3. चीन के साथ भ्रम-

अफ्रीका के अधिकांश चीनी वित्तपोषण महाद्वीप के प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित करने के साथ जुड़ा हुआ है। इसे अंगोला मॉडल भी कहा जाता है, जिसमें चीन अंगोला जैसे देशों को कम ब्याज वाले तेल-समर्थित ऋण प्रदान करता है, जिससे पश्चिमी वित्तीय बाज़ारों से सुरक्षित ऋण प्राप्त करना कठिन हो जाता है। इससे चीन के लिये कई तेल ब्लॉकों के दोहन का अधिकार हासिल करना आसान हो जाता है।

चीन की निर्माण कंपनियाँ यहाँ चीनी श्रमिकों को लाती हैं, इसलिये रोज़गार उत्पादन, जो स्वस्थ आर्थिक विकास के संकेतों में से एक है, स्थिर बना हुआ है। इसके अलावा, चीनी सेना लगातार पाँव पसार रही है।

4. शी जिनपिंग द्वारा स्वीकृत विशाल आधारभूत ऋण के विपरीत भारतीय प्रधानमंत्री ने पॉल कागामे की सामाजिक गतिशीलता परियोजना के हिस्से के रूप में युगांडा के ग्रामीण क्षेत्रों में 200 गायों का दान किया। इस प्रकार भारत ने बॉटम-अप दृष्टिकोण का उपयोग किया है जो रिश्ते के लिये फायदेमंद होगा।

5. चीनी मॉडल अभिजात वर्ग को सक्षम बनाता है जिसका उद्देश्य अफ्रीका से जुड़कर धन अर्जित करना और उन्नति करना है। हालाँकि, भारत अफ्रीका के साथ आमने-सामने आधार पर जुड़ने की कोशिश कर रहा है, जो व्यक्तिगत स्तर पर अधिक है। इससे हमें चीन की तरह लंबे समय तक अफ्रीकियों का विरोध नहीं करना चाहिये।

मुद्दे:

  1. वितरण का मुद्दा हमेशा एक समस्या के रूप में रहा है, जैसे कि सहायता और अनुदान को कभी भी समय पर पूरा नहीं किया जा सका है। इसका कारण मुख्य रूप से नौकरशाही और लाल फीताशाही है।
  2. भारत ने महाद्वीप के पूर्वी हिस्से जैसे- केन्या, तंजानिया और इथियोपिया में खुद को सीमित कर दिया है। भारत को अन्य भागों में भी विस्तार करने की ज़रूरत है, विशेष रूप से महाद्वीप के पश्चिमी हिस्से में जो मोरक्को, टोगो, बेनिन, कांगो इत्यादि देशों को शामिल करता है।

आगे की राह:

  1. अफ्रीका के साथ भारत का संचयी व्यापार करीब 100 अरब डॉलर है। इसलिये अगर यहाँ हम अपने मज़बूत पक्षों का उपयोग करते हैं तो हमारे लिये पर्याप्त अवसर हैं। इसके अतिरिक्त जनसांख्यिकीय परिवर्तन और अफ्रीका के क्रमिक लोकतंत्रीकरण (इथियोपिया में) ने भारत के लिये लोकतांत्रिक तरीके से अपने संबंधों को और मज़बूत करने के लिये एक खिड़की खोली है।
  2. हमें लोगों के विकास करने की आवश्यकता है इसके लिये हमें डॉक्टरों, शिक्षकों और अन्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करना ज़रूरी है।
  3. हमें पश्चिम अफ्रीकी देशों में अपनी उपस्थिति बनाए रखने की आवश्यकता होगी क्योंकि वे प्राकृतिक संसाधनों में विशेष रूप से तेल और कच्चे माल में समृद्ध हैं।
  4. भारत चाड, कैमरून और नाइज़ीरिया जैसे देशों को बोको हरम जैसे आतंकी संगठन के खतरे से लड़ने में भी मदद कर सकता है।
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