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संसद टीवी संवाद

भारतीय अर्थव्यवस्था

कोयला खनन और सरकार के नये कदम

  • 27 May 2020
  • 19 min read

संदर्भ:

हाल ही में केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान को ध्यान में रखते हुए कोयला क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण सुधारों की घोषणा किया है। इसके तहत कोयला क्षेत्र में व्यावसायिक खनन को मंज़ूरी देने हेतु बनाई जाने वाली नीतियों पर ज़ोर दिया गया है और कोयले से गैस के निर्माण पर सरकार के द्वारा आर्थिक सहयोग की बात कही गई है।  इस योजना के पहले चरण में 50 नए ब्लॉक तुरंत उपलब्ध कराए जाएँगे। सरकार ने कोयले के आयात में कमी लाने और स्थानीय उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के साथ 50 हजार करोड़ रुपए की लागत से कोयला क्षेत्र में आधारभूत संरचना के विकास का लक्ष्य रखा गया है।

पृष्ठभूमि:

  • भारत में व्यावसायिक कोयला खनन की शुरुआत वर्ष 1773 में ईस्ट इंडिया कंपनी के मैसर्स सुमनेर और हीटली द्वारा दामोदर नदी के पश्चिमी तट पर स्थित रानीगंज कोलफील्ड में की गई थी।
  • शुरुआत में बाज़ार में कोयले का व्यापार बहुत व्यापक नहीं था परंतु 1853 में वाष्पचालित रेलगाड़ी के आने से कोयले की मांग में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, वर्ष 1900 तक आते-आते भारत में कोयला उत्पादन 6.12  मिलियन टन प्रतिवर्ष और वर्ष 1920 में यह 18 मिलियन टन प्रतिवर्ष तक पहुँच गया।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान कोयले के उत्पादन में तेज़ी आई परंतु 1930 के दशक के शुरूआती वर्षों में इसमें पुनः गिरावट देखने को मिली।
  • वर्ष 1942 में देश में कोयले का उत्पादन 29 मिलियन टन प्रतिवर्ष और वर्ष 1940 में यह 30 मिलियन टन प्रतिवर्ष तक पहुँच गया।
  • देश की स्वतंत्रता के पश्चात पहली पंचवर्षीय योजना के तहत कोयला उत्पादन को 33  मिलियन टन प्रतिवर्ष तक बढ़ाया गया और इस दौरान कोयला उद्योग के क्रमिक और वैज्ञानिक विकास से कोयला उत्पादन को कुशलता पूर्वक बढ़ाने की आवश्यकता महसूस हुई।
  • वर्ष 1956 में  राष्ट्रीय कोयला विकास निगम (National Coal Development Corporation- NCDC) की स्थापना के साथ सरकार ने देश के कोयला खनन क्षेत्र के विकास पर विशेष ध्यान देना प्रारंभ किया।  

कोयले का राष्ट्रीयकरण: 

  • कोयला खनन क्षेत्र में पर्याप्त पूंजी निवेश की कमी, निजी कंपनियों द्वारा खनन के अवैज्ञानिक तरीकों को अपनाने और श्रमिकों के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा निजी कोयला खदानों के राष्ट्रीकरण का निर्णय लिया गया। 
  • इसके तहत वर्ष 1971-72  और 1973 में ‘कोककर कोयला खान (आपात प्रावधान) अधिनियम, 1971’ ‘कोककर कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972’ और ‘कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973’ के माध्यम से देश की सभी कोयला खदानों का राष्ट्रीयकारण किया गया।

भारत में कोयला उत्पादन:  

  • विश्व में सबसे अधिक कोयला भंडार की उपलब्धता वाले देशों की सूची में भारत का 5वाँ स्थान है।   
  • वर्तमान में भारत में प्रतिवर्ष स्थानीय कोल उत्पादन लगभग 700-800 मिलियन टन है, जबकि प्रतिवर्ष औसतन लगभग 150-200 मिलियन टन कोयले का आयात किया जाता है।  
  • देश उत्पादित कुल विद्युत का लगभग 50% से अधिक कोयला आधारित इकाइयों से ही आती है और अन्य कई औद्योगिक क्षेत्रों में कोयला ऊर्जा का प्रमुख स्रोत रहा है।     
  • वर्ष 1973 में भारत में कोयले के राष्ट्रीकरण के बाद वर्ष 1975 में कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited- CIL) की स्थापना की गई थी।  
  • वर्तमान में देश के कुल कोयला उत्पादन में कोल इंडिया लिमिटेड की भागीदारी लगभग 82% है।  
  • वर्ष 2006-07 में भारत सरकार के सार्वजनिक उद्यम विभाग द्वारा CIL को ‘मिनीरत्न’ (Mini Ratna), वर्ष 2008-09 में ‘नवरत्न’ (Navratna) और अप्रैल 2011 में इसे ‘महारत्न’ (Maharatna) का दर्जा दिया गया था। 

भारतीय कोयला उत्पादन की चुनौतियाँ:   

  • कोल इंडिया लिमिटेड के विश्व की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी होने के बावजूद भी वर्ष 2019 में भारत द्वारा विदेशों से 235 मिलियन टन कोयले का आयात किया गया था।  
  • नवीन तकनीक का अभाव:   
    • देश में कोयले के राष्ट्रीयकरण के बाद CIL द्वारा समय के साथ कोयला खनन में नवीन तकनीक को शामिल न करने से खनन प्रक्रिया बहुत धीमी और बोझिल हो गई है।  
    • खनन प्रक्रिया में नई तकनीकों को बढ़ावा न देने से न सिर्फ कोयला खनन महँगा हुआ है बल्कि नवीन तकनीकों का अभाव ही खनन के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण बनता है।  
  • प्रतिस्पर्द्धा और निवेश की कमी:
    • कोयला खनन में एक ही कंपनी के सक्रिय रहने से खनन क्षेत्र के विकास की गति बहुत ही सीमित रही है।
    • कोयले के उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि न होने से CIL के राजस्व में कमी आई है, इससे सरकार के लिये देश के कोयला क्षेत्र के विकास हेतु बड़े पैमाने पर निवेश करना एक चुनौती रही है।
    • कोयला खनन क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी न होने से इस क्षेत्र में होने वाला निवेश बहुत ही सीमित रहा है। 
  • पारदर्शिता की कमी और भ्रष्टाचार :
    • पूर्व में भी देश के कोयला खनन क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के प्रयास किये गए हैं परंतु खदान आवंटन और उनके विनियमन से जुड़ी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी इस प्रक्रिया में एक बड़ी बाधा रही है। 
    • कोयला क्षेत्र में नौकरशाही और भ्रष्टाचार के मामलों के कारण इस क्षेत्र का अपेक्षित विकास संभव नहीं हो सका है।  
    • इससे पहले भी देश में कोयला खनन में स्थानीय क्षमता को बढ़ाने और इसे किफायती बनाने हेतु कई प्रयास किये गए है परंतु वे इतने सफल नहीं रहे हैं।    

प्रस्तावित सुधार:

  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: 
    • केंद्र सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कोयला खनन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाकर कोयला खनन क्षेत्र में प्रतियोगिता और पारदर्शिता में वृद्धि करने का निर्णय लिया गया है। 
    • कोयला क्षेत्र में ‘प्रति टन उत्पादन पर पहले से निर्धारित शुल्क’ के स्थान पर राजस्व साझा करने की प्रणाली (Revenue Sharing Mechanism) लागू करना। 
    • निजी कंपनियों के लिये खनन प्रक्रिया में भाग लेने के लिये नियमों में ढील के साथ कंपनियों को कोयले की खोज में शामिल करने हेतु अन्वेषण-सह-उत्पादन (exploration-cum-production) के विकल्प की व्यवस्था।   

    • इस योजना के पहले चरण में तात्कालिक रूप से 50 नए ब्लॉक उपलब्ध कराए जाएँगे साथ ही निजी कंपनियों को कोयला बेचने का अधिकार भी दिया जाएगा।  

    • निर्धारित समय से पहले खनन लक्ष्य प्राप्त करने वाली कंपनियों को राजस्व हिस्सेदारी में छूट के माध्यम से प्रोत्साहन दिया जाएगा। 

  • पर्यावरण सुरक्षा और आधारिक संरचना का विकास:  

    • प्रस्तावित सुधारों के तहत राजस्व हिस्सेदारी में छूट के माध्यम से कोयला गैसीकरण/द्रवीकरण (Gasification/Liquification) को प्रोत्साहन दिया जाएगा। 

    • वर्ष 2023-24 तक 1 बिलियन टन वार्षिक कोयला उत्पादन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये केंद्र सरकार द्वारा कोयला खनन से जुड़ी आधारभूत संरचना के विकास हेतु 50,000 करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा।

      • इस पहल के तहत खदानों से रेलवे लाइनों तक कोयले को आसानी से पहुँचाने के लिये 18,000 करोड़ के निवेश से कन्वेयर बेल्ट (Conveyor Belt) प्रणाली की स्थापना की जाएगी।

  • उदारीकरण:

    • प्रस्तावों के तहत CIL कोयला खदानों सेकोल बेड मीथेन’ (Coal Bed Methan-CBM) निष्कर्षण अधिकारों की नीलामी का निर्णय लिया गया है।

    • कोयला खनन क्षेत्र में ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) को बढ़ावा देने के लिये खनन योजनाओं का सरलीकरण किया जाएगा। साथ ही कंपनियों को कोयला खनन हेतु नीलामी प्रक्रिया में शामिल होने के लिये खनन क्षेत्र में अनुभव की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया है।  

    • प्रस्तावित सुधारों के तहत खनन कंपनियों को बिना किसी अनुमति के अपने वार्षिक उत्पादन को 40% तक बढ़ाने की छूट होगी।    

    • इसके साथ ही गैर-विद्युत उपभोक्ताओं के लिये नीलामी के समय आरक्षित मूल्यों, ऋण की शर्तों में ढील देने जैसी सुविधाएँ देने का प्रस्ताव किया गया है।

कोल बेड मीथेन (Coal Bed Methan-CBM):

  • कोल बेड मीथेन (सीबीएम), प्राकृतिक गैस का एक गैर-परंपरागत स्रोत है जो कोयले के भंडार में पाई जाती है।
  • एक अनुमान के अनुसार, भारत  के 12 राज्यों में लगभग 92 खरब घन फुट (2600 अरब घन मीटर) CBM उपलब्ध है। 
  • देश में CBM की उपलब्धता और एक ऊर्जा स्रोत के रूप में इसकी उपयोगिता को देखते हुए सरकार ने वर्ष 1997 में सीबीएम नीति (CBM policy) जारी की थी, इसके अनुसार ‘तेल क्षेत्र (नियमन एवं विकास) अधिनियम 1948’और ‘पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस नियम 1959’ के प्रावधानों के तहत देश में CBM का अन्वेषण और दोहन किया जा सकता है। 

सुधारों के प्रभाव:  

  • कोयला खनन क्षेत्र में लंबे समय एक ही कंपनी (CIL) के एकाधिकारी और प्रतिस्पर्द्धा के कारण देश में कोयला उत्पादन में विशेष वृद्धि नहीं हुई है।
  • कोयला खनन में निजी कंपनियों को बढ़ावा देने से प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी जिससे उत्पादन में वृद्धि के साथ कम कीमत पर कोयले की आपूर्ति की जा सकेगी और औद्योगिक क्षेत्र में कोयले की मांग के लिये निर्यात पर निर्भरता भी समाप्त होगी।
  • फिक्स्ड रेवेन्यू (Fixed Revenue) की व्यवस्था में बाज़ार में कोयले के मूल्य में गिरावट आने से उत्पादक कंपनियों को भरी क्षति होती है जिसका प्रभाव सरकारी लाभ पर भी पड़ता है, राजस्व साझा करने की प्रणाली (Revenue Sharing Mechanism) लागू करने से सरकार के राजस्व में वृद्धि के साथ निजी कंपनियों और सरकार के बीच समन्वय बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।
  • कोयला के गैसीकरण/द्रवीकरण (Gasification/Liquification) जैसी तकनीकों को अपना कर कोयले के कारण प्रकृति को होने नुकसान में कमी होगी।
  • यदि कोयला के गैसीकरण की प्रक्रिया में अपेक्षित प्रगति होती है तो इससे देश में प्राकृतिक गैस के आयात में भी कमी आएगी।  
  • कोयले के उत्पादन में वृद्धि के साथ उसकी खपत के लिये परिवहन की एक मज़बूत आधारभूत संरचना का होना बहुत ही आवश्यक है, सरकार द्वारा कोयला खनन से जुड़ी आधारभूत संरचना के विकास हेतु 50,000 करोड़ रुपए के निवेश से कोयले की आपूर्ति को सुगम बनाया जा सकेगा तथा इससे रेलवे की आमदनी में भी वृद्धि होगी। 

चुनौतियाँ और समाधान:

  • राज्यों का सहयोग: संविधान की सातवीं अनुसूची में खनिज पदार्थों को समवर्ती सूची में रखा गया है, वर्तमान में प्रत्येक राज्य में कोयला उत्पादन और राजस्व निर्धारण हेतु मानकों में भारी असमानता है। अतः प्रस्तावित सुधारों के बेहतर क्रियान्वयन के लिये अलग-अलग राज्यों के मानकों में समानता लाना बहुत ही आवश्यक होगा।  
  • श्रमिक के हितों की रक्षा: वर्तमान में भारतीय कोयला क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप से 2.7 लाख (CIL, मार्च 2020) से अधिक लोगों और अप्रत्यक्ष रूप से भी एक बड़ी आबादी को रोज़गार उपलब्ध करता है। वर्ष 1973 में कोयला कंपनियों के राष्ट्रीयकरण का एक बड़ा कारण श्रमिकों के अधिकारों का हनन भी था  अतः कोयला क्षेत्र में निजी कंपनियों को बढ़ावा देते हुए सरकार को श्रमिकों के हितों को प्राथमिकता देनी होगी।     
  • पर्यावरण प्रदूषण: कम लागत और उपलब्धता के हिसाब से कोयला भारत की वर्तमान ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने का एक उपयुक्त विकल्प हो सकता है परंतु यह पर्यावरण प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी है, ऐसे में कोयला उत्पादन को बढ़ावा देना पेरिस समझौते और सतत विकास लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के विपरीत होगा।         
  • आर्थिक दबाव: हाल के वर्षों में विद्युत् क्षेत्र की कंपनियों के राजस्व में गिरावट एक चिंता का विषय बना हुआ था परंतु COVID-19 की महामारी के कारण आने वाले दिनों में अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में भी ऊर्जा की मांग में गिरावट आ सकती है, जो कोयला क्षेत्र के विकास में रूकावट का कारण बन सकता है।    

निष्कर्ष:  हाल के वर्षों में भारत ने अपनी विनिर्माण और निर्यात क्षमता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। भारतीय औद्योगिक क्षेत्र के विकास हेतु स्थानीय स्तर पर ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करना एवं इसकी लागत में कमी लाना बहुत ही आवश्यक है। वर्तमान में भारत में विश्व का 5वाँ सबसे बड़ा कोयला भंडार है, कोयला क्षेत्र में अन्य उद्योगों की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के साथ बड़ी मात्रा में रोज़गार सृजन की भी संभावनाएं हैं। पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिये  नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दिया जाना बहुत ही आवश्यक है परंतु वर्तमान में परिस्थिति में देश की कुल ऊर्जा ज़रूरतों को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरा कर पाना एक बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में निजी क्षेत्र के सहयोग के साथ कोयला खनन में आत्मनिर्भरता को बढ़ाना देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।

अभ्यास प्रश्न: भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में आई गिरावट के बीच सरकार द्वारा कोयला खनन में निजी कंपनियों को बढ़ावा देने का निर्णय कितना तर्कसंगत है, कोयला खनन क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी के लाभ व चुनौतियों की समीक्षा कीजिये।

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