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राज्यसभा

द बिग पिक्चर : आयुष्मान भारत (नमो केयर)

  • 07 Feb 2018
  • 24 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
केंद्रीय बजट 2018-19 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्वास्थ्य क्षेत्र को लेकर दो महत्त्वपूर्ण घोषनाएँ कीं। इनमें 1.5 लाख स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के लिये 1200 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है तथा 10 करोड़ से अधिक गरीब और कमज़ोर परिवारों को चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना की शुरुआत की गई है। आयुष्मान भारत के तहत सरकार की इन दो दूरगामी पहलों का लक्ष्य 2022 तक नए भारत का निर्माण करना है। 

क्या खास है इन योजनाओं में?
बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना को दुनिया का सबसे बड़ा स्वास्थ्य सुरक्षा कार्यक्रम बताया तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने इसे 'नमो केयर' का नाम दिया, जिससे लगभग 50 करोड़ लोगों को लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा गया है। 

12% बढ़ा स्वास्थ्य बजट 
पिछले साल के मुकाबले 12% प्रतिशत वृद्धि के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय का बजट 56,226 करोड़ रुपए का है। पिछले वर्ष यह राशि 48,300 करोड़ रुपए थी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में स्वास्थ्य पर खर्च को जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक लाने की बात कही गई है, लेकिन यह अब भी इसका आधा है क्योंकि अब तक जीडीपी का 1.2% ही स्वास्थ्य क्षेत्र को मिला है।

1. स्वास्थ्य और आरोग्य केंद्र

  • आयुष्मान भारत के तहत पहला कार्यक्रम 1.5 लाख स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों की स्थापना करना है। 
  • उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में भारत की स्वास्थ्य प्रणाली की नींव के रूप में स्वास्थ्य और आरोग्य केंद्रों की परिकल्पना की गई है। 
  • ये 1.5 लाख केंद्र, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को लोगों के घरों के नज़दीक ले जाने का काम करेंगे। 
  • ये स्वास्थ्य केंद्र असंचारी रोगों और मातृत्व तथा बाल स्वास्थ्य सेवाओं सहित व्यापक स्वास्थ्य देखरेख सुविधा उपलब्ध कराएंगे।
  • इन केंद्रों में इलाज के साथ-साथ जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों, जैसे-हाई ब्लड प्रेशर, डाइबिटीज़ और मानसिक तनाव पर नियंत्रण के लिये विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
  • इन केंद्रों पर आवश्यक दवाइयाँ और नैदानिक सेवाएँ भी मुफ्त उपलब्ध रहेंगी तथा सरकार प्राथमिक स्तर से लेकर तृतीयक स्तर तक दवाओं की उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगी।
  • किस केंद्र पर किस दवा की कमी है, इसका केंद्र और ज़िला स्तर पर पता लगाने के लिये सॉफ्टवेयर तैयार कर लिया गया है।

2. राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना

  • आयुष्मान भारत के तहत दूसरा कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना है। 
  • इस योजना के लिये इस वर्ष 2000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।
  • राज्यों के पास इस योजना को लागू करने के लिये ट्रस्ट मॉडल या बीमा कम्पनी आधारित मॉडल अपनाने का विकल्प है, लेकिन ट्रस्ट मॉडल को प्राथमिकता दी जाएगी। 
  • इन योजनाओं से, विशेषकर महिलाओं के लिये रोज़गार के लाखों अवसर सृजित होंगे। 

विश्व में सबसे बड़ी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना होगी

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना के तहत संपूर्ण परिवार का स्वास्थ्य बीमा के अंतर्गत देश के सभी आयु वर्ग के गरीब तथा पिछड़े वर्ग के लोगों को बीमारियों के लिये इलाज के लिये आर्थिक सहायता मिलेगी।
  • इस योजना के तहत 11 करोड़ से अधिक गरीब और कमज़ोर परिवारों के 50 करोड़ लोगों को उन्नत इलाज के लिये प्रतिवर्ष 5 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा कवरेज दिया जाना है। 
  • इसका प्रति व्यक्ति प्रीमियम लगभग 1000-1200 रुपए तक होगा और इसका भार केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी उठाना पड़ेगा। 
  • बीमारी के प्राथमिक स्तर के लिये वेलनेस सेंटर की व्यवस्था की गई है, जहाँ कई तरह की प्राथमिक जाँच हो सकेंगी।
  • इसके अलावा द्वितीयक और तृतीयक स्तर के लिये भी बीमे की व्यवस्था की गई है।
  • टीबी के रोगियों के पोषक आहार के लिये पांच सौ रुपए प्रति महीने देने का भी प्रावधान है ।
  • यह बीमा योजना पूर्णतः कैशलेस होगी तथा इसके अंतर्गत पहले स्वयं खर्च करने और बाद में इलाज के खर्च का भुगतान प्राप्त करने की जरूरत नहीं होगी। बाद में भुगतान होने की प्रक्रिया में गड़बड़ी होने की संभावनाओं के मद्देनज़र इसे कैशलेस रखा गया है। 
  • बीमित व्यक्ति को अपने इलाज का खर्च नहीं देना होगा। पाँच लाख रुपए तक इलाज का खर्च उसे सरकार की तरफ से आसानी से मिल जायेगा।
  • बीमार व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती होने के बाद अपने बीमा दस्तावेज़ देने होंगे, जिसके आधार पर अस्पताल इलाज के खर्च के बारे में बीमा कंपनी को सूचित करेगा और बीमित व्यक्ति के दस्तावेज़ों की पुष्टि होते ही इलाज बिना पैसे दिये हो सकेगा।
  • इस योजना के तहत बीमित व्यक्ति सिर्फ सरकारी ही नहीं बल्कि निजी अस्पतालों में भी इलाज करा सकेगा। निजी अस्पतालों को इस योजना के साथ जोड़ने का कार्य शुरू कर दिया गया है।
  • इस योजना में सरकारी तथा निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियाँ रुचि ले रही हैं जिससे सरकार को इसे लागू करने में धन की कमी आड़े नहीं आएगी।
  • इस योजना पर खर्च होने वाली भारी-भरकम राशि के प्रबंध के लिये सरकार की योजना है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के 1% बढ़े हुए सेस से आने वाला पैसा इस योजना में लगाया जाएगा। यह राशि लगभग 11000 करोड़ रुपए होने का अनुमान है।
  • नीति आयोग के अनुमान के अनुसार इस योजना पर वार्षिक लागत लगभग 12 हज़ार करोड़ रुपए आने का अनुमान है।
  • वर्ष 2011 की सामाजिक-आर्थिक तथा जाति जनगणना के आधार पर चिह्नित सभी गरीब परिवार इस योजना के लिये पात्र होंगे। 
  • बाद में इस योजना का विस्तार कर देश की शेष बची आबादी को भी इसके दायरे में लाया जा सकता है। 
  • इस योजना को 'आधार' से जोड़ा जाएगा, लेकिन लाभ लेने के मामले में यह अनिवार्य नहीं होगा।
  • यह योजना गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिये 2008 में पेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा का स्थान लेगी।
  • सभी केंद्रीय योजनाओं की तरह इसमें भी 60:40 का अनुपात होगा. जो राज्य योजना से जुड़ना चाहते हैं, उन्हें 40 प्रतिशत योगदान देना होगा तथा पूर्वोत्तर राज्य 10 प्रतिशत योगदान देंगे।

नीति आयोग ने इस योजना की परिकल्पना की थी और यूनिवर्सल हेल्थकेयर स्कीम का प्रेजेंटेशन दिया था। चूँकि इसकी लागत बहुत ज़्यादा पड़ रही थी, इसलिये सभी 25 करोड़ की जगह 10 करोड़ परिवारों से शुरुआत की गई ताकि योजना प्रभावी तौर पर लागू हो सके।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 बदलते सामाजिक-आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और महामारी-विज्ञान परिदृश्य में मौजूदा और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये 15 साल के अंतराल के बाद अस्तित्व में आई। पिछली राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 में बनाई गई थी। 

इस नीति में इसके सभी आयामों--स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का प्रबंधन और वित्त-पोषण, विभिन्न क्षेत्रीय कार्रवाइयों  के ज़रिये रोगों की रोकथाम और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, चिकित्सा प्रौद्योगिकियां उपलब्ध कराने, मानव संसाधन का विकास, चिकित्सा बहुलवाद को प्रोत्साहित करने, बेहतर स्वास्थ्य के लिये अपेक्षित ज्ञान आधार बनाने, वित्तीय सुरक्षा कार्यनीतियाँ बनाने तथा स्वास्थ्य के विनियमन एवं उत्तरोत्तर आश्वासन के संबंध में स्वास्थ्य प्रणालियों को आकार देने में सरकार की भूमिका और प्राथमिकताओं को शामिल किया गया है। 

  • इसका उद्देश्य सभी लोगों, विशेषकर अल्पसेवित और उपेक्षित लोगों को सुनिश्चित स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ उपलब्ध कराना है।
  • इस नीति का लक्ष्य सभी विकास नीतियों में एक निवारक और प्रोत्साहक स्वास्थ्य देखभाल दिशानिर्देश के माध्यम से सभी वर्गों के लिये स्वास्थ्य और कल्याण का उच्चतम संभव स्तर प्राप्त करना, तथा इसके परिणामस्वरूप किसी को भी वित्तीय कठिनाई का सामना किये बिना बेहतरीन गुणवत्तापरक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ प्रदान करना है। 
  • इस नीति के व्यापक सिद्धांत व्यावसायिकता, सत्यनिष्ठा एवं नैतिकता, निष्पक्षता, सामर्थ्य, सार्वभौमिकता, रोगी केंद्रित तथा परिचर्या गुणवत्ता, जवाबदेही और बहुलवाद पर आधारित हैं।
  • इस नीति में रोग की रोकथाम और स्वास्थ्य संवर्द्धन पर बल देते हुए रुग्णता-देखभाल के बजाय आरोग्यता पर ध्यान केंद्रित करने की अपेक्षा की गई है। 
  • जनस्वास्थ्य प्रणालियों की दिशा बदलने तथा उन्हें मज़बूत करने के लिये नीति में निजी क्षेत्र के साथ पुख्ता भागीदारी करने की परिकल्पना की गई है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में सरकार द्वारा अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने की भी नए सिरे से अपेक्षा की गई है।
  • एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में, नीति में जनस्वास्थ्य व्यय को समयबद्ध तरीके से जीडीपी के 2.5% तक बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है।
  • इस नीति में ‘स्वास्थ्य और आरोग्य केंद्रों’ के माध्यम से सुनिश्चित व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का बड़ा पैकेज प्रदान करने की परिकल्पना की गई है।
  • इसमें प्राथमिक परिचर्या के लिये संसाधनों का व्यापक अनुपात (दो-तिहाई या अधिक) में आवंटन करने का समर्थन किया गया है।
  • इस नीति में प्रति 1000 की आबादी के लिये 2 बिस्तरों की उपलब्धता इस तरह से सुनिश्चित करना है ताकि आपातस्थिति में ज़रूरत पड़ने पर इसे उपलब्ध कराया जा सके।
  • इस नीति में उपलब्धता तथा वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिये सभी सार्वजनिक अस्पतालों में नि:शुल्क दवाएं, नि:शुल्क निदान तथा नि:शुल्क आपात और अनिवार्य स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया है।

क्या है वर्तमान स्थिति और भविष्य में क्या?
देश में लाखों परिवारों को अस्पतालों में उपचार कराने के लिये उधार लेना पड़ता है या संपत्तियाँ बेचनी पड़ती हैं। मौजूदा राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना गरीब परिवारों को 30 हज़ार रुपए की वार्षिक कवरेज प्रदान करती है। अनेक राज्य सरकारों ने कवरेज में विविधता उपलब्ध कराके स्वास्थ्य संरक्षण योजनाएँ कार्यान्वित की हैं। 

हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाएँ अत्यधिक महँगी हैं और गरीबों की पहुँच से काफी दूर हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता में विषमता का यह मुद्दा काफी गंभीर है। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति चिंताजनक है। इसके अलावा, बड़े निजी अस्पतालों के मुकाबले सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव है। निजी अस्पतालों की वज़ह से बड़े शहरों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता संतोषजनक है, लेकिन चिंताजनक पहलू यह है कि इन सेवाओं तक केवल संपन्न वर्ग की पहुँच है। एक अध्ययन के अनुसार, देश में केवल इलाज पर खर्च के कारण ही प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में लोग निर्धनता का शिकार हो जाते हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

बजट में की गई स्वास्थ्य क्षेत्र की अन्य महत्त्वपूर्ण पहलें 

  • किसी अन्य संक्रामक बीमारी की तुलना में टीबी से हर वर्ष अधिक जानें जाती हैं। यह गरीब और कुपोषित लोगों को अधिक प्रभावित करती है। इसलिये सरकार ने टीबी से पीड़ित सभी रोगियों को उनके उपचार की अवधि के दौरान 500 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से पोषाहार सहायता प्रदान करने के लिये 600 करोड़ रुपए का अतिरिक्त आवंटन किया है।
  • इसके अतिरिक्त गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा, शिक्षा और स्वास्थ्य देखरेख की पहुँच में वृद्धि करने के उद्देश्य से देश में मौजूदा ज़िला अस्पतालों को अपग्रेड करके 24 नए सरकारी चिकित्सा कॉलेजों और अस्पतालों की स्थापना की जाएगी। इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि प्रत्येक 3 संसदीय क्षेत्रों के लिये कम से कम एक चिकित्सा कॉलेज और देश के प्रत्येक राज्य में कम-से-कम एक सरकारी चिकित्सा कॉलेज उपलब्ध हो।
  • सिक्किम में सरकारी चिकित्सा कॉलेज की स्थापना की जाएगी क्योंकि वहाँ अभी एक भी सरकारी चिकित्सा कॉलेज नहीं है। 
  • उपरोक्त सभी पहलों के लिये केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी क्रमश: 60:40 होगी।

ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति
देश के अधिकांश राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को किसी भी मानक पर संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। कई ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं खुल पाए हैं और अगर खुल भी गए हैं तो वहाँ पर कोई चिकित्सक जाना नहीं चाहता। निजी अस्पतालों की वज़ह से संपन्न लोगों को तो गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो जाती है, किंतु गरीब एवं निर्धन लोगों के संबंध में यह स्थिति काफी चिंताजनक है। ग्रामीण स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित सबसे प्रमुख चुनौती है अस्पतालों और डॉक्टरों की कमी, सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधा, आधारभूत संरचना, दवाइयों, कुशल व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ एवं अन्य सुविधाओं का अभाव। हालाँकि, सभी राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के तहत मिलने वाली चिकित्सा सेवाएँ सभी को निःशुल्क उपलब्ध हैं और इन सेवाओं का विस्तार भी काफी व्यापक है। इसके बावजूद देखने में यह आता है कि सरकार स्वास्थ्य सुविधा आवश्यकताओं के विभिन्न आयामों को संबोधित करने में विफल रही है। यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित कई अन्य रिपोर्ट और इस क्षेत्र में हुए सर्वेक्षण यह बताते हैं कि हमारी सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था में सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

किफायती और प्रभावी स्वास्थ्य सुविधाओं का होना बेहद ज़रूरी 
स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये कोई भी नीति बनाते समय यह पता चलता है कि देश में लोगों की स्वास्थ्य पर पैसा खर्च करने की क्षमता कम है और स्वास्थ्य सेवाएं बहुत महँगी हैं। स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रति व्यक्ति मासिक आय के अनुपात में ग्रामीण इलाकों में 6.9 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 5.5 प्रतिशत लोगों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। भारत में सरकारी अस्पतालों में प्रसव, नवजात और शिशुओं की देखभाल जैसी सेवाएँ मुफ्त दी जाती हैं, लेकिन इसके बावजूद लोगों को काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत अगले पाँच सालों में सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत जनस्वास्थ्य पर खर्च करने की योजना है, जो मौजूदा  स्तर से दोगुना अधिक है।

सार्वजनिक क्षेत्र में सभी को किफायती व प्रभावी चिकित्सा सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिये सरकार देशभर में दिल्ली जैसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) खोलने पर काम रही है। फिलहाल देशभर छह एम्स कार्यरत हैं, लेकिन ऐसे संस्थान खोलना काफी जटिल है, क्योंकि इनमें सर्वोच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। वरिष्ठ विशेषज्ञों और सक्षम व्यक्तियों को खोजना और उन्हें संस्थान से जोड़े रखना बहुत चुनौतीपूर्ण है। बुनियादि ढाँचे के निर्माण में होने वाले विलंब के कारण भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

2025 तक के लिये निर्धारित प्रमुख स्वास्थ्य लक्ष्य 

  • जन्म के समय जीवन प्रत्याशा को 2025 तक 70 वर्ष करना।
  • 2025 तक राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर कुल प्रजनन दर को घटाकर 1 तक लाना।
  • 2025 तक पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में मृत्यु दर को कम करके 23 प्रति हज़ार करना।
  • मातृ मृत्यु दर के वर्तमान स्तर को 2020 तक घटाकर 100 प्रति हज़ार करना।
  • नवजात शिशु मृत्यु दर को घटाकर 16 प्रति हज़ार करना।
  • मृत जन्म लेने वाले बच्चों की दर को 2025 तक घटाकर 'इकाई अंक’ में लाना।
  • क्षयरोग के नए पॉजिटिव रोगियों में 85% से अधिक की इलाज दर को प्राप्त करना और उसे बनाए रखना तथा नए मामलों की व्याप्तता में कमी लाना, ताकि 2025 तक इसके उन्मूलन की स्थिति प्राप्त की जा सके।
  • 2025 तक दृष्टिहीनता की व्याप्तता को घटाकर 25 प्रति हज़ार करना तथा रोगियों की संख्या को वर्तमान स्तर से घटाकर एक-तिहाई करना।
  • हृदवाहिका, कैंसर, मधुमेह या पुराने श्वसन रोगों से होने वाली असमय मृत्यु को 2025 तक घटाकर 25% करना।

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: 'सर्वे भवन्तु: सुखिन:, सर्वे संतु: निरामया' के मार्गदर्शक सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार का मानना है कि स्वास्थ्य मानव विकास की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है और इसके मद्देनज़र एक मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली और जनकेंद्रित प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली तैयार करने की आवश्यकता है जो लोगों के घरों के नज़दीक हो। बजट में सरकार ने जिन दो योजनाओं का उल्लेख किया है उनसे संवर्द्धित उत्पादकता कल्याण में वृद्धि होगी तथा श्रम की हानि और गरीबी को कम करने में भी मदद मिलेगी। 

अब सरकार ने स्वास्थ्य संरक्षण को और अधिक आकांक्षा वाला स्तर प्रदान करने का निर्णय लिया है। लेकिन सरकार को इसे लागू करने में कई पहलुओं पर ध्यान देना होगा, जैसे-इस तरह की योजनाएं पहले से कुछ राज्यों में चल रही हैं, जिनके तहत लगभग 1100 रुपए का भुगतान किया जा रहा है, लेकिन इनका कोई बड़ा सकारात्मक प्रभाव दिखाई नहीं दिया है। इसके अलावा, देश में सार्वजनिक चिकित्सा सुविधाओं को बहुत अच्छा नहीं माना जाता और इनमें उत्तरदायित्व की कमी जैसे कई नकारात्मक पहलू उजागर होते हैं। साथ ही सभी देशवासियों की पहुँच अच्छे हॉस्पिटलों तक होना अब भी दूर का सपना जैसा है। देश के कई हिस्सों में अभी भी अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ मौजूद नहीं हैं, ऐसे में बीमा आधारित समाधान से मूलभूत अवसंरचना की कमी दूर होना संभव नहीं है। इस योजना को इस वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में ही लागू किया जाना है और निश्चित ही इस पर पर्याप्त विचार-विमर्श भी होगा, यह कार्य पहले ही हो जाना चाहिये था, तब इसे और भी प्रभावी तरीके से लागू करने में आने वाली परेशानियाँ काफी कम हो जातीं।

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