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आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20


भारतीय अर्थव्यवस्था

अध्याय-5 (Vol-2)

  • 15 Jun 2020
  • 16 min read

कीमतें और मुद्रास्फीति 

भूमिका:

  • निम्न खाद्य मुद्रास्फीति के कारण वर्ष 2014 से मुद्रास्फीति की दर सामान्य बनी रही है। 
  • वर्तमान वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान खाद्य और पेय-पदार्थ संबंधी मुद्रास्फीति में अलग प्रकार का रुझान देखा गया है। 
  • मुख्यतः सब्जियों, फलों और दालों की कीमत में वृद्धि के कारण खाद्य मुद्रास्फीति में ऊर्ध्वमुखी रुझान रहा है। हालाँकि कुछ अपवाद के साथ दाल जैसी अधिकांश कृषि संबंधी अनिवार्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता का अधोमुखी रुझान रहा है।

परिचय:

  • विश्व बैंक ने वर्ष 2019 में बताया कि विगत पाँच दशकों से वैश्विक अर्थव्यवस्था में  मुद्रास्फीति में तीव्र कमी देखी जा सकती है। विश्व के लगभग सभी देशों में मुद्रास्फीति में कमी आई है। 
  • वर्ल्ड इकोनाॅमिक आउटलुक (अक्तूबर 2019) के अनुसार, वर्ष 1993 में मुद्रास्फीति 118.7% के साथ अपने उच्चतम स्तर पर थी और तत्पश्चात उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्था में वर्ष 2018 में इसमें 4.8% की कमी आई।
  • मुद्रास्फीति में तीव्र कमी के कई सहायक कारण हो सकते हैं जैसे- समायोजनशील मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति की स्वीकार्यता, ऋण एवं उत्पाद बाज़ार में संरचनात्मक सुधार जो प्रतिस्पर्द्धा को मज़बूती प्रदान करने तथा लक्ष्यात्मक मुद्रास्फीति तंत्र का विकास करने में सहायक होते है।

मुद्रास्फीति की वर्तमान प्रवृत्तियाँ: 

  • हेडलाइन उपभोक्ता कीमत सूचकांक (CPI-C) मुद्रास्फीति-2019-20 (अप्रैल से दिसंबर, 2019 तक) में 4.1% थी जो कि 2018-19 (अप्रैल से दिसंबर, 2018 तक) में 3.7% थी।  
  • औसत CPI-C हेडलाइन मुद्रास्फीति वर्ष 2014-15  में 5.9% थी उसमें वर्ष 2018-19 में लगभग 3.4% तक की अनवरत गिरावट आई है। 
  • इस गिरावट का मुख्य कारण खाद्य  मुद्रास्फीति में आई तीव्र गिरावट है जिसमें वर्ष 2014-15 में 6.4% से वर्ष 2018-19 में 0.1% तक की गिरावट हुई है।
  • वर्ष 2019-20 में अगस्त 2019 से हेडलाइन और खाद्य  मुद्रास्फीति में थोड़ा इज़ाफा हुआ है। कुल मिलाकर दिसंबर 2019 में CPI-C हेडलाइन मुद्रास्फीति 7.4 % तक के स्तर पर रही जबकि CPI के स्तर पर खाद्य मुद्रास्फीति में 14.1% तक की वृद्धि हुई है जो कि मुख्यतः सब्जी की कीमतों में वृद्धि पर निर्भर थी।
  • दिसंबर 2019 में कोर (अखाद्य एवं गैर ईंधन) मुद्रास्फीति में 3.8% तक की थोड़ी गिरावट हुई है।
  • वर्ष 2019-20 के दौरान थोक मूल्य सूचकांक ( Wholesale Price Index- WPI) पर आधारित मुद्रास्फीति में अप्रैल 2019 में 3.2% से नवंबर 2019 में 0.6% तक की लगातार गिरावट जारी रही। 
  • वर्ष 2017-18 और 2018-19 के बीच वार्षिक आधार पर जिस खाद्य सूचकांक में गिरावट हुई है उसमें वर्तमान वित्तीय वर्ष (अप्रैल-दिसंबर, 2019) के दौरान इज़ाफा देखा गया है।

राज्यों में मुद्रास्फीति:

  • राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल-दिसंबर) में (-) 0.04% से 8.1% की तुलना में वित्त वर्ष 2018-19 (अप्रैल-दिसंबर) में (-) 1.3 % से 9.1% के बीच में रही।
  • वित्त वर्ष 2018-19 (अप्रैल-दिसंबर) की वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल-दिसंबर) से तुलना करने पर 15 राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल-दिसंबर) में 4% से नीचे रही।
  • 19 राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों में वित्त वर्ष 2019-20 (अप्रैल-दिसंबर) के अखिल भारतीय औसत की तुलना में मुद्रास्फीति दर कम रही जिसमें दमन एवं दीव की मुद्रास्फीति दर सबसे कम थी उसके बाद बिहार एवं छत्तीसगढ़ में कमी देखी गई।

मुद्रास्फीति के कारक:

  • हालाँकि वर्ष 2019-20 के दौरान (अप्रैल-दिसंबर) में खाद्य पदार्थ (भोजन) तथा पेय पदार्थ मुद्रास्फीति में मुख्य कारकों के रूप में उभरे। 
  • इस अवधि के दौरान इन दोनों  (खाद्य पदार्थ (भोजन) तथा पेय पदार्थ) का मुद्रास्फीति में कुल 54% का योगदान रहा। दूसरी ओर इस अवधि के दौरान दूसरा विविध समूह सबसे बड़ा मुद्रास्फीति में योगदानकर्ता रहा है जिनमें निम्नलिखित घटक शामिल है:

(a) कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) तथा ईंधन की कीमतों में वृद्धि:

  • अप्रैल-दिसंबर, 2019 के दौरान वैश्विक स्तर पर कमजोर वैश्विक मांग की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में भी गिरावट देखी गई थी।
  • देश के आयात समूह में एक प्रमुख भाग होने के नाते इस मद का पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू कीमतों पर काफी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। 
  • WPI में खनिज तेल समूह में अप्रैल 2019 में 5.8% महँगाई दर देखी गई तत्पश्चात दिसंबर 2019 में -3.2 तक की गिरावट दर्ज की गई।  

(b) दवा मूल्य निर्धारण:  

  • सरकार आवश्यक दवाओं के मूल्य निर्धारण के लिये एक नियामक ढाँचा तैयार करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय दवा मूल्य निर्धारण नीति, 2012 लेकर आई ताकि जरूरी दवाओं की उचित मूल्य पर उपलब्धता सुनिश्चित करते हुए उद्योग के विकास का समर्थन करने हेतु नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा के लिये पर्याप्त अवसर प्रदान किया जा सके जिससे रोज़गार के लक्ष्य भी पूर्ण हों और सभी का साझा आर्थिक कल्याण हो सके।
  • आवश्यक दवाओं एवं औषधियों को ‘आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची 2011’ (NLEM) के अंतर्गत रखते हुए डीपीसीओ, 2013 की पहली अनुसूची में शामिल किया गया और फिर मूल्य नियंत्रण के तहत लाया गया। 

(c) खाद्य स्फीति (महँगाई):

  • चालू वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान खाद्य महँगाई की कुल महँगाई में मुख्य भूमिका है। अगस्त 2019 से कुछ जिंसों जैसे- प्याज, टमाटर और दालों में बहुत अधिक महँगाई दर्ज की गई हैं।

विभिन्न अतिआवश्यक वस्तुओं के थोक मूल्यों की परिवर्तनशीलता का विश्लेषण:  

  • यह विश्लेषण दो समयावधि अर्थात् वर्ष 2009-14 और वर्ष 2014-19 के दौरान किया गया था। 
  • परिवर्तनशीलता को मापने के लिये विचरण गुणांक (Coefficient of variation) का प्रयोग किया गया है।
  • चावल और गेहूं की कीमतें पर्याप्त घरेलू उत्पादन और खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त बफर स्टॉक के रख-रखाव के कारण आपूर्ति में वृद्धि होने से अतिआवश्यक वस्तुओं के थोक मूल्यों की परिवर्तनशीलता वर्ष 2014 तक स्थिर रहीं हैं। परिणामस्वरूप कीमतों में उतार-चढ़ाव चावल और गेहूँ के मामले में कम देखा गया।
  • वर्ष 2014-2019 के दौरान दाल, चीनी एवं टमाटर की कीमतों में उतार-चढ़ाव की तीव्रता अधिक थी।
  • वह परिमाण जिस पर उत्पादन एवं खपत बुरी तरह प्रभावित होती है कीमतों में उतार-चढ़ाव का कारण बनता है। यह आपूर्ति एवं मांग के लोच पर निर्भर करता है।

कृषि संबंधी आवश्यक वस्तुओं के खुदरा और थोक मूल्यों में अंतर:  

  • विभिन्न आवश्यक वस्तुओं के खुदरा एवं थोक बिक्री मूल्य में वर्ष 2014 से 2019 तक की अवधि के दौरान देश के चार महानगरों में अंतर देखा गया।
  • सभी वस्तुओं का मार्जिन दिल्ली और मुंबई में सबसे अधिक है। 
    • अरहर दाल के मामले में लाभांश दिल्ली में 16% प्रति कि.ग्रा. और मुंबई में 14% प्रति कि.ग्रा. रहा।
    • चना के मामले में दिल्ली में लाभांश प्रति कि.ग्रा. 28% और मुंबई के मामले में प्रति कि.ग्रा. लगभग 20% है।
    • मूंगफली तेल के मामले में थोक बिक्री और खुदरा मूल्यों के बीच मार्जिन दिल्ली में लगभग 15%, जबकि कोलकाता और चेन्नई में मार्जिन 5-7% था। 
    • मुंबई में मूँगफली तेल के मामले में मार्जिन सबसे अधिक 26% था।
  • सब्जियों के मामले में प्याज एवं टमाटर के लिये कीमत का विश्लेषण किया गया है जो दिल्ली एवं मुंबई में विशेष रूप से अधिक है। दिल्ली में यह मूल्य मार्जिन प्याज के लिये 51% और टमाटर के मामले में यह 59% था।
  • निहितार्थ यह है कि मूल्यों में ऊर्ध्वाधर वृद्धि उन सब्जियों के लिये अधिकतम है जो नष्ट होने के योग्य हैं और इसके बाद दालों के लिये है और खाद्य तेलों के लिये सबसे कम है।

क्या महँगाई की तीव्रता में कोई बदलाव रहा है? 

  • वर्ष 2012-13 से 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) की अवधि के दौरान मुद्रास्फ़ीति (मूल्य वृद्धि) के औसत स्तरों में पर्याप्त गिरावट हुई है।
  • न केवल मुद्रास्फीति के औसत स्तरों में गिरावट हुई है बल्कि वित्त वर्ष के दौरान मुद्रास्फीति चरम स्तर से भी अब काफी नीचे हैं।
  • सामान्यतः ऐसा विश्वास किया जाता है कि भारत में खाद्यान तथा ईंधन महँगाई के ज़ोरदार द्वितीयक प्रभाव पड़े हैं जिनके कारण घरेलू मुद्रास्फीति (महँगाई) संबंधी पूर्वानुमान बने रहे हैं। इससे मूल मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है और इसलिये हेडलाइन मुद्रास्फीति (महँगाई) पर प्रभाव बने रहते हैं।
  • खाद्य तथा ईंधन महँगाई के अतिरिक्त प्रभावों की उपस्थिति की जांच करने का एक तरीका उस तेजी का अवलोकन करना है जिसके कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति (महँगाई) खाद्य या ईंधन की कीमतों में किसी आघात के बाद मूल मुद्रास्फीति में रूपांतरित हो जाती है।
  • खाद्यान्न मुद्रास्फीति में गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई है। मुद्रास्फीति में यह गिरावट खाद्यान्न समूह की अधिकांश श्रेणियों में देखी गई है जिनमें उच्च भारांक वाली मदें, जैसे कि अनाज एवं उनके उत्पाद, फल, सब्जियाँ, दालें एवं उनके उत्पाद भी शामिल हैं।

आवश्यक वस्तुओं की मूल्य वृद्धि को रोकने के उपाय:

  • सरकार ने आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कीमतों को स्थिर रखने हेतु समय- समय पर विभिन्न उपाय किये हैं जिनमें व्यापार एवं राजकोषीय नीति तंत्रों का प्रयोग जैसे- आयात शुल्क, न्यूनतम निर्यात मूल्य, निर्यात प्रतिबंध, स्टॉक सीमाओं को लागू करना तथा जमाखोरों एवं कालाबाज़ारियों आदि के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई के संबंध में राज्यों को परामर्श देना शामिल है। साथ ही सरकार उत्पादन वृद्धि हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा करके किसानों को प्रोत्साहन दे रही है।
  • वर्ष 2019-20 के दौरान अगस्त, 2019 से प्याज की कीमतों में वृद्धि देखी गई है और स्थिति को सामान्य बनाने हेतु सरकार द्वारा निम्नलिखित उपाय किये गए हैं:
    • भारत सरकार ने वर्ष 2019-20 के दौरान महाराष्ट्र (48183.5 मीट्रिक टन) तथा गुजरात (9,189.4 मीट्रिक टन) से खरीद के माध्यम से मूल्य स्थिरीकरण निधि (PSF) के तहत 57,372.90 मीट्रिक टन प्याज का सुरक्षित भंडारण किया है। जिसे विभिन्न राज्य सरकारों को वितरित किया गया। 
    • कीमत एवं उपलब्धता की स्थिति में सुधार हेतु हरियाणा, केरल, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य सरकारों को हानि-लाभ रहित प्याज की आपूर्ति की गई है। 
    • भारत से व्यापारिक निर्यात योजना के अंतर्गत प्याज निर्यातकों के लाभ की व्यवस्था को दिनांक 11.06.2019 की अधिसूचना के माध्यम से वापस ले लिया गया है।
    • कुछ शर्तों में ढील देकर और भंडारण सीमा से आयातकर्त्ताओं को छूट देकर प्याज के निजी आयातों को सुलभ बनाया गया।

निष्कर्ष:

  • वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान WPI मुद्रास्फीति कम रही, वहीं CPI-C मुद्रास्फीति में मामूली वृद्धि देखी गई जो मुख्य रूप से खाद्य कीमतों से प्रेरित थी।
  • समय के साथ ही मुद्रास्फीति की गतिशीलता में बदलाव आया है। मौजूदा अवधि में शीर्ष मुद्रास्फीति का मूल मुद्रास्फीति में ज़ोरदार प्रत्यावर्तन होने के प्रमाण हैं।
  • भविष्य में मुद्रास्फीति की संभावना और मुद्रास्फीति की गतिशीलता महत्त्वपूर्ण रूप से समग्र सूक्ष्म आर्थिक परिदृश्य के साथ-साथ कुछ कृषि वस्तुओं की बढ़ती कीमतों को कम करने पर निर्भर करेगी।
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