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मूली बाँस

  • 19 Nov 2022
  • 6 min read

हाल ही में एक शोध अध्ययन में मूली बाँस (मेलोकैना बेसीफेरा) के फल और फूलों से आकर्षित होने वाले पशु आगंतुकों/शिकारियों की एक बड़ी विविधता को देखा और सूचीबद्ध किया गया।

  • अध्ययन में पाया गया कि शिकार मुख्य रूप से शर्करा की उच्च मात्रा के कारण होता है।
  • इस प्रजाति के बाँस के झुरमुट में अब तक का सबसे अधिक फल उत्पादन भी देखा गया था।

मूली बाँस:

  • परिचय:
    • मूली बाँस की उष्णकटिबंधीय सदाबहार प्रजाति है।
    • यह सबसे अधिक फल उत्पादन करने वाला बाँस है और पूर्वोत्तर भारत- म्याँमार क्षेत्र का स्थानिक है।
    • यह उत्तर-पूर्वी राज्य में पाए जाने वाले बाँस के जंगलों का 90% हिस्सा है।
    • विसरित गुच्छों की वजह से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।
    • पौधे को सजावट के रूप में भी उगाया जाता है।
    • 'मौतम' मूली बाँस से जुड़ी एक अजीब पारिस्थितिक घटना है जो प्रत्येक 48 वर्ष में एक बार होती है।
  • मौतम:
    • मिज़ो में 'मौतम' का अर्थ है 'बाँस की मृत्यु' (मऊ का अर्थ है बाँस और तम का अर्थ है मृत्यु)।
    • 'मौतम' के दौरान, चक्रीय, बड़े पैमाने पर बाँस का फूलना और बड़े फलों का उत्पादन होता है
    • यह पराग परभक्षी (मधुमक्खियों), फलों के परभक्षी (मिलिपिड्स, स्लग और घोंघे, फ्रूट बोरर, बंदर, चूहे, साही, जंगली सूअर तथा सिवेट), सीड परभक्षी (खरगोश, हिरण), कीट/ कीट शिकारी (चींटियों, मंटिस) सहित पशु शिकारियों को आकर्षित करता है।
    • काले चूहे मूली बाँस के मांसल, बेर जैसे फल को बहुत पसंद करते हैं और इस अवधि के दौरान काले चूहे भी तेज़ी से बढ़ते हैं, इस घटना को 'रैट फ्लड' कहा जाता है।
    • हालाँकि जब फल समाप्त हो जाते हैं, तो वे तेज़ी से खड़ी फसलों को खाने लगते हैं।
    • इससे अकाल पड़ते हैं और हज़ारों मानव प्रभावित होते हैं।
    • 'मौतम' होने के कारण मूली बाँस को स्थानीय रूप से 'मौटक' के नाम से जाना जाता है।

बांँस से संबंधित पहल:

  • वैश्विक पहल:
    • विश्व बांँस दिवस:
      • यह प्रतिवर्ष 18 सितंबर को मनाया जाता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय बांँस और रत्तन संगठन (INBAR):
      • यह एक बहुपक्षीय विकास संगठन है जो बाँस और रत्तन का उपयोग करके पर्यावरण की दृष्टि से सतत् विकास को बढ़ावा देता है।
      • चीन में सचिवालय मुख्यालय के अलावा INBAR के भारत, घाना, इथियोपिया और इक्वाडोर में क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
  • बांँस से संबंधित सरकारी पहल:
    • बाँस क्लस्टर्स:
    • राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM)
    • बाँस को 'वृक्ष' श्रेणी से हटाना:
      • वर्ष 2017 में बांँस को वृक्ष की श्रेणी से हटाने हेतु भारतीय वन अधिनियम 1927 में संशोधन किया गया था।
      • इसका परिणाम है कि कोई भी बांँस की खेती और व्यवसाय कर सकता है तथा इसकी कटाई करने एवं उत्पादों को बेचने हेतु  अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय वन अधिनियम, 1927 में हाल में हुए संशोधन के अनुसार, वन निवासियों को वन क्षेत्रों में उगने वाले बाँस को काटने का अधिकार है।
  2. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपारिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अनुसार, बाँस एक गौण वनोपज है।
  3. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपारिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 वन निवासियों को गौण वनोपज के स्वामित्त्व की अनुमति देता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: B

व्याख्या:

  • भारतीय वन (संशोधन) विधेयक 2017 गैर-वन क्षेत्रों में उगाए जाने वाले बाँस की कटाई और पारगमन की अनुमति देता है। हालाँकि, वन भूमि पर उगाए गए बाँस को एक पेड़ के रूप में वर्गीकृत किया जाना ज़ारी रहेगा और मौज़ूदा कानूनी प्रतिबंधों द्वारा निर्देशित किया जाएगा। अत: कथन 1 सही नहीं है।
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 बाँस को लघु वन उपज के रूप में मान्यता देता है और अनुसूचित जनजातियों और पारंपरिक वन निवासियों को "स्वामित्व, लघु वन उपज एकत्र करने, उपयोग और निपटान तक पहुँच" का अधिकार देता है। अत: कथन 2 और 3 सही हैं।

अत: विकल्प B सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू

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