इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


प्रारंभिक परीक्षा

कथकली

  • 05 Jun 2023
  • 8 min read

हाल ही में के.के. गोपालकृष्णन ने "कथकली डांस थिएटर: ए विज़ुअल नैरेटिव ऑफ सेक्रेड इंडियन माइम" नामक एक आकर्षक पुस्तक का विमोचन किया है।

  • यह पुस्तक ग्रीन रूम, कलाकारों के संघर्ष और मेकअप के लंबे घंटों के दौरान बने अनूठे बंधनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कथकली की दुनिया में पर्दे के पीछे की झलक पेश करती है।

कथकली:

  • उत्पत्ति और इतिहास: 
    • कथकली का उदय 17वीं शताब्दी में त्रावणकोर (वर्तमान केरल) में हुआ था।
      • इस कला रूप को प्रारंभ में मंदिर परिसर में प्रदर्शित किया जाता था और बाद में इसने शाही दरबारों में लोकप्रियता हासिल की।
    • कथकली ऋषि भरत द्वारा लिखित नृत्य पर प्राचीन ग्रंथ नाट्य शास्त्र पर आधारित है।
      • हालाँकि कथकली हाथों की मुद्राओं की व्याख्या के लिये ग्रंथ हस्तलक्षण दीपिका पर आधारित है, जो एक अन्य शास्त्रीय पाठ है। 
    • 20वीं शताब्दी की शुरुआत में कथकली संकट में थी और विलुप्त होने के कगार पर थी।
      • प्रसिद्ध कवि वल्लथथोल नारायण मेनन और मनक्कुलम मुकुंद राजा ने कथकली के पुनरुद्धार हेतु शास्त्रीय कला रूपों के लिये उत्कृष्टता केंद्र केरल कलामंडलम स्थापित करने की पहल की।
  • नृत्य और संगीत:
    • कथकली नृत्य, संगीत, भाव-भंगिमा और नाटक के तत्त्वों को जोड़ती है। 
    • इसमें गति को अत्यधिक शैलीबद्ध किया जाता है और इसमें जटिल चाल, लयबद्ध बोल तथा हाथों के विभिन्न इशारों को मुद्रा कहा जाता है।
      • नर्तक भावनाओं को व्यक्त करने और कहानियाँ सुनाने के लिये अपने चेहरे के भावों का उपयोग करते हैं जिन्हें रस के रूप में जाना जाता है।
    • मणिप्रवालम, मलयालम और संस्कृत का मिश्रण कथकली गीतों में प्रयुक्त भाषा है।
      • कथकली गीतों के पाठ को अट्टाकथा के नाम से जाना जाता है।
      • चेंडा, मद्दलम्, चेंगिला, इलत्‍तालम् कथकली संगीत के साथ प्रयोग किये जाने वाले प्रमुख वाद्य यंत्र हैं।
  • श्रृंगार: 
    • चरित्र की प्रकृति के अनुसार कथकली श्रृंगार को पाँच प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है।
      • पच्‍चा (हरा): कुलीन तथा वीर पात्र जैसे देवता, राजा और संत।
      • कत्ती (चाकू): वीरता या बहादुरी की धारियों के साथ नायक-विरोधी या खलनायक।
      • ताढ़ी (दाढ़ी): विभिन्न प्रकार की दाढ़ी विभिन्न प्रकार के वर्णों को दर्शाती है, जैसे:
        • वेल्‍लाताढ़ी (सफेद दाढ़ी): दिव्य या परोपकारी पात्र।
        • चुवन्‍ना ताढ़ी (लाल दाढ़ी): दुष्ट या राक्षसी पात्र।
        • करूत्‍ता ताढ़ी (काली दाढ़ी): वनवासी या शिकारी।
      • करि (काला): पात्र जो दुष्ट, क्रूर या विचित्र हैं, जैसे- राक्षस या चुड़ैल।
      • मिनुक्‍क् (दीप्तिमान): पात्र जो कोमल, गुणी या परिष्कृत होते हैं जैसे कि स्त्रियाँ और ऋृषि-मुनि
    • भारी आभूषण और हेडड्रेस के साथ वेशभूषा रंगीन और असाधारण है।
  • नव गतिविधि:  
    • महिलाओं का समावेश: परंपरागत रूप से केवल पुरुष अभिनेताओं द्वारा किया जाने वाला कथकली में धीरे-धीरे स्त्री कलाकारों का प्रवेश शुरू हुआ जिन्होंने इस कला रूप का प्रशिक्षण लिया और विभिन्न महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं ।
    • विषयों में नवीनता: हिंदू महाकाव्यों और पुराणों की शास्त्रीय कहानियों के अलावा कथकली ने शेक्सपियर के नाटकों, सामाजिक मुद्दों, ऐतिहासिक घटनाओं तथा समकालीन विषयों जैसे अन्य स्रोतों से भी नए विषयों की खोज की है।
  • वर्तमान में दर्शकों हेतु कथकली की प्रासंगिकता:
    • कथकली, कला का एक जटिल रूप होने के कारण दर्शकों को इसे गहराई के साथ पूर्ण रूप से समझने के लिये इसकी सांकेतिक भाषा, मेकअप कोड और कहानियों से खुद को परिचित कराने की आवश्यकता होती है।
    • इसके अलावा आधुनिक तकनीक की शुरुआत, जैसे कि माइक्रोफोन और बेहतर ध्वनिकी ने कथकली संगीत के पुनरुत्थान एवं इसकी लोकप्रियता में योगदान दिया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. प्रसिद्ध सत्रिया नृत्य के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. सत्रिया संगीत, नृत्य और नाटक का एक संयोजन है।
  2. यह असम के वैष्णवों की सदियों पुरानी जीवित परंपरा है।
  3. यह तुलसीदास, कबीर और मीराबाई द्वारा रचित भक्ति गीतों के शास्त्रीय रागों एवं तालों पर आधारित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) 

व्याख्या: 

  • सत्रिया असम का एक शास्त्रीय नृत्य है, जिसमें एकसरन परंपरा (यानी कृष्ण-केंद्रित वैष्णववाद पंथ) पर आधारित नृत्य-नाटक प्रदर्शन शामिल हैं, जो 15वीं शताब्दी के भक्ति संत श्रीमंत शंकरदेव द्वारा आयोजित किया गया था। अतः कथन 1 सही है।
  • 15वीं शताब्दी में शंकरदेव और उनके प्रमुख शिष्य माधवदेव ने नाट्य शास्त्र (जो तांडव नृत्य एवं अभिनय तकनीकों का प्रतीक है) भागवत पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों का उपयोग करके नृत्य रूप को व्यवस्थित तथा निर्देशित किया, साथ ही कृष्ण के प्रति भावनात्मक भक्ति हेतु सामुदायिक धार्मिक कला के रूप में नाटक व अभिव्यंजक नृत्य (नृत्त एवं नृत्य) पेश किया। अतः कथन 2 सही है।
  • इसके अलावा संगीत मुख्य रूप से 15वीं-16वीं शताब्दी में श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव द्वारा रचित बोरगीतों पर आधारित है, जो गीतात्मक गीतों का एक संग्रह है जो विशिष्ट रागों हेतु निर्धारित हैं लेकिन किसी भी ताल के लिये ज़रूरी नहीं हैं। अतः कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2