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WTO और कृषि सब्सिडी विवाद

  • 06 Dec 2018
  • 12 min read

संदर्भ


ऐसे समय में जब सरकार खरीफ फसलों हेतु किसानों को वर्द्धित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की पेशकश कर रही है, तब भारत की कृषि सब्सिडी विश्व व्यापार संगठन (WTO) में संघर्ष का विषय बन गई है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • पिछले कुछ वर्षों के दौरान WTO में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम पर भी सवाल खड़े किये गए हैं। यह ठीक उसी तर्ज़ पर हो रहा है जिस पर WTO के कई सदस्य देश भारत की कृषि सब्सिडी को कृषि पर समझौता (AoA) नियमों के खिलाफ बताते रहे हैं।

एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर (AoA)

  • सरकारों द्वारा घरेलू प्रतिभागियों को विदेशी प्रतिभागियों के ऊपर वरीयता तथा उन्हें सब्सिडी वगैरह में कमी लाने हेतु WTO के विभिन्न समझौतों के तहत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था के अंतर्गत कृषि एवं टेक्सटाइल को शामिल करने के लिये एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर (AoA) लाया गया था।
  • एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर (AoA) में कृषि के तीन विशेष क्षेत्रों हेतु प्रावधान दिये गए हैं-

♦ बाज़ार तक आसानी से पहुँच बनाना

♦ निर्यात सब्सिडी में कमी लाना

♦ घरेलु सहायता में कमी लाना

    • हालाँकि काफी आपत्तियों के बाद भारत को अस्थायी राहत दी गई जिसमें कहा गया कि कोई भी WTO सदस्य भारत के खिलाफ विवाद शुरू नहीं करेगा, भले ही इसकी सब्सिडी इसकी प्रतिबद्धताओं से अधिक हो।

    किसानों को मिलने वाली सब्सिडी


    किसानों को मिलने वाली सब्सिडी को बॉक्स के रूप जाना जाता है एवं इन्हें तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया है-

    ग्रीन बॉक्स, इसके अंतर्गत दी जाने वाली सब्सिडी सामान्यतः व्यापार में विकृति पैदा नहीं करती या फिर न्यूनतम विकृति उत्पन्न करती है। इसके अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम, स्थानीय विकास कार्यक्रमों, अनुसंधान, आपदा राहत इत्यादि हेतु सरकार द्वारा प्रदान की गई आर्थिक सहायता को शामिल किया जाता है जिस पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होता है।

    ब्लू बॉक्स, इस बॉक्स के तहत उस आर्थिक सहायता को शामिल किया जाता है जो कृषकों को उत्पादों के उत्पादन में मात्रात्मक कमी लाने हेतु सरकार द्वारा दी जाती है। यह सहायता राशि व्यापार विकृति में कमी लाने हेतु दी जाती हैं।

    अंबर बॉक्स, इसके अंतर्गत ब्लू एवं ग्रीन बॉक्स के अलावा वे सभी सब्सिडियाँ आती हैं जो कृषि उत्पादन एवं व्यापार को विकृत करती हैं। इस सब्सिडी में सरकार द्वारा कृषि उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण तथा कृषि उत्पादों की मात्रा के आधार पर प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता आदि को शामिल किया जाता है। फ़र्टिलाइज़र, बीज, विद्युत एवं सिंचाई पर दी जाने वाली ऐसी सब्सिडी व्यापार संतुलन को विकृत करती है। ये अत्यधिक उत्पादन को प्रोत्साहित करते हैं तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों की अपेक्षा देश के उत्पादों को सस्ता बनाते हैं। इनमें कमी लाना ज़रूरी है जिसके लिये विभिन्न प्रतिबद्धताएँ तय की गई हैं।

    WTO का कृषि से संबंधित विवादित मुद्दा मुख्यतः इसी अंबर बॉक्स सब्सिडी से संबंधित है।

    • हाल ही में ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, यूरोपीय संघ, जापान, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई WTO सदस्यों द्वारा भारत की कृषि नीतियों के विभिन्न पहलुओं की बारीकी से जाँच की गई।
    • स्किम्ड दूध पाउडर, चीनी और दालें, विशेष रूप से इन सभी उत्पादों/वस्तुओं को प्रदान की जाने वाली निर्यात सब्सिडी और दालों पर आयात प्रतिबंध के लिए भारत की आपूर्ति प्रबंधन नीतियों पर भी सवाल उठाए गए।

    न्यूनतम समर्थन मूल्य

    • यह कृषि मूल्य में किसी भी तेज़ गिरावट के खिलाफ कृषि उत्पादकों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु  भारत सरकार द्वारा किया जाने वाला बाज़ार हस्तक्षेप का एक रूप है।
    • कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर कुछ फसलों के लिये बुवाई के मौसम की शुरुआत में भारत सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा की जाती है।
    • इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को बिक्री की चिंताओं से राहत प्रदान करना और सार्वजनिक वितरण के लिये  अनाजों की खरीद करना है।
    • वर्तमान में एमएसपी के तहत 26 कृषि उत्पादों [7 अनाज- धान, गेहूँ, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी; 5 दालें- ग्राम, अरहर/तुअर,  मूंग, उड़द और मसूर; 8 तिलहन- मूंगफली, रैपसीड/सरसों, तोरिया, सोयाबीन, सूरजमुखी बीज, सेसमम, कुसुम के बीज, नाइज़रसीड एवं अन्य फसलें कोपरा, नारियल, कच्चा कपास, कच्चा जूट, गन्ना (उचित और लाभकारी मूल्य) तथा वीएफसी तंबाकू] को शामिल किया गया है।

    न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण 

    • विभिन्न वस्तुओं की मूल्य नीति की सिफारिश करते समय कृषि लागत और मूल्य आयोग 2009 में निर्धारित की गई विभिन्न शर्तों (टीओआर) को ध्यान में रखता है।
    • तदनुसार, यह विश्लेषण करता है-

    ♦ मांग और आपूर्ति;

    ♦ उत्पादन की लागत;

    ♦ घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों में मूल्य प्रवृत्तियाँ;

    ♦ अंतर-फसल मूल्य समता;

    ♦ कृषि और गैर-कृषि के बीच व्यापार की शर्तें;

    ♦ उस उत्पाद के उपभोक्ताओं पर एमएसपी का संभावित प्रभाव।

    • इस बात पर ध्यान दिया जा सकता है कि उत्पादन की लागत एक महत्त्वपूर्ण कारक है जो एमएसपी के निर्धारण में इनपुट के रूप में प्रयुक्त होता है, लेकिन यह निश्चित रूप से एकमात्र कारक नहीं है जो एमएसपी का निर्धारण करता है।

    कैसे मापा जाता है न्यूनतम समर्थन मूल्य? 

    • कृषि मंत्रालय सभी राज्यों में कृषि पर लागत का अध्ययन करवाता है। इस अध्ययन से यह पता चलता है कि किसी राज्य में कोई फसल उगाने पर लागत कितनी आती है।  इस अध्ययन के साथ-साथ शेष अन्य क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) भारत सरकार को अपनी संस्तुति देता है कि किसी फ़सल का न्यूनतम समर्थन मूल्य कितना होना चाहिये।

    पृष्ठभूमि

    • हाल ही में अमेरिका ने गेहूँ और चावल के लिये MSP के अनुदान तथा कपास हेतु सब्सिडी प्रदान करने के आधार पर सवाल उठाया।
    • अमेरिका ने WTO में अपने आवेदन में दिखाया था कि 2010-11 से चावल के लिये भारत का बाज़ार मूल्य समर्थन, उत्पादन मूल्य से 70 प्रतिशत अधिक था और इसी अवधि के दौरान गेहूँ के लिये 60 प्रतिशत से अधिक जबकि कपास के लिये यह 53 प्रतिशत और 81 प्रतिशत तक अधिक था।
    • अमेरिका ने एक दूसरा मुद्दा भी उठाया था जिसमें ‘इलिज़िबल प्रोडक्शन’ की मात्रा को केंद्र में रखा गया था।
    • गन्ने के लिये भारत की मूल्य नीति को चुनौती देने में ऑस्ट्रेलिया ने भी अमेरिका का ही अनुसरण किया है। ऑस्ट्रेलिया का मुख्य तर्क यह था कि भारत सब्सिडी प्रदान करता तो है लेकिन इसे WTO के समक्ष घोषित नहीं किया गया है। जबकि गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के मुताबिक, भारत की दीर्घकालिक अवस्थिति ऐसी रही है कि यह गन्ने के लिये उचित और लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है जिसका भुगतान चीनी मिलें किसानों को करती हैं।

    WTO के सदस्य देशों द्वारा प्रदत्त सब्सिडी

    • WTO सदस्यों द्वारा प्रदान की गई सब्सिडी की गणना अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के संदर्भ में की जाती है, जिन्हें प्रतिस्पर्द्धी कीमत माना जाता है।
    • AoA को अपनाने के लिये की गई वार्ता के दौरान प्रत्येक वस्तु का अंतर्राष्ट्रीय मूल्य एक निश्चित ‘बाहरी संदर्भ मूल्य’ (ERP) था, जिसे 1986-88 के दौरान अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के औसत के रूप में लिया गया था।
    • भारत जैसे विकासशील देशों में किसी फसल के लिये बाज़ार मूल्य समर्थन इसके उत्पादन के कुल मूल्य के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है। हालाँकि भारत के संदर्भ में यह मूल्य कभी भी 10 प्रतिशत से अधिक नहीं रहा। फिर भी अमेरिका भारत पर आरोप लगाता रहा है कि कई प्रमुख फसलों हेतु बाज़ार मूल्य समर्थन इस सीमा से काफी ऊपर है।

    आगे की राह

    • पहला अवलोकन यह दर्शाता है कि संकट से जूझ रही भारतीय कृषि के लिये नीतियों में लचीलेपन की आवश्यकता है, जो AoA द्वारा प्रदान किये गए ढाँचे से उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
    • केंद्र सरकार को कृषि क्षेत्र के संरचनात्मक परिवर्तन लाने हेतु प्रयास करना चाहिये, जिसमें छोटे और सीमांत किसानों तथा भूमिहीन श्रमिकों के हितों को केंद्र में रखा गया हो।
    • भारत जैसे देशों को दोहा राउंड की वार्ता पर फिर से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। संकट से जूझ रहे कृषि क्षेत्र से निपटने के लिये भारत को एक लचीली नीतिगत व्यवस्था की ज़रूरत है। इसके लिये WTO के दोहा राउंड को पुनर्जीवित करना आवश्यक है।

    दोहा राउंड

    • दोहा राउंड WTO सदस्यों के बीच व्यापार वार्ता का नवीनतम दौर है।
    • व्यापक रूप से इसका उद्देश्य उच्च टैरिफ और अन्य बाधाओं, निर्यात सब्सिडी तथा कुछ अन्य प्रकार की घरेलू सहायता के कारण कृषि व्यापार में उत्पन्न विकृति को कम करना है।

    स्रोत- बिजनेस लाइन

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