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स्वच्छ सर्वेक्षण (शहरी) 2019; बनी हुई है खुले में शौच की समस्या

  • 07 Jan 2019
  • 11 min read

संदर्भ


4 जनवरी से 28 जनवरी तक 25 दिवसीय स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 शुरू हुआ। केंद्रीय आवासीय एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा कराए जा रहे इस सर्वेक्षण के दायरे में देश के 4237 शहर आएंगे। यह डिजिटल और पेपरलेस ‘अर्बन इंडिया’ के वार्षिक स्वच्छता सर्वेक्षण का चौथा संस्करण है। एक ओर सरकार स्वच्छता को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रही है, वहीं स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) पर किये गए एक नवीनतम अध्ययन से पता चलता है कि उत्तर भारत के चार राज्यों में 2014 से 2018 के बीच खुले में शौच करने वालों की संख्या में कोई खास कमी नहीं आई है।

क्या हैं अध्ययन के निष्कर्ष?

  • यह नया अध्ययन Research Institute for Compassionate Economics तथा Accountability Initiative of the Centre for Policy Research ने मिलकर किया है।
  • चार उत्तरी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ भारत मिशन के प्रभाव पर हुए इस नए अध्ययन से पता चलता है कि खुले में शौच जाने की प्रवृत्ति में कमी आई है और घरों में शौचालय बनवाने वालों की संख्या में भी वृद्धि हुई है।
  • लेकिन शौचालय बनवाने वाले लोगों द्वारा खुले में शौच करने का प्रतिशत 2014 से 2018 के बीच लगभग जस-का-तस बना हुआ है।
  • इसे यह भी पता चलता है कि लोगों की खुले में शौच करने की आदत में बदलाव के बजाय स्वच्छ भारत मिशन शौचालय बनवाने के मिशन में अधिक सफल रहा है।
  • बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में दो साल से अधिक आयु के लगभग 44 फीसदी लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं।
  • यह आँकड़ा 2018 के अंतिम महीनों में हुए सर्वेक्षण पर आधारित है, जिसमें इन राज्यों के 9812 लोगों को कवर किया गया।
  • इस अध्ययन के दौरान शोधकर्त्ताओं ने उन्हीं क्षेत्रों और परिवारों का सर्वे किया, जिन्होंने जून 2014 में इसी तरह के सर्वेक्षण में हिस्सा लिया था, जिसमें पता चला था कि 70 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं।
  • गौरतलब यह है कि 2014 का सर्वेक्षण केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत से पहले हुआ था, जिसका उद्देश्य 2 अक्तूबर, 2019 तक देशभर में खुले में शौच को समाप्त करना है।
  • स्वच्छ भारत मिशन के आँकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश और राजस्थान पहले से ही खुले में शौच मुक्त या ODF राज्य हैं।
  • बिहार ने हर घर में शौचालय के लक्ष्य का 98.97 फीसदी कवरेज़ हासिल कर लिया है।
  • आँकड़ों में उत्तर प्रदेश ने 100 फीसदी कवरेज़ हासिल कर लिया है, लेकिन उसे अभी तक ODF घोषित नहीं किया गया है।
  • अध्ययन से पता चलता है कि स्वच्छ भारत मिशन ने लोगों को शौचालय बनाने के लिये प्रेरित किया है, लेकिन इसके निष्कर्ष सरकारी दावों की तुलना में कमतर हैं।
  • सर्वेक्षण में शामिल किये गए लगभग 60% घरों में 2014 में शौचालय नहीं था, लेकिन इन घरों में 2018 तक शौचालय का निर्माण हो चुका था।
  • एक खास आँकड़ा ऐसा है जिसमें 2014 से 2018 के दौरान कोई बदलाव नहीं हुआ। उन लोगों की संख्या जिनके पास शौचालय है, लेकिन फिर भी खुले में शौच करते हैं, उनका प्रतिशत 2014 से 2018 के बीच 23 पर बना हुआ है।
  • अध्ययन से यह भी पता चला कि 2014 से 2018 के दौरान खुले में शौच की स्थिति में जो भी बदलाव आया है, वह केवल घरों में शौचालयों की संख्या बढ़ने तक ही रहा है।
  • लोगों की आदतों में कोई परिवर्तन देखने को नहीं मिला अर्थात् जिनके घरों में शौचालय था और जिनके घरों में नहीं था, उनकी आदतों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला।
  • एक बात और जो देखने को मिली, वह यह कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकारी अधिकारियों की रुचि केवल शौचालय बनवाने तक ही सीमित रही, जबकि उन्हें लोगों को शौचालयों का इस्तेमाल करने के लिये प्रेरित करना चाहिये था।
  • लोगों के मन में आदतों संबंधी बदलाव लाने के लिये एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर 1969 शुरू किया गया है, जिसमें स्वच्छ भारत मिशन के सिलसिले में पूछे गए लोगों के सवालों का जवाब दिया जाता है।

ओडीएफ+ और ओडीएफ++ प्रोटोकॉल

  • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने लोगों की खुले में शौच करने की प्रवृत्ति को रोकने की अपनी महत्त्वाकांक्षी योजना के बाद अब ओडीएफ+ और ओडीएफ++ प्रोटोकॉल जारी किया है।
  • यह स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के लिये अगला कदम है और इसका लक्ष्य स्वच्छता परिणामों में स्थायित्व सुनिश्चित करना है।
  • नए मानदंडों के तहत ओडीएफ+ (खुले में शौच से मुक्त) घोषित किये जाने के इच्छुक शहरों और कस्बों को खुले में शौच से मुक्त होने के अलावा लोगों द्वारा खुले में मूत्रत्याग से भी मुक्त होना चाहिये।
  • स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) में आधिकारिक तौर पर लोगों द्वारा खुले में मूत्रत्याग की समाप्ति को अपने एजेंडे में पहली बार शामिल किया गया है।
  • यह मिशन बुनियादी ढाँचे और नियामक परिवर्तनों पर केंद्रित है तथा साथ ही इस धारणा पर आधारित है कि इससे लोगों के व्यवहार में परिवर्तन आएगा।

ओडीएफ+ प्रोटोकॉल सामुदायिक व सार्वजनिक शौचालयों के नियमित इस्तेमाल के लिये उनकी कार्यात्मकता और उचित रख-रखाव को सुनिश्चित करते हुए इनके संचालन व रख-रखाव पर ध्यान केंद्रित करता है। ओडीएफ++ शौचालयों से विष्ठा और कीचड़ का सुरक्षित निस्तारण करने और यह सुनिश्चित करने पर ध्यान देता है कि ऐसा कोई भी अशोधित कीचड़ खुले नालों, जल निकायों या खुले में न बहा दिया जाए।

आदतों में बदलाव न आना है खुले में शौच की समस्या का बड़ा कारण

  • 2019 तक देश को स्‍वच्‍छ बनाने के लक्ष्य की प्राप्ति में पेयजल एवं स्‍वच्‍छता मंत्रालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्‍वच्‍छ भारत मिशन में प्रमुख भूमिका निभाई है।
  • इसके लिये खुले में शौच से मुक्ति और ठोस एवं तरल अपशिष्‍ट प्रबंधन आवश्‍यक है।
  • खुले में शौच का सीधा संबंध डायरिया से मृत्‍यु, बीमारी, अशिक्षा, कुपोषण और गरीबी से है, इसलिये इस कार्यक्रम के तहत मुख्‍य रूप से इस समस्‍या को समाप्‍त करने पर ध्‍यान दिया गया है।
  • स्‍वच्‍छ भारत मिशन की शुरुआत से अब तक लाखों शौचालयों का निर्माण किया गया है, जबकि इस मिशन का केंद्रबिंदु शौचालय का निर्माण करना नहीं है, बल्कि लोगों की सोच और आदतों में बदलाव लाकर सामुदायिक भागीदारी पर ध्‍यान देना है।
  • राज्‍य अपने सामाजिक-आर्थिक और सांस्‍कृतिक परिवेश के अनुसार अपनी पद्धति का चयन करने के लिये स्‍वतंत्र हैं।
  • जब पूरा गाँव खुले में शौच से मुक्‍त होगा तभी स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ी समस्याओं पर काबू पाया जा सकेगा। इसे पहचानते हुए कवरेज बढ़ाने के अलावा गाँवों को खुले में शौच से मुक्‍त करने पर ध्‍यान केंद्रित किया गया है।
  • सदियों पुरानी आदतों और मानसिकता में बदलाव के लिये आवश्‍यक कौशल और क्षमता विकास पर प्रमुखता से ध्‍यान दिया गया है।
  • राज्‍यों ने क्षमता विकास के लिये सामुदायिक कार्यशालाओं को अपनाया और कई राज्‍यों में आदतों में बदलाव देखा भी गया है।

गौरतलब है कि सफाई मानकों को सुधारने के लिये शहरों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा विकसित करने हेतु 2016 में 73 शहरों को रेटिंग देने वाला स्वच्छ सर्वेक्षण सर्वे करवाया गया था। इसके बाद स्वच्छ सर्वेक्षण-2017 हुआ’ जिसमें 434 शहरों को रैंकिंग दी गई। स्वच्छ सर्वेक्षण 2017 में इंदौर ने पहला स्थान प्राप्त किया। इसके बाद भारत के 4,203 वैधानिक कस्बों को शामिल करते हुए 4 जनवरी से 10 मार्च 2018 को इसका  तीसरा चरण आयोजित किया गया। इस दौरान इंदौरभोपाल और चंडीगढ़ देश के 3 सबसे स्वच्छ शहरों के रूप में उभरे। 4 अब 4 जनवरी से 28 जनवरी तक 25 दिवसीय स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 शुरू हुआ है, जो इसका चौथा चरण है। केंद्रीय आवासीय एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा कराए जा रहे इस सर्वेक्षण के दायरे में देश के 4237 शहर और कस्बे आएंगे।

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