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शासन व्यवस्था

भारत में धर्मनिरपेक्षता और यूनिफॉर्म सिविल कोड (भाग-2)

  • 03 Jan 2018
  • 8 min read

धर्मनिरपेक्षता की राह में मौजूद अन्य चुनौतियाँ

  • राजनीति एवं धर्म का अनुचित अंतर्संबंध:

⇒ गौरतलब है कि एस.आर. बोम्मई बनाम भारत गणराज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि धर्म को राजनीति से अलग नहीं किया जाता है, तो सत्ताधारी दल का धर्म ही देश का धर्म बन जाता है।
⇒ एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिये यह एक चिंताजनक स्थिति है। इतना ही नहीं राजनीतिक दलों द्वारा प्रायः धर्म और कौम के नाम पर वोट मांगा जाता है।
⇒ इस तरह की गतिविधियों पर लगाम लगाना आवश्यक है और इसके लिये धर्म और राजनीति के अनुचित अंतर्संबंध को खत्म किया जाना चाहिये।

  • एक समान आर्थिक व्यवस्था का कायम न हो पाना:

⇒ आर्थिक असमानता और गरीबी का धर्मांधता से गहरा संबंध है। आर्थिक रूप से कमज़ोर किसी व्यक्ति को धर्म के नाम पर उकसाना कही ज़्यादा आसान होता है।
⇒ एक समान आर्थिक व्यवस्था कायम करने में हम असफल रहे हैं और इससे धार्मिक कट्टरता में वृद्धि हुई है।

  • सांस्कृतिक प्रतीकों एवं धर्मनिरपेक्षता का मिश्रण:

⇒ एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का कोई धर्म नहीं होता। अतः सरकार के प्रतिनिधियों को अपने सार्वजानिक कार्यों के शुभारंभ से पहले किसी धर्म विशेष से संबंधित सांस्कृतिक अनुष्ठान को उचित नहीं कहा जा सकता।
⇒ उदाहरण के लिये किसी सार्वजनिक कार्य से पहले भूमि-पूजन और आरती करना या तिलक लगाना हिन्दू धर्म के लिये सांस्कृतिक महत्त्व की विषय-वस्तु है, लेकिन अन्य धर्मों के लोगों के लिये इनका कोई विशेष महत्त्व नहीं है।
⇒ जनप्रतिनिधियों को अपने इन सांस्कृतिक प्रतीकों का प्रदर्शन स्वयं के निजी अनुष्ठानों के दौरान ही करना चाहिये। राष्ट्र के प्रतिनिधि के तौर पर किये जाने वाले इस तरह के कृत्य धर्मनिरपेक्षता को चुनौती पेश करते हैं।

  • धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठाती कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ:

⇒ वर्ष 1984 के दंगे।
⇒ बाबरी मस्ज़िद का ध्वंस।
⇒ वर्ष 1992-93 के मुंबई दंगे।
⇒ गोधरा ट्रेन बर्निंग और वर्ष 2003 के गुजरात दंगे।
⇒ गौहत्या रोकने की आड़ में धार्मिक और नस्लीय हमले।

क्यों महत्त्वपूर्ण है धर्मनिरपेक्षता?

  • धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की उपज:

⇒ गौरतलब है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान धर्मनिरपेक्षता एक प्रमुख सिद्धांत के रूप में उभर रही थी। महात्मा गांधी, मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद, जवाहर लाल नेहरू आदि नेताओं का धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत में अटूट विश्वास था।
⇒ देश की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले हमारे महान नेता विभिन्न वर्गों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते थे।
⇒ दरअसल, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उपज़ हैं, जिन्हें संविधान ने विधिवत तरीके से अंगीकार किया है।

  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य कई मोर्चों पर बेहतर साबित होता है:

⇒ एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कई मोर्चों पर बेहतर साबित होता है। वह राज्य जो धार्मिक दायित्वों से मुक्त है सभी धर्मों के प्रति एक सहिष्णु रवैया अपनाता है और जाति, पंथ, धर्म आदि से परे देश और समाज की भलाई के लिये कार्य करता है।

  • भारत की विविधता के लिये महत्त्वपूर्ण:

⇒ भारत में धर्मनिरपेक्षता एक सकारात्मक, क्रांतिकारी और व्यापक अवधारणा है जो भारत की विविधता को बनाए रखने में अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
⇒ एक बहुसंख्यक, बहुभाषी, और बहुसांस्कृतिक समाज के रूप में भारत आने वाले कल में एक वैश्विक महाशक्ति तभी बन पाएगा, जब धर्मनिरपेक्षता के मूल्य अक्षुण्ण बने रहेंगे।

आगे की राह

  • चूँकि धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा माना गया है। अतः यह सरकार का कर्त्तव्य है कि वो इसका सरंक्षण सुनिश्चित करे।
  • धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा अल्पसंख्यकों को मान्यता देने और उनका संरक्षण सुनिश्चित करने पर आधारित है।
  • अतः अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिये विशेष प्रयास किये जाने चाहियें और इसे धर्मनिरपेक्षता के चश्मे नहीं देखा जाना चाहिये।
  • साथ ही धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक जनादेश का पालन सुनिश्चित करने के लिये एक आयोग का गठन किया जाना चाहिये।
  • राजनीति को धर्म से अलग करके देखा जाना चाहिये और यह एक ऐसी आवश्यकता है, जहाँ तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है।
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में धर्म के एक विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत और निजी मामला होने की उम्मीद की जाती है। जनप्रतिनिधियों को इसका ख्याल रखना चाहिये।

निष्कर्ष

  • दरअसल, धर्मनिरपेक्षता समाज में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा तर्कवाद को बढ़ावा देती है और एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष राज्य का आधार बनाती है।
  • हमारा भारत अनेकता में एकता का देश है जहाँ "अन्यता" की कोई भावना इसलिये नहीं है, क्योंकि हम सब का एक साझा इतिहास है और धर्मनिरपेक्षता ही हमारी साझी विरासत को बचाए रख सकती है।
  • अतः देश को धर्मनिरपेक्ष मूल्यों से दूर भागने की बजाय यूनिफॉर्म सिविल कोड बहाल करने का प्रयास करना चाहिये जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता एक अनूठी अवधारणा है जिसे भारतीय संस्कृति की विशेष आवश्यकताओं और विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए अपनाया गया है।
  • इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में विभाजनकारी तत्त्वों द्वारा सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश दशकों से की जा रही है और कई बार वे सफल भी रहे हैं, फिर भी सहिष्णुता और सभी धर्मों के सम्मान की संस्कृति आज भी ज़िंदा है और ज़िंदा रहनी चाहिये।
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