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भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना

  • 01 Apr 2023
  • 22 min read

यह एडिटोरियल 30/03/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India’s DPIs, catching the next wave” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के बारे में चर्चा की गई है।

पिछले कुछ वर्षों में विश्व को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जैसे कोविड महामारी, यूक्रेन में युद्ध एवं उसके परिणाम, जलवायु संकट, संप्रभु ऋण संकट और अभी हाल ही में जीवनयापन की लागत का संकट। इनसे हमारे समाजों के मूल को चुनौती दी गई है। हालाँकि, यहीं एक उम्मीद की किरण भी प्रकट हुई है जो है परिवर्तनकारी समाधान प्रदान करने के लिये सतर्कतापूर्वक अभिकल्पित डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DigitalPublic Infrastructure- DPI) की शक्ति। विश्व में सकारात्मक बदलाव में योगदान कर सकने की DPI की क्षमता अब भारत के G20 नेतृत्व का एक प्रमुख फोकस बन गया है।

DPI पहल—जिसे इंडिया स्टैक (India Stack) के रूप में भी जाना जाता है, आधार (Aadhaar), डिजिटल लॉकर (DigiLocker), डिजीयात्रा (DigiYatra), UPI जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म और सरकारों, नियामकों, निजी क्षेत्र, स्वयंसेवकों, स्टार्टअप एवं अकादमिक संस्थानों सहित विभिन्न निकायों के बीच सहयोग के माध्यम से विकसित प्रौद्योगिकियों का एक संग्रह है। DPI का लक्ष्य नागरिकों को सरकारी सेवाओं तक पहुँच का एक सहज एवं कुशल तरीका प्रदान करना तथा समावेशी विकास को बढ़ावा देना है।

संबंधित पहलें 

  • भारत में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के विकास के लिये पहलें:
    • आधार (Aadhaar):
      • आधार कार्यक्रम एक विशिष्ट पहचान प्रणाली है जो भारतीय निवासियों को 12 अंकों की पहचान संख्या प्रदान करती है। यह एक डिजिटल पहचान के रूप में कार्य करता है और इसका उपयोग वित्तीय सेवाओं सहित विभिन्न सेवाओं के लिये व्यक्तियों को अधिप्रमाणित करने के लिये किया जाता है।
    • डिजिलॉकर (DigiLocker):
      • डिजिलॉकर प्रोग्राम एक डिजिटल लॉकर है जो भारतीय नागरिकों को अपने दस्तावेजों को ऑनलाइन स्टोर करने और साझा करने में सक्षम बनाता है। यह आधार, पैन (PAN) और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों को स्टोर करने और उन्हें अभिगम्य करने का एक सुरक्षित एवं सुविधाजनक तरीका प्रदान करता है।
      • प्लेटफ़ॉर्म इन दस्तावेज़ों के लिये एक सुरक्षित और क्लाउड-आधारित रिपॉजिटरी प्रदान करता है, जिसे कहीं से भी अभिगम्य किया जा सकता है और आवश्यकतानुसार सरकारी एजेंसियों या अन्य संस्थाओं के साथ साझा किया जा सकता है।
    • डिजीयात्रा (DigiYatra):
      • यह हवाई यात्रियों को एक सहज और सुगम यात्रा अनुभव प्रदान करने के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू की गई डिजिटल पहल है। इस पहल का उद्देश्य भौतिक संपर्क को कम करने और यात्रियों को संपर्क-रहित यात्रा अनुभव प्रदान करने के लिये डिजिटल तकनीकों का लाभ उठाना है।
      • डिजीयात्रा के तहत यात्री अपने आधार या पासपोर्ट का उपयोग करके स्वयं को पूर्व-पंजीकृत कर सकते हैं और चेक-इन एवं सिक्यूरिटी पॉइंट्स पर सेल्फ-बैग ड्रॉप, ई-बोर्डिंग पास, बायोमेट्रिक सत्यापन और स्व-पहचान जैसी कई डिजिटल सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं।
    • एकीकृत भुगतान इंटरफेस (Unified Payments Interface- UPI):
      • UPI एक मोबाइल भुगतान प्रणाली है जो मोबाइल डिवाइस का उपयोग करके बैंक खातों के बीच तत्काल फंड ट्रांसफर को सक्षम बनाता है। इसने भारत में डिजिटल भुगतान परिदृश्य को रूपांतरित कर दिया है और पूरे देश में डिजिटल भुगतान को अपनाने की सुविधा प्रदान की है।
    • भारतनेट (BharatNet):
      • भारतनेट कार्यक्रम का उद्देश्य भारत के सभी गाँवों को हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी से जोड़ना है। यह एक महत्त्वपूर्ण पहल है जिसका उद्देश्य ‘डिजिटल डिवाइड’ को दूर करना है और डिजिटल अवसंरचना के लाभों को ग्रामीण भारत तक पहुँचाना है।
    • आरोग्य सेतु (AarogyaSetu):
      • यह अप्रैल 2020 में भारत सरकार द्वारा COVID-19 के प्रसार को रोकने के प्रयासों के तहत शुरू किया गया एक मोबाइल एप्लीकेशन है। ऐप को उपयोगकर्ताओं को अन्य व्यक्तियों के साथ उनके संपर्क के आधार पर COVID-19 संक्रमण के जोखिम का आकलन करने और COVID-19 संबंधित स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने में मदद करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
      • यह उपयोगकर्ताओं को उनकी उपस्थिति क्षेत्र में COVID-19 मामलों की संख्या पर रीयल-टाइम अपडेट भी प्रदान करता है और यदि वे किसी संक्रमित व्यक्ति के निकट हैं, तो उन्हें सचेत करता है।
    • कोविन (CoWIN):
      • यह भारतीय नागरिकों के लिये COVID-19 टीकाकरण भेंट-समय के पंजीकरण और समय-निर्धारण की सुविधा के लिये भारत सरकार द्वारा विकसित एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है। इसे जनवरी 2021 में COVID-19 के विरुद्ध भारत के टीकाकरण अभियान के एक भाग के रूप में लॉन्च किया गया था।
      • CoWIN पोर्टल के माध्यम से भारतीय नागरिक स्वयं को COVID-19 वैक्सीन के लिये पंजीकृत कर सकते हैं और अपने निवास स्थान के पास किसी टीकाकरण केंद्र में मिलने का समय निर्धारित कर सकते हैं।
      • प्लेटफ़ॉर्म नागरिकों को उनके स्थान और टीके की उपलब्धता के आधार पर टीकाकरण केंद्रों की खोज कर सकने की अनुमति देता है। CoWIN प्रत्येक केंद्र पर उपलब्ध टीकों के प्रकारों के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है।

डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के लिये डेटा संरक्षण पहल:

  • आधार अधिनियम, 2016:
    • आधार अधिनियम (Aadhaar Act) आधार कार्यक्रम के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है और व्यक्तिगत डेटा के संग्रहण, भंडारण एवं उपयोग के लिये प्रावधान निर्धारित करता है। यह भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (Unique Identification Authority of India- UIDAI) को आधार कार्यक्रम के प्रबंधन के लिये उत्तरदायी केंद्रीय प्राधिकरण के रूप में भी स्थापित करता है।
  • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019:
    • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (Personal Data Protection Bill) का उद्देश्य व्यक्तिगत डेटा की गोपनीयता की रक्षा करना और इसके प्रसंस्करण एवं हस्तांतरण के लिये एक रूपरेखा तैयार करना है। यह डेटा सुरक्षा नियमों की देखरेख और उनके प्रवर्तन के लिये एक भारतीय डेटा सुरक्षा प्राधिकरण (Data Protection Authority of India) की स्थापना की भी मंशा रखता है।
  • राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति, 2013:
  • साइबर स्वच्छता केंद्र:
    • साइबर स्वच्छता केंद्र (Cyber Swachhta Kendra) सरकार द्वारा निशुल्क टूल्स और सुरक्षा समाधान प्रदान करने के माध्यम से डिजिटल उपकरणों और नेटवर्क को सुरक्षित करने के लिये शुरू की गई एक परियोजना है।

भारत में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना से संबद्ध चुनौतियाँ

  • राजनीतिक चुनौतियाँ:
    • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के विकास और कार्यान्वयन के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति और समर्थन की आवश्यकता होती है, क्योंकि इससे प्रायः सार्वजनिक धन का पर्याप्त निवेश संलग्न होता है। सरकारों को ऐसी पहलों के लिये आवश्यक संसाधन और सार्वजनिक अंतःक्रय (public buy-in) प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • वित्तपोषण संबंधी चुनौतियाँ: 
    • एक सुदृढ़ डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के निर्माण एवं रखरखाव के लिये उल्लेखनीय निवेश की आवश्यकता होती है और सरकारों को इन परियोजनाओं के वित्तपोषण में बजट की कमी का सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, आधारभूत संरचना की दीर्घकालिक स्थिरता का समर्थन करने वाले वित्तपोषण मॉडल को स्थापित करना कठिन सिद्ध हो सकता है।
  • गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ:
    • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना में बड़ी मात्रा में संवेदनशील डेटा का संग्रहण, भंडारण एवं उपयोग शामिल होता है, जो गोपनीयता और सुरक्षा उल्लंघनों के जोखिम को बढ़ाता है। सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि नागरिकों की सूचना की सुरक्षा के लिये सुदृढ़ गोपनीयता और सुरक्षा उपायों के साथ आधारभूत अवसंरचना को अभिकल्पित एवं कार्यान्वित किया जाए।
  • ‘डिजिटल डिवाइड’ की चुनौतियाँ:
    • एक जोखिम यह भी है कि डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना ‘डिजिटल डिवाइड’ को वृहत कर सकता है, क्योंकि जिनके पास डिजिटल तकनीकों तक पहुँच नहीं है, वे प्रदत्त सेवाओं से लाभान्वित नहीं हो पाएँगे। सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि बुनियादी ढाँचा सभी नागरिकों के लिये सुलभ हो, जिसमें ग्रामीण या दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले और दिव्यांग जन भी शामिल हैं।
  • विधिक चुनौतियाँ:
    • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के निर्माण के लिये डेटा साझेदारी और डिजिटल सेवाओं के प्रावधान को सक्षम करने के लिये मौजूदा विधिक ढाँचे में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है। सरकारों को डेटा सुरक्षा, बौद्धिक संपदा अधिकारों और डेटा उल्लंघनों के लिये उत्तरदायित्व जैसे जटिल कानूनी मुद्दों को संबोधित करते हुए आगे बढ़ना होगा।

    आगे की राह 

    • साइबर सुरक्षा को सशक्त करना: 
      • सरकार को डिजिटल प्रणाली को साइबर खतरों से बचाने के लिये साइबर सुरक्षा उपायों में निवेश करने की आवश्यकता है। इसमें सुदृढ़ सुरक्षा प्रोटोकॉल विकसित करना और कमज़ोरियों की पहचान के लिये नियमित ऑडिट लागू करना शामिल है।
      • साइबर खतरों से निपटने के लिये एक व्यापक कानूनी और नियामक ढाँचे का निर्माण कर साइबर सुरक्षा को सशक्त किया जा सकता है, जिसमें डेटा सुरक्षा, साइबर अपराध और सूचना सुरक्षा पर कानून बनाना शामिल है।
    • डिजिटल अवसंरचना का विस्तार करना:
      • अधिक से अधिक आबादी तक पहुँच बनाने के लिये सरकार को देश भर में डिजिटल अवसंरचना का विस्तार करने की आवश्यकता है। इसमें इंटरनेट कनेक्टिविटी में सुधार लाना, डेटा केंद्रों का निर्माण करना और डिजिटल एक्सेस पॉइंट प्रदान करना शामिल है।
      • 5G, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) और ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में निवेश करना डिजिटल अवसंरचना के विस्तार के लिये अत्यंत सहायक सिद्ध हो सकता है।
    • डिजिटल सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना:
      • सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि डिजिटल सेवाएँ सभी नागरिकों के लिये सुलभ हों, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति या भौगोलिक स्थिति कुछ भी हो।
        • सॅटॅलाइट ब्रॉडबैंड (satellite broadband), गीगामेश नेटवर्क (Gigamesh networks) जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी का विस्तार करना सहायक होगा।
      • उपयोगकर्ता के अनुकूल डिजिटल इंटरफेस का निर्माण करने और स्थानीय भाषा एप्लीकेशनों एवं कॉन्टेंट के सृजन का समर्थन करने से गैर-अंग्रेज़ी भाषी आबादी के लिये डिजिटल सेवाओं की पहुँच बढ़ेगी तथा डिजिटल साक्षरता का निम्न स्तर रखने वाले लोग भी उनका उपयोग कर सकेंगे।
      • डिजिटल सेवाओं का उपयोग करने के बारे में लोगों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिये सामुदायिक केंद्रों एवं डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों की स्थापना करना।
    • डेटा सुरक्षा को बढ़ावा देना:
      • व्यक्तिगत सूचना को दुरुपयोग से सुरक्षा के लिये सरकार को कड़े डेटा संरक्षण नियमों को लागू करना चाहिये। इसमें डेटा उपयोग, भंडारण और साझाकरण पर स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित करना शामिल है।
      • व्यक्तियों के व्यक्तिगत डेटा के संग्रहण, भंडारण, प्रसंस्करण एवं साझाकरण को विनियमित करने के लिये डेटा सुरक्षा विधेयक का कार्यान्वयन डेटा सुरक्षा में अत्यंत सहायक सिद्ध हो सकता है।
    • डिजिटल कौशल को प्रोत्साहित करना:
      • डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिये आवश्यक डिजिटल कौशल से संपन्न कार्यबल की आवश्यकता होती है। सरकार को डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना चाहिये और एक कुशल कार्यबल के सृजन हेतु प्रशिक्षण एवं कौशल-उन्नयन (अपस्किलिंग) अवसर प्रदान करना चाहिये।
    • ‘इंटरऑपरेबिलिटी’ में सुधार लाना:
      • सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि डिजिटल प्रणालियाँ एक-दूसरे के साथ इंटरऑपरेबल हों, ताकि विभिन्न डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के बीच सहज एकीकरण हो सके।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना:
      • अधिक प्रभावी और संवहनीय डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के विकास के लिये सरकार को नवाचार, निवेश और ज्ञान-साझाकरण को आगे बढ़ाने के लिये निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करना चाहिये।

    अभ्यास प्रश्न: समावेशी विकास और डिजिटल रूपांतरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भारत में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के महत्त्व की चर्चा करें। DPI के विकास और कार्यान्वयन में भारत के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालें।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स

    प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

    1. आधार कार्ड का उपयोग नागरिकता या अधिवास के प्रमाण के रूप में किया जा सकता है।
    2.  एक बार जारी करने के पश्चात् इसे निर्गत करने वाला प्राधिकरण आधार संख्या को निष्क्रिय या विलुप्त नहीं कर सकता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2

    उत्तर: (d)

    व्याख्या:

    • आधार प्लेटफॉर्म सेवा प्रदाताओं को निवासियों की पहचान को सुरक्षित और त्वरित तरीके से इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणित करने में मदद करता है, इससे सेवा वितरण को अधिक लागत प्रभावी और कुशल बनाने में मदद मिलती है। भारत सरकार और UIDAI के अनुसार, आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
    • हालाँकि संभावित परिदृश्यों की एक सूची भी जारी की गई है जिसमें UIDAI द्वारा जारी आधार को अस्वीकार किया जा सकता है। मिश्रित अथवा विषम बायोमेट्रिक जानकारी वाले आधार या एक ही नाम में कई नाम (जैसे उर्फ या उपनाम) को निष्क्रिय किया जा सकता है। लगातार तीन वर्ष तक आधार का इस्तेमाल न करने पर आधार को निष्क्रिय भी किया जा सकता है। 

    प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018) 

    1. आधार कार्ड का उपयोग नागरिकता या अधिवास के प्रमाण के रूप में किया जा सकता हैै।
    2.  एक बार जारी होने के बाद आधार संख्या को जारीकर्त्ता प्राधिकारी द्वारा समाप्त या छोड़ा नहीं जा सकता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2 

    उत्तर: (d)

    व्याख्या:

    • भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तहत भारत सरकार द्वारा आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के तहत स्थापित वैधानिक प्राधिकरण है।
    • UIDAI भारत के सभी निवासियों को "आधार" नामक 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या (UID) जारी करने के लिये ज़िम्मेदार है, जो डुप्लिकेट और नकली पहचान को खत्म करने के लिये पर्याप्त मज़बूत है, और इसे आसान, लागत प्रभावी तरीके से सत्यापित और प्रमाणित किया जा सकता है।
    • आधार प्लेटफॉर्म सेवा प्रदाताओं को निवासियों की पहचान को सुरक्षित और त्वरित तरीके से इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणित करने में मदद करता है, जिससे सेवा वितरण अधिक लागत प्रभावी एवं कुशल हो जाता है। भारत सरकार और UIDAI के अनुसार आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
    • हालाँकि UIDAI ने आकस्मिकताओं का एक सेट भी प्रकाशित किया है जो उसके द्वारा जारी आधार अस्वीकृति के लिये उत्तरदायी है। मिश्रित या विषम बायोमेट्रिक जानकारी वाला आधार निष्क्रिय किया जा सकता है। आधार का लगातार तीन वर्षों तक उपयोग न करने पर भी उसे निष्क्रिय किया जा सकता है। अतः कथन 2 सही नहीं है। अतः विकल्प (d) सही है।

    मेन्स

    Q. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने की पहल की है"। विवेचना कीजिये।

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