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तवांग होने का महत्त्व

  • 15 Apr 2017
  • 16 min read

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग क्षेत्र पहुँचने के लिये 500 किमी लंबी सड़क को तय करने में 4 दिन का समय लगा क्योंकि खराब मौसम के कारण उनका वायुयान उड़ान नहीं भर सका| आखिर इसका कारण क्या था? पिछले कुछ समय भारत एवं चीन के मध्य चर्चा का मुद्दा बना यह क्षेत्र आखिर इतना अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों है, इसकी समस्याएँ क्या-क्या हैं? इसकी भौगोलिक अवस्थिति एवं विशेषताएँ क्या-क्या है? इस लेख विश्लेषण में इन्हीं सब पक्षों के विषय में संक्षिप्त में चर्चा की गई है| 

तवांग, अरुणाचल प्रदेश

  • तवांग, भारत की पूर्वी सीमा पर स्थित अरुणाचल प्रदेश राज्य का एक ज़िला है, जो समुद्र तल से 10,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है|
  • उल्लेखनीय है कि चीन ने यहाँ एक बड़ा अवसंरचनात्मक निर्माण कार्य आरंभ किया हुआ है: पिछले वर्ष चीनी सरकार ने एक घोषणा की थी कि वह तिब्बत में एक दूसरी रेलवे लाइन का निर्माण करेगी, जो इसकी राजधानी ल्हासा को दक्षिणी-पश्चिमी शहर चेंगडु (Chengdu) से जोड़ेगी|
  • नवम्बर, 2013 में चीन ने यहाँ सभी मौसम में काम में आने वाली एक सड़क का शुभारंभ भी किया है| यह सड़क तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet-Autonomous-Region -TAR) में स्थित मेडोग प्रदेश (अरुणाचल प्रदेश की सीमा के निकट) को इसके अन्य प्रदेशों से जोड़ती है| इसके साथ-साथ यह सड़क तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के प्रत्येक प्रदेश को चीन के एक राजमार्ग नेटवर्क से भी जोड़ती है|
  • इसके अतिरिक्त जुलाई 2013 में चीनी सरकार द्वारा की गई एक अन्य घोषणा में यह स्पष्ट किया गया था कि यह ल्हासा को केन्द्र में रखते हुए एक अन्य सड़क नेटवर्क का निर्माण करने की भी योजना बना रहा है| 
  • भारत इस दृष्टिकोण से चीन से काफी पीछे है| रक्षा पर भारतीय संसद की स्थाई समिति (Parliament’s Standing Committee on Defence) की एक रिपोर्ट (वर्ष 2013-14 में जारी) के अनुसार, चीन-भारतीय सीमा से लगी सड़कों के संबंध में भारतीय अवसंरचनात्मक ढाँचा काफी कमज़ोर स्थिति में है|
  • चीन-भारत सीमा से लगी हुई 73 सदाबहार सड़कों (जिन्हें भारत ने वर्ष 2006 में निर्माण के लिये चिन्हित किया था) में से केवल18 सड़कों का ही निर्माण कार्य अभी तक पूर्ण हो पाया है| इसके अतिरिक्त वे 27 सड़कें जिनका निर्माण भारत-तिब्बत सीमा पुलिस द्वारा किया जाना था, उनमें से भी एक का ही निर्माण कार्य अभी तक पूरा हो पाया है जबकि 11 सड़कों का निर्माण कार्य तो अभी तक शुरू भी नहीं हुआ है|

तवांग क्षेत्र में सड़कों की स्थिति

  • प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा वर्ष 2020 तक इस क्षेत्र में तकरीबन 610 किमी० लंबे सड़क नेटवर्क और बुनियादी अवसंरचना में सुधार करने हेतु वित्तीय वर्ष वर्ष 2016-17 में लगभग 5,850 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है|
  • इसके अतिरिक्त एक 52 किमी०लंबी सड़क का निर्माण ताकसिंग गाँव (तवांग से 550 किमी की दूरी पर) में भी किया जा रहा है ताकि सेना के लिये आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की गति को और अधिक तीव्र किया जा सकें| इसके साथ-साथ भारत-चीन सीमा पर संघर्ष की स्थिति में सैनिकों को शीघ्रता के साथ सीमा पर भेजा जा सकें|
  • इसी प्रकार, 33 किमी चौड़ी सड़क के निर्माण कार्य को पूरा करने के लिये तवांग और बुमला दर्रे (Bumla pass) के मध्य भी कार्य निर्माणाधीन है| ध्यातव्य है कि पिछले वर्ष यह निर्माण कार्य धन के अभाव में पूरा नहीं हो पाया था परन्तु अब केंद्र से धन प्राप्त होने के उपरांत जल्द ही सड़क की चौडाई का यह कार्य पूरा होने की संभावना है|
  • परन्तु, यह तवांग क्षेत्र के संदर्भ में एक दीर्घकालिक कार्य है|
  • हालाँकि, यहाँ तेज़पुर (असम) के माध्यम से तवांग को गुवाहाटी से जोड़ने वाले दो राजमार्ग भी अवस्थित हैं परन्तु जिस सड़क का इस क्षेत्र में सर्वाधिक उपयोग किया जाता है वह राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 27 है| यह राजमार्ग समुद्र तल से 13,700 फीट की ऊँचाई पर स्थित है|
  • तवांग क्षेत्र का सबसे नज़दीकी बड़ा शहर तेजपुर है जो कि 360 किमी की दूरी पर स्थित है|
  • इसके अतिरिक्त बोमडिला से तवांग तक की 180 किमी चौड़ी सड़क एक भू-स्खलन प्रवण सड़क है| इस क्षेत्र में पिछले दो वर्षों से सड़कों का निर्माण और उन्हें चौड़ा करने का कार्य किया जा रहा है|
  • स्पष्ट है कि सीमा क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण संबंधी किसी उद्देश्य की पूर्ति तब तक नहीं होगी जब तक सरकार देश के इस भाग के विकास हेतु कोई ठोस और सुसंगत रुपरेखा तैयार नहीं करती है| परन्तु, सबसे आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि क्या भारत सरकार वास्तव में तवांग क्षेत्र को लेकर इतनी अधिक गंभीर है|

तवांग क्षेत्र में वायुयानों की स्थिति

  • जैसा की हम सभी जानते हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में केवल वायुयान ही आसानी से पहुँच सकते हैं| यहाँ प्रत्येक सप्ताह गुवाहाटी से पाँच वायुयान उड़ान भरते हैं परन्तु यह उड़ान पूर्णतः मौसम की स्थिति पर ही निर्भर करती हैं|
  • प्रत्येक सप्ताह तवांग क्षेत्र में मुश्किल से औसतन एक से दो वायुयान ही उतर पाते हैं| वर्षा और सर्दियों के मौसम में तो यह स्थिती और भी अधिक दयनीय हो जाती है| 

तवांग में रेलगाड़ियों की स्थिति

  • ध्यातव्य है कि इस क्षेत्र का अंतिम रेलवे गन्तव्य स्थल भालुकपोंग (Bhalukpong) है जो कि तवांग से 330 किमी की दूरी पर स्थित है|
  • गौरतलब है कि असम के डेकरगाँव (Dekargaon) से अरुणाचल प्रदेश के भालुकपोंग तक 52 किमी चौड़ी रेल की पटरी को बिछाने में लगभग पाँच वर्षों का समय लगा है| यह समयावधि इस बात का स्पष्टीकरण है कि यहाँ की भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ रेलवे लाइन बिछाना एक अत्यंत ही कठिन कार्य है|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2015 में रेलवे बोर्ड ने मध्य असम के सोनितपुर (Sonitpur) ज़िले से तवांग तक प्रस्तावित 378 किमी लम्बे ट्रैक के सर्वेक्षण के अंतिम स्थल के लिये एक प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की| डेकरगाँव-भालुकपोंग भी इसी का एक भाग होगा|

तवांग क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की स्थिति

  • गौरतलब है कि फरवरी 2017 में तवांग के ज़िला अस्पताल को सफाई के मामले में केंद्र सरकार के ‘कायाकल्प पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था और इसे 50 लाख की राशि भी पुरस्कारस्वरूप प्रदान की गई थी| वर्तमान में इस धनराशि का उपयोग अस्पताल की सुविधाओं के नवीकरण में किया जा रहा है|
  • इस ज़िले में एक ज़िला अस्पताल, दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और छह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं| प्रतिदिन के 180-200 ओ.पी.डी. रोगियों के उपचार हेतु यहाँ छह जनरल ड्यूटी चिकित्सकीय अधिकारी भी मौजूद रहते हैं| हालाँकि सोचने वाली बात यह है कि इस ज़िले में कोई भी निजी क्लीनिक अथवा आपातकालीन सेवा उपलब्ध नहीं है|
  • कुछ माह पूर्व ही यहाँ के एक 50 बिस्तरों वाले एक सरकारी अस्पताल को ध्वस्त करके इसके स्थान पर एक 101 बिस्तरों वाले अस्पताल का निर्माण कार्य आरंभ किया गया है| इसके 2018 तक बनकर तैयार होने की संभावना है|
  • इसके अतिरिक्त वर्तमान में 18 बिस्तरों वाले एक अस्थायी ढाँचे का निर्माण अस्पताल के आंतरिक रोगियों की सुविधा के लिये किया जा रहा है|
  • यह अस्पताल एक्स-रे की सुविधा और अल्ट्रासाउंड तो मुहैया कराता है परन्तु एम.आर.आई. और सीटी स्कैन के लिये मरीज़ को तेज़पुर जाना पड़ता है जिसकी दूरी कम से कम 360 किलोमीटर है| इतना ही नहीं इस अस्पताल में कोई एनेस्थेटिस्ट (anaesthetist) भी उपलब्ध नहीं है|
  • इसी प्रकार किसी भी प्रकार की सर्जरी के लिये मरीज़ को तवांग से ईटानगर अथवा गुवाहाटी जाने की आवश्यकता पड़ती है| ये दोनों ही यहाँ से 510 किलोमीटर की दूरी पर हैं| 

तवांग क्षेत्र में विद्युत की स्थिति

  • गौरतलब है कि यह कस्बा अभी तक केन्द्रीय विद्युत ग्रिड से नहीं जुड़ पाया है| तवांग को अपनी 14 मेगावाट की मांग की पूर्ति हेतु घरेलू विद्युत उत्पादन पर ही निर्भर रहना पड़ता है|
  • वस्तुतः या तो कई-कईं दिनों तक यहाँ बिजली ही नहीं रहती है और यदि रहती भी है तो बहुत कम वोल्टेज में रहती है| स्पष्टता जिससे उपभोक्ताओं को परेशानियों (जिनमें जनरेटरों के माध्यम से चलने वाले सरकारी भवन भी शामिल हैं) का सामना करना पड़ता है|
  • ध्यातव्य है कि अप्रैल 2016 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के द्वारा तवांग में 780 मेगावाट के प्रस्तावित जलविद्युत प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय मंजूरी देने से इंकार कर दिया गया था|
  • एनजीटी ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया था कि इस संवेदनशील सीमा क्षेत्र (जो ब्रहमपुत्र नदी बेसिन सीमा जो कि चीन, भारत और बांग्लादेश में फैला हुई है) के  क्षेत्र में स्थित अन्य जलविद्युत प्रोजेक्टों के कारण पड़ने वाले प्रभावों का भी आकलन किया जाना चाहिये|
  • आधिकारिक सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, यहाँ के लोग विद्युत के लिये मुख्यतः सहायक नदियों पर स्थापित तीन जल विद्युत परियोजनाओं पर ही निर्भर हैं| शीतकाल में जब नदी का पानी जम जाता है तो विद्युत उत्पादन न्यूनतम हो जाता है परन्तु गर्मियों के दौरान जब सहायक नदियों में पानी का बहाव अधिक हो जाता है तो उनके उपकरणों को क्षति पहुँचती है|
  • इस ज़िले में कुल 31 छोटी और सूक्ष्म जल विद्युत परियोजनाएँ मौजूद हैं जिनमें से अधिकतर या तो बेकार हैं अथवा वे अपनी पर्याप्त क्षमता से संचालित नहीं हो रही है| 
  • ध्यातव्य है कि तवांग क्षेत्र में दो प्रमुख नदियाँ भी अवस्थित है जिनके नाम त्वांग छू (Tawang Chhu) और नायमजंग छू (Naymjang Chhu) हैं| इन दोनों नदियों में से प्रत्येक नदी की 10 सहायक नदियाँ हैं|
  • उल्लेखनीय है कि 780 मेगावाट क्षमता के नायमजंग छू प्रोजेक्ट के संचालन में कुछ समस्याएँ भी विद्यमान हैं| वास्तविकता यह है कि इस नदी के बैराज का निर्माण पंगचेन घाटी के निकट स्थित ज़ेमिथांग गाँव में किया जाना प्रस्तावित था| पंगचेन घाटी भूटान और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Bhutan and the Tibet Autonomous Region (TAR), से लगी अंतर्राष्ट्रीय सीमा और संकटग्रस्त काली गर्दन वाले सारस के आवास स्थल में स्थित है|

तवांग क्षेत्र में शिक्षा की स्थिति

  • आपको यह जानकार बहुत आश्चर्य होगा कि कक्षा 12 के पश्चात् तवांग क्षेत्र में शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं और जो एकमात्र कॉलेज है भी तो वह भी बोमडिला में स्थित होने के कारण तवांग से तकरीबन 180 किलोमीटर दूरी पर स्थित है| नज़दीकी विश्वविद्यालय राजीव गाँधी विश्वविद्यालय भी राजधानी ईटानगर में अवस्थित है|
  • तवांग में 117 सरकारी और 16 निजी विद्यालय कार्यरत हैं| उच्च माध्यमिक विद्यालयों का संचालन राज्य सरकार करती है जबकि जवाहरलाल नेहरु योजना के अंतर्गत एक केन्द्रीय विद्यालय का संचालन होता है|
  • उल्लेखनीय है कि ये सभी विद्यालय सी.बी.एस.ई. द्वारा मान्यता प्राप्त हैं| एक ओर जहाँ दसवीं कक्षा में उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों का प्रतिशत 88 है वहीं दूसरी ओर 12वीं कक्षा में यह प्रतिशत मात्र 53 है|
  • इसके अतिरिक्त तवांग में विभिन्न प्रकार के विषयों के विशेषज्ञों का भी काफी अभाव है| हालाँकि यहाँ सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में पर्याप्त संख्या में शिक्षक मौजूद हैं परन्तु गणित और विज्ञान के शिक्षकों का अभाव है| 

निष्कर्ष
देश के पूर्वी छोर पर स्थित इस क्षेत्र की समस्त भौगोलिक स्थिति एवं अवसंरचनात्मक अवस्था के विषय में अध्ययन करने के पश्चात् यह स्पष्ट है कि यह क्षेत्र न केवल देश के वैदेशिक सन्दर्भों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है बल्कि देश की सांस्कृतिक एवं भौगोलिक विशेषताओं का भी एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है| अतः इस क्षेत्र के विकास एवं प्रगति के लिये यह अत्यंत आवश्यक है कि सरकार इस क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे को दुरुस्त करने के साथ-साथ भावी पीढ़ी के लिये एक स्वस्थ एवं प्रकाशमयी भविष्य की राह भी सुनिश्चित करें|

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