इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत आर्थिक क्षेत्र में लिंग अंतराल को कैसे कम करे?

  • 14 Aug 2018
  • 7 min read

संदर्भ

विश्व बैंक के नवीनतम ग्लोबल फाइंडेक्स डेटा से यह साबित होता है कि भारत ने औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक पहुँच में सुधार करने के लिये तेज़ी से कदम उठाए हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 में केवल 53% वयस्कों के पास औपचारिक खाते थे, जबकि वर्तमान में 80% से अधिक वयस्कों के पास औपचारिक खाते हैं। अब प्रश्न यह है कि भारत कैसे अपने उभरते बाज़ार के अन्य साथियों से आगे बढ़ गया है? इस लेख के माध्यम से हम आर्थिक क्षेत्र के लिंग अंतराल की समाप्ति हेतु कुछ आवश्यक क़दमों की चर्चा करेंगे।

सरकार द्वारा किये गए प्रमुख प्रयास

  • दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने वित्तीय समावेशन के साथ औपचारिक क्षेत्र के विस्तार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
  • उदाहरण के लिये प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) कार्यक्रम 2015 में लॉन्च किया गया था जिसमें हर वयस्क को बुनियादी खाता प्रदान करने के एक मिशन के साथ-साथ पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अधिक नामांकन किया गया है।
  • इससे पूर्व बैंक लाखों महिलाओं की पहुँच से दूर थे। पीएमजेडीवाई के अंतर्गत बैंकों द्वारा गाँवों में द्वार-द्वार जाकर ग्राहकों का नामांकन किया गया है।
  • इसने बैंकों के व्यापार संवाददाताओं (बीसी या बैंक मंत्र) की संख्या में भी वृद्धि की है, जिससे अधिक घरों तक वित्तीय सेवाएँ सुनिश्चित हो पाई हैं।
  • इसके साथ ही सरकार ने महत्त्वपूर्ण लाभप्रद योजना जैसे प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (पीएमवीवीवाई) के अंतर्गत महिला के नाम वाले आधार से जुड़े खातों में सीधे लाभ/ भुगतान राशि पहुँचाना भी अनिवार्य किया है।
  • आधार और इंडिया स्टैक की बायोमेट्रिक ई-केवाईसी प्रमाणीकरण के लिये पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिये बैंक में अपनी पहचान स्थापित करना अधिक आसान है।
  • आधार के व्यापक रोलआउट ने ग्राहकों को एटीएम और सेवा टर्मिनल के अतिरिक्त डिजिटल बीसी भुगतान बिंदुओं का उपयोग करने में सक्षम बनाया है। इन निरंतर प्रयासों ने भारत के वित्तीय पहुँच  का भारी विस्तार किया है।
  • अतः सरकार द्वारा इन सभी पहलुओं को एक साथ लाना डिजिटल भुगतान की दिशा में एक बड़ी नीति साबित हुई है ।

समस्या एवं उपाय 

  • पीएमजेडीवाई के अंतर्गत 100 मिलियन से अधिक नए बैंक खातों को खोला गया है, लेकिन उनमें से अधिकांश या तो निष्क्रिय हैं या शून्य बैलेंस वाले हैं।
  • हालाँकि, इसके अंतर्गत अधिक महिलाओं को नामांकित किया गया है लेकिन खाता उपयोग में अभी भी एक बड़ा लिंग अंतराल बना हुआ है।
  • पिछले कुछ वर्षों में लाखों नए खातों के खोले जाने जैसी उपलब्धियों के अलावा आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक संदर्भ में किये गये शोधों से यह पता चलता है कि आगे के लिये किस प्रकार की पहल उचित होगी। निम्नलिखित उपायों को अपनाकर वित्तीय क्षेत्र से लिंग अंतराल को समाप्त किया जा सकता है : 
  • सबसे पहले हमें अधिक महिलाओं के हाथों तक स्मार्टफोन पहुँचाना होगा।
  • दरअसल, मोबाइल फोन अभी भी वित्तीय समावेशन के लिये सबसे आशाजनक उपकरण है और फिर भी 73% पुरुषों की तुलना में भारत में आधे से अधिक वयस्क महिलाओं के पास अपना  मोबाइल फोन नहीं है।
  • इसके साथ ही उपलब्ध मोबाइल फोन का उपयोग विपणन हेतु न करके सोशल साइट हेतु ही किया जाना एक प्रमुख समस्या है।
  • साथ ही विभिन्न प्रकार के सामाजिक भय के कारण भी भारत में मोबाइल फोन को एक अच्छा उपकरण नहीं माना जाता है।
  • दूसरी प्रमुख समस्या वित्तीय समावेशन के लिये स्मार्टफोन के त्रि-चरणीय उपयोग से जुड़ी हुई है।
  • दरअसल, इसमें एक महिला के वित्तीय समावेशन से जुड़ने के लिये उसका स्मार्टफोन के उपयोग से परिचित होना, क्रेडिट, बीमा और अन्य वित्तीय कार्यविधि को समझना और अक्सर एक इंटरफ़ेस का उपयोग करना जो उनकी मूल भाषा में भी नहीं लिखा गया है, को समझना अनिवार्य है।
  • लंबे समय से हमारा लक्ष्य महिलाओं की वित्तीय साक्षरता में सुधार लाना तो रहा है, लेकिन दूसरा प्रमुख प्रयास महिलाओं की डिजिटल साक्षरता में सुधार की दिशा में भी होना चाहिये।
  • तीसरी प्रमुख समस्या वित्तीय उत्पादों को महिलाओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये संरचित, वितरित नहीं किये जाने से है। अतः बचत, क्रेडिट और बीमा को महिलाओं के वित्तीय जीवन को अधिक प्रासंगिक बनाने के लिये डिज़ाइन किया जाना चाहिये।
  • उभरते बाज़ारों में खातों को माइक्रोक्रेडिट से जोड़ने से महिलाएँ अपने दैनिक प्रबंधन में घरेलू बचतों को अप्रत्याशित व्यय और आपात स्थिति को कवर करने में मदद कर सकती हैं।
  • गौरतलब है कि महिलाएँ, पुरुषों की तुलना में जीवन में अधिक उतार-चढ़ाव से गुज़रती हैं तथा वे औपचारिक कार्य से कई बार जुड़ती या बाहर होती हैं, इसलिये निष्क्रिय खातों को पुनः सक्रिय करने की प्रक्रिया को  आसान बनाना चाहिये जिससे खातों के उपयोग में वृद्धि हो सकती है।
  • इसके साथ ही कई अभिनव व्यावसायिक मॉडलों के आधार पर नए ग्राहक अनुभवों के साथ पारंपरिक वित्तीय सेवाओं को फिर से जोड़ा जाना चाहिये।

निष्कर्ष

चूँकि दुनिया लंबे समय बाद सार्वभौमिक वित्तीय पहुँच के लक्ष्य के बहुत करीब है, इसलिये हमें इसे लिंग अंतराल को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ते कदम की तरह देखना चाहिये। साथ ही पुरुषों और महिलाओं दोनों के जीवन के लिये वित्तीय सेवाओं को अधिक डिजिटलयुक्त, लचीला और प्रासंगिक बनाकर सभी ग्राहकों के बीच बुनियादी पहुँच को सुनिश्चित करना चाहिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2