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सामाजिक न्याय

विश्व तपेदिक/क्षयरोग दिवस

  • 25 Mar 2022
  • 11 min read

संदर्भ

अब जब भारत कोविड महामारी से धीरे-धीरे बाहर निकल रहा है, उसे एक बार फिर से तपेदिक या क्षय रोग पर प्रमुखता से ध्यान देने की ज़रूरत है जो लंबे समय से देश के लिये एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या रहा है और समाज के कमज़ोर वर्गों को विषम रूप से प्रभावित करता है।

विश्व तपेदिक/क्षयरोग दिवस (World Tuberculosis Day) पर हमारे लिये यह विचार करना उपयुक्त होगा कि हम टीबी नियंत्रण में एक नई गति प्राप्त करने के लिये कोविड-19 से सीखे गए सबक का किस प्रकार सर्वोत्तम लाभ उठा सकते हैं।

टीबी की लंबे समय से अनदेखी होती रही है। यह उचित समय है कि इस रोग की भयावहता को स्वीकार किया जाए और इस रोग की आवश्यकता के अनुरूप लोगो को उपयुक्त स्वास्थ्य देखभाल पहुँच और संसाधन प्रदान करने के लिये कठिन श्रम किया जाए।

भारत में क्षय रोग: आँकड़े

  • WHO की ‘ग्लोबल टीबी रिपोर्ट-2021’ के अनुसार भारत में वर्ष 2019 में टीबी के 24 लाख मामलों की तुलना में वर्ष 2020 में 18 लाख मामले दर्ज किये गए।
    • लगभग 25.9 लाख टीबी मामलों के साथ भारत इस रोग के वैश्विक बोझ के लगभग एक चौथाई का वहन करता है।
    • भारत में टीबी केस मृत्यु दर (Case Fatality Ratio- CFR) वर्ष 2019 में 17% से बढ़कर वर्ष 2020 में 20% हो गई।

भारत वर्ष 2016 से वर्ष 2025 तक (वैश्विक लक्ष्य वर्ष 2030 तक से पाँच वर्ष पूर्व) टीबी उन्मूलन के मिशन मोड पर है।

इस रोग से निपटने के लिये बजट में चार गुना वृद्धि और एक रोगी-केंद्रित राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (National Strategic Plan for TB elimination) के साथ भारत ने अपने लक्ष्य तक पहुँचने की दिशा में पर्याप्त प्रगति की है।

टीबी और कोविड-19 के बीच समानताएँ और अंतर

  • कोविड-19 और तपेदिक इस संदर्भ में एकसमान हैं कि ये दोनों ही संचरण-योग्य और वायुजनित संक्रमण हैं।
    • दोनों ही रोग भीड़-भाड़ वाली स्थिति में अधिक प्रसारित होते हैं और शरीर प्रतिरक्षण को कम करते हुए लोगों के लिये स्वास्थ्य खतरा उत्पन्न करते हैं।
  • हालाँकि वर्ष 2010-20 के मध्य तपेदिक के कारण प्रतिवर्ष 1.5-2 मिलियन व्यक्तियों की मृत्यु हुई लेकिन ‘महामारी’ (Pandemic) शब्द का प्रयोग शायद ही कभी टीबी के संदर्भ में किया गया हो।
    • कोविड-19 महामारी के आरंभिक 11 माह में अनुसंधान एवं विकास पर सरकारों द्वारा व्यय की गई राशि वर्ष 2020 में टीबी पर व्यय की गई राशि से 162 गुना अधिक थी।
  • टीबी निम्न-आय देशों के गरीबों और कमज़ोर लोगों को विषम रूप से प्रभावित करता है।

कोविड-19 ने टीबी उन्मूलन प्रयासों को कैसे प्रभावित किया?

  • दर्ज नहीं हुए मामलों में वृद्धि: कोविड-19 के प्रबंधन के लिये स्वास्थ्य सेवा पर बढ़ते बोझ ने टीबी नियंत्रण को गंभीर आघात पहुँचाया। पिछले दो वर्षों में टीबी मामलों की जाँच में कमी आई जिससे टीबी के ‘दर्ज नहीं हुए मामलों’ (Missing Cases) के अनुपात में वृद्धि हुई है।
    • ‘ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2021’ के अनुसार टीबी मामलों की सूचनाओं में 18% की गिरावट वैश्विक तपेदिक कार्यक्रमों पर महामारी के प्रभाव का सबसे बड़ा संकेतक है।
  • लॉकडाउन और आर्थिक संकट: कोविड-19 लॉकडाउन और आर्थिक तनाव ने लोगों को परीक्षण के लिये चिकित्सा प्रतिष्ठानों तक पहुँचने से हतोत्साहित किया है।
    • इसने सामान्य परिस्थितियों में भी चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने से कतराने वाले लोगों की चिकित्सा मांग को और कम कर दिया।
  • दवाओं तक पहुँच: जहाँ जाँच में टीबी की पुष्टि के बाद भी लोगों के लिये दवाओं तक पहुँच हमेशा आसान नहीं रहती है, वहाँ कोविड-19 के दौरान यह स्थिति और बदतर हो गई।
  • टीबी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में कर्मियों की कमी: तीन कोविड लहरों के दौरान स्वास्थ्य प्रणाली के मानव संसाधनों के उस ओर नियोजन ने टीबी सुविधाओं पर कर्मियों की कमी की समस्या उत्पन्न की जिससे देखभाल गुणवत्ता में कमी और देरी की स्थिति बनी है।
  • टीबी जीवाणु की पुनःसक्रियता: अध्ययनों से पता चलता है कि कोविड के कारण ऐसी स्थितियाँ बन सकती हैं जिससे निष्क्रिय टीबी बैसिली (TB bacilli) पुनःसक्रिय हो सकते हैं।
    • ट्यूबरकल बैसिलस (Tubercle bacillus or Mycobacterium tuberculosis) एक छोटा, छड़ आकार का जीवाणु है जो शुष्क स्थिति में महीनों तक जीवित रह सकता है और हल्के कीटाणुनाशक की क्रिया का मुकाबला भी कर सकता है।

आगे की राह

  • ‘टेस्ट’, ‘ट्रीट’ और ‘ट्रैक’: टेस्ट, ट्रीट और ट्रैक की रणनीति कोविड-19 के लिये सफलतापूर्वक उपयोग की गई है। हमें सक्रिय निगरानी, सबसे संवेदनशील आणविक निदान के उपयोग के साथ श्वसन पथ संक्रमण के लिये बाय-डायरेक्शनल स्क्रीनिंग और संपर्क अनुरेखण जैसी नवीन रणनीतियों के साथ आक्रामक रूप से परीक्षण करने की आवश्यकता है।
    • कोविड-19 के विरुद्ध सबसे बड़ी जीत उस गति में रही जिसके साथ टीकों को विकसित किया गया, उनका उत्पादन बढ़ाया गया और लोगों को उपलब्ध कराया गया।
    • तपेदिक के लिये भी यही दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जहाँ टीबी के विरुद्ध एक सफल टीके के विकास के लिये सरकारों और उद्योग से धन प्रदान करने के लिये दबाव बनाया जाना चाहिये।
  • सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम: कुपोषण, गरीबी और मधुमेह जैसी प्रतिरक्षण को प्रभावित करने करने वाली स्थितियों का टीबी से गहन संबंध है।
    • 100 मिलियन से अधिक भारतीय तंबाकू का सेवन करते हैं जो उनमें टीबी के विकास और इससे मृत्यु का एक मज़बूत जोखिम कारक है।
    • परिवर्तनीय जोखिम कारकों की रोकथाम की दिशा में योगदान करने वाले सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम संभवतः इस रोग के ‘चिकित्साकरण’ पर विशेष ध्यान देने की तुलना में अधिक लाभ प्रदान कर सकेंगे।
  • संलग्नता और निवेश: टीबी से मुकाबला करने के लिये निवेश और सार्वजनिक शिक्षा इस संकट को हमारे अतिभारित और अल्प वित्तपोषित तंत्र की पुनर्कल्पना कर सकने के लिये एक अवसर में बदल सकती है।
    • भारत को न केवल टीबी के लिये बल्कि स्वास्थ्य, पोषण और निवारक सेवाओं के लिये धन की मात्रा को तिगुना करने की आवश्यकता है।
      • इसे अत्याधुनिक तकनीकों में निवेश करने, क्षमता निर्माण करने, अपने स्वास्थ्य कार्यबल का विस्तार करने और अपनी प्राथमिक देखभाल सुविधाओं को सशक्त करने की भी आवश्यकता है।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इनमें से कोई भी कदम उठाने से पहले सर्वप्रथम इसे एक खुला और सहयोगी मंच बनाने की ज़रूरत है, जहाँ सभी हितधारक, विशेष रूप से प्रभावित समुदाय एवं स्वतंत्र विशेषज्ञ, एक प्रमुख भूमिका निभाएँ।
  • जन जागरूकता: टीबी शमन रणनीति के प्रभावी होने के लिये लोगों में रोग के बारे में जागरूकता के स्तर को बढ़ाया जाना भी महत्त्वपूर्ण है।
    • यह सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है कि बीमारी से प्रभावित लोग सामाजिक असुरक्षाओं से मुक्त हो सकें, टीबी देखभाल तक पहुँच बना सकें और सरकार के टीबी कार्यक्रम का लाभ उठा सकें।
    • निर्वाचित प्रतिनिधियों की पहल और भागीदारी निश्चित रूप से उपलब्ध देखभाल सेवाओं के बारे में सही संदेशों के प्रसार, इस रोग से जुड़े कलंक को हटाने और लोगों को देखभाल सेवा प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करने में मदद कर सकती है।
      • स्थानीय स्तर पर एक उत्तरदायी स्वास्थ्य प्रणाली को बनाए रखने में कठिन श्रम का योगदान करने वाली आशा, आँगनवाड़ी और स्व-सहायता समूहों से संबद्ध ज़मीनी स्तर की कार्यकर्त्ताओं को समर्थन प्रदान कर इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘कोविद-19 महामारी के प्रबंधन के लिये स्वास्थ्य सेवा पर बढ़े बोझ ने भारत में टीबी नियंत्रण उपायों को गंभीर आघात पहुँचाया है।’’ टिप्पणी कीजिये।

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