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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रोहिंग्या संकट और संयुक्त राष्ट्र

  • 18 Jun 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

म्याँमार में रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र (United Nations - UN) ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट जारी है जिसके अंतर्गत इस विषय के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र की ही भागीदारी पर नाराज़गी व्यक्त की गई है। UN ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस विषय पर हमारे द्वारा कई गलतियाँ की गई और एक समान योजना के स्थान पर खंडित रणनीति के कारण हमने कई अच्छे अवसर गँवा दिये।

मुख्य बिंदु :

  • संयुक्त राष्ट्र ने म्याँमार में रोहिंग्या विषय पर अपनी भागीदारी पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं और उस पर नाराज़गी भी व्यक्त की है।
  • UN ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस मुद्दे में UN महासचिव और संस्था से जुड़े देश के वरिष्ठ अधिकारियों की भागीदारी के बाद भी म्याँमार के अधिकारियों के साथ सहयोग के माध्यम से नकारात्मक रूझानों में परिवर्तन करने के प्रयास अपेक्षाकृत असफल रहें हैं।
  • रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने इस घटना में अपने प्रयासों को अपनी असफलता के रूप में परिभाषित किया है।
  • रोहिंग्या संकट से निपटने के दौरान कुछ संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों तथा व्यक्तिओं के बीच हुई आपसी प्रतिस्पर्द्धा को भी संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में दर्शाया है।
  • संयुक्त राष्ट्र ने अपनी असफलता का मुख्य कारण हेडक्वाटर (मुख्यालय) और फील्ड (Headquarters and Field) के बीच तालमेल एवं उपयुक्त संचार के अभाव को बताया है।
  • रिपोर्ट में आगे कहा गया कि अधिकारियों और कर्मचारियों के मध्य बढे ध्रुवीकरण का मुख्य कारण म्याँमार में घटित होने वाली भयानक घटनाओं से उत्पन्न हुई भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ थीं।

रोहिंग्या संकट :

  • दरअसल म्याँमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है, जबकि रोहिंग्याओं को मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है। हालाँकि लंबे समय से वे म्याँमार के रखाइन प्रांत में रहते आ रहे हैं।
  • दरअसल बौद्धों का मानना यह है कि बांग्लादेश से भागकर आए रोहिंग्याओं को वापस वहीं चले जाना चाहिये।
  • रोहिंग्याओं और बौद्धों के बीच होने वाले छिटपुट टकराव को हवा तब मिली जब वर्ष 2012 में रखाइन प्रांत में हुए भीषण दंगों में लगभग 200 लोग मारे गए, जिनमें ज़्यादातर रोहिंग्या मुसलमान थे।
  • ये दंगे तब शुरू हुए, जब एक बौद्ध महिला की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई और इसका आरोप तीन रोहिंग्याओं पर लगाया गया। इसके बाद अल्पसंख्यक रोहिंग्याओं और बहुसंख्यक बौद्धों के बीच कई बार हिंसक टकराव हुआ, लेकिन ज़्यादातर जान गँवाने वाले रोहिंग्या ही बताए जाते हैं।
  • म्याँमार के सुरक्षा बलों ने भी जब इन्हें सताना शुरू कर दिया तो इनके लिये म्याँमार में रहना कठिन हो गया। इन परिस्थितियों में हज़ारों की संख्या में रोहिंग्याओं को म्याँमार छोड़कर भागना पड़ा। ये नौकाओं में सवार होकर समुद्र में निकल तो जाते थे, लेकिन कोई भी देश उन्हें लेने को तैयार नहीं होता था।
  • ऐसे में हज़ारों लोग समंदर में ही फँसे रहते थे, कुछ की नौकाएँ डूब जाती थी, कुछ बीमारियों की भेंट चढ़ जाते थे, जबकि कई मानव तस्करों के चंगुल में फँस जाते थे।
  • किसी तरह सीमा पार कर भारत में बड़ी संख्या में रोहिंग्या आ बसे थे। भारत में इनकी कुल संख्या 10 से 12 हज़ार बताई गई, हालाँकि गृह मंत्रालय के पास जो अन्य आँकड़े मौजूद हैं उनके अनुसार भारत में रह रहे रोहिंग्याओं की संख्या लगभग 40 हज़ार है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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