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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नीति-निर्धारकों के लिये सचेत होने का समय

  • 19 Sep 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों ?

वर्ष 2013 के बाद से भारत के बाह्य संतुलन खाते में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है, परन्तु इसमें अब भी कुछ ऐसे चिन्ह मौजूद हैं जो नीति-निर्माताओं से और सावधानी बरतने की उम्मीद करते हैं। पिछले सप्ताह देश का चालू खाता घाटा (current account deficit) चालू वित्त वर्ष के प्रथम तिमाही में बढ़ कर $14.3 अरब हो गया जो पिछले चार वर्ष के उच्च स्तर पर है। यह जीडीपी का 2.4% हो गया है जो पिछले वर्ष 0.1% ही था।  

प्रमुख बिंदु

  • देश के चालू खाता घाटा के बढ़ने का कारण निर्यात की तुलना में आयात का अधिक होना है। हालाँकि, पूंजीगत खाता अधिशेष के मज़बूत होने के कारण देश अपने आयात बिल का बिना किसी समस्या के भुगतान करने में सक्षम रहा है। 
  • भारत अब भी विदेशी निवेशकों के लिये आकर्षक गंतव्य बना हुआ है। पिछले साल की तुलना में इस वर्ष के प्रथम तिमाही में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश दुगना होकर $7.2 अरब हो गया है। इस दौरान शुद्ध पोर्टफोलियो निवेश भी 12.5 अरब डॉलर रहा।
  • विदेशी पूंजी के मज़बूत प्रवाह के कारण विदेशी रिज़र्व होल्डिंग्स में भी महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है। 
  • 8 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 400.7 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर पर था|
  • पिछले दो वर्षों में वैश्विक तेल की कीमतों में कमी के कारण आयात बिल कम रहा।
  • हालाँकि ये परिस्थितियाँ अमेरिकी फेडरल रिज़र्व (U.S. Federal Reserve) एवं अन्य केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीति को सख्त करने के साथ बदल सकती हैं। आखिरकार उभरते हुए एशियाई बाज़ार पश्चिमी देशों में ढीले मौद्रिक नीति के सबसे बड़े लाभार्थी रहे हैं, इसलिए उनके रुख में कोई भी बदलाव इन्हें निश्चित रूप से प्रभावित करेगा।
  • भारतीय कंपनियाँ रुपए के वर्चस्व वाले विदेशी कर्ज़ फंस गई हैं और विदेशी पूंजी के अस्थिर होने की स्थिति में संकट में पड़ जाती हैं।  
  • आरबीआई ऐसे उधारों की मात्रा और गुणवत्ता को विनियमित करता है अतः यह ऐसा प्रतीत हो सकता है कि चीजें उसके नियंत्रण में हैं। 
  • बाहरी वाणिज्यिक उधारों में गिरावट एवं अनिवासी भारतीयों द्वारा जमा किये जाने के कारण भारत का कुल बाह्य ऋण वित्त वर्ष 2016-17 में 2.7% तक घटकर $471.9 अरब पर आ गया। 
  • विश्व बैंक ने भी कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था के आकार और विदेशी रिज़र्व होल्डिंग्स के कारण भारत का बाह्य गतिशीलता बहुत ही अनुकूल है। परन्तु प्रतिकूल व्यापार संतुलन की लंबी अवधि अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बहाव से जुड़कर बेपरवाह व्यापक आर्थिक स्थितियों की ओर जा सकती है।
  • भारत रेटिंग्स और रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, रुपए की 10% अवमूल्यन एवं 50 आधार अंकों की ब्याज दरों में वृद्धि संयुक्त रूप से अनेक भारतीय उधारकर्त्ताओं को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। 
  • जैसा कि विश्व ऐतिहासिक रूप से कम ब्याज दरों के युग से पीछे हटने लगा है, भारतीय नीति निर्माताओं के लिये यह समझदारी यह होगी कि वे महत्त्वपूर्ण अस्थिरता की अवधि से निपटने के लिये एक आपात योजना तैयार रखें।
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