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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ऋण वसूली की चिंताजनक स्थिति

  • 17 Apr 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ?
केंद्र ने इस महीने की शुरुआत में संसद को बताया कि 2014 से सितंबर 2017 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की पुस्तकों से 2.41 लाख करोड़ रुपये की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (non-performing assets) को हटाया (written-off) जा चुका है।

प्रमुख बिंदु 

  • हालाँकि, सरकार ने स्पष्ट किया कि बकाएदारों (defaulters) को कर्ज़ वापस करना होगा, भले ही उन्हें राइट-ऑफ कर दिया गया है। 
  • ध्यातव्य है कि राइट-ऑफ ऋण माफ़ी से तकनीकी रूप से भिन्न है। ऋण माफ़ी में उधार लेने वाले को पुनः भुगतान से मुक्ति मिल जाती है, जबकि राइट-ऑफ में उसे भुगतान करना पड़ता है। 
  • लंबे समय से भारत में उधारदाताओं को अपना धन वसूलने में मदद करने वाले समुचित कानूनी ढाँचे का अभाव है।
  • विश्व बैंक के मुताबिक दिवालियापन (bankruptcy) के मामलों के निपटान से संबंधित रैंकिंग में भारत का विश्व में 103वाँ स्थान है।
  • रत में दिवालियापन से संबंधित मामले के निपटन में औसतन चार वर्ष से अधिक समय लगता है।
  • स्मरणीय है कि भारतीय बैंक बकाएदारों से औसतन केवल 25% धन की पुनःप्राप्ति कर पाते हैं, जबकि अमेरिका में यह दर 80% है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ताकतवर हित समूहों के दबाव के कारण लेनदारों (borrowers) से बकाया धन की उगाही में नरमी बरतते रहते हैं।
  • संकटग्रस्त परिसंपत्तियों को खराब ऋणों में वर्गीकृत करने और उनकी उगाही हेतु कार्रवाई करने के बजाय बैंक अक्सर अनैतिक लेखा तकनीकों द्वारा ऐसी परिसंपत्तियों को छिपा लेते हैं।
  • हालाँकि,  2014 से भारतीय रिज़र्व बैंक सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के बैंकों को ईमानदारी पूर्वक बैड लोनों की पहचान करने हेतु प्रेरित कर रहा है। इस कारण पिछले कुछ वर्षों में तनावग्रस्त संपत्तियों की पहचान में कई गुना वृद्धि हुई है।

राइट-ऑफ क्यों मायने रखता है ?

  • बड़े पैमाने पर ऋणों के राइट-ऑफ की यह खबर ऐसे समय आई है जब केंद्र सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षों में दिवालियापना और पुनर्प्राप्ति संबंधी प्रक्रियाओं में सुधार लाया गया है। इस संदर्भ में इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) अति महत्त्वपूर्ण है जिसे विगत वर्ष लागू किया गया था।
  • लेकिन ऋणों की कमज़ोर पुनर्प्राप्ति से बैंकों की बैलेंस शीट पर दबाव बढ़ सकता है।
  • ध्यातव्य है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बैलेंस शीट को बैड लोनों के प्रभाव से बचने हेतु सरकार द्वारा 2.11 लाख करोड़ रुपए के अंतःक्षेपण (injection) की घोषणा की गई है। कमज़ोर ऋण पुनर्प्राप्ति सरकार द्वारा इस उद्देश्य हेतु जारी किये जाने वाले फंडों की आवश्यकता में बढ़ोतरी कर सकती है।

आगे की राह 

  • यह असंभव सा प्रतीत होता है कि बैंक अपनी पुनर्प्राप्ति की दर में कोई चमत्कारिक सुधार ला पाएँ  क्योंकि नए आईबीसी कोड में काफी खामियाँ हैं। 
  • आलोचकों का कहना है कि आईबीसी कोड तनावग्रस्त ऋणों की अधिकाधिक पुनर्प्राप्ति के बजाय कार्रवाइयों के समयबद्ध निवारण पर ज़्यादा केंद्रित है।
  • निवारण/निपटान प्रक्रिया पर आरोपित कड़ी समय सीमाएँ मूल्यवान संपत्तियों की सस्ते मूल्यों पर बिक्री को बढ़ावा दे सकती है जो निवेश प्रोत्साहन को प्रभावित कर सकता है।
  • लेकिन, अभी के लिये, खराब ऋणों के शीघ्र समाधान के लिये संघर्ष कर रही कंपनियों से संसाधनों को लेकर अधिक कुशल कंपनियों के हाथों में सौंपा जा सकता है।
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