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प्रौद्योगिकी

चंद्रयान-2 का सफल प्रक्षेपण

  • 23 Jul 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

22 जुलाई 2019 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre SHAR: SDSC-SHAR) से चंद्रयान-2 अंतरिक्षयान को भूतुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle-GSLV) मार्क III से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • यह अंतरिक्षयान इस समय धरती के निकटतम बिंदु 169.7 किलोमीटर और धरती से दूरस्‍थ बिंदु 45,475 किलोमीटर पर पृथ्‍वी के चारों ओर चक्‍कर लगा रहा है।
  • यह उड़ान GSLV मार्क III की प्रथम परिचालन उड़ान है।
  • उल्लेखनीय है कि इसका प्रक्षेपण 15 जुलाई, 2019 को ही किया जाना था लेकिन कुछ तकनीकी समस्याओं के कारण प्रक्षेपण के कुछ घंटे पहले इसे रोक दिया गया।
  • अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण यान से पृथक होने के तुरंत बाद अंतरिक्ष यान की सौर शृंखला यानी सोलर ऐरे (Solar Array) स्‍वचालित रूप से तैनात हो गई तथा बंगलुरु स्थित इसरो टेलिमिट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (ISRO Telemetry, Tracking and Command Network- ISTRAC) ने अंतरिक्ष यान पर सफलतापूर्वक नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • आने वाले दिनों में चंद्रयान-2 की ऑनबोर्ड प्रणोदन प्रणाली का उपयोग करते हुए सिलसिलेवार ढंग से ऑर्बिट में प्रक्रिया संचालित की जाएगी।

Mission Sequence

GSLV मार्क- III

  • GSLV मार्क III इसरो द्वारा विकसित किया गया उच्च प्रणोदन क्षमता वाला यान है। इसके द्वारा भारत के 4 टन श्रेणी के भू-तुल्यकालिक उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया जा सकेगा। इस प्रकार भारत उपग्रह प्रक्षेपण के मामले में पूर्णतः आत्मनिर्भर हो जाएगा।
  • GLSV मार्क III की ऊँचाई 43.43 मी. और लिफ्ट ऑफ मास 640 टन है। इसमें तीन चरण हैं जिनमें स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन ‘CE-20’ का प्रयोग किया जाएगा।
  • हाल ही में नवंबर 2018 में GSAT-29 संचार उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिये GSLV मार्क-III D2 प्रक्षेपण यान का उपयोग किया गया था।
  • इसरो के पास वर्तमान में केवल 2.2 टन वज़न तक के पेलोड को लॉन्च करने की क्षमता है और इससे ज़्यादा वज़न के प्रक्षेपण हेतु उसे विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • GSLV मार्क-3 भारत का सबसे शक्तिशाली प्रमोचन यान होगा जो चार टन वज़नी संचार उपग्रहों को 36,000 किलोमीटर ऊँचाई वाली भू-स्थिर (Geosynchronous) कक्षा में स्थापित कर सकेगा। ज्ञातव्य है कि वर्तमान में GSLV मार्क-II की क्षमता लगभग 2 टन है।
  • GSLV मार्क III की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें भारतीय क्रायोजेनिक इंजन के तीसरे चरण का उपयोग किया गया है तथा वर्तमान GSLV की तुलना में इसमें उच्च पेलोड ले जाने की क्षमता है।

GSLV Mk

चंद्रयान-2 अभियान

  • यह भारत का चंद्रमा पर दूसरा मिशन है।
  • इसमें पूरी तरह से स्वदेशी ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) का इस्तेमाल किया गया है। रोवर (प्रज्ञान) लैंडर (विक्रम) के अंदर स्थित है।

Vikram lander

  • चंद्रयान-2 मिशन का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी को विकसित करना तथा इसका प्रदर्शन करना है। इसमें चंद्रमा मिशन क्षमता, चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग और चंद्रमा की सतह पर चलना शामिल हैं।
  • इस मिशन द्वारा प्राप्त जानकारी से चंद्रमा की भौगोलिक स्थिति, खनिज, सतह की रासायनिक संरचना, ताप, भौगोलिक गुण तथा परिमण्डल के अध्ययन से चंद्रमा की उत्पत्ति एवं विकास की समझ बेहतर होगी।

Pragyan Rover

  • पृथ्वी की कक्षा को छोड़ने तथा चंद्रमा के प्रभाव वाले क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद चंद्रयान-2 की प्रणोदन प्रणाली प्रज्ज्वलित हो जाएगी ताकि यान की गति को कम किया जा सके। इससे यह चंद्रमा की प्राथमिक कक्षा में प्रवेश करने में सक्षम होगा। इसके बाद कई तकनीकी कार्यों के अंतर्गत चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर चंद्रयान-2 की वृत्ताकार कक्षा स्थापित हो जाएगी।
  • इसके बाद लैंडर, ऑर्बिटर से अलग हो कर 100 कि.मी. x 30 कि.मी. की कक्षा में प्रवेश कर जाएगा। कई जटिल तकनीकी प्रक्रियाओं के बाद लैंडर 07 सितंबर, 2019 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट-लैंडिंग करेगा।
  • इसके बाद रोवर, लैंडर से अलग हो जाएगा और चंद्रमा की सतह पर एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) तक परीक्षण करेगा। लैंडर का कार्यकाल भी एक चंद्र दिवस के बराबर है। ऑर्बिटर एक साल की अवधि के लिये अपना मिशन जारी रखेगा।

Orbiter

अन्य स्मरणीय तथ्य

  • ऑर्बिटर का वज़न लगभग 2,369 किलोग्राम, जबकि लैंडर तथा रोवर के वज़न क्रमशः 1,477 किलोग्राम एवं 26 किलोग्राम है।
  • रोवर 500 मीटर तक की यात्रा कर सकता है। इसके लिये यह रोवर में लगे सोलर पैनल से ऊर्जा प्राप्त करेगा।
  • चंद्रयान-2 में कई पैलोड भी लगे हैं जो चंद्रमा की उत्पत्ति एवं विकास के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।
  • ऑर्बिटर में 8, लैंडर में 3 तथा रोवर में 2 पैलोड लगे हैं। ऑर्बिटर पैलोड 100 किलोमीटर की कक्षा से रिमोर्ट सेंसिंग करेगा, जबकि लैंडर एवं रोवर पैलोड लैंडिंग साइट के निकट मापन कार्य करेंगे।
  • चंद्रयान-2 मिशन का तीसरा महत्त्वपूर्ण आयाम पृथ्वी पर स्थापित तकनीकी हैं। इनके माध्यम से अंतरिक्ष यान से वैज्ञानिक आँकड़ों एवं सभी उपकरणों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। ये अंतरिक्ष यान को रेडियो कमांड भी भेजेंगी।
  • चंद्रयान-2 के पृथ्वी पर स्थित तकनीकी सुविधाओं में शामिल हैं- इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (Indian Deep Space Network), अंतरिक्ष यान नियंत्रण केंद्र (Spacecraft Control Centre) और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान डेटा केंद्र (Indian Space Science Data Centre)।

स्रोत: PIB

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