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भारतीय राजव्यवस्था

विशेष श्रेणी का दर्जा

  • 21 Feb 2023
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष श्रेणी के राज्य, गाडगिल सूत्र 

मेन्स के लिये:

विशेष श्रेणी की स्थिति से जुड़े लाभ और मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि केंद्र किसी भी राज्य के लिये 'विशेष श्रेणी के दर्जे' की मांग पर विचार नहीं करेगा क्योंकि 14वें वित्त आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा है कि विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता है। 

  • यह ओडिशा, बिहार, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के लिये बड़ा झटका है क्योंकि ये राज्य पिछले कुछ वर्षों से विशेष श्रेणी के दर्जे की मांग कर रहे हैं। 

विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS):

  • परिचय:  
    • विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) केंद्र द्वारा निर्धारित उन राज्यों का एक वर्गीकरण है जो भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक नुकसान का सामना करते हैं।
    • संविधान SCS के लिये प्रावधान नहीं करता है और यह वर्गीकरण बाद में 1969 में पाँचवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
    • पहली बार वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को यह दर्जा दिया गया था। 
    • पूर्व में योजना आयोग की राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा योजना के तहत सहायता के लिये SCS प्रदान किया गया था।
    • असम, नगालैंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना सहित 11 राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया। 
      • तेलंगाना, भारत के सबसे नवीन राज्य को यह दर्जा दिया गया था क्योंकि इसे आंध्र प्रदेश राज्य से अलग किया गया था। 
    • 14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिये 'विशेष श्रेणी का दर्जा' समाप्त कर दिया है।
      • इसने सुझाव दिया कि प्रत्येक राज्य के संसाधन अंतर को 'कर हस्तांतरण' के माध्यम से भरा जाए, केंद्र से कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को 32% से बढ़ाकर 42% करने का आग्रह किया गया है।
    • SCS, विशेष स्थिति से अलग है जो बढ़े हुए विधायी और राजनीतिक अधिकार प्रदान करती है, जबकि विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) केवल आर्थिक और वित्तीय पहलुओं से संबंधित है।
      • उदाहरण के लिये अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था।
  • निर्धारक (गाडगिल सिफारिश पर आधारित): 
    • पहाड़ी इलाका
    • कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा
    • पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर सामरिक स्थिति
    • आर्थिक और आधारभूत संरचना पिछड़ापन 
    • राज्य के वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति

विशेष श्रेणी के दर्जे के लाभ:

  • अन्य राज्यों के मामले में 60% या 75% की तुलना में केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक निधि का 90% विशेष श्रेणी के राज्यों को भुगतान किया जाता है, जबकि शेष निधि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है।
  • वित्तीय वर्ष में अव्ययित निधि व्यपगत नहीं होती है और इसे आगे बढ़ाया जाता है।
  • इन राज्यों को उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क, आयकर एवं निगम कर में महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान की जाती हैं।
  • केंद्र के सकल बजट का 30% विशेष श्रेणी के राज्यों को प्रदान किया जाता है।

विशेष श्रेणी के दर्जे के संबंध में चिंताएँ: 

  • यह केंद्रीय वित्त पर दबाव में वृद्धि करता है।
  • साथ ही एक राज्य को विशेष दर्जा देने से दूसरे राज्य भी ऐसी मांग करने लगते हैं। उदाहरण के लिये आंध्र प्रदेश, ओडिशा और बिहार द्वारा की जाने वाली मांग।

निष्कर्ष: 

  • जैसा कि 14वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया था, राज्यों को कर हस्तांतरण बढ़ाकर 42% कर दिया गया है और इसे 15वें वित्त आयोग (41%) द्वारा भी जारी रखा गया है ताकि SCS का विस्तार किये बिना संसाधन भिन्नता/अंतर को कम किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू

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