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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन और सोलोमन द्वीप के बीच सुरक्षा समझौता

  • 15 Apr 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सोलोमन आइलैंड्स,  AUKUS, बो डिक्लेरेशन।

मेन्स के लिये:

चीन और सोलोमन द्वीप के बीच सुरक्षा समझौता तथा क्षेत्र में इसके भू-राजनीतिक विन्यास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लीक हुए एक दस्तावेज़ से पता चला है कि दक्षिण प्रशांत में सोलोमन द्वीप चीन के साथ एक समझौते पर पहुँच गया है, जो सुरक्षा सहयोग के अभूतपूर्व स्तर की रूपरेखा तैयार करता है। 

  • इस क्षेत्र में चीन के लिये यह अपनी तरह का पहला सौदा है, जिस पर अभी हस्ताक्षर नहीं हुए हैं और यह पूरी तरह से ज्ञात नहीं है कि लीक हुए दस्तावेज़ में उल्लिखित प्रावधान अंतिम मसौदे में मौज़ूद हैं या नहीं।

सोलोमन द्वीप की मुख्य विशेषताएँ:

  • सोलोमन द्वीप प्रशांत में स्थित द्वीपों के मेलनेशियन समूह का हिस्सा है जो पापुआ न्यू गिनी और वानुअतु (Vanuatu) के मध्य स्थित है।
  • औपनिवेशिक युग के दौरान द्वीपों को शुरू में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा नियंत्रित किया गया था।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा द्वीपों पर कब्ज़ा करने के बाद, यह जर्मनी और जापान के हाथों से फिर वापस यूके में चला गया।
  • सरकार की संसदीय प्रणाली के साथ ब्रिटिश क्राउन के तहत एक संवैधानिक राजतंत्र बनने के लिये द्वीप वर्ष 1978 में स्वतंत्र हो गए।
  • फिर भी यह राष्ट्रमंडल का एक स्वतंत्र सदस्य है तथा गवर्नर-जनरल को एक सदनीय राष्ट्रीय संसद की सलाह पर नियुक्त किया जाता है।

Solomon-Islands

प्रस्तावित सौदे के तहत प्रावधान:

  • दस्तावेज़ स्पष्ट रूप से चीन को अपनी "पुलिस, सशस्त्र पुलिस, सैन्यकर्मियों तथा अन्य कानून प्रवर्तन और सशस्त्र बलों" को बाद की सरकार के अनुरोध पर द्वीपों में भेजने को सक्षम बनाता है, यदि उसे लगता है कि द्वीपों में उसकी परियोजनाओं और कर्मियों की सुरक्षा खतरे में है।
  • यह चीन के नौसैनिक जहाज़ों को रसद सहायता हेतु द्वीपों का उपयोग करने की अनुमति भी प्रदान करता है।

सोलोमन द्वीप में चीन की दिलचस्पी का कारण:

  • ताइवान की भूमिका:
    • प्रशांत द्वीप समूह दुनिया के उन कुछ क्षेत्रों में से हैं जहाँ चीन और ताइवान के मध्य कूटनीतिक प्रतिस्पर्द्धा है।
      • चीन, ताइवान को इस क्षेत्र में एक प्रतिस्पर्द्धी मानता है तथा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में इसकी मान्यता का विरोध करता है।
      • इसलिये जिस भी देश को चीन के साथ आधिकारिक रूप से संबंध स्थापित करने होंगे, उसे ताइवान के साथ राजनयिक संबंध तोड़ने होंगे।
    • सोलोमन द्वीप छह प्रशांत द्वीप राज्यों में से एक था, जिसके ताइवान के साथ आधिकारिक द्विपक्षीय संबंध थे।
    • हालाँकि वर्ष 2019 में सोलोमन द्वीप समूह ने चीन के प्रति निष्ठा को बदल दिया। वर्तमान में ताइवान का समर्थन करने वाले केवल चार क्षेत्रीय देश, जो ज़्यादातर माइक्रोनेशियन द्वीप समूह से संबंधित हैं, अमेरिका के नियंत्रण में हैं।
  • समर्थन जुटाने हेतु संभावित वोट बैंक:
    • छोटे प्रशांत द्वीप राज्य संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर महान शक्तियों के लिये समर्थन जुटाने हेतु संभावित वोट बैंक के रूप में कार्य करते हैं।
  • बड़े समुद्री विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों की उपस्थिति:
    • इन प्रशांत द्वीप राज्यों में उनके छोटे आकार की तुलना में असमान रूप से बड़े समुद्री अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zones) हैं।
  • इमारती लकड़ी और खनिज संसाधनों के भंडार की प्रचुरता:
    • विशेष रूप से सोलोमन द्वीप में मत्स्य पालन के साथ-साथ लकड़ी और खनिज संसाधनों का महत्त्वपूर्ण भंडार है। 
  • सामरिक महत्त्व:
    • प्रशांत द्वीप समूह और ऑस्ट्रेलिया में अमेरिका के सैन्य ठिकानों के बीच खुद को सम्मिलित करने हेतु चीन के लिये प्रशांत क्षेत्र में स्थित द्वीप रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
      • यह वर्तमान परिदृश्य में ‘ऑकस’ (ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस) के उद्भव को देखते हुए विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है,जो कि एंग्लो-अमेरिकन सहयोग के माध्यम से चीन की तुलना में ऑस्ट्रेलिया की रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाने का प्रयास करता है।

सोलोमन द्वीप क्षेत्र में भू-राजनीतिक व्यवस्था के निहितार्थ:

  • इस क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा करने में सभी प्रशांत देशों की हिस्सेदारी है।
    • ऑस्ट्रेलिया सहित पैसिफिक आइलैंड्स फोरम के सदस्यों ने क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों को सामूहिक रूप से संबोधित करने के लिये वर्ष 2018 बो घोषणापत्र (Boe Declaration) में सहमति व्यक्त की। 
  • चीन और सोलोमन द्वीप के बीच प्रस्तावित एक द्विपक्षीय समझौता उस भावना को कमज़ोर करता है जो पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिये सीमित प्रावधान प्रस्तुत करता है।
  • इससे क्षेत्र ने अमेरिका द्वारा सोलोमन द्वीप में एक दूतावास खोलने की योजना तैयार की जो दृढ़ता के साथ दक्षिण प्रशांत राष्ट्र में चीन के "मज़बूत होते प्रभाव" से पहले अमेरिका के प्रभाव को बढ़ाने की योजना तैयार करेगा।
  • क्षेत्र के छोटे द्वीपीय राष्ट्र उन पर बहुत अधिक निर्भर हैं, विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया क्योंकि यह एक रेजिडेंट पॉवर (Resident Power) है।
    • ताइवान के निरंतर विस्थापन और आर्थिक एवं राजनीतिक दबदबे की वजह से क्षेत्र में इस स्थापित शक्ति संरचना को चीन द्वारा चुनौती दी जा रही है।
  • आने वाले वर्षों में प्रशांत द्वीप राज्यों के लिये क्षेत्रीय शक्ति प्रतिद्वंद्विता और घरेलू अस्थिरता के कारण इस क्षेत्र की भू-राजनीति भारत-प्रशांत क्षेत्र के रूप में बड़े बदलावों के साथ एक अभूतपूर्व दौर से गुज़रने की संभावना है।

स्रोत: द हिंदू 

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