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चिकन के जीन की एडिटिंग

  • 04 Jun 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक प्रयोगशाला में विकसित चूज़े/चिकन की कोशिकाओं में बर्ड फ्लू (Bird flu) को रोकने के लिये जीन-एडिटिंग तकनीक (Gene-Editing Techniques) का उपयोग किया।

बर्ड फ्लू (Bird flu)

  • इसे बर्ड फ्लू/पक्षी इन्फ्लूएंजा/एविय के नाम से जाना जाता है।
  • एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza) एक विषाणु जनित रोग है।
  • यह विषाणु जिसे इन्फ्लूएंजा ए (Influenza- A) या टाइप ए (Type- A) विषाणु कहते है, सामान्यतः पक्षियों में पाया जाता है, लेकिन कभी-कभी यह मानव सहित अन्य कई स्तनधारिओं को भी संक्रमित कर सकता है। जब यह मानव को संक्रमित करता है तो इसे इन्फ्लूएंजा (श्लेष्मिक ज्वर) कहा जाता है।
  • ‘H5N1’ बर्ड फ्लू का सामान्य रूप है।

जीन-एडिटिंग तकनीक

(Gene-Editing Techniques)

  • जीन एडिटिंग या जीनोम एडिटिंग तकनीक के अंतर्गत किसी जीव या कोशिका के जीनोम में किसी विशिष्ट स्थान पर डी.एन.ए. को प्रविष्ट, विलोपित, प्रतिस्थापित कर दिया जाता है।
  • इसके लिये इंजीनियर्ड न्युक्लिएज़ों (Engineered nucleases) या ’आणविक कैंची’ (Molecular Scissors) का उपयोग किया जाता है।
  • ये न्युक्लिएज़ या एंजाइम इच्छित स्थानों पर उस जगह की विशेषता के अनुसार कार्य करते हुए वांछित परिणाम देते हैं।

उद्देश्य

  • इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य चिकन को आनुवंशिक रूप से परिवर्तित कर बर्ड फ्लू को नियंत्रित करना तथा मानव में होने वाली महामारी को रोकना है।

प्रमुख बिंदु

  • बर्ड फ्लू के वायरस वर्तमान में जंगली पक्षियों और मुर्गों में तेज़ी से फैलते हैं और कई बार मनुष्यों में अचानक प्रवेश कर सकते हैं।
  • वैश्विक स्वास्थ्य और संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने इसे अपनी सबसे बड़ी चिंताओं में से एक के रूप में उद्धत किया है।
  • बर्ड फ्लू के कारण होने वाली ‘मानव फ्लू महामारी’ की आशंका जो अचानक ही मनुष्यों के लिये घातक तथा जानलेवा हो सकता है आसानी से लोगों के बीच प्रवेश कर सकता है।
  • इंपीरियल कॉलेज लंदन और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के रोज़लिन इंस्टीट्यूट के शोधकर्त्ताओं ने जीन-एडिटिंग के माध्यम से चिकन की कोशिकाओं में बर्ड फ्लू के वायरस का पता लगाकर उनकी प्रतिकृति बनाने से रोकने में सफलता प्राप्त की है।

वायरस की रोकथाम

  • वैज्ञानिकों के अनुसार, जीन एडिटिंग तकनीक जो कि क्रिस्पर/Cas9 तकनीक (CRISPR Technology) के रूप में जाना जाता है, का उपयोग करके पक्षियों में पाए जाने वाले विशेष प्रोटीन को बाहर कर डेटा है, जिसकी वजह से ही सभी फ्लू वायरस मेजबान/होस्ट को संक्रमित करते हैं।

क्रिस्पर/ Cas9 तकनीक

  • क्रिस्पर/कैस 9 (CRISPR-Cas9) एक ऐसी तकनीक है जो वैज्ञानिकों को अनिवार्य रूप से डीएनए काटने और जोड़ने की अनुमति देती है, जिससे रोग के लिये आनुवंशिक सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।
  • क्रिस्पर (Clustered Regualarly Interspaced Short Palindromic Repeats) डीएनए के हिस्से हैं, जबकि कैस-9 (CRISPR-ASSOCIATED PROTEIN9-Cas9) एक एंजाइम है। हालाँकि इसके साथ सुरक्षा और नैतिकता से संबंधित चिंताएँ जुड़ी हुई हैं।

महामारी का प्रकोप

  • वर्ष 2009-10 में H1N1 वायरस के कारण होने वाली फ्लू महामारी में दुनिया भर से लगभग आधे मिलियन लोगों की मृत्यु हुई थी।
  • वर्ष 1918 में स्पेनिश फ्लू में लगभग 50 मिलियन लोग मारे गए।

स्वाइन फ्लू (Swine Flu)

  • स्वाइन फ्लू इन्फ्लूएंजा टाइप A वायरस का ही दूसरा नाम है जो सूअरों (स्वाइन) को प्रभावित करता है। हालाँकि स्वाइन फ्लू आमतौर पर मनुष्यों को प्रभावित नहीं करता है, लेकिन वर्ष 2009-2010 में इसने एक वैश्विक प्रकोप (महामारी) का रूप धारण कर लिया था, तब 40 वर्षों से अधिक समय के बाद फ्लू के रूप में कोई महामारी पूरी दुनिया में फैली थी।
  • यह H1N1 नामक फ्लू वायरस के कारण होता है। H1N1 एक प्रकार का संक्रामक वायरस है, यह सूअर, पक्षी और मानव जीन का एक संयोजन है, जो सूअरों में एक साथ मिश्रित होते हैं और मनुष्यों तक फैल जाते हैं।
  • H1N1 एक प्रकार से श्वसन संबंधी बीमारी का कारण बनता है जो कि बहुत संक्रामक होता है।
  • H1N1 संक्रमण को स्वाइन फ्लू के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि अतीत में यह उन्हीं लोगों को होता था जो सूअरों के सीधे संपर्क में आते थे।
  • H1N1 की तीन श्रेणियाँ हैं - A, B और C
  • A और B श्रेणियों को घरेलू देखभाल की आवश्यकता होती है, जबकि श्रेणी C में तत्काल अस्पताल में भर्ती कराने और चिकित्सा की आवश्यकता होती है क्योंकि इसके लक्षण और परिणाम बेहद गंभीर होते हैं और इससे मृत्यु भी हो सकती है।

आगे की राह

  • यह एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है जिससे भविष्य में जीन-एडिटिंग तकनीकों का उपयोग करके बर्ड फ्लू के प्रतिरोधी चिकन/मुर्गियों का उत्पादन किया जा सकेगा।
  • इस तकनीक का प्रयोग भविष्य में अन्य पक्षियों पर भी किया जा सकेगा।

स्रोत- द हिंदू

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