इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आरओ-आधारित जल निस्यंदन प्रणाली

  • 12 Feb 2020
  • 11 min read

प्रीलिम्स के लिये:

रिवर्स ओस्मोसिस प्रणाली

मेन्स के लिये:

रिवर्स ओस्मोसिस आधारित जल शोधन तंत्र के साथ समस्या

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ( Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) ) द्वारा रिवर्स ओस्मोसिस (Reverse Osmosis-RO) पर आधारित जल निस्यंदन प्रणाली (RO- based Water Filtration System) को विनियमित करने हेतु मसौदा अधिसूचना (Draft Notification) प्रस्तुत की गई है।

हालिया संदर्भ:

  • यह अधिसूचना मार्च, 2019 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal- NGT) के समक्ष दिल्ली में RO वाटर फिल्टर के उपयोग को प्रतिबंधित करने से संबंधित है, क्योंकि रिवर्स ओस्मोसिस शोधन प्रक्रिया द्वारा पानी की काफी मात्रा बर्बाद हो जाती है।
  • वाटर फिल्टर निर्माताओं के संघ (Association of Water Filter Manufacturers) द्वारा राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।

मुख्य बिंदु:

  • यह मसौदा उन क्षेत्रों में झिल्ली-आधारित जल निस्यंदन प्रणालियों (Membrane-Based Water Filtration Systems) को विनियमित करेगा जहाँ पेयजल के स्रोत भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करते हैं।
  • यह रिवर्स ओस्मोसिस (Reverse Osmosis-RO) आधारित जल निस्यंदन में प्रयोग होने वाली प्रणालियों एवं नियमों को प्रभावित करेगा।
  • यह मसौदा घरों में झिल्ली आधारित जल शोधन (Membrane-Based Water Purification) यानी RO सिस्टम के प्रयोग को भी प्रतिबंधित करेगा।
  • यह अधिसूचना मुख्य रूप से वाणिज्यिक आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये बनाए गए नियमों के एकीकरण से संबंधित है जो उपभोक्ताओं को कुल घुलनशील ठोस (Total Dissolved Solids-TDS) के स्तरों के बारे में भी सूचित करती है।

रिवर्स ओस्मोसिस:

Reverse-osmosis

  • RO सिस्टम, ओस्मोसिस/परासरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
  • इस सिद्धांत के अनुसार, मीठे/साफ पानी की अधिक मात्रा प्राप्त करने के लिये ट्यूब पर कुछ और बाह्य दवाब (External Pressure) बढ़ाने की आवश्यकता होगी, ताकि खारे पानी की सारी मात्रा को मीठे पानी में परिवर्तित किया जा सके।
  • RO ट्यूब में बाह्य दवाब उत्पन्न करने के लिये एक इलेक्ट्रॉनिक मोटर तथा पंप का प्रयोग किया जाता है।
  • इसमें सक्रिय कार्बन के घटकों का उपयोग किया जाता है जिनमें शामिल है-लकड़ी का कोयला (ब्लैक कार्बन) जो दूषित पदार्थों के साथ-साथ हानिकारक बैक्टीरिया और कार्बनिक पदार्थों को भी फिल्टर कर देता है।
  • परंतु यह सब फिल्टर किये जाने वाले पदार्थों और फिल्टर्स की संख्या पर निर्भर करता है जिनसे होकर नल का पानी गुज़रता है।
  • हालाँकि इसमें पानी में मिश्रित विलेय जैसे- आर्सेनिक, फ्लोराइड, हेक्सावलेंट क्रोमियम, नाइट्रेट, बैक्टीरिया इत्यादि को दूर करने के लिये एक विस्तृत झिल्ली तथा कई स्तरों पर फिल्टर का प्रयोग किया जा सकता है।
  • RO द्वारा पानी में कुल घुलनशील ठोस (Total Dissolved Solids -TDS) पदार्थों जैसे- रसायन, वायरस, बैक्टीरिया और लवण को कम करके पीने योग्य पानी का मानक स्तर प्राप्त किया जा सकता है।

रिवर्स ओस्मोसिस प्रणाली:

  • मूल रूप से यह समुद्री जल को अलवणीकृत करने की एक विधि है जो ओस्मोसिस (Osmosis) के सिद्धांत पर कार्य करती है।
  • इसमें एक नलिका को ‘यू’ आकार में मोड़ते है और घुमाव वाले स्थान पर एक महीन अर्ध-पारगम्य झिल्ली (Semi-Permeable Membrane) को जोड़ा जाता है जो केवल कुछ निश्चित अणुओं को ही फिल्टर करती है।
  • अब ट्यूब को आधे खारे तथा उसके आधे हिस्से को मीठे पानी से भरते हैं। यह मीठा पानी खारे पाने वाली भुजा की तरफ तब तक जाता है जब तक कि ट्यूब की दोनों भुजाओं में पानी का अनुपात सामान न हो जाए।
  • ऐसा ओस्मोसिस प्रभाव के कारण होता है जो उच्च सांद्रता वाले विलेय को पतला/घुलनशील बना देता है (नमक के मामले में)।

रिवर्स ओस्मोसिस प्रणाली से संबंधित समस्याएँ:

  • RO द्वारा पानी को शुद्ध किये जाने के दौरान लगभग तीन से चार गुना पानी की मात्रा बर्बाद हो जाती है जो शहरी क्षेत्रों में सरकारों के समक्ष पेयजल की चुनौती उत्पन्न करती है।
  • यह पानी में घुलनशील आवश्यक लवण जैसे- कैल्शियम, जस्ता, मैग्नीशियम को छान देता है, जो कि शरीर के लिये आवश्यक होते हैं तथा ऐसे पानी का दीर्घावधि तक सेवन करना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो सकता है।
  • कई निर्माताओं ने पानी के ‘पोस्ट ट्रीटमेंट’ (Post Treatment) के माध्यम से इस समस्या के समाधान की बात कही है परंतु इससे पानी को साफ करने में अधिक लागत आती है। साथ ही देश के अधिकांश हिस्सों में स्वच्छ पानी की आपूर्ति के लिये सार्वजनिक-वित्तपोषित जल वितरण प्रणालियाँ भी हतोत्साहित हो सकती हैं।
  • ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ (National Institute of Virology- NIV) के अनुसार, पानी को शुद्ध करने के लिये प्रयोग होने वाली अधिकांश निस्यंदन विधियों द्वारा हेपेटाइटिस ई वायरस (Hepatitis E virus) को खत्म नहीं किया जा सकता है।

स्वच्छ जलापूर्ति की चुनौतियाँ

  • अधिकांश देशों में पाइपलाइन द्वारा जल की आपूर्ति करने के लिये वित्त का अभाव है।
  • नीति आयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index- CWMI) के अनुसार, आपूर्ति किया जाने वाला 70% पानी दूषित है।
  • गैर सरकारी संगठन, वाटर एडस (Water Aid’s) द्वारा जारी जल गुणवत्ता सूचकांक-2019 में भारत 122 देशों में 120 वें स्थान पर है। सूचकांक में भारत की इस स्थिति का कारण पेयजल के स्रोतों का सीमित होना है।

भारतीय मानक ब्यूरो के मानकों का निहितार्थ:

  • इस अधिसूचना का निहितार्थ, फिल्टर के प्रयोग को निषिद्ध करने से है वह भी तब जब घर में जलापूर्ति भारतीय मानक ब्यूरो के निर्धारित मानकों के अनुरूप हो रही हो।
  • हालाँकि कई राज्य और शहरों के जल बोर्ड BSI मानकों को पूरा करने का दावा करते हैं फिर भी घरों में की जाने वाली जलापूर्ति निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है।
  • BSI मानदंड सार्वजनिक एजेंसियों के लिये स्वैच्छिक हैं जो पाइप द्वारा पानी की आपूर्ति करते हैं लेकिन बोतलबंद पानी के उत्पादकों के लिये ये मानदंड अनिवार्य हैं।

पानी के पाइप की गुणवत्ता:

  • प्रधानमंत्री द्वारा ‘जल जीवन मिशन’ के तहत वर्ष 2024 तक पूरे देश में पेयजल हेतु नल का पानी उपलब्ध करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
  • पिछले साल उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा भारतीय मानक ब्यूरो के माध्यम से देश में पीने के पानी की आपूर्ति हेतु प्रयोग किये जा रहे पाइप्स की गुणवत्ता को जाँचने के लिये एक अध्ययन किया गया।
  • अध्ययन में यह बात सामने आई कि देश के अधिकांश हिस्सों में पेयजल हेतु प्रयोग में लाये गए पाइप्स की गुणवत्ता अत्यधिक निम्न श्रेणी की है।
  • विभिन्न स्थानों से लिये गए नमूनों के आधार पर देखा गया कि भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित आवश्यक मानकों को पूरा नहीं किया गया है।

आगे की राह:

  • जारी मसौदा अधिसूचना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2022 के बाद उपचारित पानी का 25% से अधिक हिस्सा बर्बाद न हो जो अभी लगभग 80% है।
  • घरेलू कार्यों या फिर अन्य गतिविधियों में प्रयोग किया जाने वाला जल जो कि अपशिष्ट के रूप में बचता है, का पुनः प्रयोग किया जा सके।
  • अधिसूचना को लागू करने का प्राथमिक उद्देश्य अंतिम उपभोक्ता तक भारतीय मानक ब्यूरो के निर्धारित मानकों के आधार पर गुणवत्तायुक्त पेयजल की आपूर्ति करना है।
  • विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ अभी भी लाखों लोगों को स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति संभव नहीं हो पाई है। वहाँ बिना किसी अतिरिक्त लागत के पेयजल की आपूर्ति की जानी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow