इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर: कारण

  • 27 Apr 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों? 

कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर ने देश को गंभीर रूप से प्रभावित किया है और इसे संक्रमण की पहली लहर की तुलना में कहीं अधिक विनाशकारी माना जा रहा है।

  • दूसरी लहर के दौरान संक्रमण के मामलों में तीव्रता से वृद्धि देखने को मिल रही है।

Mortalityrates

प्रमुख बिंदु: 

नियमों का उल्लंघन:  

  • जैसे ही संक्रमण के मामलों में कमी आना शुरू हुई, लोगों द्वारा फेस मास्क लगाने, नियमित रूप से हाथ धोने, उचित दूरी बनाने जैसे नियमों की अनदेखी की गई।   
    • जनवरी, 2021 तक संक्रमण के मामलों के बावजूद लोग व्यापक स्तर पर एकत्रित होने लगे और सामाजिक सभाओं का आयोजन किया जाने लगा। 
  • सरकार द्वारा नियमों में ढील दी गई तथा उल्लंघन की स्थिति में किसी भी प्रकार का कोई जुर्माना लगाए जाने के प्रावधानों को भी सीमित कर दिया गया। पूरे देश में इसी प्रकार का एक क्रम देखने को  मिला, जो कोरोना वायरस की  दूसरी और संभवतः अधिक खतरनाक लहर का कारण बना।

सरकार द्वारा नियमों के पालन में ढील: 

  • मतदान केंद्रों के बाहर लगी लंबी कतारों और सभी दलों की चुनावी रैलियों के दौरान कोविड-19 से संबंधित प्रोटोकॉल और नियम-कानूनों को दरकिनार कर दिया गया, जिससे जनता और ज़मीनी स्तर पर कार्य करने वाले अधिकारियों के मध्य एक भ्रमक संदेश का प्रचार हुआ, जिसने महामारी के विरुद्ध सभी सुरक्षा उपायों को कमज़ोर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 

शहरी गतिशीलता: 

  • भारत में कोविड-19 के 1.2 करोड़ से अधिक मामले दर्ज किये गए हैं, जिसमें महामारी का प्रकोप अधिकांशतः शहरों, विशेष रूप से बड़े शहरों में देखने को मिला है, क्योंकि इन शहरों में अधिक गतिशीलता के कारण वायरस आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रसारित हो जाता है।

कंटेनमेंट ज़ोन:  

  • संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान ‘कंटेनमेंट ज़ोन’ के निर्धारण संबंधी नियमों का सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है। शहरों में, सरकार द्वारा अधिकारियों से  ‘माइक्रो-कंटेनमेंट’ (Micro-Containment) की अवधारणा को अपनाने के लिये  कहा जा रहा है, जिसके तहत प्रायः एक मंजिल या एक घर को ही ‘कंटेनमेंट ज़ोन’ के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • इससे पहले, वायरस के प्रसार की संभावना को कम करने हेतु एक पूरे अपार्टमेंट या एक संपूर्ण क्षेत्र को ‘कंटेनमेंट ज़ोन’ घोषित किया जाता था।

उत्परिवर्तन:

  • मानव कारकों के अलावा, कोरोना वायरस में हुआ उत्परिवर्तन (Mutation) दूसरी लहर के  प्रमुख कारणों में से है। वैज्ञानिकों ने SARS-CoV-2 (कोविड-19 की उत्पत्ति के लिये उत्तरदायी वायरस) के कई उत्परिवर्तित संस्करणों की खोज की है। इनमें हुए कुछ उत्परिवर्तन ‘वैरिएंट्स ऑफ कंसर्न’ (Variants of Concern- VOC) की उत्पत्ति का कारण है।
    • भारत में कई राज्यों में VOCs को रिपोर्ट किया गया है, जिसमें दूसरी लहर के दौरान सबसे अधिक प्रभावित राज्य भी शामिल हैं।
    • भारत में पहली बार खोजे गए B1.671 वेरिएंट के L452R म्युटेशन को भी बढ़ते हुए संक्रमण मामलों का कारण माना जा रहा है।

‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ (VOC):

ये वायरस के ऐसे वेरिएंट हैं, जिनके संबंध में संक्रामकता में वृद्धि, अधिक गंभीर संक्रमण (अस्पतालों में भर्ती होने वाले मामलों अथवा मौत की में वृद्धि), पिछले संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न एंटीबॉडी के न्यूनीकरण, उपचार या टीके की प्रभावशीलता में कमी या परीक्षण की विफलता से संबंधित प्रमाण मौजूद हैं।

परीक्षण में वृद्धि:

  • परीक्षणों की संख्या में हो रही बढ़ोतरी के कारण भी भारत में कोविड -19 महामारी की दूसरी लहर में अधिक मामलें सामने आ रहे हैं।
  • सीरो-सर्वेक्षणों (Sero-Surveys) से पता चला है कि भारत में कोरोना वायरस का असल जोखिम प्रयोगशाला परीक्षणों के आधार पर सामने आए संक्रमण के मामलों से कहीं अधिक है।
  • पहले लोग कोविड -19 परीक्षण कराने के प्रति कम इच्छुक थे, लेकिन अब कोविड-19 परीक्षण की आसान उपलब्धता, अस्पतालों में रोग-प्रबंधन में सुधार तथा कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम के रोलआउट ने लोगों को परीक्षण कराने के लिये अधिक प्रेरित किया है।

स्पर्शोन्मुख वाहक:

  • स्पर्शोन्मुख वाहक (Asymptomatic Carrier) का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से होता है, जो वायरस से संक्रमित तो हो चुका है, किंतु उसमें रोग से संबंधित कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देता है। भारत में 80-85 प्रतिशत लोग स्पर्शोन्मुख वाहक हैं।

अपर्याप्त स्वास्थ्य ढाँचा:

  • भारत अपनी स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना को बढ़ाने और तीव्रता के साथ टीकाकरण करने के कार्य में भी विफल रहा।
    • उदाहरण: ऑक्सीजन की कमी और अस्पतालों में बेड की कमी।

आगे की राह: 

  • वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के दो ही उपाय हैं, जिसमें पहला उपाय स्वयं वायरस से संक्रमण है तथा दूसरा उपाय टीकाकरण है, अत: ऐसे में यह आवश्यक है कि  देश भर में टीकाकरण कार्यक्रम को तीव्रता से लागू किया जाए, किंतु ऐसे में परीक्षण भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
  • दैनिक परीक्षणों की संख्या में वृद्धि किया जाना और उनकी निरंतर निगरानी की जानी भी महत्त्वपूर्ण है।
  • सुरक्षा प्रोटोकॉल का नए सिरे से पालन किये जाने की आवश्यकता है। ज़बरन लॉकडाउन की अब आवश्यक नहीं हैं। हालाँकि, मामलों की मैपिंग, वार्ड/ब्लॉक वार संकेतकों की समीक्षा, 24x7 आपातकालीन संचालन केंद्र और सूचनाओं को समय पर साझा करने संबंधी तंत्र विकसित करने के साथ ज़िला स्तर पर एक कार्य योजना बनाए जाने की भी आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow