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भारतीय अर्थव्यवस्था

रेपो रेट अपरिवर्तित

  • 07 Feb 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

रेपो दर, RBI

मेन्स के लिये:

मौद्रिक नीति से संबंधित मुद्दे और उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee-MPC) ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये अपनी छठी और अंतिम द्विमासिक नीति समीक्षा बैठक में रेपो दर (Repo Rate) को 5.15% पर ही बनाए रखने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • RBI ने चलनिधि समायोजन सुविधा (LAF) के तहत नीतिगत रेपो दर को 5.15 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा है। परिणामस्‍वरूप, LAF के तहत प्रतिवर्ती रेपो दर 4.90 प्रतिशत और सीमांत स्‍थायी सुविधा (MSF) दर तथा बैंक दर 5.40 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी है।
  • MPC ने यह भी निर्णय लिया कि (यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर है), जब तक वृद्धि को पुनर्जीवित करना आवश्यक है, निभावकारी रुख बरकरार रखा जाए।
  • RBI ने नीतिगत दरों और अपने रुख को यथावत रखा है लेकिन बैंकों के लिये फंड की लागत कम करने हेतु गैर-परंपरागत उपायों का सहारा लिया। इससे बैंक अपनी उधारी दरों में और कटौती कर सकेंगे, साथ ही उन्हें खपत मांग को पटरी पर लाने के लिये खुदरा उधारी को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।
  • RBI ने बैंक से स्पष्ट किया कि भविष्य में ज़रूरत पडऩे पर दरों में कटौती की जाएगी। अभी मुद्रास्फीति की दर 7.4 फीसदी है और ऐसी स्थिति में दरों में कटौती की कोई गुंजाइश नहीं है।
  • RBI ने बैंकों से स्पष्ट कहा है कि यदि वे वाहन, आवास और SME क्षेत्रों को ऋण देते हैं तो उनके जमा आधार में से उतनी रकम कम हो सकती है जिससे उन्हें निर्धारित 4 फीसदी नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में राहत मिल सकती है।
  • RBI ने बैंकिंग व्यवस्था में नकदी झोंकने और निकालने के तरीकों में भी बदलाव किया है। हालाँकि उसने स्पष्ट किया है कि यदि ज़रूरत पड़ी तो वह परंपरागत तरीके अपनाने से नहीं हिचकेगा। नई व्यवस्था के तहत RBI ने दीर्घकालिक रेपो परिचालन शुरू किया है। ये दो तरह की नकदी प्रतिभूतियाँ होंगी जिन्हें बैंक मौजूदा रेपो दर पर एक वर्ष और तीन वर्ष की अवधि के लिये पैसा उधार लेने हेतु इस्तेमाल कर सकेंगे। हालाँकि इसका इस्तेमाल केवल एक लाख करोड़ रुपए तक के उधार लेने में ही किया जा सकता है।

विश्लेषणात्मक रूप से इसका प्रभाव

  • RBI का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही तक मुद्रास्फीति घटकर 3.2 फीसदी हो जाएगी। हालाँकि अभी काफी अनिश्चितता बनी हुई है। यदि मुद्रास्फीति में RBI के अनुमान के अनुसार कमी आती है तो वह नीतिगत दरों में 25 आधार अंक की कमी कर सकता है। इस स्थिति में रेपो दर 4.9 फीसदी हो जाएगी।
  • मौद्रिक नीति के माध्यम से इससे अधिक सहयोग हेतु वृद्धि करना मुश्किल होगा। यदि अनुमान से अधिक अवस्फीति होती है तो कुछ संभावना बन सकती है। ऐसा कोरोनावायरस के कारण वैश्विक वृद्धि में धीमापन आने से हो सकता है।
  • केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था 6 फीसदी की दर से बढ़ेगी। चूँकि भविष्य में मौद्रिक राहत की गुंजाइश सीमित है इसलिये केंद्रीय बैंक अब प्रेषण और ऋण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
    • उदाहरण के लिये उसने वाहन, आवास और सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों (MSME) को ऋण देने के मामले में बैंकों को 30 जुलाई, 2020 तक नकद आरक्षित अनुपात बरकरार रखने के मामले में राहत दी है।
  • RBI ने अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा मझोले उपक्रमों को दिये जाने ऋण का बाह्य मानकीकरण करने का भी निर्णय लिया है। यह अगले वित्त वर्ष के आरंभ में शुरू किया जाएगा।
  • इन हस्तक्षेपों के अलावा RBI एक वर्ष और तीन वर्ष की अवधि के लिये दीर्घावधि की रेपो दर की व्यवस्था भी करेगा। करीब एक लाख करोड़ रुपए की इस राशि से बैंकिंग तंत्र में अधिक पैसा आएगा और ऋण दरों में कमी आएगी। लंबी अवधि के बाॅण्ड और बैंक ऋण दर के मामलों में मौद्रिक पारेषण धीमा रहा है।
    • उदाहरण के लिये 10 वर्ष के सरकारी बाॅण्ड के मामले में प्रतिफल 76 आधार अंक तक घटा है जबकि नीतिगत दर में 135 आधार अंकों की कमी की गई है।

निष्कर्ष

RBI ने जिन नीतिगत हस्तक्षेपों की घोषणा की उनके पीछे इसका उद्देश्य पारेषण में सुधार लाने और बैंकिंग प्रणाली को ऋण देने के लिये प्रोत्साहित करना है। परंतु इन उपायों से ऋण में सुधार होगा या नहीं यह देखना होगा। उदाहरण के लिये बाह्य मानक से बैंकों के ब्याज मार्जिन पर असर पड़ सकता है। हालाँकि घोषणा के बाद प्रतिफल में कमी आई है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि लंबी अवधि की रेपो दर किस सीमा तक बैंकिंग तंत्र के लिये सहायक साबित होगी। ध्यातव्य है कि वर्तमान में करीब 3 लाख करोड़ रुपए मूल्य की नकदी तरलता मौजूद है। ऐसे में दीर्घावधि की दरें, उच्च सरकारी उधारी और घटती घरेलू बचत के कारण एक विशेष दायरे में सिमट सकती हैं। ऐसी स्थिति में सरकार अनिवासी निवेशकों के लिये विशेष प्रतिभूतियों की घोषणा करके बचत में वृद्धि करने का प्रयास करेगी। इससे मुद्रा की लागत कम करने में तो सहायता मिलेगी लेकिन इससे RBI के नकदी और मुद्रा प्रबंधन के समक्ष चुनौती उत्पन्न हो सकती है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

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