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प्रीलिम्स फैक्ट्स : 21 मई, 2018

  • 21 May 2018
  • 10 min read

निफा वायरस (Nipah Virus)

केरल के कोझीकोड ज़िले में रहस्यमय बीमारी से मरने वालों की संख्या आठ हो गई है। केरल सरकार द्वारा इस क्षेत्र में कार्यवाही करने के लिये एनसीडीसी (National Centre for Disease Control-NCDC) को तैनात किया गया है। कोझीकोड में होने वाली मौतों के लिये ज़िम्मेदार कारक के रूप में ‘निफा वायरस’ की पुष्टि की गई है। पुणे विरोलॉजी इंस्टीट्यूट द्वारा निफा वायरस की पुष्टि की गई है।  

  • इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा इस मामले में अधिक सटीक एवं प्रभावी जाँच-पड़ताल के लिये एक समिति का गठन किया गया है।

निफा वायरस

  • यह वायरस इंसानों के साथ-साथ जानवरों को भी प्रभावित करता है। यह वायरस फ्रूट बैट्स के माध्यम से इंसानों और जानवरों पर आक्रमण करता है। 
  • वर्ष 1998 में पहली बार मलेशिया के कांपुंग सुंगई निफा में इस वायरस के मामले नज़र आए थे। वर्ष 2004 में बांग्लादेश में भी इसके मामले सामने आए थे।
  • एक जानकारी के अनुसार, अक्सर देखने को मिलता है कि खजूर की खेती करने वाले लोग फ्रूट बैट्स की चपेट में आ जाते हैं। इसके बाद एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में इस वायरस का प्रसार होता है।
  • इस वायरस की चपेट में आने के बाद व्यक्ति को साँस लेने में परेशानी होती है, जिसके बाद वह इंसेफ्लाइटिस से ग्रसित हो जाता है।

लैफोरिन और हंटिंगटन का उपचार

आइआइटी कानपुर के बायोलॉजिकल साइंसेज एंड बायो इंजीनियरिंग (बीएसबीई) विभाग ने लैफोरिन (laforin) और हंटिंगटन बीमारी के उपचार की राह में एक नई उपलब्धि हासिल की है। विशेषज्ञों द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, ग्लाईकोजेन (शरीर रचना में शक्कर उत्पन्न करने वाला पदार्थ) एक बीमारी के लिये अभिशाप और दूसरे के लिये वरदान साबित होता है। शोधकर्त्ताओं द्वारा लैफोरिन और हंटिंगटन का उपचार ढूंढने का दावा किया गया है।

लैफोरिन

  • यह मस्तिष्क से संबंधित बीमारी होती है। इसमें बहुत तेज़ एवं बार-बार दौरे पड़ते हैं साथ ही याद्दाश्त भी कमज़ोर होने लगती है।
  • इस रोग का असर 10 से 12 साल की उम्र में शुरू होता है, इसके बाद रोगी की मानसिक क्षमता क्षीण होती जाती है। अधिकतर मामलों में इस रोग से ग्रस्त होने के 10 साल के भीतर मरीज़ की मृत्यु हो जाती है।
  • 'लैफोरिन’ नामक बीमारी होने का मुख्य कारण असामान्य रूप से एकत्र ग्लाईकोजेन है। यह रोगी के दिमाग और शरीर के अन्य हिस्सों में पाया जाता है।
  • लैफोरिनबॉडीज़ का एकत्र होना न्यूरॉन्स (तंत्रकोशिका) और अन्य कोशिकाओं के लिये बेहद हानिकारक होता है क्योंकि न्यूरॉन्स मस्तिष्क से पूरे शरीर में संदेश भेजने और शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करने का काम करते हैं।
  • अधिकतर मामलों में यह देखा गया है कि यह रोग EPM2A या फिर NHLRC1 जीन में से किसी एक की कोडिंग में गड़बड़ी होने से होता है। यह जीन न्यूरॉन्स को जीवित रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है।
  • इन दोनों जीन से बनने वाले प्रोटीन लैफोरिन और मैलिन ग्लाईकोजेन के निर्माण को नियंत्रित करते हैं।
  • ग्लाईकोजेन, कोशिकाओं में संग्रहित ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है। ऐसे में जब कोशिकाओं को ऊर्जा की आवश्यकता होती है, तो वे ग्लाईकोजेन को तोड़कर उर्जा प्राप्त करती हैं।

हंटिंगटन 

  • यह भी एक न्यूरो जनित रोग है। इसमें भी न्यूरॉन्स की मृत्यु हो जाती है। रोगी की मानसिक शक्ति कमज़ोर हो जाती है और वह चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है।
  • इस रोग में हंटिंगटन प्रोटीन एकत्रित होने लगता है।

हिमालयी जड़ी बूटी के लिये हानिकारक है अनियमित फसल

जल्द ही भारत के कई हिस्सों से हिमालय की एक सामान्य जड़ी-बूटी हिमालयन ट्रिलियम (Himalayan trillium) के विलुप्त होने की संभावना है। इस प्रजाति की विलुप्ति का कारण विनियमित अत्यधिक उपज को बताया गया है।

  • यह शोध जर्नल ऑफ एथनोफार्माकोलॉजी (Journal of Ethnopharmacology) में प्रकाशित हुआ।
  • हिमालयी ट्रिलियम भारत, भूटान, नेपाल और चीन में पाया जाता है। यह स्टेरॉयडल सैपोनिन (steroidal saponins) का एक प्राकृतिक स्रोत है जो स्टेरॉयड दवाओं का महत्त्वपूर्ण घटक होता है। यह पौधा पारंपरिक चीनी दवाओं में लोकप्रिय है।
  • पिछले एक दशक में इसकी बढ़ती हुई मांग ने इसके अवैध व्यापार बढ़ावा दिया है। यही कारण है कि वर्तमान में इसकी कीमत प्रति किलोग्राम लगभग 3000 से 5000 रुपए तक पहुँच गई है।
  • आमतौर पर यह पौधा घने पेड़ के कवर के साथ नमी वाले पहाड़ी ढलानों में पाया जाता है। अप्रैल में बर्फ पिघलने के तुरंत बाद यह भूमिगत कंदों से अंकुरित होने लगता है तथा सितंबर में शीतकालीन ऋतु के आगमन के साथ इसकी प्रजनन दर निष्क्रिय होने लगती है।
  • इस पौधे की सबसे विशेष बात यह है कि आमतौर पर इसका एक पौधा (इसकी आयु 30 वर्ष या इससे अधिक होती है) एक वर्ष में केवल एक ही फूल विकसित करता है। साथ ही कंदों के माध्यम से होने वाला वनस्पति प्रजनन केवल पुराने पौधों में होता है।
  • प्रजनन के ऐसे निम्न स्तर और चराई जैसे कारकों के दबाव के साथ-साथ अनियमित उपज ने कई क्षेत्रों में पौधे के स्थानीय विलुप्तीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • अत: आवश्यक है कि इस विशेष गुणवत्ता वाले पौधे का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act) के तहत इसे अनुसूचित प्रजातियों के रूप में शामिल किया जाना चाहिये ताकि इसके विषय में प्रभावी कदम उठाए जा सकें।

यमुना नदी अग्रभाग (रिवर फ्रंट) विकास परियोजना ‘असिता’

इस परियोजना का अनुमोदन एनजीटी द्वारा गठित समिति ने किया था। यह परियोजना बाढ़ से प्रभावित होने वाली जमीन के प्रत्‍यावर्तन, पुनर्जीवन एवं नवीनीकरण से संबंधित है। इस परियोजना का एक प्रमुख घटक नदी का अग्रभाग ‘वॉक्‍स’ लोगों को यमुना नदी के साथ एक संबंध विकसित करने में सक्षम बनाएगा। इस परियोजना को ‘असिता’ का नाम (यमुना नदी का दूसरा नाम) दिया गया है। इस परियोजना का एक विशेष फोकस राष्‍ट्रीय राजधानी में नदी की जैव विविधता को पुनर्जीवित करने पर है।

प्रमुख बिंदु

  • इस परियोजना में नदी के जल की पारिस्‍थ्‍िातकी से संबंधित प्रजातियों के साथ नदी के किनारे लगभग तीन सौ मीटर चौड़े एक हरित बफर क्षेत्र के सृजन की परिकल्‍पना की गई है।
  • इसके अतिरिक्‍त, परिधीय सड़कों के साथ 150 मीटर के एक चौड़े क्षेत्र का भी हरित मार्ग के रूप में सार्वजनिक सुविधाओं, जिनमें पगडंडी तथा साइकिल ट्रैक शामिल होंगे, विकास किया जाएगा।
  • नदी के जल से प्रभावित होने वाली ज़मीन की पारिस्‍थितकी प्रणाली को पुनर्जीवित करने के लिये दलदली भूमि का सृजन किया जाएगा जिससे कि बाढ़ के पानी को भंडारित किया जा सके, साथ ही भू-जल पुनर्भरण में भी सुधार लाया जा सके। इसका परिणाम अंततोगत्‍वा नदी के बाढ़ से प्रभावित होने वाली ज़मीन में जैव विविधता के फलने-फूलने के रूप में सामने आएगा।
  • नगर के शहरी ताने-बाने में नदी के समेकन के लिये पर्यावरणीय रूप से जाग्रत दृष्‍टिकोण का अनुसरण किया गया है। नदी की पारिस्‍थितकी प्रणाली के साथ मुक्‍त रूप से लोगों के परस्‍पर मिलने-जुलने के लिये एक लोकोन्‍मुखी जैव विविधता क्षेत्र का सृजन किया जाएगा।
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