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शासन व्यवस्था

मध्यस्थता विधेयक, 2021 पर संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट

  • 14 Jul 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मध्यस्थता विधेयक, स्थायी समिति, मध्यस्थता परिषद।

मेन्स के लिये:

नए मध्यस्थता विधेयक का महत्त्व, विवाद निवारण तंत्र, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों

हाल ही में कानून और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने मध्यस्थता विधेयक, 2021 में पर्याप्त बदलाव की अनुशंसा की है।

  • न्यायालयों में लंबित मामलों को कम करने के उद्देश्य से यह विधेयक दिसंबर, 2021 में राज्यसभा में पेश किया गया था।
  • जैसे ही विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया, राज्यसभा के सभापति ने इसे जाँच के लिये भेज दिया।

 पैनल द्वारा उठा गए मुद्द: 

  • पूर्व मुकदमेबाज़ी:
    • पैनल ने पूर्व-मुकदमेबाज़ी मध्यस्थता की अनिवार्यता की प्रकृति सहित कई प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला।
    • मुकदमे-पूर्व मध्यस्थता को आवश्यक बनाने के परिणामस्वरूप मामले में देरी हो सकती है क्योंकि यह मामले के निपटान में विलंब करने के लिये यह एक और साधन प्रदान कर सकता है।
  • खंड 26:
    • पैनल मसौदे के 26 वें खंड के खिलाफ था जो सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय को उनके अनुसार पूर्व-मुकदमे के कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है।
  • गैर-व्यावसायिक विवादों के संदर्भ में इसका लागू न होना:
    • सदस्यों ने सरकार और उसकी एजेंसियों से जुड़े गैर-व्यावसायिक प्रकृति के विवादों/मामलों पर विधेयक के प्रावधानों के लागू न होने पर सवाल उठाया।
  • नियुक्तियाँ:
    • पैनल ने प्रस्तावित मध्यस्थता परिषद के अध्यक्ष और सदस्यों की योग्यता व नियुक्ति के संबंध में भी चर्चा की।

सिफारिशें:

  • पूर्व मुकदमेबाज़ी:
    • इसने पूर्व-मुकदमा मध्यस्थता को वैकल्पिक बनाने की सिफारिश की और सभी नागरिक तथा वाणिज्यिक विवादों के लिये इसे तत्काल प्रभाव से शुरू करने के बजाय चरणबद्ध तरीके से पेश किया।
    • वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 के तहत पूर्व-मुकदमा मध्यस्थता को लागू करते समय अन्य मामलों की श्रेणियों में इसे अनिवार्य करने से पहले अध्ययन किया जाना चाहिये।
  • अध्यक्ष की नियुक्ति:
    • पैनल ने सिफारिश की कि केंद्र सरकार एक चयन समिति के माध्यम से भारतीय मध्यस्थता परिषद के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति कर सकती है।
      • विधेयक में यह कहा गया था कि 'वैकल्पिक विवाद समाधान' से संबंधित समस्याओं से निपटने वाले लोग मध्यस्थता में 'क्षमता', 'ज्ञान और अनुभव' के आधार पर परिषद के सदस्य व अध्यक्ष बन सकते हैं।
  • प्रत्येक राज्य में चिकित्सा परिषद की स्थापना:  
    • भारतीय मध्यस्थता परिषद को आवंटित कर्तव्यों और दायित्वों की विशाल शृंखला को देखते हुए प्रत्येक राज्य में मध्यस्थता परिषदों की स्थापना की जानी चाहिये।
    • इन राज्य मध्यस्थता परिषदों को भारतीय मध्यस्थता परिषद के सामान्य पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के तहत ऐसे कार्यों को करना चाहिये जो वह निर्दिष्ट कर सकते हैं।
  • विशिष्ट पंजीकरण संख्या
    • मध्यस्थता परिषद को प्रत्येक मध्यस्थ के लिये एक अद्वितीय पंजीकरण संख्या जारी करना चाहिये और उन प्रावधानों को बिल में शामिल करना चाहिये ताकि मध्यस्थता परिषद को नियमित रूप से प्रशिक्षण सत्र आयोजित करके मध्यस्थ का लगातार मूल्यांकन करने की अनुमति मिल सके तथा वार्षिक आधार पर मध्यस्थता का संचालन करने के लिये पात्र बनने हेतु मध्यस्थ एक न्यूनतम संख्या में क्रेडिट अंक अर्जित कर सकें।
    • मध्यस्थों को पंजीकृत करने वाले कई निकायों के बजाय, प्रस्तावित मध्यस्थता परिषद को मध्यस्थों के पंजीकरण और मान्यता के लिये नोडल प्राधिकरण बनाया जाना चाहिये।
  • समय-सीमा को कम करना: 
    • पैनल ने समय-सीमा को 180 दिनों से घटाकर 90 दिन करने और 180 दिनों के बजाय 60 दिनों की विस्तार अवधि की सिफारिश की।
  • फिर से परिभाषित करना: 
    • उन्होंने मध्यस्थता की नई परिभाषा को फिर से तैयार करने की भी सिफारिश की और इसे खंड 4 के तहत अलग से नहीं रखा क्योंकि यह पहले से ही खंड 3 में दी गई है। 

मध्यस्थता विधेयक, 2021 की मुख्य विशेषता:  

  • विधेयक का उद्देश्य न्यायालय या ट्रिब्यूनल के हस्तक्षेप की मांग करने से पहले मध्यस्थता के माध्यम से किसी भी नागरिक या वाणिज्यिक विवाद को निपटाना है।
  • दो मध्यस्थता सत्रों के बाद एक पक्ष मध्यस्थता से हट सकता है।
  • मध्यस्थता प्रक्रिया को 180 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिये, जिसे 180 दिनों के लिये और बढ़ा सकते हैं। 
  • पूरी प्रक्रिया को विनियमित करने के लिये भारत मध्यस्थता परिषद की स्थापना की जाएगी।
    • इसके कार्यों में मध्यस्थों को पंजीकृत करना और मध्यस्थता सेवा प्रदाताओं और मध्यस्थता संस्थानों को मान्यता देना शामिल है।
  • इसके अलावा मध्यस्थता के परिणामस्वरूप होने वाले समझौते बाध्यकारी और न्यायालय के निर्णयों के समान ही लागू करने योग्य होंगे।

मध्यस्थता:

  • मध्यस्थता एक स्वैच्छिक, बाध्यकारी प्रक्रिया है जिसमें एक निष्पक्ष और तटस्थ मध्यस्थ विवादित पक्षों के बीच समझौता कराने में मदद करता है।
  • मध्यस्थ विवाद का कोई समाधान प्रदान नहीं करता है बल्कि एक अनुकूल वातावरण बनाता है जिसमें विवादित पक्ष अपने सभी विवादों को हल कर सकते हैं। 
  • मध्यस्थता विवाद समाधान का एक आजमाया हुआ और परखा हुआ वैकल्पिक तरीका है। यह दिल्ली, रांची, जमशेदपुर, नागपुर, चंडीगढ़ एवं औरंगाबाद शहरों में सफल साबित हुआ है।
  • मध्यस्थता एक संरचित प्रक्रिया है जहाँ एक तटस्थ व्यक्ति विशेष संचार और बातचीत तकनीकों का उपयोग करता है तथा मध्यस्थता प्रक्रिया में भाग लेने वाले पक्षों द्वारा स्पष्ट रूप से इसका समर्थन किया जाता है।
  • मध्यस्थता के अलावा कुछ अन्य विवाद समाधान विधियाँ जैसे- विवाचन (Arbitration), बातचीत (Negotiation) और सुलह (Conciliation) हैं ।
  • मध्यस्थता एक प्रकार का वैकल्पिक विवाद समाधान है क्योंकि वे मुकदमेबाजी का विकल्प प्रदान करते हैं।
    • ADR कार्यवाही पार्टियों द्वारा शुरू की जा सकती है या कानून, न्यायालय या संविदात्मक प्रावधानों द्वारा अनिवार्य है।

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स्रोत: द हिंदू

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