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भारत में प्रशामक देखभाल

  • 12 Jul 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

गैर-संचारी रोग, कैंसर, मधुमेह, स्वास्थ्य का अधिकार, गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये वैश्विक कार्य योजना, विश्व स्वास्थ्य सभा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत में प्रशामक देखभाल की स्थिति

चर्चा में क्यों? 

विश्व की लगभग 20% आबादी वाले भारत को गैर-संचारी रोगों (कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और श्वसन संबंधी बीमारियाँ) से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन बीमारियों के उपशामक देखभाल की आवश्यकता है।

  • यह चिंता का विषय है कि भारत में प्रशामक देखभाल की उपलब्धता और पहुँच सीमित है।

प्रशामक देखभाल:  

  • प्रशामक देखभाल एक प्रकार की चिकित्सा देखभाल है जो गंभीर बीमारियों वाले लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने पर केंद्रित है। इसे मानव के स्वास्थ्य के अधिकार के तहत स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त है।
    • ऐसे व्यक्तियों, जिनके अत्यधिक चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने के बावजूद जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो रहा है तथा उनके परिवार पर वित्तीय बोझ भी पड़ रहा है, प्रशामक देखभाल इस प्रकार के व्यक्तियों की पहचान कर उनकी पीड़ा की रोकथाम करने में मदद करता है।
  • इसका उद्देश्य हृदय विफलता, गुर्दे की विफलता, तंत्रिका संबंधी रोग, कैंसर आदि जैसी स्थितियों वाले लोगों की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और सामाजिक आवश्यकताओं का हल निकालना है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रत्येक वर्ष लगभग 40 मिलियन लोगों को उपशामक देखभाल की आवश्यकता होती है, जिनमें से 78% निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
  • वैश्विक स्तर पर लगभग 14 फीसदी लोगों को उपशामक देखभाल की आवश्यकता है।
  • WHO ने स्पष्ट किया है कि उपशामक देखभाल गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये वैश्विक कार्य योजना 2013-2020 हेतु आवश्यक व्यापक सेवाओं के घटकों में से एक है।
    • वर्ष 2019 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने NCD की रोकथाम और नियंत्रण के लिये WHO वैश्विक कार्य योजना को 2013-2020 से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक कर दिया।

नोट:  

  • गैर-संचारी रोग (NCD) पुरानी बीमारियाँ हैं जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचारित नहीं होती हैं। NCD में कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग आदि जैसे तीव्र और दीर्घकालिक दोनों प्रकार के चिकित्सीय विकार शामिल हैं।

भारत में प्रशामक देखभाल की स्थिति:  

  • स्थिति:  
    • भारत में प्रशामक देखभाल मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों और तृतीयक स्वास्थ्य सुविधाओं में उपलब्ध है। भारत में प्रशामक देखभाल की आवश्यकता वाले अनुमानित 7-10 मिलियन लोगों में से केवल 1-2% लोगों तक इसकी पहुँच है।
  • भारत में प्रशामक देखभाल कार्यक्रम:
    • हालाँकि राष्ट्रीय प्रशामक देखभाल कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिये कोई अलग बजट आवंटित नहीं किया गया है, लेकिन प्रशामक देखभाल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत 'मिशन फ्लेक्सीपूल' का हिस्सा है।
    • कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS) जिसे वर्ष 2010 में शुरू किया गया था और बाद में इसे गैर-संचारी रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम (NP-NCD) के रूप में संशोधित किया गया, का उद्देश्य भारत में गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ को संबोधित करना है तथा स्वास्थ्य देखभाल के सभी स्तरों पर प्रोत्साहन, निवारक एवं उपचारात्मक देखभाल प्रदान करना है।
  • चुनौतियाँ:  
    • सीमित जागरूकता: आम जनता और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के बीच उपशामक देखभाल के बारे में जागरूकता और समझ की कमी है।
      • भारत में बहुत से लोग उपशामक देखभाल के लाभों के बारे में नहीं जानते हैं या इसे जीवन के अंत की देखभाल समझ लेते हैं।
    • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और प्रशिक्षण: भारत में समर्पित प्रशामक देखभाल केंद्रों, धर्मशालाओं और प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है।
      • इसके अलावा डॉक्टरों, नर्सों और अन्य देखभाल करने वालों सहित स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के पास अक्सर उपशामक देखभाल में पर्याप्त प्रशिक्षण का अभाव होता है।
      • यह रोगी को दर्द और लक्षण समुचित प्रबंधन तथा मनोसामाजिक सहायता प्रदान करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है।
    • बाल चिकित्सा देखभाल का अभाव: बाल चिकित्सा प्रशामक देखभाल की भी लंबे समय से उपेक्षा की गई है। अपने जीवन के अंत में मध्यम से गंभीर पीड़ा का सामना करने वाले लगभग 98% बच्चे भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
      • यह कैंसर, जन्म दोष, तंत्रिका संबंधी स्थितियों आदि जैसी बीमारियों के कारण हो सकता है।
      • NP-NCD के संशोधित परिचालन दिशा-निर्देशों में भी इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया है।
    • NPCC का सीमित कार्यान्वयन: इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन धीमा और असमान रहा है, जिसके परिणामस्वरूप प्रशामक देखभाल सेवाओं के विस्तार में सीमित प्रगति हुई।

आगे की राह 

  • पर्याप्त वित्तपोषण, मानव संसाधन, बुनियादी ढाँचे आदि के साथ राज्य स्तर पर NPPC के कार्यान्वयन और निगरानी को मज़बूत करना।
  • प्रशामक देखभाल सेवाओं और गुणवत्ता आश्वासन के लिये राष्ट्रीय मानकों एवं दिशा-निर्देशों का विकास और कार्यान्वयन करना।
  • विभिन्न स्तरों तथा व्यवस्था में प्रशामक देखभाल पेशेवरों के साथ स्वयंसेवकों की शिक्षा और प्रशिक्षण को बढ़ाना।
  • वर्ष 2014 में 67वीं विश्व स्वास्थ्य असेंबली में सभी स्तरों पर स्वास्थ्य प्रणालियों में प्रशामक देखभाल के एकीकरण का आग्रह किया गया था।
    • प्रशामक देखभाल के विभिन्न स्तरों के साथ स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के बीच परामर्श और संपर्क तंत्र में सुधार करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू  

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