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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नीति निर्धारण में कच्चे तेल का महत्त्व

  • 12 Aug 2017
  • 4 min read

संदर्भ 
शुक्रवार को प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट 2016-17 के दूसरे खंड में भारत की राष्ट्रीय आर्थिक नीति निर्माण में कच्चे तेल की कीमतों का असर कम करने का संकेत दिया गया है। यह आर्थिक समीक्षा के उस रुख में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव है जब उसने इस वर्ष जनवरी में तेल की बढ़ती कीमतों को भारत के विकास के लिये एक चुनौती बताया था और इसे नीति निर्धारण के लिये महत्त्वपूर्ण बताया था।

नीति निर्धारण में तेल का इतना महत्त्व क्यों ? 

  • भारत सरकार के नीति निर्माण में कच्चे तेल का बड़ा प्रभाव पड़ता है। 
  • भारत अपनी 80% ऊर्जा ज़रूरतों के लिये कच्चे तेल के आयात पर निर्भर रहता है। इतनी भारी मात्रा में इसके आयात के लिये सरकार को हर वर्ष अरबों डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। 
  • नीति निर्माण में कच्चे तेल की कीमतों का महत्त्व भारत के तेल और गैस आयात बिल से स्पष्ट होता है,  जो 2015-16 में क्रमशः 4.16 खरब रुपए और 43,782 करोड़ रुपए था।

बदलाव का संकेत 

  • वर्तमान में वैश्विक तेल बाज़ार कुछ साल पहले की अपेक्षा से काफी अलग हो रहा है। अब तेल की कीमतों में गिरावट का चलन देखने को मिल रहा है। 
  • सरकार भी 2030 तक पेट्रोल और डीज़ल के वाहनों को बिजली के वाहनों से बदलने जा रही है। 
  • इसके अलावा, खुदरा बाज़ार को पूरी तरह से बदलने के लिये भारत ने जून से वैश्विक दरों के अनुरूप पेट्रोल और डीज़ल की बिक्री शुरू कर दी है।
  • वर्तमान वैश्विक हालात को देखते हुए ऐसा लगता है कि तेल की कीमतें लंबे समय तक कम रहेंगी, परंतु विशेषज्ञों की राय में कीमतों के बजाय तेल की मांग को देखना बेहतर है। 
  • कच्चे तेल की औसत कीमत अप्रैल में 52.49 डॉलर प्रति बैरल से जुलाई में 47.86 डॉलर प्रति डॉलर हो गई है। गुरुवार को कीमत 51.82 डॉलर प्रति बैरल थी।

प्रौद्योगिकी की भूमिका 

  • भारत के लिये कच्चे तेल को लेकर भू-राजनीतिक जोखिम अब पहले की तरह नहीं रहा। प्रौद्योगिकी ने भारत को ओ.पी.ई.सी. (OPEC) एवं मध्य-पूर्व के बीच भू-अर्थशास्त्र और भू-राजनीति के उलटफेर के प्रति कम संवेदनशील बना दिया है।
  • नई प्रौद्योगिकियों का विकास, अमेरिका में शेल गैस का उत्पादन और गैर-पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन से तेल की आपूर्ति के कारण वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों का भारत पर प्रभाव घट रहा है।
  • हालाँकि ऐसा भी नहीं है कि तेल की कीमतों में अस्थिरता नहीं होगी या उनकी कीमत $50 की सीमा से ऊपर नहीं बढ़ेंगी। परंतु शेल प्रौद्योगिकी तेज़ी से आपूर्ति कर यह सुनिश्चित करेगी कि कीमतें इस सीमा से ऊपर लंबे समय तक न रह पाए।  
  • वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में भारत की भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वैश्विक ऊर्जा पर बी.पी. सांख्यिकी समीक्षा के मुताबिक 2016 में वैश्विक ऊर्जा की मांग के 1% विकास में चीन और भारत का हिस्सा आधा है। भारत ने अपनी ऊर्जा मांग को 5.4% पर बनाए रखा है।
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