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भारतीय अर्थव्यवस्था

तेल और खाद्य कीमतें

  • 08 Nov 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, खाद्य मूल्य सूचकांक

मेन्स के लिये: 

तेल और खाद्य कीमतों में वृद्धि का कारण और इसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने विश्व खाद्य मूल्य सूचकांक (FPI) जारी किया है, जो कि जुलाई 2011 के बाद से उच्चतम स्तर पर है।

  • खाद्य आपूर्ति और कीमतें, चरम मौसमी घटनाओं, खराब आपूर्ति शृंखला, श्रमिकों की कमी और बढ़ती लागत के कारण दबाव में है।

FAO

प्रमुख बिंदु

  • खाद्य और ईंधन में एक साथ वृद्धि:
    • जैव-ईंधन संबंध के कारण पेट्रोलियम और कृषि-वस्तुओं की कीमतों में एक साथ बढ़ोतरी हो रही है।
    • जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो गन्ने या मक्का से इथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाना या बायोडीज़ल उत्पादन के लिये ताड़ या सोयाबीन के तेल का अधिक उपयोग किया जाता है।
    • इसी तरह कपास पेट्रोकेमिकल्स-आधारित सिंथेटिक फाइबर की तुलना में अपेक्षाकृत सस्ती हो जाती है।
    • इसके अलावा चूँकि मकई मुख्य रूप से एक पशु चारा है और इथेनॉल के लिये इसके प्रयोग से पशुधन में उपयोग हेतु गेहूँ सहित अन्य अनाजों का प्रतिस्थापन होता है।
      • इसके परिणामस्वरूप खाद्यान्नों की कीमतों में भी वृद्धि होती है।
    • चीनी के साथ भी ऐसा ही होता है, जब चीनी मिलें शराब में किण्वन के लिये गन्ने के अनुपात को बढ़ाती हैं।
    • लेकिन यह केवल जैव-ईंधन का प्रभाव ही नहीं है, बड़ी कीमतों में वृद्धि का सकारात्मक भावना के निर्माण के माध्यम से अन्य कृषि उत्पादों पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • आर्थिक गतिविधि और प्रोत्साहन:
    • बाज़ार की सकारात्मक भावना दो कारकों से जुड़ी है:
      • महामारी के घटते मामलों और बढ़ती टीकाकरण दरों के बीच दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियों के पुनरुद्धार के साथ मांग पूर्ववर्ती स्तर पर लौट रही है।
      • दूसरा कारण, अमेरिकी फेडरल रिज़र्व और अन्य वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा उपयोग की जाने वाली तरलता है, जिसने कोविड-19 से हुई आर्थिक क्षति को सीमित किया है।
        • यह सारा पैसा, नीति-प्रेरित अति-निम्न वैश्विक ब्याज़ दरों के साथ, शेयर बाज़ारों और स्टार्टअप निवेश के माध्यम से बाज़ार में पहुँच जाता है।
    • हालाँकि चूँकि आपूर्ति शृंखलाओं की बहाली, मांग की रिकवरी के साथ संतुलित नहीं है- शिपिंग कंटेनरों/जहाज़ों और मज़दूरों की कमी अभी तक पूरी तरह से अपने पूर्वर्ती स्तर पर नहीं लौटी है - कुल मिलाकर इस सब का परिणाम मुद्रास्फीति के रूप में सामने आया है।
  • किसानों पर प्रभाव:
    • कपास और सोयाबीन जैसे कुछ उत्पाद सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से काफी अधिक कीमतों पर बिक रहे हैं।
    • दूसरी ओर किसानों को ईंधन एवं उर्वरकों के लिये अधिक भुगतान करने हेतु मज़बूर किया जा रहा है, क्योंकि उनकी अंतर्राष्ट्रीय  कीमतें बढ़ गई हैं।
  • उर्वरक:
    • उर्वरकों की स्थिति और भी बदतर है, डी-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) वर्तमान में भारत में 800 अमेरिकी डॉलर प्रति टन की दर से आयात किया जा रहा है, जिसमें लागत और समुद्री भाड़ा भी शामिल है। ‘म्यूरेट ऑफ पोटाश’ (MOP) कम-से-कम 450 अमेरिकी डॉलर प्रति टन पर उपलब्ध है।
      • यह वर्ष 2007-08 के विश्व खाद्य संकट के दौरान प्रचलित कीमतों के करीब हैं।
      • DAP और MOP गैर-यूरिया उर्वरक हैं।
    • उर्वरकों के साथ, उनके मध्यवर्ती और कच्चे माल जैसे- रॉक फॉस्फेट, सल्फर, फॉस्फोरिक एसिड तथा अमोनिया की कीमतें भी डिमांड-पुल (उच्च फसल रोपण से) और कॉस्ट-शॉक (तेल और गैस से) के संयोजन के कारण आसमान छू गई हैं।

खाद्य मूल्य सूचकांक:

  • इसे वर्ष 1996 में वैश्विक कृषि वस्तु बाज़ार के विकास की निगरानी में मदद के लिये सार्वजनिक रूप से पेश किया गया था।
  • FAO फूड प्राइस इंडेक्स (FFPI) खाद्य वस्तुओं की टोकरी के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में मासिक बदलाव का एक मापक है।
  • यह अनाज, तिलहन, डेयरी उत्पाद, मांस और चीनी की टोकरी के मूल्यों में हुए परिवर्तनों को मापता है।
  • इसका आधार वर्ष 2014-16 है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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