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भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट

  • 29 Jun 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने अपनी छमाही वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा है कि बैंकिंग प्रणाली में सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assests- NPA) में लगातार दूसरी छमाही में गिरावट दर्ज की गई है, जबकि ऋण देने की रफ्तार बढ़ रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • कॉर्पोरेट शासन में सुधार की आवश्यकता के मद्देनज़र रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकिंग प्रणाली को सरकारी सहायता पर कम निर्भर रहते हुए पूंजी निर्माण के लिये बाज़ार से निजी पूंजी जुटाने का प्रयास करना चाहिये।
  • मार्च 2019 में 20% से अधिक सकल एनपीए (NPA) कम करने वाले बैंकों की परिसंपत्ति की गुणवत्ता में व्यापक सुधार हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिये जाने वाले ऋण में 9.6% की वृद्धि हुई, जबकि निजी बैंकों के लिये यह वृद्धि 21% रही। कुल ऋण वृद्धि सितंबर 2018 में 13.1% से मार्च 2019 में मामूली बढ़त के साथ 13.2% हो गई। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (Scheduled Commercial Banks-SCBs) की ऋण वृद्धि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ दोहरे अंकों में पहुँच गई।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार द्वारा पुनर्पूंजीकरण के बाद, वाणिज्यिक बैंकों का समग्र पूंजी पर्याप्तता अनुपात सितंबर 2018 के13.7% से बढ़कर मार्च 2019 में 14.3% हो गया तथा इसी अवधी के दौरान राज्य द्वारा संचालित बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR) 11.3% से बढ़कर 12.2% हो गया। लेकिन निजी क्षेत्र के बैंकों के CAR में मामूली गिरावट दर्ज की गई है।

पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR)

  • CAR, बैंक की उपलब्ध पूंजी का एक माप है जिसे बैंक के जोखिम-भारित क्रेडिट एक्सपोज़र के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • पूंजी पर्याप्तता अनुपात को पूंजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (capital-to-risk Weighted Assets Ratio-CRAR) के रूप में भी जाना जाता है। इसका उपयोग जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा और विश्व में वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है।
  • व्यापक आर्थिक पैमाने पर देखें तो स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, क्योंकि निजी खपत कमज़ोर हो गई है और चालू खाते घाटे (Current Account Deficit- CAD) ने राजकोषीय मोर्चे पर दबाव बढ़ा दिया है। इससे सरकार के बाज़ार से कर्ज़ लेने और बाज़ार के ब्याज दरों पर भी असर पड़ता है। निजी निवेश की मांग को दोबारा पटरी पर लाना भी एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
  • ऐसे में कहा जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों के बेहतर समन्वय से प्रणालीगत स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सकता है।

रिपोर्ट के बारे में

  • वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report- FSR) भारतीय रिज़र्व बैंक का एक अर्द्धवार्षिक प्रकाशन है जो भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता का समग्र मूल्यांकन प्रस्तुत करती है।
  • FSR वित्तीय स्थिरता के लिये जोखिम, साथ ही वित्तीय प्रणाली के लचीलेपन पर वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (Financial Stability and Development Council- FSDC) की उप-समिति के समग्र आकलन को दर्शाती है।
  • यह रिपोर्ट वित्तीय क्षेत्र के विकास और विनियमन से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा करती है।

स्रोत : द हिंदू

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