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जैव विविधता और पर्यावरण

सामूहिक विलुप्ति

  • 08 Nov 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ऑर्डोविशियन युग

मेन्स के लिये:

लेट ऑर्डोविशियन मास एक्सटिंक्शन के कारण एवं उसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अंतराष्ट्रीय पत्रिका ‘नेचर जियोसाइंस’ में प्रकाशित एक पेपर ने पहले सामूहिक विलुप्ति के पीछे एक नया कारण बताया है, जिसे ‘लेट ऑर्डोविशियन मास एक्सटिंक्शन’ के रूप में भी जाना जाता है।

  • यह बताता है कि ठंडी जलवायु ने संभवतः महासागर परिसंचरण पैटर्न को बदल दिया। इसने उथले समुद्रों से गहरे महासागरों में ऑक्सीजन युक्त पानी के प्रवाह में व्यवधान पैदा किया, जिससे समुद्री जीवों का बड़े पैमाने पर विलोपन हुआ।

प्रमुख बिंदु

  • सामूहिक विलुप्ति:
    • बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की घटना तब होती है जब प्रजातियाँ प्रतिस्थापित होने की तुलना में बहुत तेज़ी से विलुप्त होती हैं।
    • इसे आमतौर पर दुनिया की लगभग 75% प्रजातियों के कम भूवैज्ञानिक समय में विलुप्त होने के रूप में परिभाषित किया जाता है- लगभग 2.8 मिलियन वर्ष से कम समय में।
  • बड़े पैमाने पर सामूहिक विलुप्ति की घटनाएँ:
    • पहली सामूहिक विलुप्ति: लगभग 445 मिलियन वर्ष पहले हुए ‘ऑर्डोविशियन मास एक्सटिंक्शन’ ने सभी प्रजातियों में से लगभग 85% को विलुप्त कर दिया।
    • दूसरी सामूहिक विलुप्ति: ‘डेवोनियन मास एक्सटिंक्शन’ (लगभग 375 मिलियन वर्ष पूर्व) ने दुनिया की लगभग 75% प्रजातियों का विनाश कर दिया।
    • तीसरी सामूहिक विलुप्ति: पर्मियन सामूहिक विलुप्ति (लगभग 250 मिलियन वर्ष पूर्व) जिसे ‘ग्रेट डाइंग’ के रूप में भी जाना जाता है, सभी प्रजातियों के 95% से अधिक विलुप्त होने का कारण बना।
    • चौथी सामूहिक विलुप्ति: ‘ट्राइसिक मास एक्सटिंक्शन’ (लगभग 200 मिलियन वर्ष पूर्व) ने कुछ डायनासोर सहित पृथ्वी की लगभग 80% प्रजातियों को समाप्त कर दिया।
    • पाँचवीं सामूहिक विलुप्ति: यह ‘क्रिटेशियस मास एक्सटिंक्शन’ (लगभग 65 मिलियन वर्ष पूर्व) गैर-एवियन डायनासोर की विलुप्ति के लिये जाना जाता है।

Earth-mass-extinctions

  • नवीनतम निष्कर्षों के बारे में:
    • नई व्याख्या: प्रत्येक बड़े पैमाने पर विलुप्त होने के पीछे कई सिद्धांत हैं और नई प्रौद्योगिकियों में प्रगति के साथ शोधकर्त्ता इन घटनाओं के बारे में अधिक जटिल विवरणों को उजागर कर रहे हैं।
    • पारंपरिक विचार: दशकों से प्रचलित विचारधारा यह थी कि ज्वालामुखी-प्रेरित ग्लोबल वार्मिंग के कारण महासागरों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और इस प्रकार समुद्री आवासन की क्षमता प्रभावित होती है एवं यह संभावित रूप से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर कर देती है।
    • न्यू स्कूल ऑफ थॉट: हाल के वर्षों में बढ़ते साक्ष्य पृथ्वी के इतिहास में कई ऐसे प्रकरणों की ओर इशारा करते हैं जब ठंडी जलवायु में ऑक्सीजन का स्तर गिर गया था।
      • उस अवधि के दौरान ऑर्डोविशियन जलवायु और समुद्री जैव-रासायनिक चक्रों के कारण उत्पन्न वैश्विक शीतलन के प्रत्युत्तर में ‘समुद्री तल और उपरि-महासागरीय ऑक्सीकरण’ की घटना घटित हुई।
        • इससे समुद्र के संचलन को प्रभावित करने वाली ‘डीप सी एनोक्सिया’ की घटना घटित हुई।
      • इस प्रकार इस पेपर में निष्कर्ष निकाला गया है कि जलवायु शीतलन ने पोषक चक्रण में परिवर्तन किया होगा एवं प्राथमिक उत्पादक समुदायों ने अंततः ‘लेट ऑर्डोविशियन मास एक्सटिंक्शन’ को प्रेरित किया होगा।
  • मौजूदा छठा ‘मास एक्सटिंक्शन’ और उसके प्रभाव:
    • छठा ‘मास एक्सटिंक्शन’:
      • कुछ शोधकर्ताओं ने इंगित किया है कि वर्तमान में हम मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप छठे ‘मास एक्सटिंक्शन’ का सामना कर रहे हैं।
        • वर्तमान में सभी प्रजातियों में से केवल अनुमानित 2% जीवित हैं, लेकिन प्रजातियों की पूर्ण संख्या पहले से कहीं अधिक है।
      • इसे सर्वाधिक गंभीर पर्यावरणीय समस्या के रूप में वर्णित किया गया है, क्योंकि प्रजातियों का यह नुकसान स्थायी होगा।
        • प्रजातियों का नुकसान तब हो रहा है जब मानव पूर्वजों ने 11,000 वर्ष पूर्व कृषि विकसित की थी। तब से मानव आबादी लगभग 1 मिलियन से बढ़कर 7.7 बिलियन हो गई है।
    • संभावित प्रभाव:
      • प्रजातियों के विलुप्त होने का प्रभाव फसल पाॅलिनेशन और जल शोधन में नुकसान के रूप में पड़ता है।
      • इसके अलावा यदि किसी प्रजाति का एक पारिस्थितिकी तंत्र में एक विशिष्ट कार्य है, तो नुकसान खाद्य शृंखला को प्रभावित करके अन्य प्रजातियों के लिये गंभीर परिणाम पैदा कर सकता है।
      • विलुप्त होने के प्रभावों से आनुवंशिक और सांस्कृतिक परिवर्तनशीलता के बिगड़ने की आशंका है जो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदल देगी।
        • जब आनुवंशिक परिवर्तनशीलता और लचीलापन कम हो जाता है, तो मानव कल्याण में इसका योगदान समाप्त हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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