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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जुबा शांति वार्ता

  • 28 Mar 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये 

ब्लू नील, व्हाइट नील, आदिस अबाबा समझौता

मेन्स के लिये

सूडान में राजनीतिक स्थिरता के लिये जुबा शांति वार्ता

चर्चा में क्यों? 

25 मार्च, 2020 को दक्षिण सूडान की राजधानी जुबा में अपने देश की सरकार और विद्रोही समूहों के बीच शांति वार्ता के दौरान सूडान के रक्षा मंत्री जमाल एल्डिन उमर इब्राहिम (Jamal Aldin Omar Ibrahim) का निधन हो गया।

मुख्य बिंदु:

  • उमर सूडान की संप्रभु परिषद के सदस्य थे जिसने पिछले वर्ष देश में सैन्य और लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के बीच 39 महीने के सत्ता साझा करने के समझौते के तहत सत्ता संभाली थी। इस आंदोलन ने पूर्व तानाशाह राष्ट्रपति उमर अल-बशीर के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्त्व किया था। 
  • सूडान सरकार वर्ष 2019 से विद्रोही समूहों के साथ शांति वार्ता को सफल बनाने का प्रयास कर रही है।
  • इस शांति वार्ता का आयोजन दक्षिण सूडान की राजधानी जुबा में किया जा रहा है जिसका उद्देश्य सूडान में राजनीतिक स्थिरता लाना है तथा राष्ट्रपति उमर अल-बशीर के सैन्य शासन को समाप्त करने के बाद राष्ट्र में लोकतंत्र की स्थापना करने में मदद करना है।
  • सूडान में हुए कई विद्रोहों में हजारों लोग मारे गए जिसमें पश्चिमी सूडान का दारफुर क्षेत्र (Darfur Region) प्रमुख है। इसी क्षेत्र में 2000 के दशक की शुरुआत में उमर अल-बशीर ने क्रूरतापूर्वक नागरिको का दमन किया था जिसके कारण अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) ने युद्ध अपराध एवं नरसंहार के आरोप पर उमर अल-बशीर को दोषी ठहराया है।

सूडान: राजनीतिक घटनाक्रम 

  • 1 जनवरी, 1956 को ब्रिटिश और मिस्र से आज़ादी मिलने के बाद सूडान में सत्ता को लेकर संघर्ष शुरू हो गया।
    • उत्तरी सूडान की अधिकतर आबादी मुस्लिम धर्म जबकि दक्षिणी सूडान की अधिकतर आबादी ईसाई धर्म को मानती है। 
    • उत्तरी सूडान के मुस्लिम समूहों द्वारा सूडान को कट्टरपंथी मुस्लिम राष्ट्र में बदलने के संदेह के कारण दक्षिणी सूडान के लोगों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया जिससे सूडान में गृहयुद्ध छिड़ गया तथा सूडान की सत्ता सेना के हाथ में आ गई।
  • वर्ष 1965 में सूडान में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत चुनाव हुए जिसके तहत एक मुस्लिम प्रभुत्व वाली सरकार सत्ता में आई किंतु वर्ष 1969 में इस मुस्लिम सरकार का गफर मोहम्मद अल-निमरी (Gaafar Mohamed el-Nimeri) के नेतृत्व में तख्तापलट कर दिया गया। निमरी ने सूडानी सोशलिस्ट पार्टी (Sudanese Socialist Party) द्वारा एक दलीय शासन स्थापित किया।   
    • निमरी के शासनकाल में वर्ष 1972 में एक्वाटोरिया (Equatoria) की आतंरिक स्वायत्तता के लिये आदिस अबाबा समझौता (Addis Ababa Agreement) हुआ, जिससे सूडान के दक्षिणी प्रांतों में 17 वर्षों से चल रहा गृहयुद्ध समाप्त हो गया।
    • हालाँकि वर्ष 1983 में उत्तरी सूडान में मुस्लिम ब्रदरहुड की बढती ताकत को देखते हुए निमरी ने सूडान में कानूनों को सख्त करने तथा इस्लामी कानून संहिता ‘शरिया’ के अनुरूप लाने के लिये अपनी नीतियों को पलट दिया और दक्षिणी प्रांतो को केंद्रीय प्रशासन के अंतर्गत लेन के लिये इसी वर्ष आदिस अबाबा समझौते को भी निरस्त कर दिया गया जिससे दक्षिण के प्रांतों में फिर से अशांति एवं विद्रोह शुरू हो गया।  
  • वर्ष 1989 में सूडान सरकार और दक्षिणी प्रांत के विद्रोहियों ने युद्ध को समाप्त करने के लिये बातचीत शुरू की किंतु उमर अल-बशीर के नेतृत्व में सेना ने सरकार का तख्तापलट कर दिया और उमर अल-बशीर ने खुद को राष्ट्रपति घोषित किया। 
    • वर्ष 2003 में सूडान में दारफुर के पश्चिमी क्षेत्र में सूडान लिबरेशन मूवमेंट और जस्टिस एंड इक्वलिटी मूवमेंट समूहों द्वारा सूडान सरकार पर दारफुर क्षेत्र की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए  विद्रोह शुरू किया। 
  • वर्ष 2004 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) ने एक संकल्प पत्र जारी किया जिसमें कहा गया कि सूडान सरकार ने दक्षिणी प्रांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं किया तथा इस संकल्प पत्र में दारफुर क्षेत्र में सैन्य समर्थित हमलों पर चिंता व्यक्त की गई।        
    • वर्ष 2009 में अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court) ने अल-बशीर के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जिस पर दारफुर क्षेत्र में मानवता एवं युद्ध अपराधों के खिलाफ अपराध का आरोप लगाया गया था।  
  • जनवरी 2011 में दक्षिणी सूडान की स्वतंत्रता के लिये जनमत संग्रह कराया गया और 9 जुलाई, 2011 को दक्षिण सूडान गणराज्य एक स्वतंत्र देश बन गया। 
  • उमर अल-बशीर द्वारा दक्षिणी सूडान की स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया गया किंतु सूडान और दक्षिणी सूडान गणराज्य द्वारा अब्येई (Abyei) क्षेत्र पर दावा किये जाने के कारण दोनों देशों के बीच यह विवादित क्षेत्र हो गया।

भारत-सूडान संबंध:

  • भारत-सूडान के संबंध लगभग 5000 साल पुराने सिंधु घाटी सभ्यता के समय के हैं। बताया जाता है कि सिंधुवासी अरब सागर और लाल सागर के रास्ते सूडान से व्यापार करते थे।  
  • वर्ष 1935 में समुद्र के रास्ते इंग्लैंड जाते हुए महात्मा गांधी सूडान के बंदरगाह पर रुके जहाँ भारतीय समुदाय द्वारा उनका स्वागत किया गया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश भारतीय सैनिकों ने वर्ष 1941 में इरीट्रिया में सूडान के साथ मिलकर केरेन (Keren) की निर्णायक लड़ाई जीती।
  • वर्ष 1953 में सूडान का पहला संसदीय चुनाव भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन द्वारा आयोजित कराया गया था वहीं वर्ष 1956 में सूडान को स्वतंत्रता मिलने के बाद वर्ष 1957 में गठित सूडान चुनाव आयोग (Sudanese Election Commission) में भारतीय चुनाव आयोग से संबंधित नियम एवं कानूनों की सबसे अधिक मदद ली गई।
  • तेल और गैस क्षेत्र पर सहयोग पर भारत-सूडान संयुक्त कार्य समूह की पहली बैठक नवंबर 2010 में खार्तूम शहर में हुई थी। 
  • भारत सूडान के साथ मिलकर स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रहा है जिसके अंतर्गत  भारतीय क्षमता निर्माण कार्यक्रमों द्वारा सूडान के प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके अलावा सस्ते चिकित्सा उपचार का लाभ उठाने के लिये भारत सूडान के लिये प्रमुख गंतव्य स्थान बन गया है।

सूडान: भौगोलिक परिदृश्य 

  • सूडान पूर्वी मध्य अफ्रीका में स्थित है। यह उत्तर में मिस्र, उत्तर-पूर्व में लाल सागर (Red Sea), पूर्व में इरिट्रिया एवं इथियोपिया, दक्षिण में दक्षिण सूडान गणराज्य, दक्षिण-पश्चिम में मध्य अफ्रीकी गणराज्य (Central African Republic), पश्चिम में चाड (Chad) और उत्तर-पश्चिम में लीबिया से घिरा हुआ है।
  • अल्जीरिया और पूर्वी कांगो के बाद सूडान अफ्रीकी महाद्वीप का तीसरा सबसे बड़ा देश है।
  • इथोपियन उच्च भूमि (Ethiopian highlands) से निकलने वाली ब्लू नील (Blue Nile) और मध्य अफ्रीकी झीलों (Central African lakes) से निकलने वाली व्हाइट नील (White Nile) नदियाँ खार्तूम शहर में मिलकर नील नदी का निर्माण करती हैं जो उत्तर की ओर मिस्र से होते हुए भूमध्य सागर तक प्रवाहित होती है।
  • संसाधन: पेट्रोलियम सूडान का प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। यहाँ क्रोमियम अयस्क, तांबा, लौह अयस्क, अभ्रक, चाँदी, सोना, टंगस्टन और जस्ता के महत्त्वपूर्ण भंडार हैं। 

स्रोत: द हिंदू

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