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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • 14 Nov 2017
  • 3 min read

संदर्भ

हाल ही में फिलीपिंस के लॉस बानोस में स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (International Rice Research Institute-IRRI) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर एक ‘राइस फील्ड लेबोरेटरी’ (rice field laboratory) का अनावरण स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा किया गया है।

क्या है अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान?

  • अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) चावल की किस्मों के विकास के क्षेत्र में कार्य करने वाली एक अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान और प्रशिक्षण संगठन है, जिसने ‘हरित क्रांति’ में अहम् योगदान दिया था।
  • यहाँ पर चावन का जीन बैंक भी है, साथ ही यहाँ चावल की सवा लाख से ज्यादा किस्में है जिन्हें 100 देशों से इकट्ठा किया गया है।
  • 1960 में स्थापित यह केंद्र चावल अनुसंधान के मामले में सबसे पुराना अनुसंधान केंद्र है और यहाँ बड़ी संख्या में भारतीय वैज्ञानिक भी काम करते हैं।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर परामर्शदात्री समूह (Consultative Group on International Agricultural Research-CGIAR) के तहत स्थापित दुनिया के 15 अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

आईआरआरआई का उद्देश्य

  • अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान का मुख्य उद्देश्य चावल अनुसंधान के ज़रिये भूख और गरीबी को कम करना।
  • साथ ही यह चावल की खेती करने वाले किसानों और उपभोक्ताओं के हितों का ख्याल रखने का कार्य भी करता है।
  • चावल की खेती के संदर्भ में पर्यावरणीय स्थिरता (environmental sustainability) सुनिश्चित करना भी इसका एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। 

भारत और आईआरआरआई

  • उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) एक-दूसरे के साथ मिलकर सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं, ताकि भारत में सूखा, बाढ़ और लवण सहनशील (drought, flood  and salt tolerant) चावल की किस्मों का प्रयोग सुनिश्चित किया जा सके।
  • केंद्र सरकार की पहल पर अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान वाराणसी में एक क्षेत्रीय केंद्र खोलने जा रहा है। यह क्षेत्रीय केंद्र वाराणसी में स्थित ‘राष्ट्रीय बीज अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र’ के परिसर में खुलेगा।
  • वाराणसी केंद्र चावल की उत्पादकता को बढ़ाने, उत्पादन की लागत में कमी करने और किसानों के कौशल में वृद्धि के ज़रिये उनकी आय बढ़ाने में मददगार साबित होगा।
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