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न्यायपालिका का भारतीयकरण

  • 25 Jan 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, भारत के मुख्य न्यायाधीश, अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS)।

मेन्स के लिये:

भारत में न्यायपालिका संबंधी पहल, भारतीय न्यायिक प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ऑनलाइन ई-निरीक्षण सॉफ्टवेयर के उद्घाटन के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णयों का अब चार भाषाओं- हिंदी, तमिल, गुजराती और ओडिया में अनुवाद किया जाएगा।

  • इस पहल के परिणामस्वरूप न्यायपालिका का भारतीयकरण होगा जो कि समय की मांग है।

न्यायपालिका का भारतीयकरण:

  • भारतीयकृत न्यायपालिका:
    • CJI के अनुसार, न्यायालयों को वादी-केंद्रित होने की आवश्यकता है, जबकि न्याय वितरण का सरलीकरण प्रमुख चिंता होनी चाहिये।
    • CJI ने निर्दिष्ट किया कि न्यायपालिका के भारतीयकरण का अर्थ न्याय वितरण प्रणाली का स्थानीयकरण है। 
  • भारत की सदियों पुरानी न्यायिक प्रणाली:
    • भारत में विश्व की सबसे पुरानी न्यायिक प्रणाली है जो लगभग 5000 वर्ष पुरानी है।
    • ऐतिहासिक काल से ही भारत में एक बहुत ही प्रभावी, विश्वसनीय और लोकतांत्रिक न्यायिक प्रणाली रही है, लेकिन वर्तमान निर्णयों में अधिकांश बयान/कथन पश्चिमी न्यायशास्त्र से लिये गए हैं।
      • न्याय प्रदान करने की भारत की अपनी प्राचीन प्रणाली को बहुत कम मान्यता दी जाती है।
  • संबंधित अनुशंसाएँ:
    • मलिमथ समिति की रिपोर्ट: मलिमथ समिति (2000) ने सुझाव दिया कि संहिता की एक अनुसूची सभी क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित की जानी चाहिये ताकि अभियुक्त अपने अधिकारों को जान सकें, साथ ही उन्हें कैसे लागू किया जाए और उन अधिकारों के उल्लंघन होने पर किससे संपर्क किया जाए।
    • विधि आयोग, 1958: अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) को पहली बार वर्ष 1958 में विधि आयोग की 14वीं रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
      • विधि आयोग की एक रिपोर्ट (1987) में सिफारिश की गई थी कि भारत में प्रति दस लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीश होने चाहिये, जबकि तब यह संख्या 10.50 थी। 

न्यायिक प्रणाली में सुधार के लिये पहल:

  • वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC):
    • लॉकडाउन के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ही मुख्य सहारा रहा है।
      • दिल्ली उच्च न्यायालय एकमात्र ऐसा न्यायालय है जिसने VC के माध्यम से अधिकतम मामलों की सुनवाई की है।
  • AI आधारित सुपेस (SUPACE) पोर्टल: 
  • न्याय वितरण और कानूनी सुधार हेतु राष्ट्रीय मिशन: 
    • मिशन न्यायिक प्रशासन में बकाया और लंबित मामलों के चरणबद्ध परिसमापन के लिये एक समन्वित दृष्टिकोण अपना रहा है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ कंप्यूटरीकरण, अधीनस्थ न्यायपालिका की शक्ति में वृद्धि, नीति एवं विधायी उपायों सहित न्यायालयों के लिये बेहतर बुनियादी ढाँचा शामिल है।
  • ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों हेतु बुनियादी ढाँचे में सुधार:
    • बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिये केंद्र प्रायोजित योजना (Centrally Sponsored Scheme- CSS) की शुरुआत के बाद से 9291.79 करोड़ रुपए जारी किये गए हैं।
    • कोर्ट हॉल की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है।
  • सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology- ICT) का लाभ उठाना: 
    • सरकार ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों की सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी सक्षम करने के लिये पूरे देश में ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना को लागू कर रही है।
    • कंप्यूटरीकृत ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों की संख्या अब तक बढ़कर 18,735 हो गई है। 

भारतीय न्यायिक प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ:

  • लंबित मामलों की बड़ी संख्या: भारतीय न्यायालयों के समक्ष 30 मिलियन से अधिक मामले लंबित पड़े हैं।
  • विचाराधीन कैदी: भारतीय जेलों में बंद अधिकांश कैदी वे हैं जो अपने मामलों में निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं (यानी वे विचाराधीन कैदी हैं) और उन्हें निर्णयन की अवधि तक के लिये बंद रखा जाता है।
    • अधिकांश आरोपितों को जेल में लंबी सज़ा काटनी पड़ती है (दोषी सिद्ध होने पर दी जाने वाली सज़ा की अवधि से अधिक समय तक) और न्यायालय में स्वयं का बचाव करने से संबद्ध लागत, मानसिक कष्ट एवं पीड़ा वास्तविक दंड की तुलना में अधिक महँगी और पीड़ादायी सिद्ध होती है। 
  • नियुक्ति/भर्ती में देरीः न्यायिक पदों को आवश्यकतानुसार यथाशीघ्र नहीं भरा जाता है। 135 मिलियन आबादी वाले देश में लगभग 25000 न्यायाधीश ही उपलब्ध हैं। 
    • उच्च न्यायालयों में रिक्तियों की संख्या लगभग 400 है और निचली न्यायालयों  में करीब 35 फीसदी पद खाली पड़े हैं।
  • CJI की नियुक्ति में पक्षपात और भाई-भतीजावाद: चूँकि CJI के पद के लिये उम्मीदवारों के मूल्यांकन के संबंध में कोई विशिष्ट मानदंड नहीं हैं, इसलिये इस मामले में भाई-भतीजावाद और पक्षपात आम बात है। 
    • परिणामतः न्यायिक नियुक्ति में कोई पारदर्शिता नहीं है और साथ ही वे किसी भी प्रशासनिक निकाय के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। 
  • ब्रिटिश शासन से प्रेरित भारतीय न्यायपालिका: भारत की वर्तमान न्यायिक प्रणाली की उत्पत्ति न्यायपालिका की औपनिवेशिक प्रणाली में देखी जा सकती है जो भारतीय आबादी की आवश्यकताओं के लिये बिल्कुल उपयुक्त नहीं है। 

आगे की राह 

  • नियुक्ति प्रणाली में बदलाव: रिक्तियों को तुरंत भरे जाने की आवश्यकता है, और न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये एक उपयुक्त समयसीमा स्थापित करना तथा अग्रिम सुझाव देना आवश्यक है। 
    • अन्य महत्त्वपूर्ण कारक जो निर्विवाद रूप से भारत में एक बेहतर न्यायिक प्रणाली विकसित करने में सहायता कर सकता है, वह है AIJS। 
  • जाँच प्रक्रिया में सुधार: भारत में एक जाँच संबंधी सक्रिय नीति का अभाव है, जिसके कारण कई निर्दोष लोगों को गलत तरीके से आरोपित किया जाता है और दंडित किया जाता है।
    • इसलिये भारत सरकार को न्याय प्रणाली में सभी हितधारकों को ध्यान में रखते हुए एक प्रभावी, सक्रिय और व्यापक जाँच नीति तैयार करने की आवश्यकता है। 
  • न्याय के लिये नवोन्मेषी समाधान: बड़ी मात्रा में लंबित मामलों के निपटान के समाधान के लिये केवल अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति काफी नहीं है, इसके लिये नवोन्मेषी समाधानों की भी आवश्यकता है।
    • हाल ही में शुरू की गई पहल को एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है क्योंकि यह समझना आवश्यक है कि न्यायालयों में इस्तेमाल की जाने वाली अंग्रेज़ी भाषा सभी नागरिकों के समझ में नहीं आती है।  
      • इसे न्याय तक पहुँच तब तक नहीं माना जा सकता जब तक निर्णयों/फैसलों को आम जनता की समझ में आ जाने वाली भाषा में निर्गत नहीं किया जाता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

  1. प्रश्न. राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2013)
  2. इसका उद्देश्य समान अवसर के आधार पर समाज के कमज़ोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएँ प्रदान करना है।
  3. यह पूरे देश में कानूनी कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू करने हेतु राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों के लिये दिशा-निर्देश जारी करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारत में कानूनी सेवा प्राधिकरण निम्नलिखित में से किस प्रकार के नागरिकों को मुफ्त कानूनी सेवाएँ प्रदान करते हैं? (2020)

  1. 1,00,000 रुपए से कम वार्षिक आय वाले व्यक्ति
  2. 2,00,000 रुपए से कम वार्षिक आय वाले ट्रांसजेंडर
  3. अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सदस्य जिनकी वार्षिक आय 3,00,000 रुपए से कम है
  4. सभी वरिष्ठ नागरिक

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा भारत के राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से वापस बैठने और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिये बुलाया जा सकता है।
  2. भारत में उच्च न्यायालय के पास अपने निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

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