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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गिग इकॉनोमी और ‘भारतीय श्रम बाज़ार’

  • 11 Nov 2017
  • 5 min read

संदर्भ

हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट के आधार पर यह बात सामने आई है कि भारतीय श्रम बाज़ार ‘गिग अर्थव्यवस्था’ (gig economy) के प्रति आकर्षित हो रहा है। विदित हो कि आज भारत के अधिकांश कामगार संविदा (contractual) अथवा ‘फ्रीलांसिंग अवसरों’ (freelancing opportunities) की ही तलाश कर रहे हैं और सेवा-क्षेत्र उनके रोज़गार प्रदाता बने हुए है।
 
प्रमुख बिंदु
  • वैश्विक रोज़गार साइट ‘इंडीड’ के अनुसार, नियोक्ता (recruiters) भी अपने दूरस्थ कार्य एवं कार्यक्रमों पर पुनर्विचार कर रहे हैं। वास्तव में इंडीड प्लेटफार्म पर पोस्ट करने वाली सभी कंपनियों में 7.7% कम्पनियाँ ‘फ्लेक्सिबल’ (अपनी इच्छानुसार कार्य करने का अवसर) रोज़गार उपलब्ध कराती हैं।
  • इसके अतिरिक्त, इस साइट पर भारत द्वारा पोस्ट किये गए सभी रोज़गारों में से 2.8 % रोज़गार पार्ट-टाइम अथवा कॉन्ट्रैक्ट आधारित हैं।
  • जनवरी 2013 से अक्टूबर 2017 के दौरान एकत्रित किये गए आँकड़े यह दर्शाते हैं कि सेवा-क्षेत्र में संविदा आधारित नौकरियों की प्रवृत्ति मौसमी है। जहाँ वर्ष के अंत में इस प्रकार के रोज़गारों में वृद्धि होती है वहीं अन्य समयों पर इस प्रकार के रोज़गारों में कमी देखी जाती है। अब तक एकत्र किये गए आँकड़े यही दर्शाते हैं कि सेवा-क्षेत्र में कॉन्ट्रैक्ट बेस पर रोज़गार दिया जा रहा है।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पार्ट-टाइम रोज़गार के प्रतिशत में नवंबर से फरवरी के मध्य 5-10% से लेकर 20-25% की वृद्धि देखी गई है।
  • फ्लेक्सिबल रोज़गार वाले अन्य क्षेत्रों में मीडिया, रियल स्टेट, विधि अथवा कानून, आथित्य, प्रौद्यगिकी सहायता, प्रबंधन, चिकित्सा और शिक्षा शामिल हैं।
  • आज कई कर्मचारी फ्रीलांस अथवा पार्ट-टाइम नौकरी करने के कारण स्थायी रोज़गार से प्राप्त होने वाले अतिरिक लाभों (ग्रेच्युटी या स्वास्थ्य बीमा) का त्याग कर रहे हैं, क्योंकि वे रोजगारों में फ्लेक्सिबिलिटी की चाह करते हैं।
  • ‘इंडीड’ के आँकड़े फ्लेक्सिबल कार्य व्यवस्थाओं (मुख्यतः बड़े शहरों में) की बढ़ती मांग को दर्शाते हैं। दरअसल, बड़े शहरों में दैनिक आवागमन में ही सर्वाधिक समय की खपत हो जाती है।
  • यदि देश की मेट्रो सेवा की बात की जाए तो फ्लेक्सिबल कार्य के अवसर उपलब्ध कराने में नई दिल्ली, मुंबई और बंगलुरु का योगदान क्रमशः 27.35, 12.4% और 12.9% है।
  • दरअसल, सेवा-क्षेत्र जॉब फ्लेक्सिबिलिटी का सबसे बड़ा प्रदाता क्षेत्र है।
  • इसके अलावा वे रोज़गार जिनमें अधिकतम फ्लेक्सिबिलिटी उपलब्ध है उनमें फ्रीलांस फोटोग्राफर (68.5%), प्रोपर्टी मैनेजमेंट कंसलटेंट (53.6%), क्लेम इन्वेस्टिगेटर (52.8%), फ्रीलांस राइटर (49.5%) और इवेंट प्लानर (43.25%) शामिल हैं।
  • कई अन्य रोज़गारों जैसे डाटा-एंट्री क्लर्क को भी पार्ट-टाइम जॉब के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि इस साइट में पोस्ट किये गए रोजगारों में 16.9% रोज़गार इसी से संबंधित हैं।

गिग इकॉनमी क्या है?

  • आज स्वचालित होती दुनिया में रोज़गार की परिभाषा और कार्य का स्वरूप बदल रहा है। एक नई वैश्विक अर्थव्यवस्था उभर रही है, इसे ही 'गिग इकॉनमी’ नाम दिया गया है।
  • दरअसल, गिग इकॉनमी में फ्रीलान्स कार्य और एक निश्चित अवधि के लिये प्रोजेक्ट आधारित रोज़गार शामिल होते हैं। गिग इकॉनमी में किसी व्यक्ति की सफलता उसकी विशिष्ट निपुणता पर निर्भर करती है।
  • असाधारण प्रतिभा, गहरा अनुभव, विशेषज्ञ ज्ञान या प्रचलित कौशल प्राप्त श्रम बल ही गिग इकॉनमी में कार्य कर सकता है।
  • आज आप सरकारी नौकरी कर सकते हैं या किसी प्राइवेट कंपनी के मुलाज़िम बन सकते हैं, या एक मल्टीनेशनल कंपनी में रोज़गार ढूँढ सकते हैं लेकिन गिग इकॉनमी एक ऐसी जगह है जहाँ आप अपनी इच्छानुसार काम कर सकते हैं।
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