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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत-अमेरिका डॉलर विनिमय समझौते पर बातचीत

  • 13 Apr 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भारत-अमेरिका मुद्रा विनिमय समझौता, विदेशी मुद्रा भंडार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक क्षेत्र में COVID-19 के प्रभावों को देखते हुए भारत सरकार आने वाले दिनों में किसी भी अनिश्चितता की स्थिति से निपटने हेतु भारत और अमेरिका के बीच एक मुद्रा विनिमय समझौते (Currency Swap Agreement) पर सहमति के लिये प्रयास कर रही है।

मुख्य बिंदु:  

  • विश्व में COVID-19 से प्रभावित अन्य देशों की तरह भारत में भी स्वास्थ्य के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में भी इसके गंभीर प्रभाव देखने को मिले हैं। 
  • आर्थिक क्षेत्र में COVID-19 से उत्पन्न हुए दबाव के कारण मार्च और अप्रैल में अब तक भारतीय इक्विटी और ऋण बाज़ार में संस्थागत विदेशी निवेशकों द्वारा बड़ी मात्रा में शेयर की बिक्री देखी गई है।    
  • ध्यातव्य है कि हाल ही में भारतीय रुपए में भारी गिरावट देखी गई और इस दौरान भारतीय रुपए की कीमत 1 अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 76 रुपए तक हो गई थी।
  • 27 मार्च, 2020 तक भारत की विदेशी मुद्रा आस्तियां (Foreign Currency Assets) 7.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट के साथ 439.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई।  
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, भारतीय की कुल विदेशी मुद्रा अस्तियों में से 63.7% (256.17 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का निवेश विदेशी प्रतिभूतियों (विशेषकर अमेरिकी ट्रेज़री) में किया गया है। 

विदेशी मुद्रा भंडार

(Foreign exchange reserves):

  • किसी समय में एक देश/अर्थव्यवस्था के पास उपलब्ध कुल विदेशी मुद्रा उसकी विदेशी मुद्रा संपत्ति/भंडार कहलाती है। 
  • किसी देश के विदेशी मुद्रा भंडार से आशय उसकी विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों, स्वर्ण भंडार और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में उसके ‘विशेष आहरण अधिकार’ (Special Drawing Rights-SDRs) तथा रिज़र्व ट्रेन्च (Reserve Tranche) आदि से है। 
  • विदेशी मुद्रा भंडार, राष्ट्रीय मुद्रा में गिरावट या अस्थिरता को दूर करने में केंद्रीय बैंक की सहायता करते हैं।   
  • भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार को ‘भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934’ और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 के तहत विनियमित किया जाता है 

मुद्रा विनिमय (Currency Swap): 

  • एक द्विपक्षीय मुद्रा विनिमय समझौता दो देशों के बीच निश्चित विनिमय दर पर दी जाने वाली एक तरह की क्रेडिट लाइन है।
  • एक विनिमय समझौते (Swap Arrangement) में अमेरिकी फेडरल रिज़र्व विदेशी केंद्रीय बैंक को डॉलर प्रदान करता है और वह विदेशी केंद्रीय बैंक उस समय के बाज़ार विनिमय दर के आधार पर अमेरिकी फेडरल रिज़र्व को प्राप्त हुए डॉलर के बराबर अपनी मुद्रा देता है।
  • इसके साथ ही दोनों पक्ष एक निश्चित समय के बाद उसी विनिमय दर के आधार पर पुनः यह मुद्रा वापस करने के लिये एक समझौता करते हैं।
  • इस तरह के विनिमय में कोई बाज़ार जोखिम (Market Risk) नहीं होता है क्योंकि इसकी शर्तें पहले से ही निर्धारित होती हैं। 

लाभ:  

  • वर्तमान में COVID-19 के कारण आर्थिक क्षेत्र में उत्पन्न हुई चुनौतियों के बीच अमेरिका के साथ मुद्रा विनिमय की सुविधा से भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) को मुद्रा अस्थिरता से निपटने में सहायता प्राप्त होगी। 
  • अमेरिका के साथ मुद्रा विनिमय समझौते से भारतीय मुद्रा में आयात और निवेश करने वाले व्यापारियों के आत्मविश्वास को बढ़ावा मिलेगा।    
  • हालाँकि विशेषज्ञों  के अनुसार, वर्तमान में भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार मज़बूत स्थिति में है, कच्चे तेल की गिरती कीमतें भी भारत के पक्ष में है और चालू खाते (Current Account) की स्थिति भी मज़बूत हुई है, ऐसे में भारत बगैर किसी परेशानी के इस संकट से निपटने में सक्षम है, परंतु अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के साथ ‘स्वैप लाइन’ (Swap Line) का होना RBI को विदेशी मुद्रा बाज़ार के लिये अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करेगा। 

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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