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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत में विकराल होती बेरोज़गारी की समस्या

  • 28 Aug 2017
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

भारत में उच्च कार्य उत्पादकता एवं भली-भाँति भुगतान की जाने वाली नौकरियों को बढ़ावा देने के मुद्दे पर चर्चा करते हुए नीति योग द्वारा यह कहा गया है कि वर्तमान में बेरोज़गारी देश के लिये बहुत बड़ी समस्या नहीं है,बल्कि क्षमता के अनुसार रोज़गार न मिलना अवश्य एक बेहद गंभीर एवं चिंताजनक विषय है।

मुख्य बिंदु

  • हाल ही में नीति आयोग द्वारा जारी किये गए त्रि-वर्षीय एक्शन प्लान में यह कहा गया है कि आयात-प्रतिस्थापन रणनीति (import-substitution strategy)  के माध्यम से घरेलू बाज़ार पर ध्यान केंद्रित किये जाने से रोज़गार के अवसरों में वृद्धि होने की संभावना है।
  • ऐसा अनुमान इसलिये व्यक्त किया गया,क्योंकि आयात-प्रतिस्थापन रणनीति के अनुपालन से देश में बहुत सी छोटी-छोटी कंपनियों के समूह बनने की संभावना है। स्पष्टता यदि ऐसा होता है तो इससे देश में रोज़गार के अवसरों में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

इस संबंध में एन.एस.एस.ओ. की रिपोर्ट क्या कहती है?

  • पिछले कुछ समय से भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में ऐसे बहुत से अनुमान व्यक्त किये जा रहे हैं,जिनके अनुसार भारत में 'रोज़गार विहीन' वृद्धि हो रही है। 
  • हालाँकि, इन सभी विरोधाभासों के विपरीत राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office-NSSO) के रोज़गार बेरोज़गारी सर्वेक्षण (Employment Unemployment Surveys - EUS) ने लगातार तीन दशकों से भारत में बेरोज़गारी की कम एवं स्थिर दरों की जानकारी दी है।

विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति

  • यदि अर्थशास्त्र की भाषा में बात करें तो उच्च उत्पादकता से ही उच्च वेतन वाली नौकरियों का निर्माण होता है। यही किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के विकास एवं उन्नति का मूल मंत्र होता है।
  • इस संदर्भ में भारत की स्थिति का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि बेहतर रोज़गार के अवसरों में कमी भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में प्रस्तुत हुई है।
  • नीति आयोग द्वारा दक्षिण कोरिया, ताइवान, सिंगापुर और चीन जैसे शीर्ष विनिर्माण देशों के उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा गया है कि उक्त समस्या का समाधान निकालने के लिये भारत को "मेक इन इंडिया" जैसे अभियान को वैश्विक बाज़ारों के समक्ष प्रतिस्पर्धा में उतारना होगा, ताकि देश की अर्थव्यवस्था को एक मज़बूत आधार प्रदान किया जा सके।
  • चीन में कार्यशील जनसंख्या की बढ़ती उम्र की समस्या को भारत को एक बेहतर अवसर के रूप में लेना होगा, ताकि भविष्य में वह चीन की इस मज़बूरी का फायदा उठाते हुए अपनी अधिक से अधिक कार्यशील आबादी हेतु रोज़गार के अवसर उपलब्ध करा सके। 

इस संबंध में नीति आयोग की सिफारिशें

  • स्पष्ट रूप से यह समय भारत के लिये एक विनिर्माण एवं निर्यात-आधारित रणनीति को अपनाने का समय है।
  • नीति आयोग द्वारा अपने त्रि-वर्षीय एक्शन प्लान में इस बात की भी सिफारिश की गई है कि निर्यात-आधारित रणनीति को बढ़ावा देने के लिये भारत को तटीय रोज़गार क्षेत्र (Coastal Employment Zones - CEZ) के निर्माण की दिशा में भी कार्य करना चाहिये।
  • ऐसा इसलिये ताकि चीन से भारत के श्रम गहन क्षेत्रों (labour-intensive sectors) में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश को आकर्षित किया जा सके।
  • इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मौज़ूदगी इस क्षेत्र में एक बेहतर व्यापारिक व्यवस्था को जन्म देगी, जिसमें स्थानीय स्तर पर छोटी एवं मध्यम फर्में भी अत्यधिक उत्पादन करने के लिये प्रेरित होंगी, जिसके परिणामस्वरूप रोज़गार के अवसरों में वृद्धि होगी।
  • गौरतलब है कि ऐसे ही एक प्रयोग के परिणामस्वरूप पिछले कुछ समय से वस्त्र एवं परिधान उद्योग में निश्चित अवधि के रोज़गार के अवसरों में वृद्धि देखी गई है।
  • स्पष्ट रूप से इस विकल्प का प्रयोग अन्य क्षेत्रों में भी किया जा सकता है।
  • यह परिवर्तनकारी कदम नियोक्ताओं को ठेका श्रमिकों के बजाय नियमित रूप से तय अवधि के रोज़गार पर भरोसा करने के लिये प्रोत्साहित करेगा। 

निष्कर्ष

उपरोक्त बातों के अलावा, आयोग द्वारा इस बात पर भी बल दिया गया कि मौज़ूदा कानूनों में सुधार किये बिना इस दिशा में सफलता हासिल कर पाना आसान नहीं होगा। अत: सबसे पहले तो इस संबंध में कानूनी रूप से सुधार किये जाने की आवश्यकता है। वस्तुतः जब तक भारत मौज़ूदा कानूनों में संशोधन करने संबंधी कोई ठोस कदम नहीं उठाता है, तब तक इस स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन होने की संभावना नज़र नहीं आती है। अत: सरकार द्वारा इस दिशा में प्रभावकारी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, ताकि वृहद् स्तरीय बेरोज़गारी की समस्या के साथ-साथ रोज़गार विहीन वृद्धि की समस्या का सामना कर रहे देश को विकास की ओर उन्मुख किया जा सके।

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