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जैव विविधता और पर्यावरण

हरित ग्रिड पहल

  • 18 Jul 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

हरित ग्रिड पहल, वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड, सौर ऊर्जा, सोलर पैनल, सोलर पंप, सीओपी, नवीकरणीय क्षेत्र, आईएसए, जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ ऊर्जा, हीटवेव्स।

मेन्स के लिये:

अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये भारत की पहल, देश की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक समूहों का महत्त्व, OSOWOG में चुनौतियाँ और अवसर।

संदर्भ:

मई 2021 में भारत और यूनाइटेड किंगडम ने CoP26 में हरित ग्रिड पहल (GGI) को लॉन्च करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी;  हालाँकि अपशिष्ट निपटान के मुद्दों के कारण इस पहल के कार्यान्वयन में पर्यावरणीय लागत में वृद्धि की समस्या उत्पन्न होने की आशंका जताई गई है ।

वन सन,वन वर्ल्ड, वन ग्रिड:

  • परिचय:
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के तहत भारत ने यूनाइटेड किंगडम के साथ साझेदारी में हरित ग्रिड पहल- वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (GGI-OSOWOG) की शुरुआत की घोषणा की है।
  • उद्देश्य:
    • ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ की अवधारणा 'द सन नेवर सेट्स' यानी ‘सूरज कभी अस्त नहीं होता’ और यह किसी भी भौगोलिक स्थान पर, विश्व स्तर पर, किसी भी समय स्थिर रहता है, के विचार पर ज़ोर देती है।
    • इस पहल का उद्देश्य नवीकरणीय संसाधनों के प्रभावी उपयोग पर वैश्विक सहयोग के लिये एक ढाँचा तैयार करना और यह सुनिश्चित करने में मदद करना है कि सभी देशों के लिये वर्ष 2030 तक स्वच्छ एवं कुशल ऊर्जा की अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये एक विश्वसनीय विकल्प मौजूद हो।
    • इस परियोजना के माध्यम से सूर्य की ऊर्जा का दोहन करने और अक्षय ऊर्जा के संक्रमण में तेज़ी लाने के लिये एक वैश्विक इंटरकनेक्टेड बिजली ग्रिड का निर्माण करने की बात कही गई।
    • इस पहल के माध्यम से एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में 80 से अधिक देशों को सूरज की रोशनी के विभिन्न स्तरों से जोड़ने की उम्मीद है। एक संक्रमणकालीन प्रणाली सूर्य के प्रकाश के निम्न स्तर वाले देशों को इसकी अधिकता वाले क्षेत्रों से ऊर्जा प्राप्त करने में सक्षम बनाएगी।
  • ग्रिड कनेक्शन के विभिन्न चरण:
    • मध्य-पूर्व, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई (MESASEA) ग्रिड के साथ भारतीय ग्रिड का इंटरकनेक्शन।।
    • MESASEA ग्रिड का अफ्रीकी पावर ग्रिड के साथ इंटरकनेक्शन।
    • अंत में, वैश्विक इंटरकनेक्टिविटी।

GGI-OSOWOG का महत्त्व

  • यह पहल सीमा पार नवीकरणीय ऊर्जा हस्तांतरण परियोजनाओं को सुविधाजनक बनाने में मदद करने के लिये अधिक तकनीकी, वित्तीय और अनुसंधान सहयोग प्रदान करेगी, जो OSOWOG को वैश्विक बुनियादी ढाँचा प्रदान करेगा।
  • यह स्वच्छ ऊर्जा द्वारा संचालित दुनिया के लिये आवश्यक नए बुनियादी ढाँचे के निर्माण में तेज़ी लाने के लिये राष्ट्रीय सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय और तकनीकी संगठनों, व्यवस्थापकों तथा बिजली ऑपरेटरों के संगठनों के बीच मजबूती प्रदान करेगी।
  • यह परस्पर लाभ और वैश्विक स्थिरता के लिये साझा किये जाने वाले परस्पर नवीकरणीय ऊर्जा के वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से तेज़ी से विकास सुनिश्चित करेगी।
  • यह कम कार्बन, नवीन सौर परियोजनाओं की दिशा में गति और निवेश का एक पूल प्रदान करेगी तथा कुशल श्रमिकों को सौर ऊर्जा संचालित आर्थिक सुधार के लिये एक साथ लाएगी। यह निवेश को भी बढ़ावा दे सकती है और लाखों नई हरित नौकरियाँ पैदा कर सकती है।
  • इससे सभी सहभागी संस्थाओं के लिये कम परियोजना लागत, उच्च दक्षता और बढ़ी हुई संपत्ति का उपयोग होगा।
  • इसके परिणामस्वरूप आर्थिक लाभ सकारात्मक रूप से गरीबी उन्मूलन और पानी, स्वच्छता, भोजन एवं अन्य सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को कम करने में सहायता मिलेगी।
  • भारत में राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा प्रबंधन केंद्रों को क्षेत्रीय और वैश्विक प्रबंधन केंद्रों के रूप में विकसित होने में मदद मिलेगी।

भारत के लिये GGI-OSOWOG में चुनौतियाँ और अवसर:

  • चुनौतियाँ:
    • GGI का दस्तावेज़ीकरण देश में मौजूदा सौर ऊर्जा बुनियादी ढाँचे की दक्षता में सुधार पर टिप्पणी नहीं करता है।
    • अधिकांश सौर ऊर्जा अवसंरचनाएँ रेगिस्तानी क्षेत्रों में स्थित हैं, जो पैनलों पर धूल जमा करती हैं।
    • धूल की एक परत सौर ऊर्जा रूपांतरण दक्षता को 40% तक कम कर देती है।
    • सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ जैसे- बैटरी और पैनल ऊर्जा-गहन कच्चे माल तथा कई रसायनों एवं भारी धातुओं का उपयोग करते हैं जिन्हें सही ढंग से संभालने और निपटाने की आवश्यकता होती है।
    • यह मौजूदा बुनियादी ढाँचे को पुन: चक्रित करने और पुनर्व्यवस्थित करने के लिये रणनीतियों को परिभाषित नहीं करता है, जो कि चक्रीय अर्थव्यवस्था लेंस के माध्यम से देखने के लिये एक रोमांचक तरीका हो सकता है।
    • सोलर पैनल की लाइफ 20-25 वर्ष होती है, इसलिये कचरे की समस्या भविष्य में चुनौती बन सकती है।
  • अवसर:
    • थर्मल ऊर्जा पर निर्भर देश होने के नाते भारत कई क्षेत्रों में हीटवेव (जब मांग बढ़ जाती है) और कोयले की कमी के कारण विद्युत की गंभीर कमी का सामना करता है।
      • GGI थर्मल पावर प्लांटों को सौर ऊर्जा में बदलकर पारंपरिक ऊर्जा प्रणाली को बदल सकता है, जिससे भारत चरम मौसमी स्थिति के प्रति अधिक लचीला और जीवाश्म ईंधन पर कम निर्भर हो सकता है।
    • सौर ऊर्जा ग्रामीण भारत में लाखों लोगों के जीवन में सुधार कर रही है, जिससे वे पर्यावरण के अनुकूल गतिविधियों से अपने जीवन स्तर में सुधार करने में सक्षम हो रहे हैं।
      • इसका एक उदाहरण भूजल निकालने के लिये सौर ऊर्जा से चलने वाले कृषि पंप (पीएम-कुसुम) का कार्यान्वयन है, जो पारंपरिक डीज़ल पंपों की तुलना में अधिक पर्यावरण अनुकूल हैं।
        • भारत में डज़जल पंपों की संख्या एक करोड़ है।
        • ऐसा अनुमान है कि 10 लाख डीज़ल पंपों को सौर ऊर्जा से चलने वाले पंपों में बदलने से कृषि उत्पादन में 30,000 करोड़ रुपए का लाभ हो सकता है, साथ ही डीज़ल के उपयोग को भी कम किया जा सकता है।
      • GGI का कार्यान्वयन कई अन्य क्षेत्रों में ग्रामीण समुदायों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स तक पहुंँच, स्वच्छ पेयजल आदि।

आगे की राह

  • सौर ऊर्जा की पर्यावरणीय लागत, दक्षता के मुद्दे, रूपांतरण और हस्तांतरण के कारण ऊर्जा की हानि, तथा अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या आदि ऐसी बाधाएंँ हैं जिन्हें कार्यान्वयन निकायों द्वारा तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • भारत में अपशिष्ट निपटान के मुद्दों के कारण GGI के कार्यान्वयन में पर्यावरणीय लागत बढ़ जाती है।
    • मौजूदा बुनियादी ढांँचे के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण के लिये विशिष्ट प्रणालियों को विकसित करके इन बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है।
  • भारत में पहल को सफल बनाने के लिये पहल की लागतों और लाभों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
    • इसके संशोधनों की योजना उन तरीकों से बनाने की आवश्यकता है जो देश की आवश्यकताओं और संसाधन क्षमताओं के अनुरूप हों।
  • बहु-देशीय ग्रिड परियोजना की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिये संस्थान निर्माण महत्त्वपूर्ण है।
    • इस संदर्भ में इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) एक स्वतंत्र सुपरनेशनल संस्थान के रूप में कार्य कर सकता है ताकि यह निर्णय लिया जा सके कि ग्रिड को कैसे चलाया जाना चाहिये और विवादों का निपटारा कैसे किया जाना चाहिये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):

प्रश्न. सौर जल पंपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. सौर ऊर्जा का प्रयोग पृष्ठीय पंपों को चलाने के लिये हो सकता है, निमज्जनी (submersible) पंपों के लिये नहीं।
  2. सौर ऊर्जा का प्रयोग अपकेंद्री पंपों को चलाने के लिये हो सकता है और पिस्टन वाले पंपों के लिये नहीं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • सोलर पंपिंग सिस्टम में मुख्य घटकों में एक फोटोवोल्टिक (PV) सरणी, एक इलेक्ट्रिक मोटर और एक पंप शामिल है।
  • उनके कार्यात्मक तंत्र के आधार पर कई अलग-अलग प्रकार के सौर-संचालित पंप हैं लेकिन मुख्य रूप से चार प्रकार के सौर जल पंप हैं - सबमर्सिबल पंप, पृष्ठीय पंप, दिष्ट धारा (DC) पंप और प्रत्यावर्ती धारा (AC) पंप। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • सौर ऊर्जा का उपयोग अपकेंद्री और पिस्टन पंप दोनों को चलाने के लिये किया जा सकता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।

अतः विकल्प (D) सही उत्तर है।

स्रोत : डाउन टू अर्थ

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