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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीन संपादित सरसों

  • 23 Aug 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

जीन संपादन, भारत में सरसों, CRISPR/Cas9, ग्लूकोसाइनोलेट्स, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति, DNA, आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) पौधे

मेन्स के लिये:

सरसों की ब्रीडिंग में जीन संपादन का महत्त्व, जीनोम संपादन और आनुवंशिक संशोधन में अंतर

चर्चा में क्यों?

भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार कम तीखी गंध वाली सरसों (Low-Pungent Mustard) विकसित की है जो कीटरोधी होने के साथ रोग प्रतिरोधी भी है। यह गैर-GM और ट्रांसजीन-मुक्त होने के साथ-साथ CRISPR/Cas9 जीन एडिटिंग पर आधारित है।

सरसों की ब्रीडिंग में जीन संपादन का महत्त्व:

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत में उगाए जाने वाले पारंपरिक सरसों के बीज (ब्रैसिका जंकिया) में ग्लूकोसाइनोलेट्स नामक यौगिकों के लगभग 120-130 भाग प्रति मिलियन (ppm) होते हैं, जो सल्फर और नाइट्रोजन युक्त यौगिकों का एक समूह है तथा उसके तेल और भोजन की विशिष्ट तीक्ष्णता में योगदान देता है।
      • ये यौगिक प्राकृतिक रक्षक के रूप में काम करते हैं, पौधे को कीटों और बीमारियों से बचाते हैं।
      • इसकी तुलना में कैनोला के बीजों में बहुत कम, लगभग 30 ppm ग्लूकोसाइनोलेट्स होते हैं। इसका निम्न स्तर कैनोला तेल और भोजन को एक विशिष्ट सुखद स्वाद देता है।
    • तिलहन से खाना पकाने के लिये तेल प्राप्त होता है और इसमें बना बचा हुआ भोजन एक प्रोटीन युक्त घटक के रूप में पशु आहार में उपयोग किया जाता है। ग्लूकोसाइनोलेट्स से भरपूर रेपसीड मील (एक उच्च गुणवत्ता वाला पशु चारा) पशुओं को खिलाया जाता है लेकिन इसे घास और पानी के साथ मिलाने की आवश्यकता होती है।
      • उच्च ग्लूकोसाइनोलेट्स को पशुओं में गण्डमाला (गर्दन की सूजन) और आंतरिक अंग असामान्यताओं का कारण भी माना जाता है।
    • वैज्ञानिक कैनोला बीजों के समान सरसों के बीज विकसित करने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं जिनमें ग्लूकोसाइनोलेट्स कम हो
      • हालाँकि सरसों के बीज में ग्लूकोसाइनोलेट्स को कम करने से पौधे की कीटों और बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमज़ोर हो सकती है, जो एक चुनौती पेश करती है।
    • सरसों की ब्रीडिंग में जीन/जीनोम संपादन की भूमिका:
  • वैज्ञानिक ग्लूकोसाइनोलेट ट्रांसपोर्टर (GTR) जीन के रूप में ज्ञात विशिष्ट जीन को संशोधित करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं।
    • ये जीन सरसों के बीज में प्रमुख यौगिक ग्लूकोसाइनोलेट्स के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
  • इस संशोधन के लिये वैज्ञानिकों ने CRISPR/Cas9 नामक एक जीन-संपादन तकनीक का उपयोग किया, जो जीन अनुक्रमों को सटीकता से परिवर्तित करने में मदद करता है।
  • 'वरुण' नामक सरसों की एक विशेष किस्म में शोधकर्ताओं ने 12 GTR जीनों में से 10 पर विशेष अध्ययन किया है।
    • इन आनुवंशिक संशोधनों के माध्यम से उन्होंने इन जीनों द्वारा उत्पादित प्रोटीन को निष्क्रिय किया, जिसके परिणामस्वरूप बीजों के भीतर ग्लूकोसाइनोलेट स्तर में काफी कमी देखने को मिली।
  • कीट प्रतिरोध और पौधों की सुरक्षा पर जीन संपादन के प्रभाव:
  • संशोधित सरसों के पौधों के बीजों में ग्लूकोसाइनोलेट स्तर कैनोला-गुणवत्ता वाले बीजों के लिये निर्धारित 30 ppm सीमा से कम पाया गया।
  • जबकि बीजों के आसपास की पत्तियों और फलियों में ग्लूकोसाइनोलेट्स का स्तर अधिक पाया गया।
  • इस वृद्धि को इन यौगिकों के संचरण में उत्पन्न व्यवधान का प्रमुख कारक माना गया। पत्तियों और फलियों में ग्लूकोसाइनोलेट्स का बढ़ा हुआ यह स्तर पौधों की कीटों की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • इन आनुवंशिक संशोधनों के परिणामस्वरूप संपादित सरसों में कवक व कीट दोनों के प्रति रक्षा तंत्र मज़बूत होता पाया गया।

जीनोम संपादन और आनुवंशिक संशोधन के बीच अंतर:

  • GTR जीन-संपादित सरसों जीनोम संपादन का परिणाम है, यह उसे आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधों से अलग बनाती है।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों में इनका मिलान विदेशी जीन के साथ किया जाता है, जैसे कि कपास में बैसिलस थुरिंजिएन्सिस बैक्टीरिया या फिर आनुवंशिक रूप से संशोधित हाइब्रिड सरसों (DMH -11) में बार-बार्नसे-बारस्टार (अन्य मृदा के जीवाणुओं से अलग किया गया)। जबकि जीन संपादन नई आनुवंशि क सामग्री जोड़े बिना ही उन जीनों में मौजूद तत्त्वों को संशोधित करने पर केंद्रित है।
    • हाल ही में विकसित सरसों ट्रांसजीन से पूरी तरह मुक्त है और इसमें कोई विदेशी जीन नहीं है।
  • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि CRISPR/Cas9 एंजाइम, जो जीन संपादन के लिये कारगर होते हैं, की जीनोम-संपादित पौधों में मौजूदगी नहीं होती है।
  • यह उन्हें ट्रांसजेनिक GM फसलों से अलग करता है, जहाँ प्रविष्ट जीन बने रह सकते हैं।
  • विनियामक परिदृश्य और भविष्य की संभावनाएँ:
    • भारत में आनुवंशिक संशोधन का विनियमन सख्त है और इसके लिये पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC) से अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
      • हालाँकि MoEFCC के एक आधिकारिक ज्ञापन में उन जीनोम-संपादित (GE) पौधों को छूट मिली है, जिनमें विदेशी DNA को शामिल नहीं किया गया है और उन्हें खुले क्षेत्र के परीक्षणों के लिये GEAC अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।
      • नव विकसित जीनोम-संपादित सरसों संस्थागत जैव-सुरक्षा समिति (Institutional Bio-safety Committee- IBSC) से मंज़ूरी प्राप्त करने के बाद खुले क्षेत्र में परीक्षण के लिये इस्तेमाल की जा सकती है।
    • इन प्रगतियों के पर्याप्त संभावित लाभ हैं, विशेषतः इसलिये क्योंकि भारत वर्तमान में बड़ी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करता है, जिस पर सालाना काफी लागत आती है।
      • ये नवाचार फसल की पैदावार, कीटों के प्रतिरोध और उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाकर घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ाने में सक्षम हैं।
      • यह प्रगति अंततः आयातित वनस्पति तेलों पर देश की निर्भरता को कम करने में योगदान दे सकती है।

भारत में सरसों की खेती की स्थिति:

  • सरसों भारत में व्यापक रूप से उगाई जाने वाली तिलहन फसल है, जो 9 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में प्रतिवर्ष उगाई जाती है। इसे रबी मौसम में भी उगाया जाता है।
    • यह देखते हुए कि इसमें औसत तेल निकालने योग्य सामग्री (38%) अधिक होती है और यह एक अच्छी "तिलहन" फसल है, सरसों मनुष्यों और अन्य पशुओं के लिये प्रोटीन तथा वसा का भी एक अच्छा स्रोत है।
  • सरसों राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों के किसानों के लिये एक महत्त्वपूर्ण नकदी फसल है।

CRISPR-Cas9 प्रौद्योगिकी:

  • CRISPR-Cas9 एक अभूतपूर्व तकनीक है जो आनुवंशिकीविदों तथा चिकित्सा शोधकर्ताओं को जीनोम के विशिष्ट भागों को संशोधित करने का अधिकार देती है।
    • यह DNA अनुक्रम के भीतर खंडों को सटीक रूप से हटाने, जोड़ने या संशोधित करने के माध्यम से प्राप्त की जाती है।
  • CRISPR-Cas9 प्रणाली में दो महत्त्वपूर्ण घटक शामिल हैं जो DNA में परिवर्तन या उत्परिवर्तन लाते हैं। ये घटक हैं:
    • Cas9 नामक एक एंजाइम, जो सटीक 'आण्विक कैंची' (Molecular Scissors) के एक युग्म की तरह कार्य करता है।
      • Cas9, जीनोम में एक विशिष्ट स्थान पर DNA के दो रज्जुक (Strands) को काट सकता है ताकि DNA के खंडों को जोड़ा या हटाया जा सके।
    • RNA के एक खंड को गाइड RNA (gRNA) कहा जाता है। इसमें एक छोटा, पूर्व-डिज़ाइन किया गया RNA अनुक्रम शामिल है।
      • यह RNA अनुक्रम एक लंबी RNA संरचना के भीतर अंतर्निहित होता है। RNA का लंबा हिस्सा स्वयं को DNA से जोड़ता है, जबकि इसके भीतर का विशिष्ट अनुक्रम Cas9 के लिये "गाइड" (Guide) के रूप में कार्य करता है।
      • यह गाइड मैकेनिज़्म Cas9 एंजाइम को जीनोम में सटीक स्थान पर निर्देशित करता है जहाँ उसे कट करना चाहिये।
      • यह सुनिश्चित करता है कि Cas9 एंजाइम की काटने की क्रिया जीनोम में इच्छित बिंदु पर सटीक रूप से होती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्राय: समाचारों में आने वाला Cas9 प्रोटीन क्या है? (2019)

(a) लक्ष्य-साधित जीन संपादन (टारगेटेड जीन एडिटिंग) में प्रयुक्त आण्विक कैंची।
(b) रोगियों में रोगजनकों की ठीक-ठीक पहचान के लिये प्रयुक्त जैव संवेदक।
(c) एक जीन जो पादपों को पीड़क-प्रतिरोधी बनाता है।
(d) आनुवंशिकत: रूपांतरित फसलों में संश्लेषित होने वाला एक शाकनाशी पदार्थ।

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास-संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी? (2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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