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ईवीएम की सुरक्षा विशेषताओं संबंधी कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न

  • 13 Apr 2017
  • 28 min read

पिछले दिनों भारतीय निर्वाचन आयोग की इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों की विश्वसनीयता के संबंध में बहुत से सवाल उठाये गए। हालाँकि निर्वाचन आयोग द्वारा बार-बार ई.सी.आई.-ई.वी.एम. और उनसे संबंधित प्रणालियों के सुदृढ़, सुरक्षित और छेड़खानी-मुक्त होने का दावा किया गया। तथापि इस समस्त प्रक्रिया ने ई.वी.एम. के संबंध में एक भ्रम का वातावरण बनाने का काम किया है। यही कारण है कि भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा ई.वी.एम. की सत्यता प्रकट करने के लिये इससे संबंधित कुछ विशेष प्रश्नों के उत्तर जन साधारण के लिये प्रस्तुत किये हैं, जो कि इसप्रकार हैं| 
प्रश्न  - ई.वी.एम. के साथ छेड़खानी (Tampering) करने का क्या अर्थ है? 
उत्तर - ई.वी.एम. के साथ टैम्परिंग या छेड़खानी का अर्थ होता है, कंट्रोल यूनिट (सी.यू.) की मौजूदा माइक्रो चिप्स पर लिखित साफ्टवेयर प्रोग्राम में बदलाव करना या सीयू में नई माइक्रो चिप्स इंसर्ट (Insert) करके दुर्भावनापूर्ण साफ्टवेयर प्रोग्राम शुरू करना। इसके साथ-साथ बैलेट यूनिट में प्रेस की जाने वाली ऐसी ‘कीज़’ बनाना, जो कंट्रोल यूनिट में वफादारी के साथ परिणाम दर्ज न करती हो।
प्रश्न - क्या ई.सी.आई-ई.वी.एम. को हैक किया जा सकता है?
उत्तर -  इस प्रश्न का उत्तर है नहीं। ऐसा नहीं किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि ई.वी.एम. मशीनों के एम-1 (MODEL-1) का विनिर्माण वर्ष 2006 तक पूरा कर लिया गया था| इसके साथ-साथ एम-1 मशीनों की सभी अनिवार्य तकनीकी विशेषताओं को कुछ इस तरह से निर्मित किया गया है कि इन्हें हैक नहीं किया जा सकता है।

  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2006 में तकनीकी मूल्यांकन समिति की सिफारिशों के आधार पर 2006 के बाद और 2012 तक विनिर्मित ई.वी.एम. के एम-2 मॉडल में अतिरिक्त सुरक्षा विशेषता के रूप में एन्क्रिप्टिड फार्म यानी कूट रूप में प्रमुख कोड्स की डायनामिक कोडिंग (incorporated dynamic coding of key codes) शामिल की गई, जिसके फलस्वरूप बैलेट यूनिट से कंट्रोल यूनिट में की-प्रेस संदेश हस्तांतरित करना संभव हुआ।
  • इसमें प्रत्येक ‘की-प्रेस’ की रीयल टाइम सेटिंग भी शामिल है, ताकि कभी भी किसी गलत तरीके से की गई ‘की-प्रेस’ सहित ‘की-प्रेस’ की सीक्वेंसिंग का पता लगाया जा सकें और रैप्ड किया जा सकें।
  • इसके अतिरिक्त ई.सी.आई-ई.वी.एम. कंप्यूटर नियंत्रित नहीं है, ये स्टैंड अलोन यानी स्वतंत्र मशीनें होती हैं और वे इंटरनेट और/या किसी अन्य नेटवर्क के साथ किसी भी समय बिंदु पर कनेक्टिड नहीं होती हैं। अतः किसी रिमोट डिवाइस के जरिये इन्हें हैक करने की कोई गुंजाइश नहीं होती है।
  • ई.सी.आई-ई.वी.एम. में वायरलेस या किसी बाहरी हार्डवेयर पोर्ट के लिये किसी अन्य गैर-ईवीएम एक्सेसरी के साथ कनेक्शन के जरिये कोई फ्रीक्वेंसी रिसीवर या डेटा के लिये डीकार्डर नहीं होता है। 
  • स्पष्ट है कि हार्डवेयर पोर्ट या वायरलेस या वाईफाई या ब्लूटूथ डिवाइस के जरिये किसी प्रकार की टैम्परिंग या छेड़छाड़ संभव नहीं है, क्योंकि कंट्रोल यूनिट (Control Unit-CU) बैलेट यूनिट (Ballot Unit - BU) से केवल एन्क्रिप्टिड या डाइनामिकली कोडिड डेटा ही स्वीकार करती है। विदित हो कि सी.यू. द्वारा किसी अन्य प्रकार का डेटा स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न - क्या विनिर्माताओं द्वारा ई.सी.आई-ई.वी.एम. में कोई हेराफेरी (मैनीपुलेशन) की जा सकती है?
उत्तर - इसका उत्तर नहीं, ऐसा संभव ही नहीं है। साफ्टवेयर की सुरक्षा के बारे में विनिर्माता के स्तर पर कड़ा सुरक्षा प्रोटोकोल लागू किया गया है। ये मशीनें 2006 से लगातार अलग अलग वर्षों में विनिर्मित की जा रही हैं। विनिर्माण के बाद ई.वी.एम. को राज्य और किसी राज्य के भीतर ज़िले से ज़िले में भेजा जाता है।

  • ऐसी स्थिति में विनिर्माता मशीनों के साथ-साथ सिर्फ इसलिये नहीं घूम सकते हैं कि वे इस बात का पता लगा सकें कि कौन सा उम्मीदवार किस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेगा और बैलेट यूनिट में उम्मीदवारों की सीक्वेंस क्या होगी।
  • इतना ही नहीं, प्रत्येक ई.सी.आई-ई.वी.एम. का एक सीरियल नम्बर होता है और निर्वाचन आयोग ई.वी.एम-ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अपने डेटा बेस से यह पता लगा सकता है कि कब किस समय कौन सी मशीन कहाँ पर है। अतः विनिर्माण के स्तर पर हेराफेरी की कोई गुंजाइश संभव ही नहीं है।

प्रश्न - क्या सी.यू. में चिप के भीतर ट्रोजन होर्स को घुसाया जा सकता है?
उत्तर - निर्वाचन आयोग द्वारा किये गए कड़े सुरक्षा उपाय फील्ड में ट्रोजन होर्स का प्रवेश असंभव बना देते हैं। गौरतलब है कि जब कंट्रोल यूनिट में कोई बैलेट ‘की-प्रेस’ की जाती है, तो सी.यू., बी.यू. को वोट रजिस्टर करने की अनुमति देती है और बी.यू. में ‘की-प्रेस’ होने का इंतजार करती है। इस अवधि के दौरान सी.यू. में सभी ‘की’, उस वोट के कास्ट होने की समूची सीक्वेंस पूरा होने तक निष्क्रिय हो जाती हैं।

  • किसी मतदाता द्वारा मशीन  में मौजूद सभी ‘कीज़’ (उम्मीदवारों के वोट बटन) में से कोई एक ‘की’ (KEY) दबाने के बाद बी.यू. उस ‘की’ से संबंधित जानकारी सी.यू. को ट्रांसफर करती है। सी.यू. को डेटा प्राप्त होता है और वह तत्क्षण बी.यू. में एल.ई.डी. लैंप की चमक के साथ उसकी प्राप्ति स्वीकार करती है।
  • सी.यू. में बैलेट को सक्षम करने के बाद केवल ‘प्रथम प्रेस की गई ‘की’’ को सी.यू. द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है। इसके बाद, भले ही कोई मतदाता अन्य बटनों को दबाता रहे, उसका कोई असर नहीं होता है, क्योंकि बाद में दबाए गए बटनों के परिणामस्वरूप सी.यू. और बी.यू. के बीच कोई कम्युनिकेशन नहीं होता है और न ही बी.यू. किसी ‘की-प्रेस’ को रजिस्टर करती है।
  • इसे दूसरे शब्दों में इस प्रकार कहा जा सकता है कि सी.यू. का इस्तेमाल करके सक्षम किये गए प्रत्येक बैलेट के लिये केवल एक वैध ‘की-प्रेस’ (प्रथम की-प्रेस) होती है। एक बार वैध ‘की’ प्रेस होने (वोटिंग प्रक्रिया पूरी होने) पर सी.यू. और बी.यू. के बीच कोई गतिविधि तब तक नहीं होती, जब तक कि सी.यू. द्वारा अन्य बैलेट सक्षम बनाने वाली की प्रेस ‘की’ की व्यवस्था नहीं कर दी जाती।
  • अतः वर्तमान में देश में इस्तेमाल की जा रही इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों में तथाकथित ‘सीक्वेंस्ड की प्रेसिज़’ यानी ‘सिलसिलेवार बटन दबाने’ के जरिये दुर्भावनापूर्ण संकेत भेजना संभव नहीं है।

प्रश्न - क्या ई.सी.आई-ई.वी.एम. का पुराना मॉडल अभी भी चलन में है?
उत्तर - ई.वी.एम. का एम-1 वर्ष 2006 में बनाया गया था और पिछली बार वर्ष 2014 के आम चुनावों में इसे इस्तेमाल किया गया था। वर्ष 2014 में जिन ई.वी.एम. ने 15 वर्ष का जीवनकाल पूरा कर लिया था और एम-1 मॉडल की ऐसी मशीनें, जो वी.वी.पी.ए.टी. (voter-verified paper audit trai) के अनुकूल नहीं थीं, को मद्देनज़र रखते हुए निर्वाचन आयोग ने 2006 तक विनिर्मित सभी एम-1 ई.वी.एम. को हटाने का फैसला किया।

  • ई.वी.एम. मशीनों को हटाने के लिये निर्वाचन आयोग ने एक मानक प्रचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure) निर्धारित की है।
  • ध्यातव्य है कि ई.वी.एम. और उसकी चिप को नष्ट करने की प्रक्रिया को विनिर्माताओं की फैक्टरी के भीतर राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारी या उसके प्रतिनिधि की मौजूदगी में अंजाम दिया जाता है।

प्रश्न - क्‍या ई.सी.आई-ई.वी.एम. के साथ भौतिक रूप से छेड़छाड़ की जा सकती है या बिना किसी के ध्‍यान में आए उनके संघटकों को बदला जा सकता है? 
उत्तर - ई.सी.आई-ई.वी.एम. के पुराने मॉडलों एम-1 एवं एम-2 में विद्यमान सुरक्षा विशेषताओं के अतिरिक्‍त वर्ष 2013 के बाद बनाई गई नई एम-3 ई.वी.एम. में टेम्‍पर डिटेक्‍शन एवं सेल्‍फ डाइगनोस्टिक्‍स जैसी अतिरिक्‍त विशेषताएँ विद्यमान हैं।

  • टेम्‍पर डिटेक्‍शन विशेषता के कारण जैसे ही कोई व्‍यक्ति मशीन खोलने का प्रयास करता है, ई.वी.एम. निष्‍क्रिय हो जाता है। 
  • सेल्‍फ डाइगनोस्टिक्‍स विशेषता के कारण जब भी ई.वी.एम. मशीन को स्विच ऑन किया जाता है, तो यह सिस्टम पूरी तरह से मशीन की जाँच करता है। जिसके इसके हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर में हुए किसी भी परिवर्तन का पता लगाया जा सकें।
  • उपरोक्‍त विशेषताओं के साथ नये मॉडल एम-3 का एक प्रोटोटाइप जल्‍द ही तैयार होने की संभावना है। गौरतलब है कि इसकी जाँच एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति द्वारा की जाएगी। इसके पश्चात् ही इस मॉडल की मशीनों का निर्माण कार्य आरंभ होगा।
  • उपरोक्‍त अतिरिक्‍त विशेषताओं एवं नई प्रौद्योगिकीय उन्‍नतियों के साथ एम-3 ई.वी.एम. की खरीद के लिये सरकार द्वारा लगभग 2000 करोड़ रुपये जारी किये जा चुके हैं।

प्रश्न - ई.सी.आई-ई.वी.एम. को छेड़खानी मुक्‍त बनाने के लिये नवीनतम प्रौद्योगिकीय विशेषताएँ क्‍या-क्या हैं?
उत्तर - ई.सी.आई-ई.वी.एम. मशीन को 100 प्रतिशत छेड़खानी मुक्‍त बनाने के लिये कई अन्‍य कदमों के साथ-साथ वन टाइम प्रोग्रामेबल (ओटीपी) माइक्रोकंट्रोलर्स, की कोड्स की गतिशील कोडिंग, प्रत्‍येक ‘की-प्रेस’ की तिथि एवं समय की स्‍टाम्पिंग, उन्‍नत इनक्रिप्‍शन प्रौद्योगिकी एवं ई.वी.एम. लॉजिस्टिक्‍स के संचालन के लिये ई.वी.एम. ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर जैसी सर्वाधिक परिष्‍कृत प्रौद्योगिकीय विशेषताओं का उपयोग करती है।

  • इसके अतिरिक्त नए मॉडल एम-3 ई.वी.एम. में टेम्‍पर डिटेक्‍शन एवं सेल्‍फ डाइगनोस्टिक्‍स जैसी अतिरिक्‍त विशेषताएँ भी हैं। चूंकि, सॉफ्टवेयर ओटीपी पर आधारित है, इसलिये प्रोग्राम को न तो बदला जा सकता है और न ही इसे रि-राइट या रि-रेड ही किया जा सकता है। इस प्रकार यह ई.वी.एम. को छेड़खानी मुक्‍त बना देता है। अगर कोई इसकी कोशिश करता भी है तो मशीन निष्क्रिय बन जाएगी।   

प्रश्न - क्‍या ई.सी.आई-ई.वी.एम. विदेशी प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं?
उत्तर - नहीं, भारत विदेशों में बने किसी ई.वी.एम. का उपयोग नहीं करता है। ई.वी.एम. का निर्माण स्‍वदेशी तरीके से सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियों यथा-भारत इलेक्‍ट्रोनिक्‍स लिमिटेड, बेंगलुरु एवं इलेक्‍ट्रोनिक्‍स कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद द्वारा किया जाता है।

  • सॉफ्टवेयर प्रोग्राम कोड इन दोनों कंपनियों द्वारा आं‍तरिक तरीके से तैयार किया जाता है न कि उन्‍हें आउटसोर्स किया जाता है। ये सुरक्षा के सर्वोच्‍च मानकों का अनुपालन करने और उन्‍हें बनाए रखने के लिये फैक्‍ट्री स्‍तर पर सुरक्षा प्रक्रियाओं के विषय होते हैं।
  • प्रोग्राम को मशीन कोड में रुपांतरित किया जाता है और उसके बाद ही विदेशों के चिप विनिर्माताओं को दिया जाता है, क्‍योंकि हमारे पास देश के भीतर अभी सेमीकंडक्‍टर माइक्रोचिप निर्माण करने की क्षमता मौजूद नहीं है।
  • प्रत्‍येक माइक्रोचिप के पास मेमोरी में सन्निहित एक पहचान संख्‍या होती है और उन पर निर्माताओं के डिजिटल हस्‍ताक्षर होते हैं।
  • माइक्रोचिप को विस्‍थापित करने की किसी भी कोशिश का पता लगाया जा सकता है और ई.वी.एम. को निष्‍क्रिय बनाया जा सकता है। इस प्रकार, वर्तमान प्रोग्राम को परिवर्तित करने एवं नया प्रोग्राम लागू करने, जैसी दोनों ही स्थितियों का आसानी से पता लगाया जा सकता है।

प्रश्न - भंडारण के स्‍थान पर हेरफेर किए जाने की कितनी आशंका हैं ?
उत्तर - जिला मुख्‍यालय में ई.वी.एम. को उपयुक्‍त सुरक्षा के तहत एक दोहरे ताले वाली प्रणाली में रखा जाता है। उनकी सुरक्षा की समय-समय पर जाँच की जाती है। 

  • अधिकारी स्‍ट्रॉंग रूम को नहीं खोलते हैं, लेकिन वे इसकी जांच करते हैं कि ये पूरी तरह सुरक्षित है या नहीं और क्‍या ताला समुचित अवस्‍था में है या नहीं।
  • किसी भी अनाधिकृत व्‍यक्ति को किसी भी स्थिति में ई.वी.एम. के पास जाने की अनुमति नहीं होती है।
  • जब चुनाव का समय नहीं होता है, तब उस अवधि के दौरान, सभी ई.वी.एम. का वार्षिक भौतिक सत्‍यापन डी.ई.ओ. द्वारा किया जाता है और ई.सी.आई. को रिपोर्ट भेजी जाती है। गौरतलब है कि इसके निरीक्षण एवं जाँच का कार्य अभी हाल ही में संपन्‍न किया गया है।

प्रश्न - स्‍थानीय निकाय चुनावों में ईवीएम के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप किस हद तक सही हैं?
उत्तर - न्‍यायाधिकार क्षेत्र के बारे में जानकारी के अभाव के कारण इस संबंध में लोगों को नाहक ही गलतफहमी है। नगरपालिका निकायों या पंचायत चुनावों जैसे ग्रामीण निकायों के चुनावों के मामले में उपयोग में लाए गए ई.वी.एम. भारत के चुनाव आयोग के नहीं होते हैं।

  • स्‍थानीय निकाय चुनावों से ऊपर के चुनाव राज्‍य चुनाव आयोग (एस.ई.सी.) के अधिकार क्षेत्र के तहत आते हैं, जो अपनी खुद की मशीनें खरीदते हैं और उनकी अपनी संचालन प्रणाली होती है।
  • भारत का चुनाव आयोग उपरोक्‍त चुनावों में एस.ई.सी. द्वारा उपयोग में लाए गए ई.वी.एम. के कामकाज के लिये ज़िम्‍मेदार नहीं है।

प्रश्न – ई.सी.आई–ई.वी.एम. के साथ छेड़छाड़ न हो, यह सुनिश्चित करने के लिये सतत जाँच एवं निगरानी के विभिन्‍न स्‍तर कौन-कौन से हैं?
उत्तर - सर्वप्रथम बी.ई.एल/ ई.सी.आई.एल. के इंजीनियर प्रत्‍येक ई.वी.एम. की तकनीकी एवं भौतिक जाँच के बाद संघटकों की मौलिकता को प्रमाणित करते हैं, यह कार्य सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के समक्ष किया जाता है।

  • त्रु‍टिपूर्ण ई.वी.एम. को वापस फैक्‍ट्री में भेज दिया जाता है। एफ.एल.सी. हॉल को साफ-सुथरा बनाया जाता है, प्रवेश को प्रबंधित किया जाता है एवं अंदर किसी भी प्रकार के कैमरा, मोबाइल फोन या स्‍पाई पेन लाने की अनुमति नहीं दी जाती है।
  • राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के द्वारा औचक रूप से चुने गए 5 प्रतिशत ई.वी.एम. पर न्‍यूनतम 1000 मतों का एक कृत्रिम मतदान किया जाता है और उनके सामने इसका परिणाम प्रदर्शित किया जाता है। इसके साथ-साथ इस पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की जाती है।
  • यादृच्छिकीकरण (रैंडोमाइजेशन) : किसी विधान सभा और बाद में किसी मतदान केंद्र को आवंटित किये जाने के समय ई.वी.एम. की दो बार बहुत ही गहन तरीके से (यादृच्छिक) जांच की जाती है जिससे किसी निर्धारित आवंटन की संभावना खत्‍म हो जाए।
  • मतदान प्रारंभ होने से पहले, चुनाव वाले दिन उम्‍मीदवारों के मतदान एजेंटों के समक्ष मतदान केंद्रों पर कृत्रिम मतदान का संचालन किया जाता है। मतदान के बाद ई.वी.एम. को सील किया जाता है और मतदान एजेंटों द्वारा सील पर उनके हस्‍ताक्षर लिये जाते हैं। मतदान एजेंटों को परिवहन के दौरान स्‍ट्रॉंग रूम तक जाने की अनुमति होती हैं।
  • स्‍ट्रॉंग रूम : उम्‍मीदवार या उनके प्रतिनिधि स्‍ट्रॉंग रूम पर अपने खुद के सील लगा सकते हैं, जहां मतदान के बाद मतदान किये हुए ई.वी.एम. का भंडारण किया जाता है। इतना ही नहीं वे स्‍ट्रॉग रूम के सामने शिविर भी लगा सकते हैं। इन स्‍ट्रॉंग रूम की सुरक्षा 24 घंटे बहुस्‍तरीय तरीके से की जाती है।
  • मतगणना केंद्र : मतदान किये हुए ई.वी.एम. को मतगणना केंद्रों पर लाया जाता है और मतगणना आरंभ होने से पहले उम्‍मीदवारों के प्रतिनिधियों के समक्ष सीलों और सी.यू. की विशिष्‍ट पहचान प्रदर्शित की जाती है।

प्रश्न - क्‍या हेरफेर किये गये किसी ई.वी.एम. को बिना किसी की जानकारी के मतदान प्रक्रिया में पुन: शामिल किया जा सकता है?
उत्तर - सर्वप्रथम तो इस बात का प्रश्‍न ही नहीं उठता है। ई.सी.आई. द्वारा ई.वी.एम. को छेड़छाड़ मुक्‍त बनाने के लिये उठाए गए सतत जाँच एवं निगरानी के ठोस कदमों की उपरोक्‍त श्रृंखला को देखते हुए, यह स्‍पष्‍ट है कि न तो मशीनों के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है और न ही त्रृ‍टिपूर्ण मशीनों को किसी भी समय मतदान प्रक्रिया में फिर से शामिल ही किया जा सकता है। 

  • क्‍योंकि गैर-ई.सी.आई-ई.वी.एम. का उपरोक्‍त प्रक्रिया और बी.यू. एवं सी.यू. से बेमेल होने के कारण ऐसी किसी भी मशीन का का पता लगाया जा सकता है।
  • कड़ी जाँचों एवं परीक्षणों के विभिन्‍न स्‍तरों के कारण न तो ई.सी.आई-ई.वी.एम. ई.सी.आई. प्रणाली को छोड़ सकता है और न ही किसी बाहरी मशीन (गैर- ई.सी.आई-ई.वी.एम.) को इस प्रणाली में शामिल ही किया जा सकता है।

प्रश्न - अमेरिका एवं यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों में ई.वी.एम. को क्‍यों नहीं अपनाया है और कुछ देशों ने यह प्रणाली क्‍यों त्‍याग दी है?
उत्तर - जैसा की हम सभी जानते हैं कि कुछ देशों द्वारा अतीत में इलेक्‍ट्रोनिक मतदान के साथ प्रयोग किया गया है। इन देशों में मशीनों के साथ समस्‍या यह थी कि वे कंप्‍यूटर द्वारा नियंत्रित थी।  जिसके कारण उनमें हैकिंग किये जाने की आशंका बहुत अधिक थी जिससे इसका उद्देश्‍य पूरा नहीं हो पाता था।

  • इसके अतिरिक्‍त, उनकी सुरक्षा, हिफाजत एवं संरक्षण से संबंधित कानूनों एवं विनियमनों में पर्याप्‍त सुरक्षा के उपायों की कमी भी विद्यमान थी।
  • इन सबके विपरीत भारतीय ई.वी.एम. एक स्‍वतंत्र प्रणाली है। हालाँकि भारत ने आंशिक रूप से ही सही, कागज लेखा परीक्षा निशान (पेपर ऑडिट ट्रेल) लागू किया है। जबकि दूसरे देशों के पास लेखा परीक्षण निशान नहीं थे। उपरोक्‍त सभी देशों में मतदान के दौरान सोर्स कोड को बंद कर दिया जाता है। भारत के पास भी मेमो‍री से जुड़े क्‍लोज्‍ड सोर्स और ओटीपी है।
  • दूसरी तरफ, ई.सी.आई-ई.वी.एम. एक स्‍वतंत्र उपकरण है, जो किसी भी नेटवर्क से नहीं जुड़ा है। यही कारण है कि भारत में व्‍यक्तिगत रूप से किसी के लिये भी 1.4 मिलियन मशीनों के साथ छेड़छाड़ करना असंभव नहीं है।
  • मतदान के दौरान देश में पहले होने वाली चुनावी हिंसा एवं फर्जी मतदान, बूथ कैप्‍चरिंग आदि जैसी अन्‍य चुनाव संबंधी गलत हरकतों को देखते हुए ईवीएम भारत के लिए सर्वाधिक अनुकूल हैं।
  • उल्‍लेखनीय है कि जर्मनी, आयरलैंड एवं नीदरलैंड जैसे देशों के विपरीत भारतीय कानूनों एवं ई.सी.आई. वि‍नियमनों में ईवीएम की सुरक्षा एवं हिफाजत के लिये पर्याप्‍त सुरक्षोपाय अंतर्निहित हैं।
  • इसके अतिरिक्‍त, सुरक्षित प्रौद्योगिकीय विशेषताओं के कारण भारतीय ई.वी.एम. बहुत उत्‍कृष्‍ट श्रेणी के हैं। भारतीय ई.वी.एम. इस वजह से भी विशिष्‍ट हैं क्‍योंकि मतदाताओं के लिये पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिये चरणबद्ध तरीके से ई.वी.एम. में वीवीपीएटी का भी उपयोग करने की योजना बनाई जा रही है।
  • नीदरलैंड के मामले में, मशीनों के भंडारण, परिवहन एवं सुरक्षा को लेकर नियमों का अभाव था। नीदरलैंड में बनी मशीनों का उपयोग आयरलैंड एवं जर्मनी में भी किया जाता था। 2005 के एक फैसले में जर्मनी के न्‍यायालय ने चुनाव की सार्वजनिक प्रकृति एवं मूलभूत कानून के विशेषाधिकार के उल्‍लंघन के आधार पर मतदान उपकरण अध्‍यादेश को असंवैधानिक पाया। इसलिये इन देशों के द्वारा नीदरलैंड में बनी मशीनों के उपयोग को बंद कर दिया गया।
  • आज भी अमेरिका समेत कई देशों में मतदान के लिये मशीनों का उपयोग किया जाता हैं। 

प्रश्न – वी.वी.पी.ए.टी सक्षम मशीनों की क्‍या स्थिति है?
उत्तर - गौरतलब है कि हाल ही में ई.सी.आई ने मतदाता सत्‍यापित कागज लेखा परीक्षा निशान (वी.वी.पी.ए.टी.) का उपयोग करते हुए 107 विधानसभा क्षेत्रों एवं 9 लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में चुनावों का संचालन किया है। वी.वी.पी.ए.टी. के साथ-साथ एम-2 एवं नई पीढ़ी एम-3 ई.वी.एम. का उपयोग मतदाताओं के भरोसे एवं पारदर्शिता को बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्‍मक योजना साबित होगा।

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